उम्मुल मोमिनीन हज़रते सैयदा जुवैरिया बिन्ते हारिस रदियल्लाहु तआला अन्हा : ईमान वालों की अज़ीम माएं : "फ़ैज़ाने उम्महातुल मोमिनीन" "MOTHERS of the BELIEVERS" A Blessing to her People, The Ideal Lady of Muslim Ummah : Seerat-e-Hazrat Juwairiyah bint-e-Harith Radi'Allahu Anha - Part - 9 Great Women of Islam : हज़रते जुवैरिया रदियल्लाहु अन्हा की पाक सीरत Part - 9
उम्मुल मोमिनीन हज़रते सैयदा जुवैरिया बिन्ते हारिस रदियल्लाहु तआला अन्हा
हज़रते सैयदा जुवैरिया बिन्ते हारिस रदियल्लाहु तआला अन्हा का ताल्लुक कबीला बनी मुस्तलक़ से आपका है। जो ख़ुज़ाआ की एक शाख़ है। वालिद का नाम हारिस था। आपके वालिद क़बीला बिन मुस्तलक़ के सरदार थे।
एक अन्दाज़े के मुताबिक आपकी विलादत बि'असते नबवी से तकरीबन दो साल पहले 608 ई. में हुई है।
आप बहुत खूबसूरत, ज़हीन व फसीह थीं। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम ने जब मदीना तय्यबा को दारुल हुकूमत बनाया तो इसके आसपास बसने वाले बहुत से कबीलों ने इस नई इस्लामी हुकूमत क़बूल फरमा ली और समझौता कर अपने दीन पर क़ायम रहे।
इसी के साथ बहुत से क़बाइल ने कुफ्फारे मक्का के साथ समझौता कर लिया। हज़रते जुवेरिया रदियल्लाहु तआला अन्हा का पहला निकाह उनके कबीले के एक फर्द मुसाफे'अ बिन सफ्वान से हुआ था जो इस्लाम का सख़्त दुश्मन था। मुसलमानों से जंग के दौरान जंगे मरीसी'अ मेें वह मारा गया। मुसलमानों ने जंग में जीत हासिल की।
हज़रते जुवेरिया को दस्तूर के मुताबिक दूसरे लोगों के साथ कैद किया गया। अपनी हैसियत और शख़्सियत को बचाने के लिए बारगाहे नबुव्वत सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम में हाज़िर हुईं और अर्ज़ किया कि मैं कबीले के सरदार की बेटी हूं और अब गुलामों वाला सुलूक बर्दाश्त करना मेरे लिए मुमकिन नहीं है। आप मेरी पसंद का कोई रास्ता बताएं। आपकी बात सुनकर रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम ने फरमाया मैं बेहतर रास्ता बताता हूं आप मुझसे निकाह कर लेें। मैं क़ीमत देकर तुम्हें आज़ाद करा देता हूं। यह बात सुनकर आप बेहद खुश हुईं। आपने इस्लाम अपनाया। हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम ने हज़रते जुवैरिया से निकाह फरमाया।
हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम ने बनी मुस्तलक़ के लोगों को आज़ाद कर दिया। बाद में उनमें से बहुत सारे लोगों ने इस्लाम अपना लिया।
आपने बहुत ज़ाहिदाना ज़िंदगी गुज़ारी। आपने एक नेक बीवी और दीनी ज़िम्मेदारियों को बाखूबी निभाया। सब्र का दामन थामे रखा।
इस्लाम लाकर प्यारे आका सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ज़ौजियत में आने के बाद आप शब वश्र रोज अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की इताअत व फरमाबरदारी करते हुए जिंदगी बसर करती रहीं और फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के दुनिया से जाहिरी पर्दा फरमाने के कमोबेश 40 साल बाद रबीउल अव्वल 50 हिजरी में 65 साल की उम्र पा कर सफ़रे आखि़रत को रवाना हुईं।
मरवान बिन हकम जो उस वक्त मदीनतुल मुनव्वरा का हाकिम था उसने आपकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और जन्नतुल बक़ी'अ, मदीना मुनव्वरा में आपका मज़ारे अक्दस एक।।
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हज़रते सैयदा जुवैरिया बिन्ते हारिस रदियल्लाहु तआला अन्हा का इब्तेदाई नाम बर्रह था। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने तब्दील फरमाकर जुवैरिया रखा। कबीला बनी मुस्तलक़ से आपका ताल्लुक है जो ख़ुज़ाआ की एक शाख़ है। वालिद का नाम हारिस बिन ज़रार था। आपके वालिद क़बीला बिन मुस्तलक़ के सरदार थे। आप बहुत खूबसूरत, जहीन व फसीह थीं।
रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने जब मदीना तैय्यबा को दारुल हुकूमत बनाया तो इसके आसपास बसने वाले बहुत से कबाइल ने इस नई इस्लामी हुकूमत की मातहती कबूल फरमा ली और इसके साथ समझौता कर लिया और अपने दीन पर कायम रहे। इसी के साथ बहुत से कबाइल ने कुफ्फारे मक्का के साथ समझौता कर लिया।
