किताब का नाम *_माह-ए-रमज़ान आया खुशियों का पैग़ाम लाया_*
मुरत्तबकर्दा : कारी मोहम्मद अनस रजवी व हाफिज अशरफ़ रज़ा इस्माईली,
तमाम दीनी किताबों के हवालों से तैयार
*_रोज़ा का बयान_*
अल्लाह तआला ने कुरआन शरीफ़ में फरमाया "ऐ ईमान वालों तुम पर रोज़े फ़र्ज़ किए गये जैसे कि पिछलों पर फ़र्ज़ हुए कि तुम्हे परहेजगारी मिले"।
दीन-ए-इस्लाम के पांच रुक्न में से रोज़ा भी एक अहम रुक्न है। रोज़ा पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ऐलाने नुबूव्वत के 15वें साल 10 शव्वाल 02 हिजरी में फ़र्ज़ हुआ।
माह-ए-रमज़ान के रोज़े फ़र्ज़ हैं। रमज़ान दीन-ए-इस्लाम का 9वां महीना है। इस्लाम में रमज़ान बेहद खास है। हर बालिग मुसलमान मर्द व औरत जो अक्ल वाला व तंदुरुस्त हो उस पर रमज़ान का रोज़ा रखना फ़र्ज़ है। जो मुसलमान रोज़ा नहीं रखता है वह अल्लाह की रहमत से महरूम रहता है। रोज़ा न रखने पर वह शख़्स अल्लाह की नाफरमानी करता है। रोज़ा न रखना बहुत बड़ा गुनाह है। रोज़ा का इंकार करने वाला इस्लाम से खारिज है।
रमज़ान बहुत ही रहमत व बरकत वाला महीना है। अल्लाह के बंदे दिन में रोज़ा रखते है और रात में खास नमाज तरावीह पढ़ते है। रमज़ान का रोज़ा परहेजगारी पैदा करने का बेहतरीन जरिया है। मुसलमान सिर्फ अल्लाह की रज़ा के लिए साल मे एक महीना अपने खाने-पीने, सोने-जागने के समय में तब्दीली करता है। वह भूखा-प्यासा होता है लेकिन खाने-पीने की चीजों की तरफ़ नज़र उठा कर नहीं देखता है। रमज़ान सब्र के इम्तिहान का खास महीना है। रोज़ा रखने से दूसरों की भूख-प्यास का अहसास होता है। अनाज की कद्र व कीमत भी समझ में आती हैं। मुंह के रोजे के साथ-साथ हाथ, कान, नाक, ज़बान व आंखों का भी रोज़ा होता है। रोज़े की हालात मे किसी की बुराई करने व सुनने, बुरा देखने, बुरा करने से बचना चाहिए। जो मुसलमान ईमान की वजह से और सवाब के लिए रमज़ान की रातों में कियाम (जाग कर इबादत) करेगा उसके अगले-पिछले गुनाह बख़्श दिए जाते हैं। यह पाक महीना रहमतों व बरकतों से भरा हुआ है। अल्लाह इस महीने में नेक काम करने वाले मुसलमानों के सारे गुनाह माफ़ कर देता है। एक नेकी का सवाब कई गुना बढ़ा कर मिलता हैं।
माह-ए-रमज़ान को तीन हिस्सों में बांटा गया है - पहला हिस्सा रहमत, दूसरा मग़फिरत (बख़्शिश) और आखिरी हिस्सा जहन्नम से आज़ादी का है। आखिरी हिस्से में शबे कद्र जैसी अज़ीम नेमत है। आखिरी दस दिनों में एतिकाफ भी किया जाता है।
अल्लाह तआला का करोड़ों एहसान कि उसने हमें रमज़ान जैसी अज़ीम नेमत से सरफराज फरमाया। इस महीने में अज्र सवाब बहुत ही बढ़ जाता है। नफ़ल का सवाब फ़र्ज़ के बराबर और फ़र्ज़ का सवाब सत्तर गुना कर दिया जाता है। यह महीना सब्र का है और सब्र का बदला जन्नत है। यह महीना ग़मख्वारी और भलाई का है। इस महीने में मोमिन का रिज्क बढ़ाया जाता है।
रमज़ान में हर दिन और हर वक्त इबादत होती है। रोज़ा इबादत, इफ्तार इबादत, इफ्तार के बाद तरावीह का इंतजार इबादत, तरावीह पढ़कर सहरी के इंतजार में सोना इबादत, फिर सहरी खाना भी इबादत। महीनों में सिर्फ रमज़ान का नाम कुरआन शरीफ़ में लिया गया। रमज़ान में इफ्तार और सहरी के वक्त दुआ कबूल होती है।
1. सवाल : रोज़ा किसे कहते है?
जवाब : सुबह सादिक से गुरूबे आफताब (सूरज डूबने) तक नीयत के साथ खाने पीने और जिमा (संभोग) से रूकने का नाम रोज़ा है।
2. सवाल : रमज़ान शरीफ़ के रोज़े किन लोगों पर फ़र्ज़ है?
जवाब : रमज़ान शरीफ़ के रोजे हर मुसलमान आकिल, बालिग मर्द और औरत पर फ़र्ज़ हैं। उनकी फरजीयत का इंकार करने वाला काफ़िर और बिला उज्र छोड़ने वाला सख्त गुनाहगार और फासिक मरदूदुश्शहादत है, यानी उसकी गवाही काबिले कुबूल नहीं है। और बच्चे की उम्र जब दस साल हो जाए और उसमें रोज़ा रखने की ताकत हो तो उससे रोज़ा रखवाया जाए और न रखे तो मार कर रखवाएं।
3. सवाल : किन सूरतों में रोज़ा न रखने की इजाजत है?
जवाब : जिन सूरतों में रोज़ा न रखने की इजाजत है उनमें से बाज यह हैं कि सफ़र यानी तीन दिन की राह के इरादा से बाहर निकलना लेकिन अगर सफ़र में मशक्कत न हो तो रोज़ा रखना अफ़ज़ल है। गर्भवती और दूध पिलाने वाली औरत को अपनी जान या बच्चे की जान के हलाक होने का अंदेशा हो तो रोज़ा न रखने की इजाजत है। मर्ज यानी मरीज को मर्ज बढ़ जाने या देर में अच्छा होने या तंदुरूस्त को बीमार हो जाने का गालिब गुमान हो तो उस दिन रोज़ा न रखना जाइज है। शैखे़ फानी वह बूढ़ा कि न अब रोज़ा रख सकता हे और न आइंदा उसमें इतनी ताकत आने की उम्मीद है कि रख सकेगा तो उसे रोज़ा न रखने की इजाजत है। और हैज व निफास (मासिक) की हालतों में रोज़ा रखना जाइज नहीं है।
4. सवाल : क्या ऊपर बयान किए हुए लोगों को बाद में रोज़ा की कज़ा करना फ़र्ज़ हैं?
