मुसलमानों के पहले ख़लीफा अमीरुल मोमिनीन हज़रत सैयदना अबू बक्र सिद्दीक़-ए-अकबर रदियल्लाहु तआला अन्हु










अलक़ाब :

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सिद्दीक़-ए-अकबर, अतीक, अफजल-उन-नास बादल अंबिया, यार-ए-गारे नबी, सानी-ए-इस्नैन फिल गार, खलीफतुल रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम, सालार-ए-सहाबा।


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आप की विलादत 573 ई. में मक्का में हुई। आपका असल नाम अब्दुल्लाह है। आपके वालिद का नाम हज़रत अबू क़ुहाफा, उस्मान इब्न आमिर रदियल्लाहु तआला अन्हु और वालिद का नाम उम्मुल खैर सलमा बिन्त सख्खर है। आप क़ुरैश के बनू तैम क़ाबीले से तअल्लुक रखते हैं।

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आप जब बच्चे थे तब एक बार आप के वालिद आपको काबा में ले गए और बुतों की इबादत के लिए कहा। जब आपके वालिद किसी काम से बाहर गए तो आपने एक बुत के सामने खड़े होकर कहा 'ऐ बुत! मुझे अच्छे कपड़े चाहिए। क्या तुम दे सकते हो?’ बहुत में से कोई जवाब न मिला। फिर आपने दूसरे बुत के सामने खड़े होकर कहा 'ऐ बुत! मुझे अच्छा खाना चाहिए। क्या तुम दे सकते हो?’ बुत में से कोई जवाब न मिला। आपने गुस्से में आकर एक पत्थर उठाकर कहा 'अब मैं तुम्हें पत्थर मारने वाला हूं। अगर तुम खुदा हो तो खुद को बचा लो।' ये कहकर आपने बुत को पत्थर मारा और वहां से निकल गए। इसके बाद आप कभी किसी बुत की इबादत के लिए नहीं जाएंगे।


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मक्का में आप मोहल्ला मिस्फ़लाह में सुकूनत पज़ीर थे। सन् 591 ई. में 18 साल की उम्र में आपने अपना खानदानी कपड़ों का कारोबार संभाला और यमन, शाम और दूसरे मुल्कों में काफिले के साथ सफ़र करने लगे। इस तरह आपने तजुर्बा और माल व दौलत हासिल किया।


आप अपने अमानतदारी और हुस्न-ए-अख़्लाक के सबब मशहूर थे। सरदाराने कुरैश मुख्तलिफ उमूर और मुअमलात में आप से मशविरा किया करते थे।


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आप एलान-ए-नबुव्वत से पहले भी हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दोस्त थे और आपने हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ काफिले में सफ़र किया था और आप हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सदाकत और अमानतदारी से वाक़िफ थे।


जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का निकाह हज़रत खदीजतुल कुबरा रदियल्लाहु तआला अन्हा के साथ हुआ उसमें भी आप शामिल हुए।


एक मरतबा हज़रते अबू बक्र रदियल्लाहु तआला अन्हु तिजारत के लिए मुल्क-ए-शाम गए तब एक रात आपने ख़्वाब में देखा के एक नूर उतरा और आपके दामन में समा गया। जब आप की आंख खुली तो आप ने लोगों को इस अजीब ख़्वाब के बारे में बताकर उनसे इसकी ताबीर पूछी।


बुहैरा नामी राहिब ने आपसे पूछा 'तुम कहा से आए हो?' आपने उसे बताया 'मैं मक्का से आया हूं।' उसने पूछा 'कौन से कबीले से हो?' आपने कहा 'कुरैश से।' उसने पूछा 'क्या करते हो?' आपने कहा 'ताजिर हूं।'


तो उस राहिब ने कहा 'हमारी किताब में ये बयान है कि अहमद नाम के अल्लाह के नबी मक्का में जाहिर होंगे।शायद ये इस बात की तरफ़ इशारा है और तुम उनके वजीर और उनके बाद उनके खलीफा बनोगे।' इसके बाद आप मक्का वापस आ गए।


सन् 610 ई. में हुज़ूर रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मक्का में अल्लाह के हुक्म से एलान-ए- नबुव्वत किया तब आप यमन में थे। मक्का वापस आने पर जब आपको पता चला तो आप हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में गए और पूछा 'क्या आपने एलान-ए-नबुव्वत किया है?' हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि 'उस राहिब ने तुम्हें जो बताया वो सच है।'


हज़रते अबू बक्र रदियल्लाहु तआला अन्हु जानते थे कि उन्होंने मक्का में यह बात किसी को नहीं बताई थी, इसलिए यह सुनकर आप फौरन कलमा पढ़कर मुसलमान हो गए।


इस तरह आप मर्दों में सबसे पहले ईमान लाये और अस-साबिकून अल-अव्वलून में शामिल हैं।


आपकी बीवी कुतैलाह बिन्त अब्दुल उज्जा ईमान न लाई तो आपने उसे तलाक दे दिया और अपने बेटे अब्दुर रहमान को भी इसी वजह से छोड़ दिया।


3 साल बाद जब मुसलमानों की तदाद 38 हुई और हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस्लाम की दावत को जाहिर और आम करना शुरू किया तब सबसे पहले आपने हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ से लोगों को जमा करके इस्लाम की दावत दी। यह सुनकर कुरैश के कुछ नौजवानों ने आप पर हमला करके आप को ज़ख्मी कर दिया। इसके बाद आप की वालिदा भी मुसलमान हो गईं।

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आपकी दावत और मशविरे से बहुत सारे लोग इस्लाम में दाख़िल हुए,

जिनमें हजरत उस्मान गनी बिन अफ्फान, जुबैर इब्न अव्वाम, तल्हा इब्न उबैदुल्ला, अब्दुर रहमान बिन औफ, साद इब्न अबी वक्कास, अबू उबैदा इब्न जर्राह, अबू सलामा अब्दुल्ला बिन अब्दुल असद, अब्दुल्ला इब्न मसूद, खालिद इब्न सईद, अबू हुजैफ़ा इब्न मुग़ीरा और अरक़ाम बिन अबिल अरक़ाम रदियल्लाहु तआला अन्हुमा मशहूर हैं।


