आइए जानें कौन थे अल्लामा फज़ले हक़ खैराबादी?
माहे सफ़र की 12 तारीख़ को उर्स -ए-पाक गोरखपुर। अंग्रेजों के खिलाफ जेहाद का फतवा देने वाले अज़ीम आलिम, हिन्दुस्तान की पहली जंगे आज़ादी के अज़ीम मुजाहिद हज़रत शाह अल्लामा फज़ले हक़ खैराबादी का उर्स-ए-पाक माहे सफर की 12 तारीख़ को है। आपका विसाल 12 सफर 1278 हिजरी में हुआ। आपका मजार साउथ प्वाइंट, पोर्ट ब्लेयर अंडमान एंड निकोबार Islands में है। अंग्रेजों ने आपको काला पानी की सज़ा दी थी। अल्लामा फज़ले हक़ खैराबादी अलैहिर्रहमां की पैदाइश सीतापुर जिले के एक कस्बे खैराबाद में 1797 में हुई। आपके वालिदे गिरामी का नाम हजरत अल्लामा फज़ले इमाम अलैहिर्रहमां था। आपका सिलसिला-ए-नसब 32 वास्तों के बाद हजरत उमर रदियल्लाहु अन्हु से जाकर मिल जाता है। आपने जिस घराने में आंख खोली वह घराना इल्मी और दुनियावी दौलत दोनों से मालामाल था। आपकी परवरिश बहुत शानदार तरीके से हुई। आप बहुत ही जहीन थे जिसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सिर्फ 4 महीने की कलील मुद्दत में आपने मुकम्मल कुरआन शरीफ हिफ्ज कर लिया था और 13 साल की उम्र में उलूमे अकलिया और नकलिया के माहिर हो गए थे। आप हजरत धोमन शाह अलैहिर्रहमां से मुरीद होकर सिलसिला-ए-चिश्तिया में दाखिल हो गए थे। अल्लामा फज़ले हक़ खैराबादी हमागीर शख्सियत के मालिक थे, आप बेहतरीन मुसन्निफ थे, जिसकी गवाही आप की लिखी हुई किताबें दे रही हैं, आप जबरदस्त मुनाजिर भी थे, मनतिको फलसफा में आप का कोई जवाब नहीं था। आप ने 50 साल टीचिंग की खिदमत अंजाम दी, और शायर तो ऐसे कि मिर्जा गालिब अपने अशआर की इस्लाह आपसे कराया करते थे। आपने अपनी पूरी जिन्दगी खिदमते दीनो मिल्लत में गुजार दी और हमेशा नामूसे रिसालत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सच्चे पहरेदार की तरह गुलामी का सुबूत देते रहे जब भी किसी ने रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के खिलाफ मुंह खोलने की कोशिश की तो आपने अपनी तहरीर और तकरीर से ऐसा जवाब दिया जिस के आगे उनका कोई हरबा ना चल सका, और अलहमदुलिल्लाह! आज ये मिलाद की महफिलें, औलिया किराम के उर्स की मजलिसें, नियाज, फातिहा ये सब जो हम कर रहे हैं, ये अल्लामा फज़ले हक़ खैराबादी अलैहिर्रहमां की मेहनतों कोशिशों का नतीजा है। इन सबके बावजूद आपकी शोहरत फतवा-ए-जिहाद से हुई। जो आपने 26 जून 1857 को दिल्ली की जामा मस्जिद से अंग्रेजों के खिलाफ दिया था। आपके फतवे से अंग्रेज हुकूमत की चुलें हिल गईं आपने फतवा-ए-जिहाद के जरिये आजादी की बुनियाद रखी फिर क्या था देखते ही देखते दिल्ली में सरों से कफन बांध कर जानों को हथेली पर लेकर 90 हजार लोग जमा हो गए और सबके अंदर बस एक ही जज्बा था। *सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। देखना है जोर कितना बाजू-ए -कातिल में है* फिर एक मुखबिर की वजह से आप जनवरी,1859 में गिरफ्तार हुए जैसे ही मुखबिर ने आपको देखा तो उस पर फारूकी रौब ऐसा तारी हुआ वो कहने लागा ये वो फजले हक नहीं हैं जिन्होंने फतवा दिया है लेकिन आपकी जुर्अतो बहादुरी हिम्मतो जवां मर्दी को सलाम आपने फरमाया ये मुखबिर झूठ बोल रहा है। मैं ही वो फजले हक हूं। जिसने अंग्रेजों के खिलाफ जिहाद का फतवा दिया है। आपको गिरफ्तार कर लिया गया। लखनऊ की अदालत में आप का केस चला सरकारी वकील के खिलाफ आपने खुद अपना मुकद्दमा लड़ा और इस अंदाज से आपने दलाइल कायम किए कि सरकारी वकील के होश उड़ गये और उसके दलाइल मकड़ी के जाले से भी कमजोर साबित हुए, जज ने भी आप की कुछ किताबों को पढ़ा था इसलिए वो भी आप की काबिलियत से बहुत मुतअस्सिर था और चाहता था, कि आपको सज़ा ना हो