उम्मुल मोमिनीन हज़रते सैयदा आयशा सिद्दीक़ा रदियल्लाहु तआला अन्हा : ईमान वालों की अज़ीम माएं : "फ़ैज़ाने उम्महातुल मोमिनीन" "MOTHERS of the BELIEVERS" Biography of Inspirational Muslim Women Hazrat AYESHA SIDDIQA bint-e-Abu Bakr Radi'Allahu Anha - Part - 4 Islam's First Lady Scholar, Politician, Law-maker, Leader, Warrior : हज़रते आयशा रदियल्लाहु अन्हा की पाक सीरत Part - 4





 उम्मुल मोमिनीन हज़रते सैयदा आयशा सिद्दीक़ा रदियल्लाहु तआला अन्हा

आलिमा शहाना खातून 
मुजरी, महराजगंज

आप का नाम आयशा, लक़ब सिद्दीक़ा, हुमैरा और कुन्नियत उम्मे अब्दुल्लाह है। आपके वालिद हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु तआला अन्हु है, जो नौज़वानों में सबसे पहले ईमान लाने वाले और इस्लाम के पहले खलीफा भी हैं।
आपकी वालिदा का नाम ज़ैनब बिन्ते आमिर है, लेकिन यह अपनी कुन्नियत उम्मेे रूमान से ज्यादा मशहूर हैं। 

आपकी विलादत एलाने नबुव्वत के चौथे साल शव्वाल के महीने में हुई।

एलाने नबुव्वत के दसवें साल दस रमज़ानुल मुबारक जब उम्मुल मोमिनीन हज़रते ख़दीजतुल कुबरा का इंतकाल हो गया, इनके इंतकाल से तीन दिन पहले अबू तालिब भी वफात पा चुके थे। अबू तालिब और हज़रते ख़दीजतुल कुबरा की वफात के बाद रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम बहुत रंजीदा व ग़मगीन रहने लगे। 

हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम की तरफ से इजाज़त पाकर हज़रते ख़ौला हज़रते आयशा के यहां निकाह का पैग़ाम लेकर गईं। हज़रते ख़दीजतुल कुबरा की वफात के चंद हफ्तों बाद शव्वालुल मुकर्रम के महीने में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम ने हज़रते आयशा रदियल्लाहु तआला अन्हा से निकाह फरमाया लेकिन उस वक्त रूख़्सती अमल में नहीं आई बल्कि रूख़्सती बाद में हुई। 

मदीना मुनव्वरा आमद के कुछ अर्से बाद तक तो उम्मुल मोमिनीन हज़रते आयशा अपने वालिदैन के पास रहीं फिर हिजरत के सात माह बाद शव्वालुल मुकर्रम में रूख़्सत होकर नबी पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम के मुबारक घर में दाखिल हुईं। 

आप रदियल्लाहु तआला अन्हा ने अल्लाह पाक के आखरी नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम के साथ नौ साल गुज़ारे। हज़रते आयशा सिद्दीक़ा रदियल्लाहु तआला अन्हा वह खुशकिस्मत खातून हैं जिनको हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम की जौज़ह और उम्मुल मोमिनीन होने का शर्फ और अजवाज़े मुतह्हरात में एक बुलन्द मकाम हासिल है जो सिर्फ आप ही का हिस्सा है। बहरहाल कम उम्री के आलम में ही आपने घर के कामकाज सीखे और अच्छे अंदाज़ से इन्हें अंज़ाम देती रहीं। आप हुज़ूर ए पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम की खिदमत में कोई कमी न होने देती थीं।

हदीस शरीफ़ में है की निकाह से पहले हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम ने ख़्वाब में देखा कि एक फरिश्ते ने रेशम के कपड़े में लपेटकर कोई चीज़ पेश किया तो आपने उस फरिश्ते से पूछा यह क्या है? फरिश्ते ने जवाब दिया यह आपकी जौज़ह (पाक बीवी) हैं, आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम ने उसे खोल कर देखा तो हज़रते आयशा सिद्दीका रदियल्लाहु तआला अन्हा थीं। आप सल्लल्लाहू तआला अलैहि व आलिही वसल्लम ने फरमाया कि अगर यह अल्लाह तआला की तरफ से है तो ऐसा होकर रहेगा।