आपने 8 गुलामों को आज़ाद कराया जो मुसलमान हो गए थे।

जिनमें मर्दों में हज़रते बिलाल हब्शी इब्न रिबा, अम्मार इब्न यासिर, अबू फकीह और अबू फ़ुहैरा और औरतों में लुबैना, नहदिया, उम्मे उबैस, हरिशह बिन्त मुअम्मिल सामिल हैं।

इसके लिए आपने 40,000 दीनार खर्च किए। आपके वालिद ने कहा 'तुम बूढ़े और कमज़ोर गुलामों को आज़ाद कराते हो जिससे हमें कोई फ़ायदा नहीं होगा।' आपने फरमाया 'मैं तो अल्लाह की रज़ा के लिए मुसलमानों को आज़ाद कराता हूँ।'


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एक दिन हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हातिम-ए-काबा में नमाज़ पढ़ रहे थे कि उकबा बिन मुईत ने हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की गर्दन में कपड़ा डाल कर इतनी जोर से खींचा कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का गला घुटने लगा। इतने में हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ वहां पहुंचे तो आपने फ़ौरन उक़बा को धक्का मारा और क़ुरान मजीद की यह आयत तिलावत की 'क्या तुम एक शख़्स को इस बात पर क़त्ल करते हो कि वो कहता है कि मेरा रब सिर्फ़ अल्लाह है, और अपनी नबुव्वत और रिसालत की खुली निशानियां तुम्हारे पास तुम्हारे रब की तरफ से लेकर आया है।'

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जब अहले मक्का के ज़ुल्म बढ़ने लगे तो 6 नबवी (615 ई.) में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इजाज़त से आप हिजरत करके हब्शा (एबिसिनिया) गए।


8 नबवी (617 ई.) में जब कुरैश ने बनु हाशिम से तमाम ताल्लुक़ात तोड़ दिया और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बहुत तकलीफ़ देने लगे और आपका बहार आना जाना मुश्किल हो गया तब यह सुनकर हज़रते अबू बक्र ने वापस मक्का आने के लिए इरादा किया। आप क़ारा के सरदार इब्ने दग़िन्ना की मदद और हिफ़ाज़त से मक्का वापस आये।


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12 नबवी (621 ई.) में मेराज के बाद हुज़ूर रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा किराम को मेराज की बातें बयान फरमाई। कुफ़्फ़ार-ए-मक्का ने हज़रते अबू बक्र रदियल्लाहु अन्हु को जाकर बताया और कहा कि 'क्या आप इस बात की तस्दीक कर सकते हैं जो आप के दोस्त ने कही है कि उन्होंने रात ओ रात मस्जिद-ए-हराम से मस्जिद-ए-अक्सा की सैर की ?' आपने फरमाया 'क्या हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वाक़ई ये बयान फरमाया है?' उन्होंने कहा 'जी हां।' आपने फ़रमाया 'अगर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह इरशाद फ़रमाया है तो यकीनन सच फ़रमाया है।' और मैं उनकी इस बात की बिला झिझक तस्दीक करता हूं।'


फिर जब आप हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में आए और करीब जाकर बैठे तो हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फिर से शुरू से पूरा वाकया बयान करना शुरू किया और हज़रते अबू बक्र रदियल्लाहु अन्हु हर बात पर फ़रमाते 'सदक़ता या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम।'

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ख़ुश होकर आपको 'सिद्दीक-ए-अकबर' का लक़ब अता फ़रमाया यानी तमाम सिद्दीक में सबसे बड़ा।


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एक बार हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा किराम से फरमाया 'अनकरीब अल्लाह के हुक्म से हमें मक्का से हिजरत करनी है।'

इसके कुछ दिन बाद जब हुज़ूर रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को हिजरत के लिए अल्लाह तआला का हुक्म हुआ और आप हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु के घर पहुंचें और अभी आपने दरवाजे पर एक ही बार हल्की सी दस्तक दी कि सिद्दीक़ ए-अकबर ने फ़ौन दरवाज़ा खोल दिया।


आपने फरमाया 'अबू बक्र!' हमें हिजरत का हुक्म मिला है। क्या तुम हिजरत में साथी बनने के लिए तैयार हो?'


सिद्दीक-ए-अकबर ने फरमाया 'या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम!' मैंने तो तबसे तैयारी कर ली है जब आपने हिजरत के लिए फरमाया था। और रोज़ रात को मैं जागता रहता था कि अगर हिजरत के लिए निकलना हो तो मेरे आका को देर ना हो।'


आपने यह सोचकर कि शायद जरूरत पेश आए, अपना माल भी साथ में लिया, जिसकी मिकदार 5000 दिरहम थी।


हिजरत के लिए मक्का से निकलने के बाद कुछ दूर जाने पर एक शख़्स मिला जो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को नहीं पहचानता था। उसने पूछा 'ऐ अबू बक्र, तुम्हारे साथ ये कौन है?'

सिद्दीक़-ए-अकबर ने सोचा कि अगर मैं हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बारे में इसको बता दूंगा तो शायद यह शख़्स मेरे आका को नुक़्सान पहुंचाए।


आपने उससे कहा कि 'यह मुझे सही रास्ता बताने वाला (रहनुमा) है।'

यह सुनकर वो शख़्स चला गया।


फिर आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ चलने लगे। आप कभी हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दाहिनी तरफ हो जाते, कभी बाईं तरफ, कभी आगे, कभी पीछे चलते कि किसी भी तरफ से कोई दुश्मन हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को नुक़सान न पहुंचा सके।


फिर रास्ते में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने गारे सौर में रहने का इरादा किया। हज़रते अबू बक्र सिद्दीक ने कहा 'या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! इस पहाड़ पर चढ़ते वक्त कंकर-पत्थर से आपको तकलीफ हो सकती है। आप इजाजत दें तो आप मेरे कंधों पर बैठ जाएं। मैं आपको लेकर ऊपर चढ़ूंगा।'


इस तरह आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपने कंधों पर बैठाकर ऊपर चढ़ाने लगे। रास्ते में आप कभी हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दाहिने पांव को चूमते, कभी बाएं पांव को चूमते।


हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा 'अबू बक्र!' क्या कर रहे हो?'