जवाब : हां उज्र खत्म हो जाने के बाद सब लोगों को रोज़ा की कज़ा करना फ़र्ज़ है और शैखे़ फानी यानी बूढ़ा अगर जाड़े में कज़ा रख सकता है । तो रखे वरना हर रोज़ा के बदले दोनों वक्त एक मिस्कीन को पेट भर खाना खिलाए या हर रोज़ा के बदले सदका-ए-फित्र की मिकदार मिस्कीन को दे दे।
5. सवाल : जिन लोगों को रोज़ा न रखने की इजाजत है क्या वह किसी चीज को खुलेआम खा पी सकते है?
जवाब : नहीं। उन्हें भी खुलेआम किसी चीज को खाने पीने की इजाजत नहीं।
6. सवाल : क्या बूढ़ा व्यक्ति रोज़ा रखने के बजाए उनका फिदया दे सकता है?
जवाब : अगर बूढ़ा व्यक्ति इतना कमज़ोर है कि न अभी रोज़ा रख सकता है न आने वाले वक्त में ताकत की उम्मीद है तो ऐसा व्यक्ति रोज़ों के बजाए फिदया दे सकता है।
7. सवाल : अगर फिदया देने के बाद कमज़ोरी जाती रही तो क्या हुक्म होगा?
जवाब : अगर रोज़ों की फिदया देने के बाद रोज़ा रखने की ताकत आ गई तो जो फिदया दिया था वो नफली सदका हो जाएगा, और रोज़ों की कज़ा रखना लाज़िम होगा।
8. सवाल : क्या इम्तिहानात की वजह से रमज़ान शरीफ़ का रोज़ा छोड़ना जायज है?
जवाब : नहीं। इम्तिहानात की वजह से रमज़ान शरीफ़ का रोज़ा छोड़ना जायज़ नहीं है।
*_सहरी का बयान_*
अल्लाह का एहसान कि उसने हमें रोज़े जैसी अज़ीम नेमत अता की। सहरी की न सिर्फ इजाजत दी, बल्कि इसमें हमारे लिए ढ़ेरों सवाब भी रखा। सहरी उस खाने को कहते है जो सुबह सादिक के करीब खाया जाए। सहरी में बरकत है। सहरी खाने से हर लुक्में के बदले 60 साल की इबादत का सवाब मिलता है। फ़ज्र की अज़ान के दौरान खाने पीने की इजाज़त नहीं है। अज़ान हो या न हो, आप तक आवाज़ पहुंचे या न पहुंचे सुबह सादिक होते ही आपको खाना-पीना बिल्कुल ही बंद करना होगा। किसी को ये गलतफहमी न हो जाए कि सहरी रोज़े के लिए शर्त है, ऐसा नहीं है। सहरी के बगैर भी रोज़ा हो सकता है। मगर जानबूझकर सहरी न करना ठीक नहीं है। एक अज़ीम सुन्नत से महरूमी है और ये भी याद रहे कि सहरी में खूब डटकर खाना भी जरूरी नहीं हैं। चंद खजूरें और पानी ही अगर ब नीयते सहरी इस्तेमाल कर ले तब भी सुन्नत अदा हो जाएगी।
1.सवाल : रमज़ान के रोज़े की नीयत किस तरह से की जाती है।
जवाब : नीयत दिल के इरादे का नाम है मगर ज़बान से कह लेना मुस्तहब है अगर रात में नीयत करें तो यूं कहे "नवैतु अन असू म गदन लिल्लाहि तआला मिन फरजिरमज़ान" और दिन में नीयत करें तो यूं कहे "नवैतु अन असू म हाजल यौम लिल्लाहि तआला मिन फरजिरमाजना"।
2. सवाल : रोज़े की नीयत कर ली जबकि सेहरी का वक्त अभी बाकी है तो क्या नीयत करने के बाद कुछ खा पी सकता है?
जवाब : हां। सेहरी का वक्त खत्म होने तक खा सकता है।
*_इफ़्तार का बयान_*
पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि हमेशा लोग खैर के साथ रहेंगे जब तक इफ़्तार में जल्दी करेंगे। जैसे ही गुरूबे आफताब का यकीन हो जाए बिला ताखीर खजूर या पानी वगैरा से रोज़ा खोल लें और रोज़ा खोलकर दुआ मांगे ताकी इफ़्तार में किसी किस्म की ताख़ीर न होने पाए। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि मेरी उम्मत मेरी सुन्नत पर रहेगी जब तक इफ़्तार में सितारों का इंतजार न करे। इस हदीस पाक में भी इफ़्तार में जल्दी करने की ताकीद फरमायी गई है और ये खुशखबरी भी दी गई है कि जब तक मेरी उम्मत इफ़्तार में जल्दी करेगी मेरी सुन्नत पर कायम रहेगी। सूरज गुरूब होने के बाद इफ़्तार करने में इतनी देरी न करें कि आसमान पर सितारे टिमटिमाने लग जाएं। इतनी देरी करने से मना फरमाया गया है। इसी तरह नमाज़-ए-मग़रिब में भी बिला किसी उज्रे शरई सफ़र व मर्ज वगैरा इतनी ताख़ीर कर देना कि सितारे जाहिर हो जाएं मकरूह तहरीमी है। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अल्लाह तआला ने फरमाया मेरे बंदों में मुझे ज्यादा प्यारा वो है जो इफ़्तार में जल्दी करता है। अल्लाह का प्यारा बनना है तो इफ़्तार के वक्त किसी किस्म की मश्गूलियत न रखो, बस फौरन इफ़्तार कर लो। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि यह दीन हमेशा गालिब रहेगा जब तक इफ़्तार में जल्दी करते रहेंगे। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जब तुम में कोई रोज़ा इफ़्तार करे तो खजूर या छुहारे से इफ़्तार करे कि वो बरकत है और अगर न मिले तो पानी से कि वो पाक करने वाला है। इस हदीस से यह तरगीब दिलाई गई है कि हो सके तो खजूर या छुआरा ही से रोज़ा किया जाए कि यह सुन्नत है और अगर खजूर मयस्सर न हो तो फिर पानी से इफ़्तार कर लो कि यह भी पाक करने वाला है। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तर खजूरों से रोज़ा इफ़्तार फरमाते, तर खजूरें न होती तो चंद खुश्क खजूरों यानी छुहारों से और अगर ये भी न होती तो चन्द चुल्लू पानी पीते। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो रोज़ेदार को रोज़ा इफ़्तार कराए तो उसे भी उतना ही सवाब मिलेगा।
पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जिसने हलाल खाने या पीने से किसी मुसलमान को रोज़ा इफ़्तार कराया, फरिश्तें माहे रमज़ान के अवकात में उसके लिए अस्तगफार करते हैं और जिब्राईल शबे कद्र में उस के लिए अस्तगफार करते हैं। रोज़ादार कितना खुश नसीब होता है कि हर वक्त अल्लाह की रज़ा हासिल करता रहता है। यहां तक कि जब इफ़्तार का वक्त आता है तो उस वक्त वो जो कुछ भी दुआ मांगता है अल्लाह उसे अपने फजलो करम से कबूल फरमाता है। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि तीन शख़्सों की दुआ रद्द नहीं होती। एक रोज़ेदार की बवक्ते इफ़्तार। दूसरी बादशाहे आदिल की। तीसरे मजलूम की। इन तीनों की दुआ अल्लाह बादलों से भी ऊपर उठा लेता है और आसमान के दरवाज़े उसके लिए खुल जाते है। अल्लाह फरमाता है मुझे मेरी इज्जत की कसम! मैं तेरी जरूर मदद फरमाऊंगा।
1. सवाल : रोज़ा इफ्तार करने के वक्त कौन सी दुआ पढ़ी जाती है?
