सबसे पहले ईमान लाने वाली खातून व उम्मुल मोमिनीन (मोमिनों की मां) हज़रते सैयदा ख़दीजतुल कुबरा रदियल्लाहु तआला अन्हा : ईमान वालों की अज़ीम माएं : "फ़ैज़ाने उम्महातुल मोमिनीन" "MOTHERS of the BELIEVERS" Seerat-e-Hazrat Khadija tul Kubra Radi'Allahu Anha Part 2 Women's Empowerment की मिसाल : पहली मुस्लिम खातून व Business Women हज़रते ख़दीजतुल कुबरा रदियल्लाहु तआला अन्हा की मुख्तसर ज़िंदगी : ईमान वालों की अज़ीम माएं : "फ़ैज़ाने उम्महातुल मोमिनीन" "MOTHERS of the BELIEVERS" Seerat-e-Hazrat Khadija tul Kubra Radi'Allahu Anha Part 2 Women's Empowerment की मिसाल : पहली मुस्लिम खातून व Business Women हज़रते ख़दीजतुल कुबरा रदियल्लाहु तआला अन्हा की मुख्तसर ज़िंदगी




सबसे पहले ईमान लाने वाली खुशनसीब खातून, उम्मुल मोमिनीन (मोमिनों की मां) हज़रते सैयदा ख़दीजतुल कुबरा रदियल्लाहु तआला अन्हा


शिफा खातून 

आलिमा कोर्स, साल ए अव्वल

मदरसा रज़ा ए मुस्तफा, तुर्कमानपुर, गोरखपुर।


हज़रते ख़दीजतुल कुबरा रदियल्लाहु तआला अन्हा पैगंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम की सबसे पहली बीवी हैं। आप अरब के मशहूर खानदान कुरैश की बहुत ही इज़्ज़तदार व मुमताज़ खातून थीं। आप बहुत सखी थीं। आप गरीबों, मुहताजों व रिश्तेदारों की मदद करती थीं। 


आपके वालिद का नाम ख़ुवैलिद बिन असद और वालिदा का नाम फातिमा बिन ज़ाएदह है। 


आपकी शराफत और पाकदामनी की बुनियाद पर मक्का वाले आपको ताहिरा (पाक दामन) के लकब से पुकारते थे। आपने बचपन से ही कभी बुत परस्ती नहीं की। आप बहुत बड़ी ताजिरा (Business women) थीं। 


आपकी पैदाइश आमुल फ़ील (जिस साल अब्रहा नामी बादशाह ने काबा शरीफ को शहीद करने के इरादे से हाथी के लश्कर भेजे थे।) से 15 साल पहले हुई। आपका मुबारक नाम ख़दीजा, कुन्नियत उम्मे क़ासिम, उम्मे हिंद और लकब अल कुबरा व ताहिरा है। 


वालिद की तरफ से आपका खानदानी सिलसिला यह बयान किया जाता है :

उम्मुल मोमिनीन ख़दीजा बिन्त ख़ुवैलिद बिन असद बिन अब्दुल उज़्ज़ बिन कुस्सा बिन किलाब बिन मुर्रह बिन का'ब बिन लुई बिन गालिब बिन फ़हिर्र और 


वालिदा की तरफ से खानदानी सिलसिला यह है :

फ़ातिमा बिन्ते जाइदह बिन असम्म बिन हरिम बिन रवाहा बिन हजर बिन अब्द बिन मईस बिन आमिर बिन लुअय्य बिन गालिब बिन फिहर। 


सबसे पहले आपका निकाह अबू हाला बिन जुरारह तमीमी से हुआ। कुछ दिनों बाद उनका इंतकाल हो गया। तो आपका निकाह अतीक बिन आबिद मख़जूमी से कर दिया गया। उसी दौरान अरब की मशहूर खूंरेज़ जंग जंगे हरबुल फिजार छिड़ गई। जिसमें आपके वालिद और शौहर मारे गए। यह वाक़िआ आमुल फील के बीस साल बाद पेश आया।


