उम्मुल मोमिनीन हज़रते सैयदा ज़ैनब बिन्ते जहश रदियल्लाहु तआला अन्हा :ईमान वालों की अज़ीम माएं : "फ़ैज़ाने उम्महातुल मोमिनीन" "MOTHERS of the BELIEVERS" Honoured by the Allah Almighty, Noble Lady : Hazrat Zainab bint-e-Jahsh Radi'Allahu Anha - Part - 8 The Great & Powerful Women of Islam : हज़रते ज़ैनब बिन्ते जह़श रदियल्लाहु अन्हा की पाक सीरत Part - 8


 

उम्मुल मोमिनीन हज़रते सैयदा ज़ैनब बिन्ते जहश रदियल्लाहु तआला अन्हा


सना फातिमा

आलिमा कोर्स, साल ए अव्वल 

मदरसा रज़ा ए मुस्तफाﷺ, तुर्कमानपुर गोरखपुर।


आपका पहला नाम बर्रह था, हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम ने बदल कर ज़ैनब रख दिया। आपकी कुन्नियत उम्मे हकम है। हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने आपको अव्वाहा के लक़ब से नवाज़ा है जिसका माना है अल्लाह तआला से बहुत ज़्यादा डरने वाली। आपके वालिद का नाम जहश बिन रियाब और वालिदा का नाम उमैमा था। 


आपकी वालिदा नबी पाक  सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम के दादा हज़रत अब्दुल मुत्तलिब की साहबज़ादी थीं। इस लिहाज़ से हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु तआला अन्हा हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम की फूफीज़ाद बहन हुईं। 


हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम ने जब दीन की तरफ लोगों को बुलाना शुरू किया उसी वक्त आप ईमान ले आईं। हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु तआला अन्हा अपने घर वालों के साथ मक्का मुकर्रमा में मुसलमान हुईं। यह वह ज़माना था, जब मुसलमान बज़ाहिर कमज़ोर और ज़ुल्म व सितम की चक्की में पीसे जा रहे थे, उन्होंने भी अपने घर वालों के साथ बहुत तकलीफें बर्दाश्त कीं।


जब हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम ने मुसलमानों को मक्का से मदीने की तरफ हिजरत का हुक्म दिया, तो वह भी अपने घर वालों के साथ मदीना हिजरत कर गईं। 


उनके खानदान ने उस वक्त मक्का में अपने जो घर छोड़े उन पर अबू सुफियान ने कब्ज़ा कर लिया। उनके भाई हज़रत अब्दुल्लाह बिन जहश रदियल्लाहु तआला अन्हु को ख़बर लगी तो उन्होंने हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम से इसका ज़िक्र किया। 


हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम ने उनको दिलासा देते हुए फरमाया ऐ अब्दुल्लाह ! क्या तुम इससे राजी नहीं हो कि अल्लाह तआला तुमको इस घर के बदले में इससे बेहतर घर जन्नत में अता करे। यह सुनकर वह बहुत खुश हुए।


उम्मुल मोमिनीन हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु तआला अन्हा का पहला निकाह हज़रत ज़ैद बिन हारिसा रदियल्लाहु तआला अन्हु से हुआ। जो नबी पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम के आज़ाद किए हुए गुलाम थे। 


यह निकाह इस्लाम में मौजूद बराबरी की खूबसूरत मिसाल है कि बनी हाशिम की एक इज़्ज़तदार खातून एक आज़ाद किए हुए गुलाम के साथ ब्याही गई। दुनिया की दीगर कौमें मुआशरे (Society)  में बराबरी का नारा लगाने के बावजूद में बराबरी की ऐसी मिसाल कायम करने में नाकाम हैं।


यह रिश्ता तक़रीबन एक साल तक क़ायम रहा। बहरहाल ज़ैद और हज़रत ज़ैनब का निबाह न होना था, न हुआ और हज़रत ज़ैद ने बिलआखि़र हज़रते ज़ैनब को तलाक दे दिया। 


जब हज़रते ज़ैनब इद्दत पूरी कर चुकीं तो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम ने हज़रते जै़नब को निकाह का पैगाम देना चाहा। इस खिदमत के लिए आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम ने हज़रते ज़ैद ही को चुना कि वह आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम के निकाह का पैगाम लेकर हज़रते ज़ैनब के पास जायें। 


आप हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु तआला अन्हा के घर गए और कहा : रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम तुमसे निकाह के ख्वाहिशमंद हैं। हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु तआला अन्हा ने जवाब दिया : मैं अल्लाह पाक की बारगाह में इस्तिखारह (कोई फैसला करते वक्त अल्लाह पाक से भलाई और सही रास्ता चाहने का एक तरीका है।) करती हूं, यह कह कर मुसल्ले पर खड़ी हो गईं। 