उसने इशारा भी दे दिया था कि आप सिर्फ इतना कह देना की य ह मेरा फतवा नहीं है, तो आप को सज़ा नहीं होगी लेकिन कुर्बान जाएं आपको वतन से कैसा प्यार था आपने भरी अदालत में कहा कि जो जिहाद का फतवा अंग्रेजों के खिलाफ दिया गया है वो मेरा ही है। फिर आपको उम्र कैद की सजा सुना दी गई, और अक्टूबर 1859 में काला पानी भेज दिया गया। काले पानी की सजा क्या होती थी उसे भी समझते चलें, जब अंग्रेजों ने कैदियों से तमाम जेलों को भर दिया तो एक ऐसी जेल की जरूरत थी जिसमें कैदियों को बड़ी तादाद में रखा जा सके और उसमें सख्ततरीन सजाओं का इंतजाम हो और जहाँ से कोई कैदी भाग भी ना सके इन बातों को मद्देनजर रखते हुए जजीरा अंडमान नेकोबार में एक जेल बनाई गई इस जेल में 693 काल कोठरियां थीं, ये जेल देखने में ऐसी मालूम होती जैसे कि साइकिल का पहिय्या हो। इस जेल में कैदियों को एसी सजा दी जाती थी जिससे रूह कांप जाए, बैलों की जगाह इंसानों को कोलू में जोता जाता था जेल में अंग्रेजों का जुल्म और जेल के बाहर समंदर जहाँ तक नजर जाऐ वहां तक सिर्फ पानी ही पानी था, हर तरफ सिर्फ एक ही चीज थी और वह मौत थी। इस जेल में खास तौर पर उन कैदियों को भी रखा जाता था, जिनसे अंग्रेजी हुकूमत को खतरा था। अल्लामा फज़ले हक़ खैराबादी अलैहिर्रहमां ने काले पानी की सजा के दौरान एक किताब लिखी कागज कलम ना होने की वजह से आप ने कोयले की मदद से कपड़ों पर दीवारें पर लिखा, उस किताब का नाम "अस्सोरतुल हिन्दिया" है जो बागीए हिन्दुस्तान के नाम से छपी उस किताब के मुताबिक आप बयान फरमाते हैं कि काले पानी की सजा बहुत ही खतरनाक सजा है। जहाँ कैदियों को हर तकलीफ दी जाती है, बुरा खाना जो पानी पीने के लिए दिया जाता था वो ऐसा होता मानो सांपों का जहर हो, आप मजीद लिखते हैं, मुझे ऐसी जगह रखा गया था जहाँ हमेशा सूरज की तपिश रहती और समंदर की नमकीन हवाएं। एक बार जेल में आप से कहा गया कि आप अपना फतवा वापस ले लो आप की तमाम तकलीफ़ें दूर हो जाएंगी। तो आप ने कुछ इस अंदाज से जवाब दिया। *इधर आओ रहजन हुनर आजमाएं तू तीर आजमा हम जिगर आजमाएं* आपने अपने इंतकाल से पहले वसीयत की थी मेरे विसाल के बाद जब मेरा मुल्क अंग्रेजों से आजाद हो जाए तो ये खुशखबरी मेरी कब्र पर आकर जरूर सुनाई जाए, 15 अगस्त 1947 के बाद जब मुल्क आजाद हुआ तो ये खुशखबरी आपकी कब्र पर सुनाई गई। जिन दिनों आप काले पानी की सजा काट रहे थे इधर आपके शहजादे अब्दुल हक आप की रिहाई की कोशिश में लगे हुए थे, और वो इस कोशिश में कामयाब भी हो गए जब आप अंडमान निकोबार सैलूलर जेल पहुंचे तो देखा वहां किसी का जनाज़ा जा रहा है, कैफीयतें कुछ एसी थीं मानो लग रहा हो कि आशिक का जनाज़ा है जरा धूम से निकले। पता करने पर मालूम हुआ कि ये जानाजा अल्लामा फज़ले हक़ खैराबादी का है, इतना सुनने के बाद आपके ऊपर सकता तारी हो गया, सारी खुशी काफूर हो गई उस आजादी के परवाने की अहमियत भी रद्दी बराबर रह गई। आप की आंखों में आंसू थे वालिद का साया सर से उठ जाने का गम था। उसी वक्त अल्लामा के जानाजे ने जबाने हाल से कहा, *मेरे जनाजे पे रोने वालों फरेब में हो बगौर देखो* *मरा नहीं हूं गम-ए-नबी में लिबासे हस्ती बदल गया है* 20 अगस्त 1861 (12 सफर 1278 हिजरी) में अल्लामा फज़ले हक़ खैराबादी अलैहिर्रहमां का विसाल 66 साल की उम्र में हुआ और आपका मजार भी जजीरा अंडमान निकोबार में है। नोट : विसाल की तारीख़ याद रखें और अल्लामा फज़ले हक़ खैराबादी अलैहिर्रहमां की याद में महफिलें मुनअक्किद करें। सेमिनार करें। अल्लामा की खिदमात लोगों को बताई जाए। ताकि हमें उनकी जिन्दगी से सबक हासिल हो।
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