आपने फरमाया 'या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम!' मैं मेराज कर रहा हूं। आप की मेराज यह है कि आप अल्लाह तआला के पास ला-मकां तक पहुंचे और अबू बक्र की मेराज यह है कि  वह आप के कदमों तक पहुंचा।'


फिर गारे सौर में पहुंचें तो अल्लाह तआला के हुक्म से एक मकड़ी ने घर के दरवाज़े पर जाल बना दिया और एक कबूतरी ने गार के बाहर अंडा दिया। कुफ्फार आप का पीछा करते हुए वहां पहुंचे तो यह सब देखकर यह सोचा कि अगर कोई अंदर गया होता तो यह अंडा और जाल यहां ना होता और वापस चले गए।


हजरते सिद्दीक-ए-अकबर ने गार को साफ किया और देखा कि गार  की दीवारों में बहुत सारे सुराख़ हैं। आपने अपना जुब्बा फाड़कर उन सुराख़ों को बंद कर दिया कि कोई जानवर आकर मेरे आका को नुक़सान ना पहुंचाये। मगर एक सुराख़ बाकी रह गया। आपने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कहा 'आप आराम फरमा लें।' और जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम लेटकर आपकी गोद में आराम करने लगे तो आपने उस सुराख़ पर अपना पांव (एड़ी) रख दिया।


थोड़ी देर में एक सांप ने आकार आपके पांव पर काटा। आपने दर्द और तकलीफ़ बर्दाश्त कर लिया कि मेरे आक़ा को ख़लल ना हो। मगर बार-बार कांटने पर आखिर में आपकी आंख से बेअख्तियार आंसू निकल गये। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चेहरा-ए-अनवर पर जब आंसू गिरे तो आपने फरमाया 'अबू बक्र!' क्या बात है?'

आपने सारी बात बताई तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आप को पैर हटाने के लिए फरमाया।

पैर हटाते ही सुराख़ से सांप बहार आया और सलाम पेश किया और कहने लगा 'या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! मैं एक जमाने से आपके दीदार के लिए गार में रहता था और मैंने ही बाहर आने के लिए यह सब सुराख़ बनाए थे। मगर आपके साथी ने यह सब सुराख़ बंद कर दिया और एक सुराख़ पर अपना पांव रख दिया तो मजबूरन मुझे आपके दोस्त को काटना पड़ा।'


हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सिद्दीक-ए-अकबर के ज़ख्म पर अपना लुआबे दहन लगाया और आपको फ़ौन आराम हो गया।


हज़रत अबू बक्र सिद्दीक के साहबजादे अब्दुल्लाह रोज़ाना रात को गार के मुंह पर सोते और सुबह होते ही मक्का चले जाते और पता लगाते कि कुरैश क्या तदबीरे कर रहे हैं। जो कुछ ख़बर मिलती शाम को आकर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अर्ज़ कर देते।


हज़रते अबू बकर सिद्दीक़ के ग़ुलाम हज़रते आमिर बिन फ़ुहेरा देर रात को चारागाह से बकरियां लेकर गार के पास आ जाते और उन बकरियों का दूध हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उनके रफीक-ए-खास पी लेते थे।


आपकी इस खिदमत से ख़ुश होकर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया के 'मैं चाहता हूं कि अल्लाह तआला से तुम्हारे लिए दुआ करूं कि तुम्हें अपना फजले खास अता फरमाए।' आपने अर्ज किया या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! आप जानते हैं कि मेरे लिए क्या बेहतर है। हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हाथ उठाकर दुआ फरमाई कि अल्लाह तआला क़यामत तक तुम्हारी औलाद में ऐसे अफ़राद अता फरमाए जो उलूम-ए-जाहिरी और बातनी से फैजयाब हों और जो सिराते मुस्तक़ीम पर क़ायम हो और लोगों को भी उन के ज़रिये हिदायत हासिल हो।'


इस तरह जुमा से इतवार तक 3 रात तक गार में क़याम पज़ीर रहे।

फ़िर हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ ने अब्दुल्लाह बिन अर्बक़त को उजरत देकर तैयार किया और वह 2 ऊंटनी लेकर आये। जिनमें से एक ऊंटनी ख़रीदकर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मदीना का सफ़र शुरू किया और दोनों यसरीब (मदीना मुनव्वरा) पहुंचे।


इस तरह आप 'सानी-ए-इस्नैन फिल गार' कहलाते हैं। (इसका जिक्र कुरान मजीद में सूरह अल-तौबा आयत नंबर 9 में है।)


इस तरह 13 नबवी (622 ई.) में आप ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ मक्का से मदीना हिजरत की।


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हिजरत के बाद आप दूसरे सहाबा किराम के साथ मस्जिद-ए-नबवी की तामीर का काम करते रहे।


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मदीना मुनव्वरा मैं आपके 2 घर थे। एक मस्जिद-ए-नबवी शरीफ़ से मुत्तसिल था, जिसकी खिड़की मस्जिद-ए-नबवी के अंदर खुलती थी और उसी खिड़की के मुतअल्लिक हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने आखिरी अय्याम में इरशाद फरमाया कि 'अबू बक्र की खिड़की के सिवा तमाम खिड़कियां बंद कर कर दो।'


दूसरा घर मक़ाम-ए-सुनह में था। आप यहां इबादत किया करते थे। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के विसाल-ए-ज़ाहिरी के वक़्त आप उसके घर से काशाना-ए-नबुव्वत में हाज़िर हुए थे।


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2 हिजरी में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ आप की बेटी हज़रते आइशा रदियल्लाहु तआला अन्हा का निकाह हुआ।


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आपके बारे में हुज़ूर रसूलल्लाह आका सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाया है कि 

1. सिवा-ए-अंबिया के किसी दूसरे ऐसे आदमी पर आफ़ताब तुलू और ग़ुरूब नहीं हुआ जो अबू बक्र से अफ़ज़ल हो।


2. अगर अबू बक्र का ईमान मेरी तमाम उम्मत के ईमान के साथ वजन में किया जाए तो अबू बक्र का ईमान ग़ालिब आये।


3. अबू बक्र का यह मरतबा सिर्फ उसकी इबादत की वजह से नहीं है, बल्कि अल्लाह तआला ने उसके दिल में जो खास रखा है उसकी वजह से है।


4. सबसे ज़्यादा मुझ पर अबू बक्र के एहसान है, माल का भी और हम-नशीनी (सोहबत) का भी। उसने इस्लाम के लिए अपनी जान और माल भी कुर्बान किए हैं और अपनी बेटी मेरे निकाह में दी है और अबू बकर ने बिलाल अल-हब्शी को आज़ाद कराया है।'


