उम्मुल मोमिनीन हज़रते सैयदा उम्मे सलमा रदियल्लाहु तआला अन्हा ; ईमान वालों की अज़ीम माएं : "फ़ैज़ाने उम्महातुल मोमिनीन" "MOTHERS of the BELIEVERS" Extraordinary, Outstanding, Illustrious Muslim Women Scholar : Biography of Hazrat Umme Salama Radi'Allahu Anha - Part - 7 Great Women of Islam : हज़रते उम्मे सलमा रदियल्लाहु अन्हा की पाक सीरत Part - 7


 उम्मुल मोमिनीन हज़रते सैयदा उम्मे सलमा रदियल्लाहु तआला अन्हा

गुलअफ़्शां खातून
आलिमा कोर्स, साल ए अव्वल
मदरसा रज़ा ए मुस्तफाﷺ, तुर्कमानपुर गोरखपुर।

उम्मुल मोमिनीन हज़रते सैयदा उम्मे सलमा रदियल्लाहु तआला अन्हा का शुमार दीन-ए-इस्लाम की बहुत ही पाकीज़ा व इज़्ज़तदार औरतों में होता है। आप बहुत अक़्लमंद थीं। आपकी शख़्सियत और दीनी गैरत हमारे लिए बेहतरीन नमूना (Ideal) है। 

हज़रते सैयदा उम्मे सलमा रदियल्लाहु तआला अन्हा का नाम हिन्द और कुन्नियत उम्मे सलमा है। आपका तअल्लुक कुरैश के मशहूर खानदान बनी मख़्ज़ूम से था। वालिद का नाम हुजैफ़ा या सुहैल व कुन्नियत अबू उमय्या है और वालिदा नाम आतिका है। 

आपके वालिद मक्का मुकर्रमा के बड़े सखी आदमी, ताजिर (Business man)  और काफी दौलतमंद थे। इस लिहाज़ से हज़रते सैयदा उम्मे सलमा ने बहुत खुशहाल घराने में परवरिश पाई। 

आपका पहला निकाह अब्दुल्लाह बिन अब्दुल असद से हुआ, वह अबू सलमा के नाम से मशहूर थे। आप इस्लाम की इब्तिदा ही में अपने शौहर के साथ इस्लाम ले आईं थीं। गोया दोनों मियां बीवी शुरुआती दौर में इस्लाम लाने वालों में शुमार किए जाते हैं। 

कुरैश के ज़ालिमों ने आप लोगों पर बहुत ज़ुल्म किया। दोनों ने सबसे पहले हब्शा की तरफ हिजरत की। कुछ वक्त हब्शा में गुज़ार कर दोनों मियां बीवी वापस मक्का आ गए। वहां से हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही‌ वसल्लम की इजाज़त से मदीना मुनव्वरा की तरफ दोबारा हिजरत फरमाई।

हज़रत अबू सलमा ने कई जंगों में हिस्सा लिया। रमज़ान 2 हिजरी में जंग ए बदर में शरीक हुए और बड़ी बहादुरी से दुश्मनों का मुकाबला किया। फिर शव्वाल 3 हिजरी में गज़वा ए उहद (उहद नामी पहाड़ के पास हुई एक जंग का नाम है।) पेश आया तो सहाबा किराम के साथ इस जंग में भी शरीक रहे। एक ज़हरीले तीर से आपका बाज़ू ज़ख्मी हो गया। इलाज से वक्ती तौर पर तो सेहत हो गई लेकिन कुछ दिनों बाद यह ज़ख्म फिर हरा हो गया और इसी की तकलीफ से जुमादुल आखिरह 4 हिजरी में आपका इंतक़ाल हो गया।

हज़रत अबू सलमा का इंतक़ाल हज़रते उम्मे सलमा के लिए एक बड़ा गहरा सदमा था। इस हादसे ने आपकी शख्सियत पर बड़ा गहरा असर डाला। छोटे छोटे चार बच्चे थे जो बज़ाहिर बेसहारा हो गए थे। 

लेकिन वो मुआशरा बेवाओं से शादी करना बुरा नहीं समझता था। वो ऐसे जाहिल पढ़े लिखों का दौर न था जो बेवाओं से निकाह को अपनी इज़्ज़त पर एक दाग समझे। बल्कि दुनिया के सबसे बड़े इज्ज़तदार शख्स (बल्कि यूं कहा जाए कि ऐसा शख्स कि दुनिया की तमाम इज़्ज़तें उन्हीं के सदके दी गई हैं।) यानी नबी ए रहमत सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम ने बेवा से निकाह करके उनकी इज़्ज़त बढ़ाई और दुनिया को यह पैगाम दिया कि इज़्ज़त यह है कि ज़रूरत मंदों की मदद की जाए। बे सहारों को सहारा दिया जाए। लानत है ऐसी इज़्ज़तों पर जो मुआशरे के गरीब लोगों का हाथ थामने के बजाए उन्हें मज़ीद पीछे ढकेलने का काम करती हैं।

