उम्मुल मोमिनीन हज़रते सैयदा मैमूना बिन्ते हारिस रदिय़ल्लाहु तआला अन्हा : ईमान वालों की अज़ीम माएं : "फ़ैज़ाने उम्महातुल मोमिनीन" "MOTHERS of the BELIEVERS" A Blessed women, Intellectual & Inspiring Scholar : Hazrat Maymunah bint-e-Harith Radi'Allahu Anha - Part - 12 Great Women of Islam : हज़रते मैमूना बिन्ते हारिस रदियल्लाहु अन्हा की पाक सीरत Part - 12
उम्मुल मोमिनीन हज़रते सैयदा मैमूना बिन्ते हारिस रदिय़ल्लाहु तआला अन्हा
शिफा खातून
पार्ट टाइम आलिमा कोर्स
मदरसा रज़ा ए मुस्तफा, तुर्कमानपुर गोरखपुर।
उम्मुल मोमिनीन हज़रते सैयदा मैमूना बिन्ते हारिस रदियल्लाहु तआला अन्हा का नाम पहले बर्रह था। अल्लाह पाक के आखरी नबी नबी ए रहमत सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम ने तब्दील फरमाकर मैमूना कर दिया।
आपके वालिद का नाम हारिस बिन हज़न और वालिदा का नाम हिंद बिन्ते औफ़ है। आपके वालिद मक्का के बनू हिलाला कबीले से ताल्लुक रखते थे।
आपका पहला निकाह मसऊद बिन अम्र सक़फी से हुआ। किसी वजह से इनसे तलाक हो गया। तलाक के बाद आपका दूसरा निकाह अबू रुहम बिन अब्दुल उज़्ज़ा से हुआ। कुछ अर्से बाद सात हिजरी में उसका इंतकाल हो गया।
हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम ज़िल क़ा'अदह आठ हिजरी में उमरा की नीयत से मक्का रवाना हुए। एहराम की हालात में हज़रते मैमूना से निकाह हुआ। हज़रत अब्बास निकाह के मुतवल्ली बने। हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम जब उमरा से फारिग होकर मदीना के लिए रवाना हुए तो मकामे सरफ़ में जो मक्का से दस मील के फासले पर मौजूद है। वहां आराम किया।
हज़रत अबू राफेअ हज़रत मैमूना को लेकर मकामे सरिफ़ पर पहुंचे और वहीं शादी की रस्म अदा हुई। यह हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम का आखि़री निकाह था। और हज़रते मैमूना रदियल्लाहु तआला अन्हा नबी पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम की सबसे आखिरी बीवी हैं।
आप बहुत नेक, अच्छे अख़्लाक वाली और सख़ी थीं। आपने कई गुलामों को आज़ाद कराया था। आपको इल्म-ए-दीन सीखने में और इशाअत-ए-इस्लाम में बहुत दिलचस्पी थी। आप लोगों को तालीम-ए-दीन देतीं और जो कोई भी शरीअत के मसले सीखने के लिए आता उसे सिखातीं।
आपसे तकरीबन 76 हदीसें मरवी हैं। जिनमें सात बुखारी व मुस्लिम दोनों में है। हज़रते मैमूना अल्लाह तआला से बहुत डरतीं। लोगों पर रहम करतीं। खुद भी और दूसरों को हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम के रास्ते पर चलने को कहतीं। आपसे हज़रत इब्ने अब्बास, हज़रत अब्दुल्लाह बिन शुदाद, हज़रत अब्दुल रहमान बिन साइब, हज़रत यज़ीद बिन असम, हज़रत उबैदुल्लाह बिन नअबद बिन अब्बास सहित तमाम सहाबा किराम ने हदीसें रिवायत की हैं।
हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम के पर्दा फरमा लेने के बाद हज़रते मैमूना रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम के इज़्ज़त वाले घर में पूरी इज़्ज़त व एहतराम के साथ क़याम पज़ीर रहीं। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम के तरीके पर साबित कदम रहीं। आखिर दम तक अल्लाह तआला की इबादत में मश्गूल रहीं।
हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम के विसाले ज़ाहिरी के बाद हज़रते मैमूना रदियल्लाहु तआला अन्हा खिलाफते राशिदा के खत्म होने के बाद सहाबी ए रसूल हज़रत मुआविया रदियल्लाहु तआला अन्हु के दौर तक ज़िंदा रहीं। उस वक्त आप रदियल्लाहु तआला अन्हा की उम्र अस्सी साल थी।
उसी जगह पर जिसमें हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम उनको रूखसत करके लाए थे वहीं दफ़न हुईं। इस तरह वह जिस घर में शादी के बाद तशरीफ लाईं थी वहीं उनकी कब्रे मुबारक बनी।