5. किसी शख़्स के माल ने मुझे इतना फायदा नहीं दिया जितना फायदा मुझे अबू बक्र के माल ने दिया है।


(इस्लाम कुबूल करने के बाद से लेकर हिजरत तक आपने इस्लाम की मदद के लिए 35000 दिरहम खर्च कर दिए और 5000 दिरहम हिजरत के वक्त के साथ लिए।)


6. अबू बक्र की मुहब्बत और उन का शुक्र मेरी तमाम उम्मत पर वाजिब है। (इब्ने असाकिर)


7. मेरी उम्मत में सबसे ज्यादा रहम दिल अबू बकर सिद्दीक हैं।


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आप अशरा-ए-मुबश्शरा में से हैं।


1. एक बार हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आपसे फ़रमाया 'अबू बक्र! जन्नत में दाख़िल होने वालों मैं तुम सबसे पहले रहोगे।'


2. हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आप से फ़रमाया 'अबू बक्र! तुम गार में भी मेरे रफीक (साथी) थे और जन्नत में भी मेरे बहुत करीब रहोगे।'


3. हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आपसे फरमाया 'अन्ता अतीकुम मिनन नार।' (यानी 'तुम जहन्नम से आज़ाद हो।')


और एक मरतबा सहाबा किराम से फरमाया 'जिसे दोज़ख़ से आज़ाद शख़्स को देखना हो वो अबू बक्र को देख ले।'


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एक बार हुज़ूर रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया 'जब अल्लाह तआला किसी मोमिन के लिए भलाई का इरादा करता है तो उसमें कोई खूबी पैदा फरमाता है जिसके सबब वो जन्नती बन जाता है और ऐसी 360 खूबियां हैं।' 


हज़रते अबू बक्र ने पूछा या रसूल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! क्या मुझमें ऐसी कोई खास बात है?'

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया 'अबू बक्र!' तुम्हें मुबारक हो के तुम मुझमें वो तमाम खूबियां मौजूद हैं।'


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एक मरतबा हुज़ूर रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया '(कयामत के दिन) नमाजियों को बाब-उस-सलात से पुकारा जाएगा, मुजाहिदीन को बाब-उल-जिहाद से, सदकात्त करने वालों को बाब-उस-सदका से, रोजादारों को बाब-उस-सियाम से पुकारा जाएगा।'

हज़रत अबू बक्र सिद्दीक ने अर्ज़ किया 'या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! क्या कोई शख़्स सब दरवाज़ों से पुकारा जाएगा?'


हुज़ूर रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया 'हां।' मैं उम्मीद रखता हूं ऐ अबू बक्र कि तुम उनमें से हो।'


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एक बार हुज़ूर रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सिद्दीक़े अकबर को अपनी अंगूठी मुबारक दी और फरमाया की 'इस पर ला इलाहा इल्लल्लाह नक्श करवा के लाओ'।


जब आपने वापस आकर अंगूठी हुजूर की खिदमत में पेश की तो उस पर लिखा था 'ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मद रसूल-अल्लाह' और उसके साथ ही सिद्दीकी अकबर का नाम भी लिखा था।


हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा 'अबू बक्र!' हमने तो ला इलाहा इल्लल्लाह लिखवाने को कहा था मगर तुम हमारा नाम और अपना नाम भी लिखा लाए।'

अबू बक्र सिद्दीक ने अर्ज़ किया 'या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! मेरे दिल को गंवारा नहीं था कि अल्लाह के नाम के साथ आप का नाम न हो, इसलिए आपका नाम तो मैंने ही लिखवाया मगर मेरा नाम मैंने हरगिज नहीं लिखवाया और मुझे खुद को पता नहीं यह कैसे और किस ने साथ में लिखा।'


इतने में हज़रते जिब्रईल अमीन अलैहिस्सलाम हाज़िर हुए और अर्ज़ किया 'या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! अल्लाह तआला ने फरमाया है कि सिद्दीक को गंवारा न था कि आपका नाम हमारे नाम से जुदा करें। लिहाज़ा सिद्दीकी ने आपका नाम हमारे नाम के साथ लिखवा दिया और हमने सिद्दीकी का नाम आपके नाम के साथ लिखवा दिया।'


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एक बार हुजूर रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया 'मुझे 3 चीजें बहुत महबूब हैं - खुश्बू, नेक बीवी और मेरी आंखों की ठंडक नमाज़ में है।'


हज़रत अबू बक्र सिद्दीक फ़ौरन बोले 'ऐ अल्लाह के हबीब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! मुझे भी 3 चीजें बहुत पसंद हैं - एक आप के चेहरा-ए-अनवर को देखते रहना, दूसरा आप पर अपना माल खर्च करना, तीसरा यह कि मेरी बेटी आप के निकाह में है।'


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जब भी अज़ान में आप हुज़ूर रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का नाम मुबारक सुनते तो फ़ौरन मुहब्बत के साथ दुरूद शरीफ़ पढ़कर दोनों अंगूठों को चूमकर अपनी आँखों से लगाते।


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जंगे तबूक के मौक़े पर हुज़ूर रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा किराम से फरमाया 'इस्लाम के लिए माल जमा करना जरूरत है।' आप लोगों से जितना हो सके उतना माल राहे खुदा में दें।'

सब सहाबा किराम कुछ माल लेकर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में आए।


हज़रते उमर फ़ारूक़ अपने तमाम माल में से आधा हिसा लेकर आये।

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा उमर! घर वालों के लिए क्या छोड़ा है?'


उन्होंने कहा 'या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, आधा माल आपकी बारगाह में लाया हूं और आधा माल घर वालों के लिए छोड़ कर आया हूं।'


इतने में हज़रते अबू बक्र आये और अपना माल रखा।

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा 'अबू बक्र!' घर वालों के लिए क्या छोड़ा है?'


आपने फरमाया 'घर वालों के लिए अल्लाह और उसके रसूल को छोड़कर आया हूं।'


यह सुनकर हज़रते उमर फ़ारूक़ सोचने लगे 'मैं सोच रहा था कि इस बार अबू बक्र से आगे निकल जाऊं, मगर इस बार भी सिद्दीक-ए-अकबर ही आगे निकल गए।'


इतने में हज़रते जिब्रईल अलैहिस्सलाम आये। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनको देख कर पूछा 'ऐ जिब्रईल! तुमने ये कैसा लिबास पहना है और तुम्हारे कुर्ते में ये बबूल का कांटा क्यों लगाया है?'