आपके शौहर हज़रत अबू सलमा के इंतकाल के वक्त आप उम्मीद से थीं। लिहाज़ा औलाद की पैदाइश के बाद यानी जब इद्दत गुज़र गई तो हज़रत अबू बक्र सिद्दीक और हज़रत उमर फारूक रदियल्लाहु तआला अन्हुमा ने हज़रते उम्मे सलमा रदियल्लाहु तआला अन्हा के लिए निकाह का पैग़ाम भेजा लेकिन आपने इन्कार कर दिया। 

इसके बाद हज़रत उम्मे सलमा कहती हैं : फिर सरकार ए दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम ने निकाह का पैग़ाम भेजा, उसको मैंने कुबूल कर लिया। लेकिन तीन वजहें पेश कीं 
1: मैं सख्त ग़ैरतमंद औरत हूं।
2: बच्चों वाली हूं।
3: मेरा यहां की वली (सरपरस्त) नहीं जो मेरा निकाह करे कुछ किताबों में है तीसरी शर्त यह थी कि मेरी उम्र ज़्यादा है।

हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम ने तीनों शर्तें कुबूल फरमा लीं। चुनांचा चार हिजरी में नबी ए रहमत सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम के साथ आपका निकाह हुआ।

हज़रते अबू सलमा के आपसे दो बेटे सलमह और उमर और दो बेटियां ज़ैनब और दुर्रा पैदा हुईं। रसूल्लल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की आपसे कोई औलाद नहीं।

सैयदा उम्मे सलमा की गोद में छोटी बच्ची ज़ैनब थीं। जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम घर तशरीफ लाते तो मुस्कुराते हुए फरमाते : नन्ही ज़ैनब कहां है? रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम नन्ही ज़ैनब को मुहब्बत व शफकत से गोद लेते और उसके साथ खेलते और बड़ी मेहरबानी से पेश आते।

हज़रते उम्मे सलमा ने इस्लाम के लिए बड़ी क़ुर्बानियां दीं। मुश्किल और नाज़ुक मौकों पर आपकी अक़्लमंदी मुसलमानों की रहनुमाई का ज़रिया बनी। जो दुनिया की तमाम औरतों के लिए नमूना है।

कुरआन की किराअत हदीस की रिवायत और फसाहत व बलागत में आप बेमिसाल थीं। हज़रते उम्मे सलमा का इल्मी मकाम हज़रते आयशा रदियल्लाहु तआला अन्हा के बाद सबसे बुलंद है। क़ुरआन शरीफ़ की क़िराअत खुद करतीं और हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के तर्ज पर पढ़तीं। आपके इल्म का यह आलम था कि लोग आपसे मसाइल पूछा करते थे। 

आप बहुत इबादत गुज़ार और परहेज़गार थीं। सुन्नत व शरीयत की हद दर्जा पाबंद थीं। शरीयत के खिलाफ बात बिल्कुल बर्दाश्त न करतीं और फौरन उससे रोक टोक फरमातीं‌। आप इल्म और हुस्न-ए-अख़्लाक में बेमिसाल थीं। आप हाफिज़ा-ए-क़ुरआन थीं। आपसे करीब 387 हदीसें रिवायत की गई हैं। 

आयत-ए-ततहीर आपके घर में नाज़िल हुई। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही‌ वसल्लम ने कई मौके पर आपसे मशवरा किया। आप जंगे खैबर, फतेह मक्का, जंग-ए-ताइफ, और दूसरी जंग में हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम के साथ रहीं। हज्जतुल विदा में बीमार होने के बावजूद भी आप हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिही वसल्लम के साथ थीं। आप दीनी तालीम दिया करतीं। और लोगों के मसले का फैसला भी फरमातीं। रसूले पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम की तमाम पाक बीवियों में आपका विसाल सबसे आखि़र में हुआ। 

आपका विसाल 84 साल की उम्र 63 हिजरी में हुआ। आपकी नमाज़े जनाज़ा हज़रत अबू हुरैरह रदियल्लाहु तआला अन्हु ने पढ़ाई। आपका मज़ार जन्नतुल बकीअ, मदीना मुनव्वरा शरीफ में है।