कुरआन, हदीस और तारीख़ के पन्ने आपके फज़ाइल व मनाकिब (तारीफ) से भरे हुए हैं। नबी पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि‌ व आलिही वसल्लम के पाक घर में आने के बाद आप रदियल्लाहु तआला अन्हा दिन रात हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम को देखते रहने और आपके साथ की बरकत से दीनी व इल्मी लिहाज़ से फायदा उठाती रहीं और इल्म के बेहद कीमती मोती चुनकर आसमाने इल्म की बुलंदियों को पहुंच गईं जहां बड़े-बड़े सहाबा किराम आपके शागिर्दाें (Students) की फिहरिस्त में नज़र आते हैं।

हज़रते आयशा रदियल्लाहु तआला अन्हा खूब इबादत करतीं, दिन को अक्सर रोज़ादार होतीं और रात को कुरआन पाक की तिलावत व इबादत में मसरुफ रहतीं। तहज्जुद की नमाज़ बिला नागा पाबंदी के साथ अदा करतीं। आप बहुत ज़्यादा सखी (उदार, Generous) थीं।

हज़रते आयशा रदियल्लाहु तआला अन्हा की फज़ीलत सहीह बुखारी में है कि आयशा की फज़ीलत तमाम औरतों पर इसी तरह है जिस तरह तमाम खानों में सरीद (अरब वालों का पसंदीदा एक बहुत लज़ीज़ खाना) अफज़ल है। और हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम ने इरशाद फरमाया मुझे आयशा के बारे में तकलीफ न दो बेशक अल्लाह की कसम मुझ पर तुममें से सिर्फ हज़रते आयशा के बिस्तर पर ही वही (अल्लाह पाक की तरफ से आने वाला खास पैगाम) नाज़िल होती है। 

अल्लाह पाक के आखरी नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम की हदीसों को औरतों में सबसे ज़्यादा उम्मुल मोमिनीन हज़रते आयशा सिद्दीका रदियल्लाहु तआला अन्हा ने रिवायत किया है। आपकी रिवायत की गई हदीसों की तादाद 2210 है। जिनमें 286 मुत्तफक अलैह यानी हदीस की दो सबसे मशहूर किताब बुखारी शरीफ व मुस्लिम शरीफ दोनों में मौजूद है।

हज़रते आयशा सिद्दीक़ा रदियल्लाहु तआला अन्हा बहुत ज़्यादा इल्म रखने वाली थीं। बड़े-बड़े सहाबा किराम उनसे मसाइल पूछा करते। उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा सिद्दीका रदियल्लाहु तआला अन्हा की शान में कुरआन पाक की आयतें नाज़िल हुईं। उन्होंने जिब्राइल अलैहिस्सलाम को अपनी आंखों से देखा। नबी पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम आपकी गोद में सर रखे वफात पाए।

गज़वा ए बनी मुस्तलक़ से वापसी के वक्त मुनाफिकीन ने उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा सिद्दीका रदियल्लाहु तआला अन्हा पर झूठा इलज़ाम लगाया था। अल्लाह तआला ने सूरह नूर आयत नंबर 11 से लेकर 21 तक उन गंदे मुनाफिकीन का रद्द इरशाद फरमाया है।  

जब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम पर इल्ज़ाम लगा तो एक बच्चे ने उनके पाकदामनी की गवाही दी और जब हज़रतेे मरियम रदियल्लाहु तआला अन्हा पर तोहमत लगी तो उनकी पाक दामिनी का ऐलान उनके बेटे से करवाया गया लेकिन जब हज़रते आयशा सिद्दीक़ा रदियल्लाहु तआला अन्हा पर तोहमत लगी तो अल्लाह तआला ने खुद कुरआने पाक में 10 आयतें नाज़िल फरमाकर आपकी पाक दामिनी की सच्ची खबर लोगों को दी। 

