अमीरुल मोमिनीन हज़रत सैयदना अबू बक्र रदियल्लाहु तआला अन्हु
मुसलमानों के पहले खलीफ़ा अमीरुल मोमिनीन हज़रत सैयदना अबू बक्र सिद्दीक़े अकबर रदियल्लाहु अन्हु मुसलमानों के पहले ख़लीफा हैं। आप पैग़ंबरों के बाद इंसानों में सबसे अफ़ज़ल हैं। पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के बाद ख़लीफा के रूप में आपको चुना गया। आप सबको समान दृष्टि से देखते थे।
हज़रत अबू बक्र दिल खोल कर खर्च करते थे। आपने बेशुमार गुलामों को खरीद कर आज़ाद किया। जिनमें पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के मुअज़्ज़िन हज़रत सैयदना बिलाल रदियल्लाहु तआला अन्हु भी शामिल हैं। आपने पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ज़िंदगी में उनके हुक्म से 17 वक्तों की नमाजें पढ़ाईं। इंतक़ाल के दिन पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने आपके साथ मिलकर नमाज़े फज्र की इमामत की। पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने आपको सफ़र-ए-हज के लिए सहाबा-ए-किराम का अमीर-ए-लश्कर बना कर भी भेजा।
हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ अरब के मशहूर और अमीर दौलतमंद लोगों में शुमार किए जाते थे। दीन-ए-इस्लाम में दाखिल होने के वक़्त आपका शुमार मक्का के बड़े बिजनेसमैन में होता था। आपने सारी दौलत अल्लाह के रास्ते में लगा दी। यहां तक कि इंतक़ाल के वक़्त कोई क़ाबिले ज़िक्र चीज़ आपके पास मौजूद नहीं थी। आपको अल्लाह ने पाकीज़ा व उम्दा अखलाक से नवाजा था। आपने तन, मन, धन से दीन-ए-इस्लाम की खिदमत की।
हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ की मेहनत से बेशुमार सहाबा-ए-किराम ने दीन-ए-इस्लाम अपनाया। जिनमें मुसलमानों के तीसरे खलीफा हज़रत उस्माने गनी, हज़रत ज़ुबैर, हज़रत अब्दुर्रहमान, हज़रत तल्हा और हज़रत साद काबिले जिक्र हैं।
हज़रत अबू बक्र ने पूरी ज़िंदगी दीन-ए-इस्लाम का परचम बुलंद करने में लगा दी। आपकी साहबज़ादी हज़रत आयशा रदियल्लाहु तआला अन्हा से पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने निकाह किया। पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के साथ आपने मदीना की तरफ हिजरत किया। क़ुरआन-ए-पाक की आयतों में आपका ज़िक्र है। आपका 13 हिजरी में इंतक़ाल हुआ। हज़रत आयशा रदियल्लाहु तआला अन्हा के हुजरे में पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के पहलू में दफ़न हुए। आपकी उम्र तक़रीबन 63 साल और खिलाफत 11 हिजरी से 13 हिजरी तक दो साल तीन महीने दस दिन रही। मुसलमान मदीना जाकर आपकी बारगाह में अकीदत का सलाम जरूर पेश करते हैं।
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