जवाब - यह दुआ पढ़ी जाती है : "अल्लाहुम्मा लक सुम्तु व बि क आमन्तु व अलैक तवक्कलतु व अला रिजकि क अफतरतु फगफिरली मा कद्दम्तु व मा अख्खरतु"।
2. सवाल : इफ़्तार की दुआ कब पढ़नी चाहिए?
जवाब : इफ़्तार की दुआ रोज़ा खोलने के बाद पढ़नी चाहिए। पहले बिस्मिल्लाह करके रोज़ा खोल लें इसके बाद इफ़्तार की दुआ पढ़ें।
*_इन वजहों से रोज़ा टूट जाता है_*
खाने-पीने या हमबिस्तरी (संभोग) करने से रोज़ा टूट जाता है जबकि रोज़ादार होना याद हो। हुक्का, सिगार, सिगरेट वगैरा पीने से भी रोज़ा जाता रहता है। पान या तम्बाकू खाने से रोज़ा टूट जाता है। दांतों के दरमियान कोई चीज़ चने के बराबर या ज्यादा थी उसे खा लिया तो रोज़ा टूट गया। दांतों से खून निकल कर हलक से नीचे उतरा और खून थूक से ज्यादा या बराबर या कम था मगर इसका मजा हलक में महसूस हुआ तो रोज़ा जाता रहा और अगर कम था और मजा भी हलक में महसूस न हुआ तो रोज़ा न गया। आंसू मुंह में चला गया और आप उसे निगल गए, अगर कतरा दो कतरा है तो रोज़ा ना गया और ज्यादा था कि उसकी नमकीन पूरे मुंह में महसूस हुई तो जाता रहा। पसीना का भी यही हुक्म है। नाक के नथनों से दवाई चढ़ाई या कान में तेल डाला या तेल चला गया तो रोज़ा टूट जाएगा। जानबूझकर मुंह भर उल्टी की और रोज़ादार होना याद है तो मुतलकन रोज़ा जाता रहा। कान में दवा डालने से रोज़ा टूट जाता है।
1. सवाल : क्या एनीमा लगवाने से रोज़ा टूट जाता है?
जवाब : हां। एनीमा लगवाने से रोज़ा टूट जाता है।
2. सवाल : रोज़े की हालत में दांत उखड़वाना कैसा?
जवाब : रोज़े की हालत में दांत नहीं उखड़वाना चाहिए कि अगर दांत उखड़वाने में खून निकला और हलक से नीचे उतर गया तो रोज़ा टूट जाएगा।
3. सवाल : क्या मुंह में कोई रंगीन चीज या धागा रखने से रोज़ा टूट जाएगा?
जवाब : मुंह में कोई रंगीन चीज़ या धागा रखा जिससे थूक रंगीन हो गया और उसे घोंट लिया तो रोज़ा टूट जाएगा।
4. सवाल : रोज़े की हालत में इनहेलर (Inhaller) का इस्तेमाल करना कैसा है?
जवाब : रोज़े की हालत में इनहेलर (Inhaller) का इस्तेमाल दुरुस्त नहीं। रोज़ा टूट जाएगा।
5. सवाल : रोज़े की हालत में अगर खांसते समय मुंह से खून या बलगम आ जाए तो क्या हुक्म है?
जवाब : अगर खून हलक से नीचे नहीं उतरा तो रोज़ा नहीं टूटेगा।
6. सवाल : रोज़े की हालत में भाप (स्टीम) लेना कैसा?
जवाब : रोज़े की हालत में भाप लेना जायज़ नहीं। इससे रोज़ा टूट जाएगा।
7. सवाल : रोज़े की हालत में माउथवॉश से कुल्ली कर सकते हैं?
जवाब : नहीं रोज़े की हालत में माउथवॉश से कुल्ली करना मना है।
8. सवाल : क्या दांत और मसूड़े से खून निकले तो रोज़ा टूट जाएगा?
जवाब : दांतों या मसूड़ों से खून निकलकर हलक में चला जाए तो उससे रोज़ा टूट जाएगा और कज़ा लाज़िम होगी।
9. सवाल : रोज़े की हालत में नक्सीर फूट गई और खून हलक में चला गया तो क्या रोज़ा टूट गया?
जवाब : अगर किसी की नक्सीर फूट गई और खून हलक में चला गया तो रोज़ा टूट जाएगा और खून हलक में नहीं गया तो रोज़ा नहीं टूटेगा।
10. सवाल : रोज़े की हालत में अगर हैज (माहवारी) आ जाए तो उसके लिए क्या हुक्म है?
जवाब : रोज़े की हालत में अगर मगरिब से पहले पहले किसी भी समय औरत को हैज़ आ जाए तो उसकी वजह से रोज़ा फासिद (टूट) हो जाएगा और पाक होने के बाद उस रोज़े की कज़ा रखना लाज़िम है।
11. सवाल : रोजे की हालत में वुज़ू करते समय पानी हलक से नीचे उतर जाए तो?
जवाब: अगर रोज़ादार होना याद था और ये गलती हुई तो रोज़ा टूट जाएगा।
12. सवाल : रोज़े की हालत में आंसू अगर मुंह में चला जाए तो?
जवाब: अगर आंसू की बूंद सिर्फ मुंह में गई थी कि थूक दिया तो रोज़ा नहीं टूटेगा और अगर हलक में उतर गई तो टूट जाएगा।
13. सवाल : रोज़े की हालत में नाक में स्प्रे या दवा डाल सकते हैं?
जवाब : नहीं। रोज़े की हालत में नाक में स्प्रे या दवा डालने से रोज़ा टूट जाएगा।
14. सवाल : रोज़े की हालत में टूथपेस्ट करना कैसा?