हज़रते आयशा सिद्दीक़ा रदिल्लाहु तआला अन्हा ने माहे रमज़ान की 17 तारीख मंगल की रात 58 हिजरी में वफात पाई। आप 18 साल की उम्र में बेवा हुईं और वफात के वक्त आपकी उम्र 67 बरस की थी। आपने वसीयत की थी कि मुझे जन्नतुल बक़ीअ में दफ़न किया जाए लिहाज़ा वसीयत के मुताबिक आपको जन्नतुल बक़ीअ में दफ़न किया गया‌। आप रदियल्लाहु तआला अन्हा की नमाज़े जनाजा हज़रत अबू हुरैरह रदियल्लाहु अन्हु ने पढ़ाई।
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आप का नाम आयशा है। लकब सिद्दीक़ा, हुमैरा और कुन्नियत उम्मे अब्दुल्लाह है। आपके वालिद का नाम हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु तआला अन्हु है, जो नौज़वानों में सबसे पहले ईमान लाने वाले और इस्लाम के पहले खलीफा भी हैं।

आपकी वालिदा का नाम ज़ैनब था लेकिन यह अपनी कुन्नियत उम्मेे रूमान बिन्ते आमिर से ज्यादा मशहूर हैं। आपकी विलादत बिअ्सते नबवी के चौथे साल माहे शव्वाल में हुई।

एलाने नबुव्वत के दसवें साल दस रमज़ानुल मुबारक को जब हज़रते आयशा की उम्र तकरीबन छह साल थी, उम्मुल मोमिनीन हज़रते ख़दीजतुल कुबरा का इंतकाल हो गया, इनके इंतकाल से तीन दिन पहले अबू तालिब भी वफात पा चुके थे। अबू तालिब और हज़रते ख़दीजतुल कुबरा की वफात के बाद रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम बहुत रंजीदा व ग़मगीन रहने लगे थे। 


हज़रते आयशा को निकाह का पैग़ाम : हुजूर सल्लल्लाहु तआल अलैहि वसल्लम की तरफ से इजाजत पाकर हज़रते ख़ौला हज़रते आयशा के यहां निकाह का पैग़ाम लेकर गईं। हज़रते ख़दीजतुल कुबरा की वफात के चंद हफ्तों बाद शव्वालुल मुकर्रम के महीने में हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रते आयशा रदियल्लाहु तआला अन्हा से निकाह फरमाया लेकिन उस वक्त रूख़्सती अमल में नहीं आई बल्कि रूख़्सती बाद में हुई। मदीना मुनव्वरा आमद के कुछ अर्से बाद तक तो उम्मुल मोमिनीन हज़रते आयशा अपने वालिदैन के पास रहीं फिर हिजरत के सात माह बाद शव्वालुल मुकर्रम में रूख़्सत होकर काशानए नबवी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम में दाखिल हुईं। आप हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की सबसे कम उम्र की जौजह मुतहहरा हैं। आप हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने आपके साथ नौ बरस गुजारी। हज़रते आयशा सिद्दीक़ा रदियल्लाहु तआला अन्हा वह खुशकिस्मत ख़्वातीन हैं जिनको हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की जौजह और उम्मुल मोमिनीन होने का शरफ और अजवाजे मुतहहरात में आला दर्जा हासिल है। बहरहाल इस कम उम्री के आलम में ही आपने घर के कामकाज सीखे और खुश उस्लूबी से इन्हें अंज़ाम देती रहीं हत्ता कि अपने कपड़े खुद सी लेंती। खुद आटा बनातीं। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की खिदमत में कोई कमी न होने देती थीं।

हदीस शरीफ़ में है की निकाह से पहले हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपने ख़्वाब में देखा कि एक फरिश्ता रेशम के कपड़े में लपेटकर कोई चीज़ पेश किया तो आपने उसे फरिश्ते से पूछा यह क्या है? तो फरिश्ते ने जवाब दिया यह आपकी जौजह हैं, तो आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उसे खोल कर देखा तो हज़रते आयशा सिद्दीका रदियल्लहु तआला अन्हा थीं। आप सल्लल्लाहू तआला अलैहि सल्लम ने फरमाया कि अगर यह अल्लाह तआला की तरफ से है तो वह ऐसा होके रहेगा।