हज़रते जुवैरिया रदियल्लाहु तआला अन्हा का पहला निकाह उनके कबीले के एक फर्द मुसाफेअ बिन सफ्वान से हुआ था जो इस्लाम का सख्त दुश्मन था। मुसलमानों से जंग के दौरान जंगे मुरैसीअ मेें वह मारा गया। मुसलमानों ने जंग में फत्ह हासिल की। हज़रते जुवैरिया को दूसरे लोगों के साथ कैद किया गया। अपनी हैसियत और शख़्सियत को बचाने के लिए बारगाहे नबुव्वत सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम में हाजिर हुईं और अर्ज किया कि मैं कबीले के सरदार की बेटी हूं और अब गुलामों वाला सुलूक बर्दाश्त करना मेरे लिए मुमकिन नहीं है। आप मेरी पसंद का कोई रास्ता बताएं। आपकी बात सुनकर रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया मैं बेहतर रास्ता बताता हूं आप मुझसे निकाह कर लेें। यह बात सुनकर आप बेहद खुश हुईं और आपने इस्लाम अपनाया। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रते जुवैरिया से निकाह फरमाया उस वक्त हज़रते जुवैरिया की उम्र 20 थी, इस एतिबार से आपकी विलादत बिअ्सते नबवी से तकरीबन दो साल पहले 608 ई. की बनती है। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने बनी मुस्तलक़ के लोगों को आज़ाद कर दिया। बाद में उनमें से बहुत सारे लोगों ने इस्लाम अपनाया।
हज़रते जुवेरिया की बरकत का बयान : जब सहाबा किराम रिजवानुल्लाह तआला अलैहिम अजमईन को पता चला कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने बनू मुस्तलक़ के सरदार की बेटी को हरमे नबुव्वत में दाखिल कर लिया है और इन्हें दूसरी अहमियत उम्मुल मोमिनीन की तरफ तहफ्फुज और हक़ अदा किया है तो सारे सहाबा दीनी गैरत से सरसार हो गए और बोल उठे रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के रिश्तेदारों को हम कैदी नहीं बना सकते, न इन्हें गुलामी की ज़ंज़ीरों में बांध सकते हैं।
हज़रते आयशा का बयान : हज़रते सैयदा आयशा रदियल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं कि मैंने किसी औरत को जुवैरिया से बढ़चढ़ कर अपनी कौम के हक़ में खुश नहीं देखा। इनके सबब बनू मुस्तलक़ के सैकड़ों घराने के लोग आज़ाद कर दिए गए। काशानए नबुव्वत में दाखिले के बाद हज़रते जुवैरिया को वह सारे हुकूक बराबर मिले जो हज़रत अबू बक्र और हज़रत उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुम की बेटियों को मिले थे। उन्हें ज़िंदगी का लुत्फ और नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का रहमत वाला साया भी मिला।
ख़्वाब का बयान : हज़रते जुवैरिया ने मरैसीअ की जंग से तीन दिन पहले ख़्वाब देखा था कि यसरब से चांद चला है और इनकी गोद में आ गिरा है। इन्होंने यह ख़्वाब किसी को बताना सही नहीं समझा। आख़िर रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम उनके शहर में आ ही गए। जब वह गिरफ्तार हुईं तो उन्हें उम्मीद हो गई कि उनका ख़्वाब हकीकत में पूरा होने वाला है। फिर रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उन्हें आज़ाद कर दिया और उनसे शादी कर ली। इस तरह वह ख़्वाब पूरा हुआ।
इबादत का बयान : उम्मुल मोमिनीन हज़रते जुवैरिया बहुत इबादतगुजार और परहेजगार थीं। आप हर महीने में तीन रोजे रखती थीं। आपसे सिर्फ चंद अहादीस रिवायत की गई है। अहादीस की राइज कुतुब में आपसे मरवी अहादीस की तादाद सात है, जिनमें से एक बुखारी शरीफ़ में, दो मुस्लिम शरीफ़ में और बकियाा अहादीस की दूसरी किताबों में है। हज़रते अब्दुल्लाह बिन अब्बास, हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह, हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर और हज़रत उबैद बिन सब्बाक ने आप से रिवायत ली है। आपने बहुत जाहिदाना ज़िंदगी गुजारी। आपने एक नेक बीवी और दीनी जिम्मेदारियों को बाखूबी निभाया। सब्र का दामन थामे रखा।
विसाल का बयान : इस्लाम लाकर प्यारे आका सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ज़ौजियत में आने के बाद आप शबो रोज अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की इताअत व फरमाबरदारी करते हुए ज़िंदगी बसर करती रहीं और फिर हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के दुनिया से जाहिरी पर्दा फरमाने के कमोबेश 40 साल बाद रबीउल अव्वल 50 हिजरी में 65 साल की उम्र पा कर सफ़रे आखि़रत को रवाना हुईं। मरवान बिन हकम जो उस वक्त मदीनतुल मुनव्वरा का हाकिम था उसने आपकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और जन्नतुल बकीअ, मदीना मुनव्वरा में आपका मजारे अक्दस बना। जिस वक्त हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ज़ौजियत में आईं उस वक्त उम्र 20 साल थी।
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