वालिद और शौहर के इंतकाल ने हज़रत ख़दीजा को दुख और दर्द का समंदर बना दिया और उनका आने वाला कल बज़ाहिर तारीक हो गया। लेकिन कुदरत ने उन्हें हक़ और नाहक़ में फर्क करने की दिमागी ताकत से मालामाल किया था। लिहाज़ा आप सब्र व ज़िम्मेदारी की चट्टान बनकर मैदाने अमल में उतरीं और कारोबार की बागडोर खुद अपने हाथों संभाला।


एक बार हज़रते ख़दीजा रदियल्लाहु तआला अन्हा ने पैगंबर ए आज़म हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम से फरमाया कि आप मेरा सामान लेकर मुल्क ए शाम (Syria) की तरफ जाइए मैं दूसरों को जो रुपया देती हूं आपको उसका दुगना दूूंगी। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम ने मान लिया और शाम जाने को तैयार हो गए। इस सफ़र ए तिजारत से हज़रत ख़दीजा को दुगना फायदा हुआ।


हज़रते ख़दीजा रदियल्लाहु तआला अन्हा ने हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम का तौर व तरीका, आदते करीमा और खूबसूरत ज़िंदगी देखकर आपसे निकाह की ख्वाहिश ज़ाहिर की। जिसे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही‌ वसल्लम ने कबूल कर लिया। निकाह के वक्त आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम की उम्र 25 साल और हज़रत खदीजा की उम्र 40 साल थी।


हज़रते ख़दीजा ने प्यारे आक़ा हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही‌ वसल्लम की वफादार बीवी बनकर पूरी दुनिया के लिए एक बेहतरीन मिसाल पेश की। हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही‌ वसल्लम को उनसे बेपनाह मुहब्बत थी। जब तक आप ज़िंदा रहीं हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही‌ वसल्लम ने किसी और से निकाह नहीं किया। हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही‌ वसल्लम को हज़रते ख़दीजा रदियल्लाहु तआला अन्हा से इस क़दर मुहब्बत थी कि उनकी वफात के बाद आप अपनी सबसे प्यारी बीवी हज़रते सैयदा आयशा रदियल्लाहु तआला अन्हा से फरमाया करते थे कि "अल्लाह की क़सम ख़दीजा से बेहतर मुझे कोई बीवी नहीं मिली, जब सब लोगों ने मेरे साथ बुरा सुलूक किया, मुझे झुठलाया मेरा इन्कार किया उस वक्त वो मुझ पर ईमान लाईं। जब सब लोग मुझे झुठला रहे थे उस वक्त उन्होंने मेरे ऊपर यकीन किया, जिस वक्त कोई इंसान मुझे कोई सामान देने के लिए तैयार नहीं था उस वक्त ख़दीजा ने मुझे अपना सारा माल और अपना सारा सामान दे दिया और उन्हीं के शिकम से अल्लाह तआला ने मुझे औलाद अता की।"


फज़ाइल व अख़्लाक और नेक किरदार में हज़रते ख़दीजा रदियल्लाहु तआला अन्हा की ज़ात बड़ी आला व पाक थी। कुुफ्र व शिर्क की अंधेरी फिज़ाओं में जब हक़ का पैगाम बुलंद करने वाले पैगंबर ए इस्लाम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम ने नबुव्वत की जिम्मेदारी अदा करना चाहा तो दुनिया से एक आवाज़ भी तरफदारी में न आई।


वादी अरफात, कोहे हिरा और जबले फारान की सब बस्तियां और आबादियां सन्नाटे में डूबी रहीं। एक आप ही की आवाज़ थी जो तरफदारी के हक़ में बुलंद हुई और एक आप ही का दिले नाज़ुक था जो इस अंधेरी दुनिया में अनवारे इलाही की रोशनी से रोशन हुआ। सच्चे दीन की आवाज़ पर सबसे पहले लब्बैक कहने वाली, अल्लाह तआला के आखरी पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही‌ वसल्लम की हिमायत में अपना कारोबार, अपनी तिजारत, अपनी दौलत, अपना ऐश ओ आराम बल्कि अपनी जान यहां तक कि सब कुछ कुर्बान करने के लिए आगे बढ़ने वाली खातून हैं। दौरे आजमाइश में आपका इसार और जज़्बा ए कुर्बानी बेमिसाल है। दुनिया में अफ़ज़लतरीन औरतें हज़रते मरियम बिन्त इमरान और हज़रते ख़दीजा बिन्त ख़ुवैलिद हैं।


