*Exclusive - गोरखपर - पहाड़पुर की मस्जिद में है 135 साल से दो अज़ीम बुजुर्ग हजरत सैयद अब्दुल्लाह शाह व हजरत सैयद अब्दुर्रज़्ज़ाक की मजार*


गोरखपुर। इमामुत तरीकत हजरत ख्वाजा बहाउद्दीन नक्शबंद अलैहिर्रहमां के सिलसिले को फरोग देने वाले और दीने इस्लाम की तबलीग करने वाले आरिफ बिल्लाह हजरत सैयद अब्दुल्लाह शाह अलैहिर्रहमां ने मुहल्ला काजीपुर खुर्द को अपना मरकज बनाया। आप जिला छपरा बिहार के रहने वाले थे। इस मुहल्ले में शरीफुन नस्ल रईस और घोड़ों के एक ताजिर बगर्जें तिजारत  आबाद थे। तिजारत का मरकज यही मुहल्ला था। ताजिर साहब की तीन साहबजादियां थीं। एक का निकाह मोहसिनुल मुल्क हैदराबाद दक्कन के साथ हुआ। दूसरी लड़की हजरत सैयद अब्दुल्लाह शाह के निकाह में आयीं और तीसरी किसी आली खानदान में ब्याहीं गयी। शेखे तरीकत हजरत अब्दुल्लाह शाह का आना जाना और गोरखपुर में बस जाना शादी के ही सबब से हुआ। जवानी के आलम में रुझान तनवीरे बातिन की तरफ था ही कि एक अल्लाह वाले जिनका नाम हजरत शाह इबादुल्लाह था आपको मिल गए। जल्दी ही तस्फी-ए-कल्ब व तजकी-ए-नफ्स में कामयाबी हासिल कर ली। साहिबे इस्तेदाद होने की वजह से फजले इलाही हुआ और पीरो मुर्शीद से खिलाफत मिली। मसनद रुसदो हिदायत पर जलवा अफरोज हुए। सैकड़ों को हिदायत मिली और बहुत से लोगों ने सिराते मुस्तकीम पायी। आपके मशहूर व मारूफ खलीफा हजरत शाह अब्दुल हक मुहाजिर मक्की अलैहिर्रहमां थे। यूं तो आपको सलासिले अरबा में खिलाफत थी वसूले इललल्लाह में तरीका-ए-नक्शबंदिया मुजद्दीदिया मजहरिया ही मश्क में रखा और इसी में तरबियत करते थे। आपके चहेते खलीफा ने आपके के लिए मखसूस प्याला जिस पर शिफा व बरकत की आयत कुरआनी कुंदा है भेजा था। यह प्याला नवादेरात में से कहा जा सकता है जो मोहतरमा कुदशिया बेगम अहलिया नवाब अली कदीर मरहूम के पास था। आपका विसाल 20 जिलहिज्जा 1305 हिजरी में हुआ। आपकी वफात पर खलीस साहब ने यह कताअ कहा

*कि जो तारीख पर खलीस ने फख्र, लिख दी बेजुर्म थे वो बंदाए खास। आयीं आवाज गैब से नागह, जीनत खुल्द शाह अब्दुल्लाह।।*

*आपका मजार शरीफ मुहल्ला पहाड़पुर की मस्जिद के आहाता में है।* पहले हर साल उर्स हुआ करता था।

*हजरत सैयद अब्दुर्रज़्ज़ाक शाह अलैहिर्रहमां* - मुहल्ला काजीपुर खुर्द में हजरत सैयद अब्दुल्लाह शाह के विसाल  के बाद अापके साहबजादे हजरत अब्दुर्रज़्ज़ाक शाह अलैहिर्रहमां मसनद-ए-खिलाफत पर जलवा अफरोज हुए। हजरत मजहर मीर शहीद जाने जानां अलैहिर्रहमां की शाख नक्शबंदिया के जो फुयूजों बरकात सीना ब सीना चले आ रहे थे उनको फरोग दिया। आपके दौर में बड़ी तेजीे से तरीकत की साख बिहार और बंगाल तक पहुंच गयी। मुरीदों को शरीयत की पाबंदी और तकवा में से आपके बुलंद मकाम का पता चलता है। आपने 14 सफर 1341 हिजरी को दुनिया छोड़ी। *मजार आपका आपके वालिद माजिद और पीरो मुर्शीद हजरत सैयद अब्दुल्लाह शाह के बगल में मुहल्ला पहाड़पुर की मस्जिद के आहाता में है।* पहले हर साल आपका उर्स मनाया जाता थामसायख ए गोरखपुर लेखक वहीदुल हसन पेज नं. 41, 42 व 43 से एक तारीख।

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