जवाब : रोज़े की हालत में टूथपेस्ट करना मकरूह है, अगर उसका कोई जुज़ हलक में चला जाए तो रोज़ा टूट जाएगा।
*_इन वजहों से रोज़ा नहीं टूटता_*
हमारे इस्लामी भाई या बहन को जब रोजे में उल्टी हो जाती है तो वो परेशान हो जाते हैं, काफी ऐसे भाई भी देखे गए हैं जो ये समझते हैं है कि रोज़े में खुद ब खुद उल्टी हो जाने से भी रोज़ा टूट जाता है, हालांकि ऐसा नहीं हैं। रोज़े में खुद ब खुद कितनी ही उल्टी हो जाए बाल्टी ही क्यों न भर जाए इससे रोज़ा नहीं टूटेगा। अगर रोज़ा याद होने के बावजूद जानबूझकर उल्टी की और अगर वो मुंह भर है तो अब रोज़ा टूट जाएगा। अगर उल्टी में सिर्फ बलगम निकला तो रोज़ा नहीं टूटेगा। भूल कर खाया, पीया या जिमाअ किया रोज़ा खराब न हुआ, ख्वाह वो फ़र्ज़ हो या नफ़ल। रोज़ा याद होने के बावजूद भी मक्खी या गुबार या धुआं हलक में चले जाने से रोज़ा नहीं टूटता। ख्वाह वो गुबार आटे का हो जो चक्की पीसने या आटा छानने में उड़ता है या गल्ला का गुबार हो या हवा या खाक उड़ी या जानवरों के खुर या टाप से। बस या कार का धुआं या उनसे गुबार उड़ कर हलक में पहुंची अगरचे रोज़ादार होना याद था, रोज़ा नहीं जाएगा। अगरबत्ती सुलग रही है और उसका धुंआ नाक में गया तो रोज़ा नहीं टूटेगा, हां अगर लोहबान या अगरबत्ती सुलग रही हो और रोज़ा याद होने के बावजूद मुंह करीब ले जाकर उसका धुंआ नाक से खींचा तो रोज़ा फासिद हो जाएगा। तेल या सुर्मा लगाया तो रोज़ा न गया अगरचे तेल या सुर्मा का रंग भी दिखाई देता हो जब भी रोज़ा नहीं टूटता। गुस्ल किया और पानी की खुश्की (ठंडक) अंदर महसूस हुई जब भी रोज़ा नहीं टूटा। कुल्ली की और पानी बिल्कुल फेंक दिया। सिर्फ कुछ तरी मुंह में बाकी रह गई थी थूक के साथ इसे निगल लिया, रोज़ा नहीं टूटा। कान में पानी चला गया जब भी रोज़ा नहीं टूटा, बल्कि खुद पानी डाला जब भी न टूटा। तिनके से कान खुजाया और उस पर कान का मैल लग गया फिर वही मैल लगा हुआ तिनका कान में डाला गया अगरचे चंद बार ऐसा किया हो, जब भी रोज़ा न टूटा। दांत या मुंह में खफीफा (यानी मामूली) चीज बे मालूम सी रह गई कि लुआब के साथ खुद ही उतर जाएगी और वो उतर गई, रोज़ा नहीं टूटा। दांतों से खून निकलकर हलक तक पहुंचा मगर हलक से नीचे न उतरा तो इन सब सूरतों में रोज़ा न गया। मक्खी हलक में चली गई रोज़ा न गया और कसदन निगली तो चला गया। तिल या तिल के बराबर कोई चीज चबाई और थूक के साथ हलक से उतर गई तो रोज़ा न गया मगर जबकि उसका मजा हलक में महसूस होता हो तो रोज़ा जाता रहा। थूक या बलगम मुंह में आया फिर उसे निगल गए तो रोज़ा न गया। इसी तरह नाक में रींठ जमा हो गई, सांस के जरिए खींच कर निगल जाने से भी रोज़ा नहीं जाता। इहतिलाम (स्वप्नदोष) हुआ या गीबत (चुगली) की तो रोज़ा न गया अगरचे गीबत सख्त कबीरा (बड़ा) गुनाह है। और जनाबत (नापाकी) की हालत में सुबह की बल्कि अगरचे सारे दिन जुनुब (नापाक) रहा रोज़ा न गया। मगर इतनी देर तक जानबूझकर गुस्ल न करना कि नमाज़ कज़ा हो जाए गुनाह और हराम है। जरुरत के लिए सूई लगवाने, ड्रीप चढ़वाने, खून निकलवाने से रोज़ा नहीं टूटता है।
रोज़े के मकरूहात : झूट, चुगली, गीबत, गाली देना, बेहूदा बात कहना, किसी का दिल दुखाना कि ये चीजें वैसे भी नाजाइज हराम हैं।
1. सवाल : क्या रोज़े की हालत में आंखों में लेंस लगवा सकते हैं?
जवाब : हां लगवा सकते हैं इससे रोज़े पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
2. सवाल : औरतों का रोज़े की हालत में लिपस्टिक लगाना कैसा?
जवाब : जायज़ है बशर्ते कि उसके जर्रात मुंह में न जाएं। इसी तरह चेहरे या होंठों पर कोई लोशन या क्रीम से भी रोज़े पर कोई असर नहीं पड़ता। ताहम बचना बेहतर है।
3. सवाल: रोज़े की हालत में कोविड टेस्ट करा सकते हैं?
जवाब : जी हां, करा सकते हैं। इससे रोज़े पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
4. सवाल : क्या खूनी बवासीर से रोज़ा टूट जाता है?
जवाब : नहीं खूनी बवासीर से रोज़े पर कोई असर नहीं पड़ता।
5. सवाल : रोजे की हालत में केमिकल वाली मिसवाक करना कैसा?
जवाब : अगर केमिकल वाली मिसवाक का मज़ा (टेस्ट) मुंह में महसूस न हो तो जायज है और अगर इसका मजा महसूस होता हो तो रोज़े की हालत में ऐसी मिसवाक करने से बचना चाहिए।
6. सवाल : क्या जहरीले जानवर सांप, बिच्छू वगैरा के डंसने से रोज़ा टूट जाएगा?
जवाब : सांप, बिच्छू वगैरा के डंसने से रोज़ा नहीं टूटेगा, बल्कि अगर जान जाने का खतरा हो तो रोज़ा तोड़ लें और बाद में उसकी कज़ा करे।
7. सवाल : घर में झाड़ू देते वक्त गर्द ओ गुबार हलक में चला जाता है क्या इससे रोज़ा टूट जाएगा?
जवाब : नहीं। झाड़ू लगाते वक्त गर्द ओ गुबार के हलक में चले जाने से रोज़ा नहीं टूटेगा। इसी तरह ख़ुशबू और धुआं या किसी बू वाली चीज से भी नहीं टूटेगा। अगरचे रोज़ेदार होना याद हो।
8. सवाल : भूल कर कुछ खा लिया तो रोज़ा टूटेगा या नहीं?
