*जानिए गोरखपुर के सूफी हाता का इतिहास*



शहर गोरखपुर में एक मशहूर मुहल्ला तिवारीपुर (औलिया चक) है। इसी मुहल्ले में सूफी साहब का आहाता भी बहुत मशहूर है। इसमें बहुत से मकानात नजर आते हैं और आबादी भी अब घनी हो गई है। एक जमाना था कि यह अाहाता *हजरत सूफी मोहम्मद महमूद खां अलैहिर्रहमां* की जात बाबरकात से आपकी इबादत व रियाजत से मुनव्वर था। आप अपने जमाने के मशहूर व मारूफ सूफी थे और इसी निस्बत से इस क्षेत्र को सूफी साहब का आहाता भी कहा जाता है। सूफी साहब का आबाई वतन नजीबाबाद बिजनौर था। आपके वालिद का नाम लतीफुल्लाह खां था। गोरखपुर आने का सबब रेलवे की नौकरी थी फिर यहीं आबाद हो गए। सूफी साहब हजरत शाह मोहम्मद हुसैन अलैहिर्रहमां से मुरीद हुए। आपके पीरो मुर्शीद मुरादाबाद के रहने वाले थे। काफी मुजाहिदा और रियाजत के बाद आपको अपने पीरो मुर्शीद से इजाजत व खिलाफत मिली। आपका सिलसिला चिश्तिया साबिरीया था। आपकी शादी मेंहदी अली खां की बेटी से हुई। आपके ससुर एक अच्छे शायर थे। सूफी साहब साहिबे हाल बुजुर्ग थे। आप अच्छे वक्ता सच्चे आशिके रसूल थे। बकसरत दरूद शरीफ व सलाम पढ़ने वालों में थे। सिमां के शौकीन थे। मिलाद पढ़ने का बड़ा शौक था। आपकी शोहरत का सबब जिक्रे खैरुल अनाम ही था। गोरखपुर के अलावा गाजीपुर, रसड़ा, बलिया और बनारस वगैरह अकसर व बेसतर मिलाद पढ़ने के लिए बुलाये जाते थे। आपने इस शहर के अलावा दीगर जगहों पर भी लोगों को मुरीद किया। शेखे तरीकत के अलावा शेरों शायरी भी करते थे जिसकी हद नातगोई तक ही थीं। आपके चार लड़के और दो लड़कियां थीं। साहबजादों के नाम थे मसूद अहमद खां, अब्दुल्लाह खां, मोहम्मद अहमद खां, सईद अहमद खां। दोनों साहबजादियां लाहौर में ब्याहीं थीं। आपकी शायरी में बड़ी लताफत मिलती है। आप साहिबे कशफे करामत बुजुर्ग थे और बेहतरीन अख्लाक रखते थे। आपका मजार कच्ची बाग कब्रिस्तान में है।

*मसायख-ए-गोरखपुर किताब से**सूफी वहीदुल न द्वारा लिखित*

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