हज़रते जिब्रईल अलैहिस्सलाम ने फरमाया या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! आपके सिद्दीक-ए-अकबर ने अपने कुर्ते में बबूल का कांटा लगाया है, इसलिए अल्लाह तआला ने सब फ़रिश्तों, गिलमां, हूरों को ऐसा लिबास पहनने का हुक्म किया है।'


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आपकी शान में अल्लाह तआला ने आयत भी नाज़िल फरमाई:

'और उस [आग] से उस बड़े परहेज़गार शख़्स को बचा लिया जाएगा।

जो अपना माल देता है कि (खिदमते इस्लाम करके) पाकीज़गी हासिल करे।' (92 सूरह अल-लैल, आयत 17-18)


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एक बार हुज़ूर रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सहाबा किराम को फरमाया 'क्या मैं तुम्हें वो अमल न बताऊं जो तुम्हें जन्नत में ले जाए?'

सहाबा किराम ने कहा कि या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! आप उस अमल के बारे में हमें जरूर बताएं।'

आपने फरमाया 'जो शख़्स बिना उजरत के मस्जिद में अज़ान देता वो जन्नत में जाएगा।'


यह सुनकर हज़रते अबू बकर सिद्दीक रदियल्लाहु तआला अन्हु आगे आए और फरमाया कि 'ऐ अल्लाह के हबीब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! यह काम सबके लिए मुमकिन नहीं क्योंकि हज़रते बिलाल रदिल्लाहु तआला अन्हु ही रोज़ हर नमाज़ के लिए अज़ान पुकारते हैं। आप कुछ और भी बताएं।'


यह सुनकर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया 'जो शख़्स इमाम के बिल्कुल पीछे खड़े होकर नमाज पढ़ता हो वह भी जन्नत में जाएगा।'


यह सुनकर आपने कहा कि 'ऐ मेरे आका!' यह भी मुमकिन नहीं क्योंकि हज़रते बिलाल अज़ान देने के बाद इक़ामत पढ़ते हैं और वह ही इमाम के बिल्कुल पीछे नमाज़ पढ़ते हैं। आप कुछ और भी बताइए।'


हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया 'जो शख़्स बिना उजरत के मस्जिद में झाड़ू लगाए और सफ़ाई करे वह जन्नत में जाएगा।' आपने कहा 'ऐ मेरे आका!' ये अमल मुमकिन है।'


इसके बाद हज़रते अबू बक्र ने मस्जिदे नबवी में रोज़ सफ़ाई करना शुरू कर दिया। आप दिन में 2-3 बार झाड़ू लगाने लगे।


एक बार हज़रते उमर फ़ारूक़ रदियल्लाहु अन्हु ने आपको सफ़ाई करते देखा तो सोचा के कल मैं फ़ज्र के वक़्त थोड़ा जल्दी आकर मस्जिद में सफ़ाई कर लूँगा।


दूसरे दिन हज़रते उमर अँधेरे ही में मस्जिद में दाख़िल हुए और सफ़ाई शुरू करने के लिए झाड़ू तलाश करने लगे। लेकिन अँधेरे की वजह से बहुत तलाश करने के बाद भी झाड़ू न मिला।

इतने में आपके क़दमों की आवाज़ से हज़रते अबू बक्र जो वहां सो रहे थे, उनकी आंख खुल गई और आपने अपने सर के नीचे से झाड़ू निकाला और मस्जिद में सफ़ाई शुरू कर दी।

झाड़ू लगाने की आवाज सुनकर हज़रते उमर ने पूछा 'कौन है जो मस्जिद में झाड़ू लगा रहा है?'

हज़रते अबू बक्र ने जवाब दिया 'मैं अबू बक्र हूं।'


हज़रते उमर ने पूछा 'आप मस्जिद में कब आये?' तो हज़रते अबू बक्र ने कहा 'यह सवाल आप उस से पूछें जो रात को घर गया हो। मैं तो रात भर मस्जिद नबवी ही में था।'


यह सुनकर हज़रते उमर जान गए कि हज़रते अबू बक्र को पता चल गया था कि मेरे दिल में आज मस्जिद में सफ़ाई करने का ख्याल आया था और इसी के लिए आप पूरी रात मस्जिद में ही रुके थे।


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एक दिन हज़रत अली रदियल्लाहु तआला अन्हु ने लोगों से खड़े होकर फरमाया 'तुम जानते हो तमाम लोगों में ज़्यादा बहादुर (शुजा) कौन है?'

हाज़िरीन ने जवाब दिया 'हज़रत आप।' आपने फरमाया 'नहीं!' बल्कि सब से ज्यादा दिलेर व बहादुर अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु तआला अन्हु हैं।'

फिर फरमाया 'इस का इम्तिहान यूं हुआ कि जब जंग-ए-बद्र पेश आई तो सहाबा किराम ने हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए एक छप्पर तैयार किया। फिर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को वहां बैठा कर गुफ्तगू हुई कि 'हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पासबानी और हिफाजत के लिए कौन शख़्स खड़े रह कर पहरा देगा ताकि मुशरिकीन में से कोई शख़्स आपके पास न पहुंच सके।'


मैं कसम खाकर कहता हूं कि उस वक्त सिर्फ अबू बक्र सिद्दीक ही आगे बढ़े और हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सरे मुबारक पर खुली तलवार लेकर खड़े रहे।'


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एक मरतबा आपके वालिद ने (जो उस वक्त मुसलमान नहीं हुए थे) हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बारे में  गुस्ताख़ी भरे अल्फ़ाज़ कहे तो आपने गुस्से में आकर ज़ोर से थप्पड़ मारा जिससे आपके वालिद ज़मीन पर गिर पड़े।


इस पर अल्लाह तआला ने आयत नाज़िल फरमाई: “तुम ना पाओगे उन लोगों को जो ईमान रखते हैं अल्लाह पर और आख़िरत के दिन पर उनसे दोस्ती करे जो अल्लाह और उसके रसूल की मुख़ालिफ़त की अगरचे वो इनके बाप-दादा या औलाद या भाई या कुंबे वाले करीबी रिश्तेदार हों, यही वो लोग हैं जिनके दिलों में उस [अल्लाह] ने ईमान नक्श फरमा दिया और अपने फैज से उनकी रूहानी मदद की है, और इन्हें जन्नतो में दाखिल किया जाएगा जिनके नीचे नहरें बह रही हैं, वो इन मैं हमेशा रहने वाले हैं, अल्लाह उनसे राजी हो गया और वो अल्लाह से राजी हो गए, याद रखो बेशक यह अल्लाह की जमात है सुनता है अल्लाह ही की जमाअत कामयाब है।”

