`हज़रत इमाम अबु अब्दुल्लाह मुहम्मद अल बुखारी मुहद्दिस (رحمتہ اللہ علیہ) समरकंद उज़्बेकिस्तान`
आपकी विलादत 13 शव्वाल 194 हिजरी (19 जुलाई 810 ई.) को जुमा के रोज़ बुखारा (ख़ुरासान, उज़्बेकिस्तान) में हुई।
आपके वालिद का नाम हज़रत इस्माईल मुहद्दिस इब्न इब्राहीम है।
आप के परदादा मुग़ीरह बिन बर्दिज़बाह ईरान के मजूसी थे और बुखारा के गवर्नर यमन अल-जुफ़ी के ज़माने में मुसलमान हुए और बाद में उसके मौला बने, इसलिए 'अल-जुफी' कहते हैं। बचपन में ही आप के वालिद का इंतक़ाल हो गया।
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205 हिजरी (820 ई.) में 11 साल की उम्र में आपने इल्म-ए-हदीस सीखना शुरू किया। बचपन में ही आपने हज़रत इमाम वाकी और हज़रत अब्दुल्लाह इब्न मुबारक रहमतुल्लाहि अलैहि की किताबें हिफ़्ज़ कर लीं।
और अपने इलाक़े के उलमा से हदीस जमा करना शुरू किया। आपने 2000 हदीस हिफ़्ज़ कर ली।
210 हिजरी (825 ई.) में 16 साल की उम्र में आपने अपनी वालिदा और भाई के साथ हज-ए-बैतुल्लाह अदा किया।
आप 2 साल तक मक्का मुकर्रमा में ठहरे। फिर मदीना मुनव्वरा तशरीफ़ लाये। यहां आपने हज़रत उबैदुल्लाह इब्न मूसा के पास तालीम हासिल की।
इस दौरन आप ने मस्जिद-ए-नबवी में क़याम करके रात को चाँद की रोशनी में 2 किताबें 'क़ज़ाए अस सहाबा वत ताबईन' और 'तारीख-उल-कबीर' तैयार की।
212 हिजरी (827 ई.) में 18 साल की उम्र में आपने हदीस जमा करने के लिए सफर करना शुरू किया। आप मक्का, मदीना, दमिश्क (दमिश्क), काहिरा (मिस्र), शाम (सीरिया), कूफा, बगदाद, और बसरा का सफर करके सहाबा किराम और ताबईन से हदीस जमा करते रहे।
16 साल की मेहनत के बाद आपने 1000 लोगों के पास से 6 लाख हदीस जमा की। इस दौरन आपने इमाम अहमद इब्न हंबल, हज़रत यह्या इब्न माईन, हज़रत इश्हाक़ इब्न राहवे और हज़रत अली इब्न अल-मदीनी से तालीम हासिल की।
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फिर आप बुखारा वापस आये और 231 हिजरी (846 ई.) में अपनी किताब 'अल-जामी अल-सहिह' तैयार की, जिसमें 7275 सही अहादीस को अलग-अलग बाब (अध्याय) में तहरीर फरमाई। इमाम अहमद इब्न हंबल, यह्या इब्न माईन और अली इब्न अल-मदीनी जैसे उलेमा ने भी इसे सही हदीसों की किताब तस्लीम किया है। इस तरह आप ने लोगों तक सही अहादीस पहुंचकर दीन की अज़ीम और बेमिस्ल खिदमत की है।
250 हिजरी (864 ई.) में निशापुर (ईरान) आये। फिर सियाशी मसाइल की वजह से आप समरकंद के क़रीब खरतांक में आ गए।
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आपके शागिर्दो में इमाम मुस्लिम इब्न हज्जाज मुहद्दिस, अल-फ़िराबरी और मुहम्मद इब्न हातिम वर्राक़ मशहूर हैं।
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आप शाफ़ई मज़हब की तक्लीद करते थे। आप बहुत ज़्यादा इबादत गुज़ार, मुत्तक़ी, ईमानदार और सखी थे।
आप रोज़ कसरत से नवाफ़िल पढ़ते और रोज़ एक मुकम्मल कुरान मजीद और 10 पारे की तिलावत करते।
आप बहुत ज़्यादा सखावत करते थे। कई बार एक दिन में 3000 दिरहम तक खैरात करते।
आप अपने वालिद से मीरास में जो माल मिला था उससे दूसरे ताजिरों के साथ तिजारत में साझेदारी करते थे यानी तिजारत में होने वाले मुनाफ़े में से दोनों साथियों का हिस्सा किया जाता था।
एक बार अबु हफ़्स नामी शख़्स आप के पास कुछ सामान बेचने के लिए रखकर गया। ताजिरों के एक गिरोह ने 5000 दिरहम में उस सामान को खरीद लिया और शाम को ले जाने की बात तय हुई। इसके बाद दूसरे ताजिरों ने आकर इस माल को 10000 दिरहम में खरीदने की बात की। आपने फरमाया 'मैंने 5000 दिरहम में माल का सौदा तय कर लिया है। अब मैं इसे 10000 दिरहम में किसी और बेच कर बईमानी नहीं कर सकता।
आप कम से कम खाना खाते थे।
आप खुद की वजह से किसी को तकलीफ न हो इस बात का बहुत ख्याल रखते थे।
आप अपना तमाम काम खुद ही करते थे और बहुत कम मौके पर शागिर्द या खादिम को काम के लिए कहते थे।
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जब बद-मज़हब लोग अपनी तरफ से नई अहादीस बनाने लगे और हदीस में नई बातें मिलाने लगे तब आपने मुसलमानों के लिए सही अहादीस को जमा करके उसकी किताब बनाई।
आपका मकसद अहादीस की हिफ़ाज़त करना और क़ुरआन और हदीस की रोशनी में अहकाम-ए-शरीअत के मसाइल का हल बताना था।
जब मोतज़िला फ़िरक़े ने अपना अक़ीदा ज़ाहिर किया कि 'क़ुरआन मख़लूक है' तब आपने ऐतराज किया सुन्नी अक़ीदा ज़ाहिर करके फरमाया कि 'कुरआन मजीद अल्लाह का कलाम है।'
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आप की लिखी हुई मशहूर किताबें:
(1) अल-जामी अल-मुसनद अल-सहीह अल-मुख्तसर मिन उमूर रसूलल्लाह व सुन्ननिही व अय्यामिही ('सहीह अल-बुखारी'), (7275 सहीह अहदीस)
(जो सहा सित्ता की 6 किताबों में से है।)
(2) अल-अदब अल-मुफ़्राद
(3) कजाए अस सहाबाह वत ताबईन
(4) तारीख-उल-कबीर, तारीख-उल-अवसत और तारीख-उल-सगीर
(5) अल-कुना
(6) अफआल-उल-इबाद
(7) किताब-उल-अशरिबा
(8) किताब-उल-हिबा
(9) किताब-उल-इलाल
(10) किताब-उल-वुहदान.
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आप का विसाल 1 शव्वाल 256 हिजरी (सितम्बर 870 ई.) को हुआ।
आप का मजार खरतांक (समरकंद, उज्बेकिस्तान) में है।
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