एक मर्तबा का ज़िक्र है कि हज़रते जिब्रील अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि उनको जन्नत में ऐसा घर मिलने की खुशख़बरी दे दें जो मोती का होगा, जिसमें शोर और मेहनत व मशक्कत न होगी। गोया अल्लाह तआला हज़रते ख़दीजा की खिदमत व इताअत से इतना खुश हुआ कि आपको ज़िंदगी और दुनिया ही में जन्नत की खुशखबरी मिल गई। और जन्नत में मोती का घर मिलने  खुशख़बरी मिलना बदला है इस अमल का कि वह ईमान लाने में पहले पहल की थीं, इस जन्नती घर में शोर न होने की वजह ये है कि उन्होंने कभी भी हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही‌ वसल्लम से ऊंची आवाज़ में बात नहीं की थी और न ही कभी भी उनको ज़िंदगी में तकलीफ व मुसीबत में डाला।


हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम व हज़रते ख़दीजा के दो बेटे और चार बेटियां हैं। बेटों में हज़रत कासिम व हज़रत अब्दुल्लाह और बेटियों में हज़रते जैनब, हज़रते रुक़य्या, हज़रते उम्मे कुलसुम, हज़रते फ़ातिमा ज़हरा शामिल हैं। 


हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रते ख़दीजा की वफात के बाद बहुत सी औरतों से निकाह फरमाया, लेकिन हज़रते खदीजा की मुहब्बत आखरी उम्र तक हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही‌ वसल्लम के दिले मुबारक में रची बसी रही और हमेशा हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही‌ वसल्लम हज़रते बीबी ख़दीजा का ज़िक्र करते रहते।  हज़रत ख़दीजा रदियल्लाहु तआला अन्हा ज़ाहिरी तौर पर 25 साल नबी पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही‌ वसल्लम के निकाह में रहीं।


हज़रत खदीजा ने 65 साल की उम्र में 10 रमज़ान 10 नबवी (यानी ऐलान नबुव्वत के 10 साल बाद)को हिज़रत से तीन साल पहले वफात पाईं और मक्का मुकर्रमा के मशहूर कब्रिस्तान जन्नतुल मा'अला में खुद हुज़ूर ए पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही‌ वसल्लम ने उनको क़ब्र में उतार कर अपने मुबारक हाथों से सुपुर्दे खाक किया।


हज़रते खदीजा रदियल्लाहु तआला अन्हा की वफात से तारीखे इस्लाम का एक नया दौर शुरु हुआ। यह ज़माना‌ इस्लाम के मानने वालों के लिए बड़ा सख़्त ज़माना था और खुद हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही‌ वसल्लम ने इस साल को आमुल हुज़्न (ग़म व परेशानी का साल) कहते थे। 


अल्लाह पाक प्यारे नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम का सदके हमें नेक औरतों की ज़िंदगियां पढ़ने और उसपर अमल करने की तौफीक अता फरमाए। आमीन


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हज़रते ख़दीजतुल कुबरा रदियल्लाहु तआला अन्हा पैगंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की सबसे पहली बीवी और ज़िंदगी की साथी हैं। आप कुरैश खानदान की ब वकार, बहुत इज्जतदार, मुमताज खातून थीं। आप बहुत सखी थीं। आप गरीबों, मुहताजों व रिश्तेदारों की मदद करती थीं। 


आपके वालिद का नाम ख़ुवैलिद बिन असद और वालिदा का नाम फ़ातिमा बिन्ते जाइदह है। उनकी शराफत और पाकदामनी की बिना पर सब मक्का वाले उनको ताहिरा (पाक दामन) के लकब से पुकारते थे। आप बहुत बड़ी बिजनेस वुमेन थीं। आपने बचपन से ही कभी बुत परस्ती नहीं की।