(58 सूरह अल-मुजादल, आयत 22)

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एक बार आप के बेटे अब्दुर रहमान ने आपसे कहा 'अब्बा जान! जंग-ए-बद्र में मैं काफिरों के साथ था और जंग के दौरन आप मेरी तलवार के नीचे आ गए थे और मैंने आपको इसलिए छोड़ दिया कि आप मेरे वालिद हैं।'


आपने फरमाया 'ऐ मेरे बेटे! अगर उस वक्त तुम मेरी तलवार के नीचे आ गए होते तो मैं तुम्हें क़त्ल कर देता क्योंकि उस वक्त तुम मेरे आका सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दुश्मनों के साथ थे।'


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एक बार हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु तआला अन्हु मुस्कुरा रहे थे। हज़रते अली ने वजह पूछी तो आपने फरमाया 'ऐ अली!' मुबारक हो, मुझसे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह फरमाया है कि जब तक अली पुल सीरत से गुज़रने का परवाना अता नहीं करेंगे तब तक कोई शख़्स पुल सीरत से गुज़र नहीं पाएगा।'


हज़रते अली रदियल्लाहु तआला अन्हु ने फरमाया 'आपको भी मुबारक हो क्योंकि आका सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझसे यह भी फरमाया है कि उसके शख़्स को पुल सीरत से गुज़रने का परवाना अता करना जो सिद्दीक-ए-अकबर से मुहब्बत करता है हो।' (नुज़हतुल मजालिस, जिल्द-2, सफ़ा-306)


हज़रते अली रदियल्लाहु तआला अन्हु ने इरशाद फरमाया है कि 'मेरी मुहब्बत और अबू बक्र व उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से बुग्ज (दुश्मनी) किसी मोमिन के दिल में जमा नहीं हो सकती।'


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आपने जंगे बद्र, जंगे उहद, जंगे बनू नादिर, जंगे बनू कुरैजा, जंगे खैबर, गजवा-ए-खंदक, फतह मक्का, जंगे हुनैन, जंगे ताइफ और जंगे तबूक में अपना माल भी दिया और शरीक भी हुए।


जंगे बद्र में आप हर वक्त हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बहुत करीब रहे और बहादुरी के साथ काफिरों से हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हिफाजत करते रहे।


हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने 7 हिजरी (जुलाई 628 ई.) में आपकी सरदारी में इस्लामी लश्कर को काफिरों के मुक़ाबले के लिए भेजा। नज्द के क़रीब जंग में मुसलमानों को फ़तह हासिल हुई। काई काफ़िर मारे गए और कई क़ैद कर लिए गए।


आप सुलेह हुदैबिया के मौक़े पर बैअत अल-रिदवान में भी शामिल हुए।


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हुज़ूर रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है कि 

"मेरे बाद मेरे जो 2 खलीफा हैं यानी अबू बक्र और उमर उन की इक्तेदा करो।"


एक मरतबा एक औरत हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में किसी मसले का हल दरियाफ़्त करने के लिए हाज़िर हुई। रुखसत होने से पहले आपने फरमाया 'दोबारा जब भी जरूरी पड़े तो आना।' तो उसने अर्ज है 'या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! आप अगर यहां मौजूद न हो तो किस से दरियाफ़्त करूं?' आपने फ़रमाया 'अगर तू आए और मैं मौजूद न रहूं तो अबू बक्र सिद्दीक़ से पूछ लेना जो मेरे बाद खलीफा होंगे।'


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एक दिन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मिम्बर पर जलवा अफरोज होकर सहाबा किराम से फरमाया “सुनो! अल्लाह तआला ने अपने एक बंदे को इख्तियार दे दिया कि वह जब तक चाहे दुनिया में रहे या अपने रब की मुलाक़ात को पसंद करे। उस बंदे ने अपने रब की मुलाकात को इख्तियार कर लिया है।”


हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का यह इरशाद सुनकर आप रोने लगें। आपको रोते हुए देखकर सहाबा बड़े हैरान हुए।


जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का विसाल हुआ तो सहाबा ने जाना कि हज़रते अबू बक्र समझ गये थे कि वो बंदा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ही थे।


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9 हिजरी में जब हज फ़र्ज़ हुआ तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आप को अमीर-उल-हुज्जाज बनाकर सहाबा किराम को आपके साथ हज के लिए भेजा।


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10 हिजरी में हज्जतुल विदा के मौक़े पर भी आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ रहे।

जब यह आयत नाज़िल हुई 'आज के दिन हमने तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन मुकम्मल कर दिया और तुम्हारे लिए दीन-ए-इस्लाम पसंद किया।' तो सहाबा किराम खुश हुए कि अल्लाह तआला ने दीन-ए-इस्लाम को मुकम्मल कर दिया।


मगर आप गमगीन हो गये। जब पूछा गया तो फरमाया कि 'यह सही है कि दीन-ए-इस्लाम को अल्लाह तआला ने मुकम्मल कर दिया है।' मगर दीन मुकम्मल होने के बाद मुमकिन है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अनकरीब हम से पर्दा फरमाएंगे। मैं यह सोच कर रंजीदा हूं।'


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हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब कहीं बहार जाते तो हज़रते अबू बक्र को इमामत का हुक्म करते और सब सहाबा किराम आपके पीछे नमाज़ पढ़ते। आप ने हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हयात-ए-जाहिरी में 17 मरतबा नमाज़ में इमामत फरमाई।


जब हुजूर बीमार हुए और अपने हुजरे से बाहर निकलना मुश्किल हुआ तो आपने सिद्दीक-ए-अकबर को इमामत का हुक्म दिया। आप जैसे ही मुसल्ले पर पहुंचें तो आंसू बहते हुए गिर पड़े और फरमाया 'मुझमें इतनी हिम्मत नहीं कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मौजूदगी में इमामत कर सकूं।'