जवाब: नहीं। रोज़ा याद न होने की सूरत में भूल कर खाने से रोज़ा नहीं टूटता। हां याद आने पर फौरन रुक जाएं बल्कि मुंह में मौजूद लुकमा भी निकाल दें।
9. सवाल : रोज़े की हालत में कोविड वैक्सीन लगवाना कैसा?
जवाब : रोज़े की हालत में कोविड वैक्सीन लगवाना जायज़ है। इससे रोज़े पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
10. सवाल : क्या औरत रोज़े की हालत में खाना चख सकती है?
जवाब : अगर किसी औरत का शौहर जालिम या गुस्से वाला है कि खाने में कमीबेशी की सूरत में जुल्म करेगा तो ऐसी औरत रोज़े की हालत में खाना चख सकती हैं, लेकिन एहतियात लाज़िम होगा कि कोई हिस्सा हलक में न जाए।
11. सवाल : रोज़े की हालत में ऐसा ज़ख्म हो जाए कि टाका लगवाना पड़े तो?
जवाब : टाका लगवाने में कोई हर्ज नहीं। उससे रोज़ा नहीं टूटेगा।
12. सवाल: रोजे की हालत में कॉटन इयर बड्स से कान साफ कर सकते हैं?
जवाब: जी कर सकते हैं। इसमें कोई हर्ज नहीं।
13. सवाल : रोज़ेदार को ठंडक हासिल करने के लिए भीगा कपड़ा लपेटना या बार-बार नहाना कैसा?
जवाब : जायज़ है लेकिन अगर इससे परेशानी का इज़हार करना मकसद हो तो मकरूह है।
14. सवाल : क्या रोज़े की हालत में औरतों का मेकअप करना जायज़ है?
जवाब : हां जायज़ है बशर्ते कि नामहरम (पराए) मर्दों के सामने नुमाइश और बेपर्दगी का इरादा न रखती हो।
15. सवाल : शुगर के मरीज़ के लिए इफ्तार से बीस मिनट पहले इंसुलिन लेना कैसा है ?
जवाब : दुरुस्त है। रोज़ा नहीं टूटेगा।
16. सवाल : क्या इंजेक्शन लगवाने से रोज़ा टूट जाता है?
जवाब : नहीं। इंजेक्शन गोश्त में लगवाया जाए या नस में इससे रोज़ा नहीं टूटता।
17. सवाल : रोज़े की हालत में अगर मिर्गी के रोगी को दौरा पड़ जाए तो क्या रोज़ा टूट जाएगा?
जवाब: रोज़ा नहीं टूटेगा।
18. सवाल : क्या आंख में सुर्मा लगाने और सर में तेल लगाने से रोज़ा टूट जाता है?
जवाब : नहीं। आंख में सुर्मा लगाने और सर में तेल लगाने से रोज़ा नहीं टूटेगा अगरचे उसका मजा हलक में मालूम हो।
19. सवाल : कुत्ते के काटने के बाद जो इंजेक्शन लगाया जाता है या ड्रिप चढ़ाई जाती है तो क्या इससे रोज़ा टूट जाता है?
जवाब : कुत्ते के काटने का इंजेक्शन नाफ में लगाया जाता है मगर उससे रोज़ा नहीं टूटता है क्योंकि इंजेक्शन के जरिया दवा जौफे मेदा में नहीं पहुंचती और ड्रिप चढ़ाने से भी रोज़ा नहीं टूटता।
20. सवाल : रोज़े की हालत में बच्चे को दूध पिलाना कैसा क्या इससे रोज़ा टूट जाएगा?
जवाब : नहीं। रोज़े की हालत में बच्चे को दूध पिलाने में कोई हर्ज नहीं न ही इससे रोज़ा टूटता है और न ही वुजू।
21. सवाल : हामिला (गर्भवती) महिला के लिए रोज़े का क्या हुक्म है?
जवाब : अगर हामिला (गर्भवती) महिला को रोज़ा रखने की वजह से खुद की या बच्चे की सेहत को नुकसान पहुंचने का खतरा हो तो रोज़ा छोड़ने की इजाज़त है। हां बाद में इनकी क़ज़ा करना ज़रूरी है।
22. सवाल : रोज़े की हालत में खून देना कैसा?
जवाब : सख्त मजबूरी में जबकि जान का खतरा हो रोज़े की हालत में भी खून देना जायज है, मगर इतना खून देना जिससे कमज़ोरी महसूस हो मकरूह है।
23. सवाल : रोज़े की हालत में आंख में दवा डालना कैसा?
जवाब : रोज़े की हालत में आंख में दवा डालना जायज़ है, इससे रोज़ा नहीं टूटेगा, अगरचे उसका जायका हलक में महसूस हो।
24. सवाल : रोज़े की हालत में जख्म पर मरहम या दवा लगा सकते हैं?
जवाब : हां। लगा सकते हैं।
25. सवाल : रोज़े की हालत में गुस्ल (नहाना) करने में अगर कान में पानी चला जाए तो क्या रोज़ा टूट जाता है?
जवाब: रोज़े की हालत में अगर गुस्ल करते हुए कान में खुद ब खुद पानी चला गया तो रोज़े पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, इसलिए कि यह अख़्तियार से बाहर है।
26. सवाल : नापाकी की हालत में रोज़ा रखना कैसा है?
जवाब : हालते जनाबत में रोज़ा दुरुस्त है। इससे रोज़े में कोई नक्स व खलल नहीं आएगा। अलबत्ता वह शख्स नमाज़ें जानबूझकर छोड़ने के सबब अशद गुनाहे कबीरा का मुरतकिब होगा।
27. सवाल : अगर कोई शख़्स रोज़े की हालत में बेहोश हो गया तो उसका रोज़ा हुआ कि नहीं?
जवाब : अगर बेहोश हुआ और रात ही में होश आ गया तो उस दिन का रोज़ा हो गया और अगर एक से ज्यादा दिन बेहोश रहा तो पहले दिन का रोज़ा हो गया बकिया रोज़ों की कजा करे।
28. सवाल : रोज़े की हालत में शुगर टेस्ट करवा सकते हैं?
जवाब: जी हां, करवा सकते हैं।
29. सवाल : क्या रोज़े की हालत में उल्टी आने से रोज़ा टूट जाता है?
जवाब : नहीं, रोज़े की हालत में खुद ब खुद उल्टी आने से रोज़ा नहीं टूटता, अगरचे मुंह भर हो या उससे भी ज्यादा।
30. सवाल : क्या जिस्म के किसी हिस्से से खून निकलने से रोज़ा टूट जाता है?