हज़रत अता कहते हैं कि जब हज़रते मैमूना का मकामे सरफ में इंतकाल हुआ मैं और इब्ने अब्बास वहां गए। उस मौके पर इब्ने अब्बास ने हमें वसीयत की कि जब तुम उनके ताबूत को उठाना तो हिलाना नहीं बल्कि आराम से चलना वह तुम्हारी मां हैं। आप रदियल्लाहु तआला अन्हा की नमाज़े जनाज़ा हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास ने पढ़ाई। आपका विसाल 51 हिजरी में हुआ। मज़ारे मुबारक सरिफ (सऊदी अरब) में है।
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आपका नाम पहले बर्रा था, हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने तब्दील फरमाकर मैमूना कर दिया। आपके वालिद का नाम हारिस बिन हज़न और वालिदा का नाम हिंद बिन्ते औफ़ है। आपके वालिद मक्का के बनू हिलाला कबीले से ताल्लुक रखते थे। आपका पहला निकाह मसऊद बिन अम्र सकफी से हुआ। तलाक के बाद आपका दूसरा निकाह अबू रुहम बिन अब्दुल उज़्ज़ा के निकाह में आईं। कुछ अर्से बाद उसका इंतकाल सात हिजरी में हुआ।
हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के निकाह में : हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जिकादह आठ हिजरी में उमरा की नियत से मक्का रवाना हुए थे। एहराम की हालात में हज़रते मैमूना से निकाह हुआ। हज़रत अब्बास निकाह के मुतवल्ली हुए। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब उमरा से फारिग होकर मदीना के लिए रवाना हुए तो मकामे सरिफ़ में जो मक्का से दस मील के फासले पर मौजूद है। वहां आराम किया। हज़रत अबू राफेअ हज़रत मैमूना को लेकर मकामे सरिफ़ पहुंचे और वहीं शादी की रस्म अदा हुई। यह हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का आखि़री निकाह था और हज़रते मैमूना सबसे आखिरी बीवी हैं।
फजाइल और अख़लाक : आप बहुत नेक, खुश अख़लाक और सख़ी थीं। आपने कई गुलामों को आज़ाद कराया था। आपको इल्म-ए-दीन सीखने में और इशाअत-ए-इस्लाम में बहुत दिलचस्पी थी। आप लोगों को तालीम-ए-दीन देती थीं और जो कोई भी अहकामे शरीअत के मसले सीखने के लिए आता था उसे सिखाती थीं। आपसे तकरीबन 76 अहादीस मरवी है। जिनमें सात बुखारी व मुस्लिम दोनों में है। हज़रते मैमूना अल्लाह तआला से बहुत डरती थीं। लोगों पर रहम करती थी। खुद भी और दूसरों को हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के रास्ते पर चलने को कहती थीं। आपसे हज़रत इब्ने अब्बास, हज़रत अब्दुल्लाह बिन शुदाद, हज़रत अब्दुल रहमान बिन साइब, हज़रत यजीद बिन असम, हज़रत उबैदुल्लाह बिन नअबद बिन अब्बास सहित तमाम सहाबा किराम ने अहादीस रिवायत की है।
विसाले रसूल के बाद आपकी ज़िंदगी : हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के पर्दा फरमा लेने के बाद हज़रते मैमूना रिसालत वाले घर में पूरी इज्जत व एहतराम के साथ रहीं। तरीके रसूल पर साबित कदम रहीं। आखिर दम तक अल्लाह तआला की इबादत में मश्गूल रहीं।
हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के विसाल के बाद हज़रते मैमूना खिलाफते राशिदा के खत्म होने के बाद हज़रत मुआविया के दौर तक ज़िंदा रहीं। उस वक्त उनकी उम्र अस्सी साल की थी और उसी जगह पर जिसमें हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम उनको रूखसत करके लाए थे, वहीं दफ़न हुईं। इस तरह वह जिस घर में शादी के बाद तशरीफ लाईं थी वहीं उनकी कब्रे मुबारक बनी।
विसाले हज़रते मैमूना रदियल्लाहु तआला अन्हा : हज़रत अता कहते हैं कि जब हज़रते मैमूना का मकामे सरिफ में इंतकाल हुआ मैं और इब्ने अब्बास वहां गए। उस मौके पर इब्ने अब्बास ने हमें वसीअत की कि जब तुम उनके ताबूत को उठाना तो हिलाना नहीं बल्कि आराम से चलना वह तुम्हारी मां हैं। नमाज़े जनाज़ा हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास ने पढ़ाई और इस तरह उनको सुपुर्दे खाक किया गया। आपका विसाल 51 हिजरी में हुआ। आपका मजार सरिफ़ (सऊदी अरब) में है।
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