आपकी विलादत बा सआदत आमुल फ़ील से 15 साल पहले हुई। आपका नाम ख़दीजा, कुन्नियत उम्मे क़ासिम, उम्मे हिंद और लकब अल कुबरा व ताहिरा है। खानदानी सिलसिला ये है उम्मुल मोमिनीन ख़दीजा बिन्त ख़ुवैलिद बिन असद बिन अब्दुल उज़्ज़ बिन कुसय्य बिन किलाब बिन मुर्रह बिन काब बिन लुअय्य बिन गालिब बिन फ़हिर्र और वालिदा की तरफ से फ़ातिमा बिन्ते जाइदह बिन असम्म बिन हरिम बिन रवाहा बिन हजर बिन अब्द बिन मईस बिन आमिर बिन लुअय्य बिन गालिब बिन फ़हिर्र। 


सबसे पहले आपका निकाह अबू हाला बिन जुरारह तमीमी से हुआ। कुछ दिनों बाद उनका इंतकाल हो गया। तो आपका निकाह अतीक बिन आबिद मख़जूमी से कर दिया गया। उसी दौरान अरब की मशहूर खूंरेज़ जंगे हस्बुल फिजार छिड़ गई। जिसमें आपके वालिद और शौहर मारे गए। यह वाकया आमुल फील के बीस साल बाद वाक्य हुआ।


तिजारते सफ़र : वालिद और शौहर के इंतकाल ने हज़रत ख़दीजा को दुख और दर्द का समंदर बना दिया और उनका आने वाला कल बजाहिर काला हो गया। लेकिन कुदरत ने उन्हें हक़ और नाहक़ में फर्क करने की सलाहियत व जहानत के नूर से माला माल किया था। सब्र व जिम्मेदारी की चट्टान बनकर मैदाने अमल में उतरीं और कारोबार की बागडोर अपने हाथ में ली।


एक मर्तबा हज़रते ख़दीजा ने हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से फरमाया कि आप मेरा माल लेकर शाम की तरफ जाइए मैं दूसरों को जो रुपया देती हूं आपको उसका दुगना दूूंगी। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मान लिया और शाम जाने को तैयार हो गए और रवाना हुए। इस सफ़रे तिजारत से हज़रत ख़दीजा को दुगना नफ़ा हुआ।


हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के निकाह में : हज़रते ख़दीजा रदियल्लाहु तआला अन्हा ने हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के अख़लाक व आदते करीमा और खूबसूरत ज़िंदगी का तरीका देखकर आपसे निकाह की ख्वाहिश जाहिर की। जिसे हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने कबूल कर लिया। हज़रते ख़दीजा हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की बहुत ही प्यारी और वफादार बीवी बनकर पूरी दुनिया के लिए मिसाल बन गईं। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को उनसे बेपनाह मुहब्बत थी। जब तक आप ज़िंदा रहीं हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने किसी और से निकाह नहीं किया। एक कौल के मुताबिक निकाह के वक्त आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की उम्र 25 साल और हज़रत खदीजा की उम्र 40 साल थी। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को हज़रते ख़दीजा से इस क़दर मुहब्बत थी कि उनकी वफात के बाद आप अपनी महबूबतरीन बीवी हज़रते सैयदा आयशा रदियल्लाहु तआला अन्हा से फरमाया करते थे कि अल्लाह की कसम ख़दीजा से बेहतर मुझे कोई बीवी नहीं मिली, जब सब लोगों ने मेरे साथ बुरा बर्ताव किया, मुझे झुठलाया मेरा इंकार किया उस वक्त वो मुझ पर ईमान लाईं और जब सब लोग मुझे झुठला रहे थे उस वक्त उन्होंने मेरे ऊपर यकीन किया, जिस वक्त कोई इंसान मुझे कोई सामान देने के लिए तैयार नहीं था उस वक्त ख़दीजा ने मुझे अपना सारा माल और अपना सारा सामान दे दिया और उन्हीं के शिकम से अल्लाह तआला ने मुझे औलाद अता की।


हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम व हज़रते ख़दीजा के दो शहजादे और चार शहजादियां थीं। साहबजादे हज़रत कासिम व हज़रत अब्दुल्लाह और साहिबजादियां हज़रते जैनब, हज़रते रुकय्या, हज़रते उम्मे कुलसुम, हज़रते फ़ातिमा ज़हरा। 