जवाब : नहीं महज़ खून निकलने से रोज़ा नहीं टूटता। हां अगर मुंह से खून निकला और हलक के नीचे उतर गया तो रोज़ा टूट जाएगा।
*_तरावीह की नमाज़ का बयान_*
तरावीह की नमाज़ मर्द व औरत सबके लिए सुन्नते मुअक्कदा है। उसका छोड़ना जाइज नहीं। तरावीह की नमाज़ 20 रकात है। तरावीह की नमाज़ पूरे माह-ए-रमज़ान में पढ़नी है। रमज़ान में तरावीह नमाज़ के दौरान एक बार खत्मे कुरआन करना सुन्नते मुअक्कदा है। दो बार खत्म करना अफ़ज़ल है। तीन बार कुरआन मुकम्मल करना मजीद (ज्यादा) फज़ीलत माना गया है। फिक्ह हनफ़ी के मुताबिक औरतों का जमात से नमाज़ पढ़ना जाइज नहीं है। वह घर में ही तंहा-तंहा तरावीह की नमाज़ अदा करेंगी।
1. सवाल : नमाज़े इशा से पहले तरावीह पढ़ना कैसा?
जवाब : इशा की फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ने के बाद ही तरावीह का वक्त होता है बगैर फर्ज़-ए-इशा पढ़े तरावीह पढ़ना दुरुस्त नहीं अगर किसी शख़्स की नमाज़े इशा छूट गई हो तो पहले इशा की फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ ले फिर तरावीह में शरीक हो और आखिर में तरावीह की जो रकातें छूटी हों उन्हें खुद से पढ़ कर बीस रकअतें पूरा कर ले।
1. सवाल : क्या तरावीह की नमाज़ पूरे रमज़ान पढ़ना जरूरी है?
जवाब : जी हां। पूरे रमज़ान तरावीह की नमाज़ पढ़ना जरूरी है सिर्फ खत्मे क़ुरआन तक पढ़ना फिर छोड़ देना गुनाह है।
2. सवाल : इमामे तरावीह को देने के लिए लिए गए चंदे को मस्जिद ही के किसी और काम में इस्तेमाल कर सकते हैं?
जवाब : नहीं। चंदा जिस काम के लिए लिया गया है उसी में इस्तेमाल करेंगे बगैर देने वालों की इजाजत के किसी दूसरे काम में इस्तेमाल करना जायज़ नहीं।
3. सवाल : क्या नमाजे तरावीह औरतों के लिए भी लाज़िम है?
जवाब : जी हां। नमाज़े तरावीह औरतों के लिए भी सुन्नते मुअक्कदा (लाज़िम) है।
4. सवाल : क्या नमाज़े तरावीह में देख कर क़ुरआन पढ़ सकते हैं?
जवाब : नहीं इस तरह पढ़ने से नमाज़ नहीं होगी।
5. सवाल : तरावीह की 20 रकातें किस तरह पढ़ी जाएं?
जवाब : बीस रकातें दस सलाम से पढ़ी जाएं हर दो रकात पर सलाम फेरें और हर तरावीह यानी चार रकात पर इतनी देर बैठना मुस्तहब है कि जितनी देर में चार रकातें पढ़ी हैं।
6. सवाल : तरावीह की नीयत किस तरह की जाए?
जवाब : नीयत की मैंने दो रकात नमाज़ तरावीह सुन्नत रसूलुल्लाह की अल्लाह तआला के लिए (मुक्तदी इतना और कहे पीछे इस इमाम के) मुंह मेरा काबा शरीफ़ की तरफ़ 'अल्लाहु अकबर'।
7. सवाल : तरावीह जमात से पढ़ना कैसा?
जवाब : तरावीह जमात से पढ़ना सुन्नते किफ़ाया है यानी अगर मस्जिद में तरावीह की जमात न हुई तो मुहल्ला के सब लोग गुनाहगार हुए और अगर कुछ लोगों ने मस्जिद में जमात से पढ़ ली तो सब लोग छुटकारा पा गए।
8. सवाल : बिला उज्र (मजबूरी) बैठकर तरावीह पढ़ना कैसा है?
जवाब : बिला उज्र बैठकर पढ़ना मकरूह है बल्कि बाज फुकहाये किराम के नज़दीक तो नमाज़ होगी ही नहीं।
*_कुरआन शरीफ़ का बयान_*
अल्लाह ताला की छोटी बड़ी बहुत सी किताबें नाज़िल हुईं। बड़ी किताब को किताब और छोटी को सहीफ़ह कहते हैं। रमज़ान शरीफ़ में कुरआन शरीफ़ नाज़िल हुआ। कुरआन शरीफ़ सबसे अफ़ज़ल क़िताब है। यह क़िताब सबसे अफ़ज़ल रसूल, नबियों के सरदार पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर नाज़िल हुई। रमजान शरीफ़ में न सिर्फ बंदों पर रोज़े फ़र्ज़ किए गए बल्कि अल्लाह तआला ने कुरआन शरीफ़ व तमाम आसमानी क़िताबें रमज़ान शरीफ़ के महीने में नाज़िल कीं। पूरा कुरआन शरीफ़ एक दफा इकट्ठा नहीं नाज़िल हुआ बल्कि जरुरत के मुताबिक 23 सालों में थोड़ा-थोड़ा नाज़िल हुआ। रमज़ान में हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर 'सहीफे' 3 तारीख़ को उतारे गए। हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम को 'जबूर' 18 या 21 रमज़ान को मिली। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को 'तौरेत' 6 रमज़ान को मिली। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को 'इंजील' 12 रमज़ान को मिली। हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम हर साल जब रमज़ान शरीफ में आते और पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद म्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को कुरआन शरीफ़ सुनाते और हमारे पैग़ंबर उनको कुरआन शरीफ़ सुनाते थे। कुरआन शरीफ का यह मोजजा है कि मुसलमानों का बच्चा-बच्चा उसको याद कर लेता है।
1. सवाल : मोबाइल में क़ुरआन-ए-पाक को बेवुजू पढ़ना या छूना कैसा?
जवाब : जायज़ है। मगर अदब का तकाजा यह है कि वुजू कर लें।
2. सवाल : क्या कुरआन शरीफ़ की हर सूरत और हर आयत पर ईमान लाना ज़रूरी है?