कुरआन, हदीस और तारीख़ के पन्ने आपके फजाइल व मनाकिब से भरे हुए हैं। काशानए अक्दस में आने के बाद दिन रात हुजूर सल्लल्लाहु तआल अलैहि वसल्लम के दीदार शरीफ और आपकी सोहबत व बरकत से फैजयाब होने के साथ-साथ आपके चश्मए इल्म से भी सैराब हुईं और इस बहरे मुहीत से इल्म के बेशकीमती मोती चुनकर आसमाने इल्मो मारफत की उन बुलंदियों को पहुंच गईं जहां बड़े-बड़े जलीलुल कद्र सहाबा किराम आपके शगिर्दाें की फेहरिस्त में नज़र आने लगे।


हज़रते आयशा अल्लाह तआला की इबादत बहुत करती थीं, दिन को आप अक्सर रोज़ादार होतीं और रात को कुरआन पाक की तिलावत व इबादतें करतीं। तहज्जुद की नमाज़ बिला नागा पाबंदी के साथ अदा करती थीं। आप बहुत ज्यादा सखी थीं।


हज़रते आयशा रदियल्लाहु तआला अन्हा की फजीलत सहीह बुखारी में है कि आयशा की फज़ीलत तमाम औरतों पर इसी तरह है जिस तरह तमाम खानों में सुरीद (लज़ीज़ खाना) अफज़ल है। और हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया मुझे आयशा के बारे में तकलीफ न दो बेशक अल्लाह की कसम मुझ पर तुममें से सिर्फ हज़रते आयशा के बिस्तर पर ही वही नाजिल होती है। 


अहादीसे मुस्तफा ख़्वातीन में सबसे ज्यादा उम्मुल मोमिनीन हज़रते आयशा सिद्दीका रदियल्लाहु तआला अन्हा से मरवी है। आपकी मरवियात की तादाद 2210 है। जिनमें 286 हदीसें बुखारी व मुस्लिम में मौजूद हैं।

इमामे जोहरी जो ताबईन में से हैं फरमाते हैं कि हज़रते आयशा सिद्दीक़ा रदियल्लाहु तआला अन्हा तमाम लोगों में सबसे ज्यादा इल्म रखने वाली थीं। बड़े-बड़े सहाबा किराम उनसे मसाइल दरयाफ्त करते थे। हज़रते आयशा सिद्दीक़ा रदियल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं कि मैं यह बात तहदीसे नेमत के तौर पर कहती हूं कि दुनिया में नौ चीज ऐसी हैं जो अल्लाह ने मुझे अता की है मेरे सिवा किसी को नहीं मिली जिनमें से कुछ यह हैं : 

1. मेरी शान में कुरआन की आयतें नाजिल हुई। 

2. मैंने जिब्राइल अलैहिस्सलाम को अपनी आंखों से देखा। 

3. हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मेरी गोद में सर रखे वफात पाए।


हज़रते आयशा रदियल्लाहु तआला अन्हा और मुनाफकीन की नापाक साज़िश : गजवए बनी मुस्तलक़ से वापसी के वक्त काफिला मदीना मुनव्वरा के करीब एक पड़ाव पर ठहरा तो उम्मुल मोमिनीन हज़रते आयशा सिद्दीक़ा रदियल्लाहु तआला अन्हा जरूरत के लिए किसी गोशे में तशरीफ ले गईं। वहां पर आपका हार टूट गया और गुम हो गया तो आप उसकी तलाश में मसरूफ हो गईं। और इधर काफिले वाले आपका तजम्मुल शरीफ़ ऊंट पर रख दिया और उन्हें यह ख्याल था कि उम्मुल मोमिनीन इसके अंदर मौजूद हैं और काफिले वाले वहां से चले गए और जब आप उस जगह पर आईं तो काफिला वहां से जा चुका था और आप इस ख्याल से उस जगह बैठ गईं कि मेरी तलाश में काफिले वाले जरूर आयेंगे। काफिले के पीछे एक सहाबी रहा करते थे जो गिरी पड़ी चीज़ों को उठाने के लिए हुआ करते थे और उस दिन हज़रते सफवान रदियल्लाहु तआला अन्हु इस काम पर मामूर थे तो जब हज़रते सफवान रदियल्लाहु तआला अन्हु उस जगह पर आए तो आप अपने दुपट्टे को ओढ़ कर लिपटी हुई थीं (यह वाक्या आयते पर्दा का हुक्म नाज़िल होने से पहले का है) हज़रत सफवान रदियल्लाहु तआला अन्हा बुलंद आवाज़ से पढ़ते हैं इन्ना लिल्लाही व इन्ना इलैहि राजिऊन, तो आपने फौरन पर्दा कर लिया और उन्होंने अपनी ऊंटनी बिठाई और आपको उस पर सवार किया और लश्कर में पहुंच गए। उस वक्त मुनाफिकीन ने गलत बातें फैलाईं और आपकी शान में बदगोई शुरू कर दी और कुछ मुसलमान भी उनके फरेब में आ गए और इस दौरान हज़रते आयशा सिद्दीक़ा रदियल्लाहु तआला अन्हा बीमार हो गई थीं और एक माह तक बीमार ही रहीं। बीमारी की हालत में उन्हें इस बात का पता नहीं चला कि मुनाफिकीन उनके बारे में क्या कह रहे हैं।


