Exclusive : *गोरखपुर में है 105 साल पुराना हाजी कादिर बख्श शाह का शानदार मकबरा*
गोरखपुर। शहर के बनकटीचक मुहल्ले में 105 साल पुराना शानदार मकबरा है। जो उम्दा कारीगीरी का नमूना है। इस पर बने बेल बूटे लाजवाब है। इसे शानदार तरीके से बनाया गया है। इसका गुंबद दूर से ही इस मकबरे की खासियत बयां कर देता है। मकबरे की शोहरत की वजह से इससे जुड़ी मस्जिद को मकबरे वाली मस्जिद के नाम से जानी जाती है। यह एक बुजुर्ग हजरत हाजी कादिर बख्श शाह अलैहिर्रहमां का मकबरा है। जो गोरखपुर के बहुत बड़े बुजुर्ग गुजरे हैं। जिनका फैज आज भी जारी है। *मसायख-ए-गोरखपुर* के लेखक सूफी वहीदुल हसन पेज 44 व 45 पर लिखते है कि मुहल्ला बनकटीचक में खानदाने नक्शबंदिया मुजद्दीदिया के एक मशहूर व मारूफ शेखे तरीकत हजरत हाजी कादिर बख्श शाह हुए हैं। आप हजरत बख्शुल्लाह अलैहिर्रहमां के मुरीद थे। आपके पीरो मुर्शीद मौजा नागपुर जिला फैजाबाद के रहने वाले थे। हजरत हाजी बख्श के बेशुमार मुरीद थे। तकवा और इबादत में आप अपनी मिसाल थे। खानदाने नक्शबंदिया को इतना फरोग दिया कि आपके मुरीदीन का सिलसिला पूरे बंगाल में फैल गया। यह सिलसिला ढ़ाका व कुमलिया में अब भी जारी व सारी है। आपके खलीफा में महिसपुर साहब जिला कोमिल्लिया बांगलादेश में हजरत समरुद्दीन शाह हुए हैं। आप वहां के लोगों को अल्लाह पाक का नाम लेना कल्ब की जब़ान से सिखाते थे। जो खानदाने नक्शबंदिया का एक तरीका रहा है। हजरत कादिर बख्शा शाह का विसाल 23वीं शब रमजानुल मुबारक 1335 हिजरी में हुआ। मजार शरीफ बनकटीचक मुहल्ला की मस्जिद के आहाता में पुख्ता तौर पर मय गुंबद मौजूद है। इसी मकबरे की निस्बत से ही मस्जिद मकबरे वाली मस्जिद कही जाती है। हर साल आपका उर्स भी होता है। हजरत ऐनुल हक उर्फ मौलवी चुन्नन शाह भी इसी सिलसिले के पीर थे। जिन्होंने बहुत से लोगों को खानदाने नक्शबंदिया में मुरीद किया और उनकी तरबीयत भी अच्छी तरह से की। हजरत कादिर बख्श के उर्स की तकरीबात में बड़ी दिलचस्पी लेते थे। मस्जिद में नमाज बाजमात पढ़ने की आदत थी। आपका भी विसाल हो गया। आपका एक कौल था जो हर वक्त तरीकत की मजालिस में आपकी जब़ान पर बेसाख्ता आ जाया करता था कि बगैर शरीयत की पाबंदियों के किसी को कुछ हासिल नहीं हो सकता।
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