जवाब : हां, कुरआन शरीफ़ की हर सूरत पर ईमान लाना ज़रूरी है अगर एक आयत का भी इंकार कर दे या यह कहे कि कुरआन जैसा नाज़िल हुआ था अब वैसा नहीं है, बल्कि घंटा बढ़ा दिया गया है तो वह काफ़िर है।
*_एतिकाफ़ का बयान_*
एतिकाफ़ के लुगवी माना है ठहरना या रूकना। मतलब यह कि सब चीजें छोड़कर अल्लाह की बारगाह में उसकी इबादत पर कमर बस्ता हो कर ठहर या रूक कर पड़ा रहता है। उसकी यह धुन होती है कि किसी तरह उसका परवरदिगार राजी हो जाए।
पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो शख़्स रमज़ान के आखिरी दस दिनों में सिदक इख्लास के साथ एतिकाफ़ करेगा, अल्लाह उसके नाम-ए-आमाल में हजार साल की इबादत दर्ज फरमाएगा और कयामत के दिन उसको अपने अर्श के साए में जगह देगा।
मस्जिद में अल्लाह के लिए ब नीयत एतिकाफ़ ठहरना एतिकाफ़ है। इसके लिए मुसलमान आकिल और जनाबत हैज, निफास से पाक होना शर्त है। बुलूग शर्त नहीं, बल्कि नाबालिग जो तमीज रखता है अगर ब नीयत एतिकाफ़ में मस्जिद में ठहरे तो ये एतिकाफ सही है।
माह-ए-रमज़ान के आखिरी अशरा का एतिकाफ़ सुन्नते मुअक्कदा अलल किफाया है यानी पूरे शहर में किसी एक ने कर लिया तो सबकी तरफ से अदा हो गया और अगर किसी एक ने भी न किया तो सभी मुजरिम हुए। इस एतिकाफ़ में ये जरूरी है कि रमज़ान की 20वीं तारीख़ गुरूबे आफताब से पहले पहले मस्जिद के अंदर ब नीयते एतिकाफ़ मौजूद हो और 29वीं के चांद के बाद या 30 के गुरूबे आफताब के बाद मस्जिद से बाहर निकले। अगर गुरूबे आफताब के बाद मस्जिद में दाखिल हुए तो एतिकाफ़ की सुन्नते मुअक्कदा अदा न हुई। बल्कि सूरज डूबने से पहले मस्जिद में दाखिल हो चुके थे मगर नीयत करना भूल गए थे यानी दिल में नीयत ही नहीं थी क्योंकि नीयत दिल के इरादे को कहते है इस सूरत में भी एतिकाफ़ की सुन्नते मुअक्कदा अदा न हुई। अगर गुरूबे आफताब क बाद नीयत की तो नफ़ली एतिकाफ़ हो गया। दिल में नीयत कर लेना ही काफी है ज़बान से कहना शर्त नहीं। अलबत्ता दिल में नीयत हाजिर होना जरूरी है साथ ही ज़बान से कह लेना बेहतर है।
शबे कद्र को पाने के लिए पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रमज़ान का पूरा महीना एतिकाफ़ फरमाया है और आखिरी दस दिन तो आपने कभी तर्क नहीं फरमाए। आखिरी अशरे का एतिकाफ़ सुन्नत है। शबे कद्र आखिरी अशरा में है। बहरहाल सुन्नतों के दीवानों अगर कोई खास मजबूरी न हो तो माह-ए-रमज़ान के आखिरी अशरा के एतिकाफ़ की सादत हरगिज नहीं छोड़नी चाहिएं। कम अज कम ज़िंदगी में एक बार तो हर इस्लामी भाई को रमज़ान के आखिरी अशरा का एतिकाफ़ करना ही चाहिए। हदीस में है कि एतिकाफ करने वाले को हज व उमरा का सवाब मिलता हैं।
*_एतिकाफ़ नीयत इस तरह करें_*
रमज़ान के एतिकाफ़ की नीयत इस तरह करें कि मैं अल्लाह की रज़ा के लिए रमजानुल मुबारक के आखिरी अशरा के सुन्नते एतिकाफ़ की नियत करता हूं।
1. सवाल : अगर पूरे मोहल्ले से कोई भी एतिकाफ़ में नहीं बैठा तो क्या सब गुनाहगार होंगे?
जवाब : हां। एतिकाफ़ करना सुन्नत अलल किफाया है अगर पूरे मोहल्ले से कोई भी एतिकाफ़ में नहीं बैठा तो सब गुनाहगार होंगे।
2. सवाल : क्या दौराने एतिकाफ़ मोबाइल का इस्तेमाल किया जा सकता है?
जवाब : हां, ज़रूरत की बिना पर इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन मस्जिद के आदाब और दूसरे नमाज़ियों के हुकूक का ख्याल रखते हुए।
3. सवाल : एतिकाफ़ कैसे करें?
जवाब : रमज़ान शरीफ़ के एतिकाफ़ में ये ज़रुरी है कि रमज़ान शरीफ़ की बीसवीं तारीख गुरूबे आफताब से पहले-पहले मस्जिद के अंदर ब नीयते एतिकाफ़ मौजूद हो और उनतीसवीं के चांद के बाद या तीस के गुरूबे आफताब के बाद मस्जिद से बाहर निकले। अगर गुरूबे आफताब के बाद मस्जिद में दाखिल हुआ तो एतिकाफ़ की सुन्नते मुअक्कदा अदा न हुई। बल्कि सूरज डूबने से पहले मस्जिद में दाखिल हो चुके थे मगर नियत करना भूल गए थे यानी दिल में नियत ही नहीं थी क्योंकि नियत दिल के इरादे को कहते है इस सूरत में भी एतिकाफ़ की सुन्नते मुअक्कदा अदा न हुई। अगर गुरूबे आफताब के बाद नियत की तो नफ़ली एतिकाफ़ हो गया। दिल में नीयत कर लेना ही काफी है ज़बान से कहना शर्त नहीं। अलबत्ता दिल में नीयत हाजिर होना जरूरी है साथ ही ज़बान से कह लेना बेहतर है।
4. सवाल : क्या मोअतकिफ (एतिकाफ़ करने वाला) खाने, पीने और सोने के लिए मस्जिद से बाहर जा सकता है?
जवाब : नहीं। मोअतकिफ मस्जिद ही में खाए, पिए और सोए उसे इन कामों के लिए बाहर जाने की इजाज़त नहीं। हां, लेकिन खाने, पीने और सोने में एहतियात लाज़िम है कि मस्जिद आलूदा (गंदी) न हो।
5. सवाल : क्या मर्द हजरात घर में एतिकाफ़ कर सकते हैं?