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हज़रते सैयदा उम्मे सलमा रदियल्लाहु तआला अन्हा का शुमार दीन-ए-इस्लाम की बहुत ही पाकीजा व इज्जतदार ख़्वातीन में होता है। अल्लाह तआला ने आपको सीरत व सूरत दोनों से मालामाल किया था। आप बहुत जहीन व अक्लमंद थीं। आपकी शख़्सियत और दीनी गैरत व अहमियत काबिले रश्क थी। उम्मे सलमा ने इस्लाम के लिए बड़ी कुर्बानियां दीं। मुश्किल और नाजुक मौकों पर आपकी फरासत मुसलमानों की रहनुमाई का जरिया बनी जो दुनिया की तमाम औरतों के लिए नमूना है। इंसान शनासी मामला, फहमी कुरआन की किरात हदीस की रिवायत और दीनी गैरत और फसाहत व बलागत में बेनजीर थीं। हज़रते उम्मे सलमा का इल्मी मकाम हज़रते आयशा रदियल्लाहु तआला अन्हा के बाद सबसे बुलंद था। कुरआन शरीफ़ की किरात खुद करती और हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के तर्ज पर पढ़ सकती थीं। आपके इल्म का यह आलम था कि लोग आपसे मसाइल दरयाफ्त करते थे। 


हज़रते सैयदा उम्मे सलमा रदियल्लाहु तआला अन्हा का नाम हिन्द और कुन्नियत उम्मे सलमा थी। आपका तआल्लुक कुरैश के मशहूर खानदान बनी मख़्जूम से था। वालिद का नाम हुजैफ़ा या सुहैल और कुन्नियत अबू उमय्या है और वालिदा नाम आतिका है। आपके वालिद मक्का मुकर्रमा के बहुत बड़े सखी आदमी थे, ताजिर थे और बहुत दौलतमंद थे। इस लिहाज से हज़रते सैयदा उम्मे सलमा ने बहुत खुशहाल घराने में परवरिश पाई थी। आपका पहला निकाह अब्दुल्लाह बिन अब्दुल असद से हुआ, वह अबू सलमा के नाम से मशहूर थे। आप इस्लाम की इब्तिदा ही में अपने शौहर के साथ इस्लाम ले आईं थीं। गोया दोनों मियां बीवी सबसे पहले इस्लाम लाने वालों में शामिल हैं। कुरैश ने आप लोगों पर बहुत जुल्म किया। दोनों ने सबसे पहले हबशा की तरफ हिज़रत की थी। कुछ अरसा बाद हबशा में गुजार कर दोनों मियां बीवी वापस मक्का आ गए, वहां से हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की इजाजत से मदीना मुनव्वरा की तरफ हिज़रत की। 

हज़रत अबू सलमा ने कई गजवात में हिस्सा लिया। जब आपका इंतकाल हो गया तो हज़रत अबू बक्र सिद्दीक और हज़रत उमर फारूक रदियल्लाहु तआला अन्हु ने हज़रते उम्मे सलमा की इद्दत खत्म होने के बाद निकाह के लिए पैग़ाम भेजा तो आपने इंकार कर दिया। इसके बाद हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने आपको निकाह का पैग़ाम भेजा। चार हिजरी में हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ आपका निकाह हुआ और उस मुबारक हुजरे में ठहराया गया जहां पहले हज़रते ज़ैनब बिन्ते ख़ुजैमा रदियल्लाहु तआला अन्हा रिहाइश पज़ीर थी क्योंकि उस वक्त उनका इंतकाल हो चुका था। 


आप बहुत इबादत गुजार और परहेजगार थीं। आप इल्म और हुस्न-ए-अख़्लाक में बेमिसाल थीं। आप हाफिज-ए-कुरआन थीं। आपसे करीब 378 अहादीस मरवी है। हज़रत अली की वालिदा हज़रते फातिमा बिन्ते असद के इंतकाल के बाद हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सैयदा फ़ातिमा ज़हरा की जिम्मेदारी आपको अता फरामाई। आयत-ए-ततहीर आपके घर में नाज़िल हुई। हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कई मौके पर आपसे मशवरा किया। आप जंगे खैबर, फतेह मक्का, जंग-ए-ताइफ, और दूसरी जंग में हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ थीं। हज्जतुल विदा में भी आप हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ थीं। आप तालीम-ए-दीन दिया करती थी और लोगों के मसले का फैसला भी फरमाती थीं। तमाम अजवाज-ए-मुतहहरात में आपका विसाल सबसे आखि़र में हुआ। 


आपका विसाल 84 की उम्र में 59 या 62 या 64 हिजरी में हुआ। आपकी नमाज़े जनाज़ा हज़रत अबू हुरैरह रदियल्लाहु तआला अन्हु ने पढ़ाई। आपका मजार जन्नतुल बकीअ, मदीना मुनव्वरा में है। हज़रते अबू सलमा के आपसे दो बेटे सलमह और उमर और दो बेटियां ज़ैनब और दुर्रा पैदा हुईं। रसूल्लल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की आपसे कोई औलाद नहीं।


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