अमीरुल मोमिनीन हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु तअ़ाला अन्हु पहले ख़लीफा
नाम - अब्दुल्लाह
कुन्नियत - अबू बक्र
लक़ब - सिद्दीक़ और अतीक़
वालिद - उस्मान बिन आमिर
वालिदा - सलमा
हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदि अल्लाहु तअ़ाला अन्हु पहले ख़लीफ़ा और अशरा-ए-मुबश्शरा (वह दस सहाबी जिन्हें हुजू़र सल्लल्लाहु तअ़ाला अलैहि वसल्लम ने दुनिया ही में जन्नत की बशारत दे दी थी) में से हैं।
हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदि अल्लाहु तअ़ाला अन्हु तमाम सहाबा-ए किराम में सबसे ज़्यादा राहे ख़ुदा में ख़र्च करने वाले थे, आप ने हर मोड़ पर इस्लाम का भरपूर तअ़ावुन किया यही वजह है कि आप की सख़ावत को तमाम सहाबा-ए किराम की सख़ावत में नुमायाँ मक़ाम हासिल है। जब आप ने राहे ख़ुदा में चालीस हज़ार दीनार इस तरह ख़र्च किये कि दस हज़ार रात में, दस हज़ार दिन में, दस हज़ार दिखाकर और दस हज़ार छुपाकर तो अल्लाह तअ़ाला को आप की यह अदा इतनी पसन्द आई कि जिब्रईल अमीन र्क़ुआनी आयत लेकर नाज़िल हो गये---
तर्जमाः- ‘‘जो लोग अपने माल ख़ैरात करते हैं रात में और दिन में, छुपाकर और एलानिया तो उनके लिये उनके रब के पास उनका अज्र है और न उनको कुछ ख़ौफ़ होगा और न वह लोग ग़मगीन होंगे’’।
सरकारे दोआलम सल्लल्लाहु तअ़ाला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं कि मैं ने हर एक के एहसान का बदला अदा कर दिया सिवाए अबू बक्र के, अल्लाह तअ़ाला कल क़ियामत के दिन उनको उनके एहसान का बदला अता फ़रमायेगा। तिरमिज़ी शरीफ़ में है--- हज़रत अबू हुरैरह रदि अल्लाहु तअ़ाला अन्हु से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तअ़ाला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि कोई एहसान हम पर ऐसा नहीं जिसका हम ने बदला न अदा किया हो सिवाये अबू बक्र के, कि उनका एहसान हम पर है उसका बदला अल्लाह तअ़ाला उनको कियामत में देगा और इतना फ़ाइदा मुझ को किसी के माल ने न दिया जितना फ़ाइदा मुझे अबू बक्र के माल से मिला। अगर मैं किसी को ख़लील बनाता तो अबू बक्र को बनाता। जान लो कि तुम्हारा साहिब ;हुज़ूर सल्लल्लाहु तअ़ाला अलैहि वसल्लमद्ध अल्लाह का दोस्त है।
हुज़ूर सल्लल्लाहु तअ़ाला अलैहि वसल्लम जब विसाल फ़रमा गये और हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदि अल्लाहु तअ़ाला अन्हु ने ख़िलाफ़त की बाग डोर संभाली तो उस वक़्त आप के सामने चन्द मसअले ख़ड़े हो गये जैसे लश्करे उसामा की रवानगी, ज़कात का इन्कार करने वालों से जंग और नुबुव्वत का झूटा दावा करने वालों से जंग।