यह सब सुनकर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सहाबा किराम का सहारा लेकर हुजरे से बाहर आए और तकलीफ बर्दाश्त करके नमाज़ पढ़ाई।

दूसरे दिन फिर जब आपको इमामत का हुक्म मिला और फिर आप तैयार न हो सके तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हुजरे से पैग़ाम भेजा कि 'ऐ अबू बक्र!' आज तुम्हें सहाबा किराम की जमात की इमामत करनी ही है।'

फिर आपने दिल को सख्त करके नमाज़ के लिए इमामत की।


हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने हुजरे के दरवाजे से सिद्दीक-ए-अकबर के साथ नमाजियों की साफों को देखा तो आप बहुत खुश हुए।

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हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के विसाल के बाद सब सहाबा किराम गमज़दा थे और हज़रते उमर फ़ारूक़ रदिल्लाहु तआला अन्हु ने तो फरमा दिया था कि "अगर किसी ने मेरे सामने यह कहा कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इंतक़ाल हो गया है और आक़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हमारे दरमियान में नहीं हैं तो मैं तलवार से हमारी गर्दन काट डालूँगा।”


ऐसे माहौल में सब ख़ामोश थे तब हज़रते अबू बक्र उठकर आगे आए और ख़ुत्बा पढ़ने के बाद सहाबा किराम से फरमाया “अगर कोई मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की इबादत करता हो तो वह मान सकता है कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इंतकाल करके चले गए हैं और जो रब्बे मुहम्मद की इबादत करता हो तो वह जान ले कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सिर्फ जाहिरी तौर पर पर्दा फरमाया है।”


हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पर्दा फ़रमाने के बाद आप सरकार के फ़िराक़ में हमेशा बे-क़रार रहते थे।


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हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के विसाल-ए-ज़ाहिरी के बाद हज़रते उमर फ़ारूक़ के मशवरे पर आपको खलीफा बनाया गया।

आप 13 रबीउल अव्वल 11 हिजरी (8 जून 632 ई.) को सबसे पहले खलीफा हुए। आप का दौर-ए-खिलाफत 2 साल 4 महीने का रहा।


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आपकी खिलाफत के इब्तदाई दौर में 2 फ़ितने हुए।


1. मुसायलीमा बिन हबीब और तुलैहा बिन ख़ुवैलिद ने नबुव्वत का झूठा दावा किया।


2. कुछ क़बीलो ने ज़कात देने से और इस्लामी क़ानून को मानने से इंकार किया।


रबीउस सानी 11 हिजरी (जुलाई 632 ई.) में तुलैहा बिन ख़ुवैलिद ने अपने साथियों के साथ मदीना मुनव्वरा पर हमला किया तो आपने हज़रत अली इब्न अबी तालिब, तल्हा इब्न उबैदुल्लाह और ज़ुबैर इब्न अव्वाम रदियल्लाहु तआला अन्हुमा की सरदारी में इस्लामी लश्कर भेजा। मक़ामे ज़ु-किस्सा पर जब उनका सामना हुआ तो तुलैहा अपने साथियों के साथ मक़ामे ज़ु-हुसा की जानिब भाग गया।


फ़िर हज़रते ख़ालिद बिन वलीद की सरदारी में इस्लामी लश्कर ने जंग ए बुज़खा में तुलैहा बिन खुवैलिद को हराया और नजद में बागी मालिक इब्न नुवैरा को क़ैद करके क़त्ल किया और जंग ए यमामा में मुसायलीमा बिन हबीब को क़त्ल किया।


इसके बाद खालिद बिन वलीद की सरदारी में इस्लामी लश्कर ने सासानी सल्तनत और बाइज़ेंटाइन (रोम) सल्तनत पर हमला करके फ़तह हासिल करके फारस (ईरान), इराक और शाम तक इस्लामी सल्तनत फैलाई।


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शव्वाल 11 हिजरी (दिसम्बर 632 ई.) में जंग-ए-यामामा में तक़रीबान 1200 मुसलमान शहीद हुए उन में 300 सहाबा किराम हाफ़िज़-ए-कुरआन थे। हज़रते उमर फ़ारूक़ रदियल्लाहु अन्हु ने आप से फरमाया 'इस तरह हाफ़िज़-ए-क़ुरआन कम होता रहे तो क़ुरान की हिफ़ाज़त करना मुश्किल होगा। बेहतर है कि हम कुरआन को जमा करके किताब बना लें।'

इस तरह हज़रते उमर फ़ारूक़ के मशविरे से क़ुरआन मजीद को जामा करके किताब बनाने का काम शुरू किया गया, जो हज़रते उस्मान ग़नी रदियल्लाहु अन्हु के ज़माने में मुकम्मल हुआ।


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आपने बैत-उल-माल की शुरुआत की।


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हज़रत उमर फ़ारूक़ रदियल्लाहु अन्हु ने देखा कि हज़रते अबू बकर सिद्दीक नमाज़े फ़ज्र अदा करने के बाद मस्जिदे नबवी से चले जाते हैं। सबब जानने के लिए एक मरतबा आपके पीछे चले गए। हज़रते अबू बक्र मदीना मुनव्वरा की गलियों से गुज़रते हुए देहाती इलाक़े में एक मोहल्ले में एक खेमें के अंदर तशरीफ़ ले गए। कुछ देर बाद जब आप बाहर निकले और वापस आ गए तो हज़रते उमर खेमें के अंदर चले गए। देखा कि एक नबीना बूढ़ी औरत 2 छोटे बच्चों के साथ बैठी हुई है। उन्होंने नउस औरत से पूछा के 'तुम कौन हो?' उस औरत ने जवाब दिया 'मैं एक नाबीना मुफ़लिस और नादार औरत हूं। मेरा और इन दो बच्चों का अल्लाह के सिवा कोई सहारा नहीं है।' उन्होंने पूछा 'यह शख्स कौन हैं?' उसने कहा 'मैं उन्हें नहीं जानती। मगर यह रोज़ हमारे घर में आकर घरेलू काम काज कर दिया करते हैं। हमारे लिए पानी भर लाते हैं, खाना बनाते हैं और हमारी बकरियों का दूध दोह देते हैं। फिर चले जाते हैं।'


यह सुनकर हज़रते उमर रो पड़े और कहा 'ऐ अबू बक्र! तुमने अपने बाद आने वाले हुक्मरानों के लिए एक थका देने वाला इम्तिहान खड़ा करके रख दिया है।'