विसाल हज़रते खदीजा रदियल्लाहु तआला अन्हा : हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रते ख़दीजा की वफात के बाद बहुत सी औरतों से निकाह फरमाया, लेकिन हज़रते खदीजा की मुहब्बत आखरी उम्र तक हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के दिले मुबारक में रची बसी रही। और हमेशा हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम हज़रते बीबी खदीजा का जिक्र करते रहते थे। हज़रत खदीजा रदियल्लाहु तआला अन्हु 25 साल हरम नबुव्वत में रहीं। हज़रत खदीजा ने 65 साल की उम्र में 10 रमज़ान 10 नबवी को हिज़रत से तीन साल पहले वफात पाईं और मक्का मक्का मुकर्रमा के मशहूर कब्रिस्तान जन्नतुल माअला में खुद हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उनको कब्र में उतार कर अपने मुबारक हाथों से सुपुर्दे खाक किया। हज़रते खदीजा रदियल्लाहु तआला अन्हा की वफात से तारीखे इस्लाम का एक नया दौर शुरु हुआ। यही वो ज़माना था जो इस्लाम का बड़ा सख़्त ज़माना था और खुद हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इस साल को आमुल हुज़्न (ग़म व परेशानी का साल) कहते थे। 


हज़रते ख़दीजा रदियल्लाहु तआला अन्हा की फजीलत : फजाइले अख़लाक, नेक किरदार में हज़रते खदीजा की ज़ात बड़ी आला व पाक थी। कुुफ्र व शिर्क की अंधेरी फिजाओं में जब तलबगारे हक़ ने फर्जे नबुव्वत अदा करना चाहा तो फजाए आलम से एक आवाज़ भी तरफदारी में न उठी। वादी अरफात, कोहे हिरा और जबले फरान की सब बस्तियां और आबादियों तक खौफ व हैरानी बनी रही। एक आप ही की आवाज़ थी जो तरफदारी के हक़ में बुलंद हुई और एक आप ही का दिल नाजुक था जो इस अंधेरी दुनिया में अनवारे इलाही की रोशनी बना। अल्लाह की आवाज़ पर सबसे पहले लब्बैक कहने वाली, अल्लाह के पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की हिमायत में अपना कारोबार, अपनी तिजारत, अपनी दौलत, अपना ऐश ओ आराम बल्कि अपनी जान यहां तक की सब कुछ कुर्बान करने के लिए आगे बढ़ने वाली, आप रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के दीन के रास्ते में सच्ची मशवरा देने वाली थीं। दौरे आजमाइश में आपका इसार और जज्बा कुर्बानी बेमिसाल है। दुनिया में अफ़ज़लतरीन औरतें हज़रते मरियम बिन्त इमरान और हज़रते ख़दीजा बिन्त ख़ुवैलिद हैं। एक मर्तबा का जिक्र है कि हज़रते जिब्रील अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि उनको जन्नत में ऐसा घर मिलने की खुशख़बरी दे दें जो मोती का होगा, जिसमें शोर और मेहनत व मशक्कत न होगी। गोया अल्लाह तआला हज़रते ख़दीजा की खिदमत व इताअत से इतना खुश हुआ कि आपको ज़िंदगी और दुनिया ही में जन्नत की खुशखबरी मिल गई। और जन्नत में मोती का घर मिलने  खुशख़बरी मिलना बदला है इस अमल का कि वह ईमान लाने में पहले पहल की थीं, इस जन्नती घर में शोर न होने की वजह ये है कि उन्होंने कभी भी हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से ऊंची आवाज़ में बात नहीं की थी और न ही कभी भी उनको ज़िंदगी में तकलीफ व मुसीबत में डाला। अल्लामा सुहैली रहमतुल्लाह अलैह ने हज़रते ख़दीजा रदियल्लाहु तआला अन्हा की तारीफ़ व तौसीफ और इनकी फजीलत में जो कुछ कहा कि वो मबनी बर सदाकत है बल्कि हकीकत तो ये है कि हज़रते ख़दीजा रदियल्लाहु तआला अन्हा हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मुख्लिस दोस्त और काबिले तारीफ़ बीवी थीं।


शिफा खातून, मदरसा रज़ा ए मुस्तफा चिंगी शहीद इमामबाड़ा तुर्कमानपुर गोरखपुर

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