*जब गोरखपुर में अफगानों ने खदेड़ा मुगलिया सेना को*


*गोरखपुर के इतिहास का पन्ना*
गोरखपुर। सन् 1567 ई. में उजबेगों का पीछा करने के दौरान टोडरमल तथा फिदाई खां के नेतृत्व में मुगल सेना गोरखपुर तक आ पहुंचीं। धुरियापार के राजा ने आत्मसमर्पण किया। मझौली के राजा भीममल्ल ने भी मुगलों की आधीनता स्वीकार कर ली। मुगल सेना राप्ती नदी के सहारे गोरखपुर पहुंची। सतासी राज्य पर सुजान सिंह का शासन था। जिनकी राजधानी गोरखपुर में थी। मुगल सेना से सुजान सिंह लड़े और हार गए। सुजान सिंह को गोरखपुर छोड़ना पड़ा उन्होंने अपनी राजधानी भौवापार बना ली। मुगलों ने गोरखपुर में छावनी कायम की। पूरे जिले पर मुगलों का कब्जा हुआ। *राजा टोडरमल ने बाबा गोरखनाथ की समाधि स्थल एवं फिदाई खां ने एक मस्जिद बनवायी*। जौनपुर के विद्रोही उजबेग खान जमन की पराजय तथा मौत के बाद अकबर ने जौनपुर की जागीर मुनीम खां को प्रदान कर दी। मुनीम खां ने पायन्दा महमूद बंगश को गोरखपुर में अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया। इसी बीच में स्थानीय क्षत्रिय राजवंशों ने एक बार पुन: अफगानों की सहायता से मुगल सत्ता को उखाड़ फेंका (यानी गोरखपुर में अफगानी सेना आयी)। गोरखपुर में अफगानहाता गालिबन उन्हीं अफगान सेना के ठहरने की जगह हो सकती हो। खैर। स्थानीय राजाओं ने सन् 1572 ई. में युसूफ महमूद जो सुलेमान का पुत्र तथा बंगाल का शासक था के साथ मिलकर पायन्दा महूमद बंगश पर आक्रमण करके उसे गोरखपुर से बाहर कर दिया। जब मुनीम खां को इसकी खबर हुई तो वह गोरखपुर के लिए रवाना हुए। अफगानों को जब मुनीम खां के गोरखपुर आने की सूचना मिली तो वे भागकर बंगाल के दाउद खां व अन्य लोगों से जा मिलें। मुनीम खां का पुन: गोरखपुर पर अधिकार हुआ। *इस अवधि में गोरखपुर शहर में मुगल शासक द्वारा तांबें के सिक्के ढ़ालने का एक सरकारी टकसाल भी खोला गया*। जब बादशाह अकबर ने अपने साम्राज्य का पुनर्गठन किया तो गोरखपुर शहर का नाम अवध सूबे के पांच सरकारों में लिया जाने लगा। उस समय गोरखपुर में 24 महाल थे जो आधुनिक समय में गोरखपुर, बस्ती, गोंडा एवं आजमगढ़ जिलों में स्थित है। गोरखपुर का क्षेत्रफल 244283 बीघा तथा राजस्व 11926790 दाम था। गोरखपुर जनपद से अकबर को नियमित कर और सैनिक सहायता प्राप्त होने लगी। गोरखपुर उसके साम्राज्य का एक जिला (सरकार) बन गया।

(स्रोत : - गोरखपुर-परिक्षेत्र का इतिहास - डा. दानपाल सिंह - पेज नं. 44 से 49)

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