एक रोज हज़रते उम्मे मिस्तह से उन्हें ये ख़बर मालूम हुई तो इससे आपका मर्ज बढ़ गया और इस सदमे में इस तरह रोईं कि आपके आंसू थमते न थे और न एक लम्हे के लिए नींद आई। 

इसी हाल में दो आलम के सरदार सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर वही नाज़िल हुई और उम्मुल मोमिनीन के पाक दामनी के सबूत में आयतें नाजिल हुई। 


अल्लाह तआला सूरह नूर आयत नंबर 11 से लेकर 21 तक इरशाद फरमाता है जिसका तर्जुमा : तुम्हारा पर्दा खोल देता बेशक वह यह की बड़ा बोहतान लाए हैं तुम ही में की एक जमात है उसे अपने लिए बुरा ना समझो बल्कि वह तुम्हारे लिए बेहतर है उनमें हर शख़्स के लिए वह गुनाह है जो वह कमाया है और उनमें वह जिसने बड़ा हिस्सा पाया उसके लिए बड़ा आजाब है क्यों न हुआ जब तुमने उसे सुना था कि मुसलमान मर्दों और मुसलमान औरतों ने अपनों पर नेक गुमान किया होता और कहते कि यह खुला बोहतान है इस पर चार गवाह क्यों नहीं लाते तो जब गवाह नहीं लाए तो वही अल्लाह के नजदीक झूठे हैं और अगर अल्लाह तआला का फज्ल और उसकी रहमत तुम पर दुनिया और आखिरत में न होती तो जिस चर्चे में तुम पड़े उसे पर तुम्हें बड़ा आजाब पहुंचता। पूरी आयत पारा नंबर 18 सूरह नूर में मौजूद है। 


जब हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम पर इल्जाम लगा तो एक बच्चे ने उनकी पाक दामिनी की गवाही दी और जब हज़रतेे मरियम रदियल्लाहु तआला अन्हा पर तोहमत लगी तो उनकी पाक दामिनी का ऐलान उनके बेटे से करवाया गया और जब हज़रते आयशा सिद्दीक़ा रदियल्लाहु तआला अन्हा पर तोहमत लगी तो अल्लाह तआला ने खुद कुरआने पाक में 10 आयते नाजिल फरमाकर आपकी पाक दामिनी साबित की।


वफात : हज़रते आयशा सिद्दीक़ा रदिल्लाहु तआला अन्हा माहे रमजान की 17 तारीख मंगल की रात 58 हिजरी में वफात पाईं। आप 18 साल की उम्र में बेवा हुई और वफात के वक्त आपकी उम्र 67 बरस की थी। आपने वसीयत की थी कि मुझे जन्नतुल बकीअ में दफ़न किया जाए और वसीयत के मुताबिक आपको जन्नतुल बकीअ में दफ़न किया गया और आपकी नमाज़े जनाजा हज़रत अबू हुरैरह रदियल्लाहु अन्हु ने पढ़ाई।

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