इधर अल्लाह तआला ने रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम पर वही भेजी : "फिर जब ज़ैद उससे अपनी हाजत पूरी कर चुका तो हमने वह तेरे निकाह में दे दी।"

गोया अल्लाह तआला ने खुद अपने आखरी नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम का निकाह हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु तआला अन्हा से कर दिया। 


हज़रते ज़ैनब का निकाह हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम से हो गया। वलीमे की दावत का इंतज़ाम किया गया।उस वक्त उम्मुल मोमिनीन हज़रते ज़ैनब की मुबारक उम्र 36 साल थी।


हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु तआला अन्हा अच्छे अख्लाक व आदतों वाली थीं। इबादत व रियाज़त की पाबंदी फरमातीं। आप नेक, रोज़ादार व नमाज़ी थीं। बड़े खुशू व खुजू के साथ इबादत में मसरूफ रहतीं। अल्लाह तआला से सबसे ज़्यादा डरने वाली सबसे ज्यादा सच बोलने वाली, सबसे ज्यादा सिला रहमी (रहम का बरताव) करने वाली थीं। हज़रते ज़ैनब की खास खूबी यह थी कि वह बहुत ज़्यादा सदका व खैरात करतीं और इसके ज़रिए अपने रिश्तेदारों, यतीमों और बेवाओं का खास ख्याल रखती थीं।


हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु तआला अन्हा से बहुत ज़्यादा हदीसें मरवी नहीं हैं लेकिन उन्होंने कुछ बहुत अहम हदीसें रिवायत की हैं। अहादीस की किताबों में हज़रते ज़ैनब से मरवी हदीसों की तादाद 11 है। जिनमें से दो मुत्तफक अलैह यानी हदीसे पाक की मशहूर और सबसे बड़ी दो किताब बुखारी व मुस्लिम दोनों में है और बकिया 09 दूसरी किताबों में।


हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम के विसाल ए ज़ाहिरी फरमाने के तक़रीबन दस साल बाद 20 हिजरी को मुसलमानों के दूसरे खलीफा हज़रत उमर फारूक़े आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु की खिलाफत के दौर में 53 साल की उम्र पाकर हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु तआला अन्हा का इंतकाल हो गया। 


आपकी नमाज़ ए जनाज़ा मुसलमानों के दूसरे खलीफा हज़रत उमर फारूक़े आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु ने खुद पढ़ाई और मदीना के बक़ी'अ कब्रिस्तान में आपको दफ्न किया गया।

--------------

आपका नाम ज़ैनब था। वालिद का नाम जहश बिन रियाब था। वालिदा का नाम उमैमा था। यह उमैमा अब्दुल मुत्तलिब की साहबजादी थीं इस लिहाज से हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु तआला अन्हा हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की फूफीजाद बहन थीं। आपका पहला नाम बर्रह था, हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने तब्दील फरमाकर ज़ैनब रखा था। आपकी कुन्नियत उम्मे हकम है, हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने आपको अव्वाहा के लक़ब से नवाज़ा है। 


इस्लाम और हिजरत : हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने जब आगाजे दावत फरमाया तो शर्फ-ए-इस्लाम से बहरहमंद हुईं। हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु तआला अन्हा अपने घर वालों के साथ मक्का मुकर्रमा में पहले मुसलमान हुईं। यह वह जमाना था, जब मुसलमान कमजोर और जुल्मों सितम की चक्की में पीसे जा रहे थे, उन्होंने भी अपने अहले खाना के साथ बहुत तकलीफें बर्दाश्त की। जब हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मुसलमानों को मक्का से मदीने की तरफ हिज़रत का हुक्म दिया, तो वह भी अपने घर वालों के साथ मदीना हिज़रत कर गईं। उनके भाई हज़रत अब्दुल्लाह बिन जहश रदियल्लाहु तआला अन्हु को ख़बर लगी तो उन्होंने हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से उसका जिक्र किया। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उनको दिलासा देते हुए फरमाया ऐ अब्दुल्लाह! क्या तुम इससे राजी नहीं हो कि अल्लाह तआला तुमको इस घर के बदले में इससे बेहतर घर जन्नत में अता करे। यह सुनकर वह बहुत खुश हुए।


निकाह : उम्मुल मोमिनीनी हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु तआला अन्हा का पहला निकाह हज़रत ज़ैद बिन हारिसा रदियल्लाहु तआला अन्हु से हुआ था, जो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के आज़ाद करदा गुलाम थे। यह निकाह इस्लाम में मसावत की पहली जर्रे मिसाल थी कि बनी हाशिम की एक मुअजिज खातून एक गुलाम के साथ ब्याही गई, उस निकाह का एक मकसद था। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उनका निकाह जैद से इसलिए किया था कि वह हज़रते ज़ैनब को कुरआन और सुन्न्ते रसूल की तालीम से बहरहमंद करें। यह रिश्ता तकरीबन एक साल तक कायम रहा। तकरीबन एक साल के बाद हज़रत जैद ने हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के पास शिकायत की, कि या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम! ज़ैनब मुझसे ज़बानदराजी करती हैं, मैं उन्हें तलाक देना चाहता हूं। बहरहाल जैद और हज़रत ज़ैनब का निबाह न होना था, न हुआ और हज़रत जैद ने बिलआखि़र हज़रते ज़ैनब का तलाक दे दी। 