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आप कसीर उद दुआ (कसरत से दुआ करने वाले) और निहायत ही आजिजी करने वाले थे। आपसे काई मख्सूस दुआएं भी मंकूल हैं। और इसी वजह से आप का लक़ब 'अव्वाह' भी है।


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आपसे 142 अहादीस मरवी हैं।


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परिवार:

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आपकी 4 बीवियां, 3 बेटे और 3 बेटियां हैं।


1. कुतैलाह बिन्त अब्दुल उज्जा से

एक बेटा - अब्दुल्ला और एक बेटी - अस्मां।


2. उम्मे रुमान, ज़ैनब बिन्त आमिर बिन उमैर अल-किननियाह से

एक बेटा- अब्दुर रहमान और एक बेटी - आइशा।


3. अस्मा बिन्त उमैस से एक बेटा - मुहम्मद।


4. हबीबा बिन्त खारिजा बिन ज़ैद अल-अंसारी से एक बेटी - उम्मे कुलसुम (जिन का निकाह हज़रत तल्हा बिन उबैदुल्लाह रदियल्लाहु तआला अन्हु से हुआ)।



सिर्फ आप ही ऐसे साहबी हैं जिनके वालिदैन और औलाद भी सहाबी हैं।

आपकी वालिदा एलान-ए-नबुव्वत के कुछ अरसे बाद ईमान लाईं और आप के वालिद फ़तह मक्का के रोज़ ईमान लाए।


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आप हुज़ूर रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के तरीक़त के 2 ख़लीफ़ा में से हैं। आपसे 'सिद्दीकी' सिलसिला जारी है।

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एक रात हज़रत अबू बकर सिद्दीक रदियल्लाहु तआला अन्हु ने ख्वाब देखा कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ़ लाए। आपके जिस्म मुबारक पर 2 सफ़ेद कपड़े थे। थोड़ी देर में वह दोनों सफ़ेद कपड़े सब्ज़ रंग के हो गए और इस कदर चमकने लगे की निगाह उन पर न ठहरती थी। फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सामने तशरीफ लाकर आपको सलाम फरमाया और मुसाफा किया। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपना नूरानी हाथ आपके सीने पर रखा जिस के सबब क़ल्ब और सीने की तमाम तकलीफ़ दूर हुई।

फिर फरमाया कि 'ऐ अबू बक्र!' क्या अभी हमसे मिलने का वक्त नहीं आया? फिर अर्ज़ किया, या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! मुझे बताएं कि आपसे मुलाकात का सर्फ कब हासिल होगा?' हजरत अबू बक्र को फिराक में रोते हुए देखकर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, 'घबराओ नहीं। अब हम से मुलाक़ात का वक़्त करीब है।' यह सुनकर हज़रत अबू बक्र बे-इंतेहा ख़ुश हुए।

*************

आपने 7 जमादी-उस-सानी को ग़ुस्ल किया और सर्दी की वजह से आपको बुखार आ गया। जब तबियत कुछ ज़्यादा ख़राब हुई तो सहाबा किराम ने आपको किसी हकीम को बुला कर दिखाने के लिए कहा।

आपने कहा 'बेहतरीन हकीम ने मुझसे कहा है कि मैं जो करता हूं वह ही होता है।'


फिर आपने अपनी बेटी हज़रते आइशा रदियल्लाहु तआला अन्हा से वसीयत फरमाई कि मेरी मिल्कियत के जो खजूर के दरख्त हैं वो तुम अपने 2 भाई और 2 बहनों को दे देना।

हज़रते आइशा रदियल्लाहु तआला अन्हा ने तस्लीम किया और पूछा 'मेरे अलावा आपकी 1 ही बेटी अस्मां हैं तो आप दूसरे किस के बारे में बता रहे हैं?'

आपने फरमाया 'हबीबा बिन्त ज़ैद ख़रिजा हामिला हैं और इंशाअल्लाह उनको बेटी होगी। 'इस तरह तुम्हारे अलावा तुम्हारी 2 बहनें होंगी।'


*************

आपने विसाल के दिन हज़रते उस्मान गनी और हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ रदियल्लाहु तआला अन्हुमा को हज़रते उमर फारूक रदियल्लाहु तआला अन्हु को खलीफा बनाने की वसीयत की।


*************

आप 'यार ए गार ए नबी' हैं यानी हुज़ूर नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सब से करीब दोस्त।


आप सफ़र में व हजर में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ रहे। आपको हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हर खास मौके पर और महफिल में साथ और करीब रखा।

हिजरत में भी प्यारे आका सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सिर्फ आपका साथ लिया और विसाल के बाद मजार में भी आप को करीब रखा।


*******************

आपका विसाल 22 जमादि-उस-सानी 13 हिजरी (23 अगस्त 634 ई.) को पीर के दिन 63 साल की उम्र में मदीना मुनव्वरा में हुआ।


आपकी वसियत के मुताबिक आपको 3 कपड़ों में कफ़न दिया गया। जिनमें 2 कपड़े वह थे जो आपने पहने हुए थे जिनको धोकर इस्तेमाल किया गया और एक और चादर मिलाई गई।

आपकी नमाज़-ए-जनाज़ा हज़रत उमर फारूक रदियल्लाहु तआला अन्हु ने पढ़ाई।


*************

आपने विसाल से क़ब्ल यह वसीयत फ़रमाई कि 'मेरा जनाज़ा को हजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के रौज़ा ए मुबारक के सामने रख देना और इजाज़त तलब करना। अगर दरवाजा खुल जाए और इजाज़त मिल जाए तो मुझे रौज़ा ए मुबारक के अंदर दफ़न करना। वरना आम क़ब्रिस्तान में दफ़न कर देना।'


सहाबा किराम ने ऐसा ही किया। जब आपका जनाज़ा रौज़ा ए अकदस के सामने रखा गया तो दरवाज़ा खुल गया और रौजा ए मुबारक से आवाज़ आई 'दोस्त को दोस्त के पास ले आओ।'


आपका मजार रौजा ए रसूल में हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बगल में हैं।


*************जो भी गलतियां हों टाइप करने में, उसकी निशानदेही जरूर कीजिए। मेहरबानी होगी।बराए मेहरबानी कोई कमी देखें तो जरूर इत्तिला करें। अल्लाह तआला मेरी गलतियों को नबी ए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सदके माफ फरमाए। आमीन।

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