नबी सल्लल्लाहु तअ़ाला अलैहि वसल्लम जब ज़ाहिरी हयात के आख़िरी दिनों में थे तो आप ने उसामा के लशकर को तरतीब देकर उनको परचम अता किया था और लशकर रवाना होने से पहले ही आप सल्लल्लाहु तअ़ाला अलैहि वसल्लम का विसाल हो गया तो अब उसामा के लशकर के बारे में आम सहाबा-ए किराम की राय यह हुई कि उनको रवाना न किया जाये क्योंकि इस वक़्त मदीने को मुजाहिदीन से ख़ाली करना मुनासिब न होगा, मगर हज़रत सिद्दीक़े अकबर रदि अल्लाहु तअ़ाला अन्हु ने इरशाद फ़रमायाः ‘‘क़सम है उस ज़ात की जिसके क़बज़ा-ए कु़दरत में मेरी जान है, अगर मेरे पास एक शख़्स भी न रहे ;मदीना ख़ाली हो जायेद्ध और मुझे यह अन्देशा हो कि दरिन्दे मुझे उठा ले जायेंगे तब भी उसामा की मुहिम को रवाना कर दुंगा और कोई न रहे तो मैं सिर्फ़ तन्हा आपके इरशाद की तामील करुंगा’’। (तारीखे तबरीद्)
हज़रत सिद्दीक़े अकबर रदि अल्लाहु तअ़ाला अन्हु के अन्दर हुज़ूर सल्लल्लाहु तअ़ाला अलैहि वसल्लम के हुक्म को बजा लाने का जज़बा कूट-कुट कर भरा हुआ था। आपकी सियासी बसीरत का नतीजा यह हुआ कि लशकरे उसामा कामयाब होकर मदीना वापस आया।
क़बीला-ए अबस, ज़ैबान, ग़तफ़ान, और फ़जारा जो मदीने के आस पास ही में आबाद थे उन्होंने ज़कात देने से इनकार कर दिया, इस नाज़ुक वक़्त में हज़रत सिद्दीक़े अकबर रदि अल्लाहु तअ़ाला अन्हु ने बड़े-बडे़ सहाबा-ए किराम की एक मीटिंग बुलाई और इस मसअले में मशवरा तलब किया। इसमें अकसर की राय यह थी कि हम उन से जंग नहीं करंेगे जो के क़ाइल हैं। मगर सिद्दीक़े अकबर के जोशे ईमानी ने तड़प कर फ़ैसला कियाः ‘‘ख़ुदा की क़सम अगर यह लोग ऊँट की एक रस्सी देने से भी इन्कार करेंगे जो हुज़ूर सल्लल्लाहु तअ़ाला अलैहि वसल्लम के ज़माने में दिया करते थे तो मैं उनसे जंग करुंगा, ज़कात माल का हक़ है जो लोग नमाज़ और ज़कात में फ़र्क करेंगे मैं उनसे जंग करुंगा।’’
इस फ़ितने की कमर तोड़ने में ज़बरदस्त घमासान की लड़ाई हुई जिसमें ज़कात का इन्कार करने वालों को हार और मुसलमानों को फतह ;जीतद्ध हासिल हुई, नतीजा यह हुआ कि तमाम क़बीलों के सरदार अपनी अपनी ज़कात लेकर मदीना हाज़िर हो गये।
अब नुबुव्वत का झूटा दावा करने वालों का मुअ़ामला था जो हर तरफ़ इरतिदाद ;लोगों को मुरतद करने काद्ध कैन्सर फ़ैला रहे थे। आप ने इनकी सरकोबी के लिये 11 लशकर चुने और हर एक के लिये अलग-अलग अमीर मुक़र्रर किये। 11 हिजरी से 12 हिजरी तक ज़कात का इन्कार करने वाले और नुबुव्वत का झूटा दावा करने वालों को कैफ़रे किरदार तक पहुंचा दिया गया।
हज़रत अब्दुल्लाह फ़रमाते हैंः ‘‘रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तअ़ाला अलैहि वसल्लम की वफ़ात के बाद हम इस मक़ाम पर ख़ड़े थे कि अगर अल्लाह अबू बक्र के ज़रिये हमारी मदद न फ़रमाता तो हमारी हलाकत यक़ीनी थी।’’
वफ़ातः- 7 जमादिउल आख़िर 13 हिजरी को हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदि अल्लाहु तअ़ाला अन्हु को बुख़ार आ गया तक़रीबन 15 दिन तक बुख़ार में मुब्तला रहे। 22 जमादिउल आख़िर 13 हिजरी बरोज़ मंगल को आपकी वफ़ात हुई और हुज़ूर के पहलू में दफ़न हुये।
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