जब हज़रते ज़ैनब अय्यामे इद्दत पूरी कर चुकी तो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने खुद उनसे निकाह करना चाहा। चुनांचे हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम खिदमत हज़रते ज़ैद ही को मुन्तखब फरमाया कि वह आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का पैग़ामे निकाह लेकर हज़रत ज़ैनब के पास जायेंगें। गोया अल्लाह तआला ने खुद हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का निकाह हज़रते ज़ैनब से कर दिया। जब हज़रते ज़ैनब का निकाह हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से हुआ, उस वक्त उनकी उम्र 36 साल थी।


फजाइल व मुहामिद : हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु तआला अन्हा अच्छे अख्लाक व इसार का पैकर थीं। इबादत व रियाजत का पाबंद थीं। हज़रते ज़ैनब नेक, रोज़ादार व नमाज़ी थीं। बड़े खुशू व खुजू के साथ इबादत में मसरूफ रहती थीं। वह अल्लाह तआला से सबसे ज्यादा डरने वाली सबसे ज्यादा सच बोलने वाली, सबसे ज्यादा सिला रहमी करने वाली थीं। हज़रते ज़ैनब की खास सिफ्त यह थी कि वह बहुत ज्यादा सदका व खैरात करती थीं और इसके जरिए अपने रिश्तेदारों, यतीमों और बेवाओं का खास ख्याल रखती थीं।


हज़रत ज़ैनब ब‌ हैसियत रावी अहादीस : हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु तआला अन्हा से हज़रते आयशा रदियल्लाहु तआला अन्हा की तरह बहुत ज्यादा हदीसें मरवी नहीं हैं लेकिन उन्होंने कुछ बहुत अहम हदीसें रिवायत की हैं। उनसे रिवायत करने वालों में उनके भतीजे मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह बिन जहश, उम्मुलमोमिनीन उम्मे हबीबा, कासिम बिन मुहम्मद बिन अबी बक्र है। अहादीस की मुरव्वजा कुतुब में हज़रते ज़ैनब से मरवी अहादीस की तादाद 11 है। जिनमें से दो मुत्तफिकुन अलैह यानी बुखारी व मुस्लिम दोनों में है और बकिया नव दीगर किताबों मे हैं। 


विसाल : हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के पर्दए ज़ाहिरी फरमाने के बाद तकरीबन दस साल बाद 20 हिजरी को जमाना ए खि़लाफते उमर फारूके आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु में हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु तआला अन्हा का इंतकाल हो गया। जिस दिन हज़रते ज़ैनब का इंतकाल हुआ उस दिन शदीद गर्मी थी इसलिए पहली मर्तबा आपकी तुर्बते मुबारक पर ख़ैमा लगाया गया। जब आपका जनाज़ा ले जाया गयाा तो आपके भाई हज़रते सैयदना अबू अहमद बिन जहश ने भी चारपाई उठा रखा था और रोते जा रहे थे, यह नाबीना थे। हज़रते उमर ने हज़रते ज़ैनब की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और चार तकबीरे कहीं फिर जब आपको तदफीन के लिए कब्र के पास लाया गया तो हज़रत उमर ने आपकी कब्र के पास खड़े होकर अल्लाह तआला की हम्दो सना बयान की। तदफीन के वक्त हज़रत उमर फारूके आज़म व दीगर सहाबा किराम हज़रते ज़ैनब के पाउं की तरफ खड़े हुए थे और हज़रत अबू अहमद बिन जहश कब्र के किनारे बैठे हुए थे। फिर हज़रत उमर बिन मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह बिन जहश, हज़रत उसामा, हज़रते अब्दुल्लाह बिन अबू अहमद बिन जहश, हज़रत मुहम्मद बिन तलहा बिन उबैदुल्लाह ने कब्र में उतर कर हज़रते ज़ैनब को सुपुर्दे खाक किया। 


सना

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

*गोरखपुर में डोमिनगढ़ सल्तनत थी जिसे राजा चंद्र सेन ने नेस्तोनाबूद किया*

*गोरखपुर में शहीदों और वलियों के मजार बेशुमार*

जकात व फित्रा अलर्ट जरुर जानें : साढे़ सात तोला सोना पर ₹ 6418, साढ़े बावन तोला चांदी पर ₹ 616 जकात, सदका-ए-फित्र ₹ 40