जवाब: नहीं। मर्दों के एतिकाफ़ के लिए मस्जिद ज़रूरी है।
*_शबे कद्र का बयान_*
शबे कद्र के मुताल्लिक अल्लाह तआला फरमाता है कि "बेशक हमनें कुरआन को शबे कद्र में उतारा"। शबे कद्र हजार महीनों से बेहतर है यानी हजार महीना तक इबादत करने का जिस क़दर सवाब है उससे ज्यादा शबे कद्र में इबादत का सवाब है। जो आदमी इस एक रात को इबादत में गुजार दे उसने गोया 83 साल 4 माह से ज्यादा वक्त इबादत में गुजार दिया। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया शबे कद्र अल्लाह तआला ने मेरी उम्मत को अता की है। यह पहली उम्मतों को नहीं मिली। उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा रदियल्लाहु अन्हा से मरवी है कि पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया शबे कद्र को आखिरी अशरा की ताक रातों में तलाश करो यानी रमज़ान की 21, 23, 25, 27, 29 में तलाशो।
*_जकात का बयान_*
दीन-ए-इस्लाम में ज़कात फ़र्ज़ है। ज़कात का इंकार करने वाला काफिर और अदा न करने वाला फासिक और अदायगी में देर करने वाला गुनाहगार है। ज़कात पर मजलूमों, गरीबों, यतीमों, बेवाओं का हक़ है। ज़कात फ़र्ज़ होने की चंद शर्तें है - मुसलमान आकिल, बालिग हो। माल बकदरे निसाब का पूरे तौर का मालिक हो। निसाब का जरूरी माल से ज्यादा होना और किसी के बकाया से फारिग होना, माले तिजारत (बिजनेस) या सोना चांदी होना और माल पर पूरा साल गुजरना ज़रुरी है।
सोना-चांदी के निसाब में सोना की मात्रा साढ़े सात तोला (87 ग्राम 48 मिली ग्राम) है जिसमें चालीसवां हिस्सा यानी सवा दो माशा ज़कात फ़र्ज़ है।
चांदी की मात्रा साढ़े बावन तोला (612 ग्राम 36 मिली ग्राम) है। सोना-चांदी के बजाए बाजार भाव से उनकी कीमत लगा कर रुपया वगैरा देना जायज है। जिस आदमी के पास साढ़े बावन तोला चांदी या साढ़े सात तोला सोना या उसकी कीमत का माले तिजारत है और यह रकम उसकी हाजते अस्लीया से अधिक हो। ऐसे मुसलमान पर चालीसवां हिस्सा यानी सौ रुपये में ढ़ाई रुपया ज़कात निकालना जरुरी हैं। सोना-चांदी के जेवरात पर भी ज़कात वाजिब होती है। तिजारती (बिजनेस) माल की कीमत लगाई जाए फिर उससे सोना-चांदी का निसाब पूरा हो तो उसके हिसाब से ज़कात निकाली जाए। अगर सोना चांदी न हो और न माले तिजारत हो तो कम से कम इतने रुपये हों कि बाज़ार में साढ़े बावन तोला चांदी या साढ़े सात तोला सोना खरीदा जा सके तो उन रुपयों की ज़कात वाजिब होती है।
*_ज़कात हलाल और जायज़ तरीक़े से कमाए हुए माल में से दी जाए_*
अगर आप मालिक-ए-निसाब हैं, तो हक़दार को ज़कात ज़रूर दें, क्योंकि ज़कात ना देने पर सख़्त अज़ाब का बयान कुरआन शरीफ़ में आया है। ज़कात हलाल और जायज़ तरीक़े से कमाए हुए माल में से दी जाए। नीचे दिए गए लोगों को जकात तभी दी जायेगी जब सब गरीब हों, मालिक-ए- निसाब न हो, ज़कात में अफ़ज़ल यह है कि इसे पहले अपने भाई-बहनों को दें, फिर उनकी औलाद को, फिर चचा और फूफीयों को, फिर उनकी औलाद को, फिर मामू और ख़ाला को, फिर उनकी औलाद को, बाद में दूसरे रिश्तेदारों को, फिर पड़ोसियों को, फिर अपने पेशा वालों को। ऐसे छात्र को भी ज़कात देना अफ़ज़ल है, जो इल्म-ए-दीन हासिल कर रहा हो। मुसलमानों को चाहिए कि जल्द से जल्द ज़कात की रकम निकाल कर हकदारों को दे दें। जकात बनी हाशिम यानी हजरते अली, हजरते जाफर, हजरते अकील और हजरते अब्बास व हारिस बिन अब्दुल मुत्तलिब की औलाद को देना जायज नहीं। किसी दूसरे मुरतद बद मजहब और काफिर को ज़कात देना जाइज नहीं है। सैयद को ज़कात देना जायज नहीं इसलिए कि वह भी बनी हाशिम में से हैं। ज़कात का माल मस्जिद में लगाना, मदरसा तामीर करना या उससे मय्यत को कफन देना या कुआं बनवाना जायज नहीं यानी अगर इन चीजों में ज़कात का माल खर्च करेगा तो ज़कात अदा न होगी।
1. सवाल : क्या सगी खाला (मां की बहन) को ज़कात दे सकते हैं?
जवाब : अगर खाला ज़कात की मुस्तहिक है तो उन्हें ज़कात दे सकते हैं।
2. सवाल : क्या पहने हुए जेवरात जो रोज़ाना इस्तेमाल में आते हैं उन पर भी ज़कात देना ज़रूरी है?
जवाब : हां। रोज़ाना इस्तेमाल होने वाले पहने हुए जेवरात पर भी ज़कात देना ज़रूरी है।
3. सवाल : क्या बाप अपनी बेटी को ज़कात दे सकता है?
जवाब: नहीं। अगर बेटी और दामाद सख्त जरूरतमंद हों तो दामाद को ज़कात दे सकते हैं फिर वो अपनी बीवी की ज़रूरियात में ख़र्च करे।
4. सवाल : बकद्रे निसाब माल पर साल रमज़ान से पहले ही पूरा हो जाए, तो ज़कात के लिए रमज़ान का इंतज़ार करना कैसा?
जवाब : बकद्रे निसाब माल पर साल पूरा होते ही ज़कात देना फ़र्ज़ है, साल पूरा होने के बाद ज़कात की अदाएगी के लिए रमज़ान का इंतज़ार करना जायज़ नहीं है।
5. सवाल : सिक्योरिटी डिपॉजिट में रखी रकम पर ज़कात का क्या हुक्म है?
जवाब : सिक्योरिटी डिपॉजिट में रखी रकम पर भी ज़कात फ़र्ज़ है।
सहरी
6. सवाल : क्या ज़कात रमज़ान में ही निकाली जा सकती है?
जवाब : ज़कात का ताल्लुक रमज़ान से नहीं बल्कि ज़कात की अदाएगी बकद्रे निसाब माल पर साल पूरा होने पर फ़र्ज़ हो जाती है। हां, अगर साल रमज़ान के बाद पूरा होता हो तो साल पूरा होने से पहले रमज़ान ही में दे दें तो इसमें सवाब ज़्यादा है।
7. सवाल : ज़कात की अदायगी में ताख़ीर (देर) करना कैसा?
जवाब : निसाब के माल पर साल पूरा होने के बाद बिला उज्र ज़कात की अदायगी में ताख़ीर करना जायज़ नहीं, गुनाह है।
8. सवाल : प्रोविडेंट फंड पर ज़कात है या नहीं?
जवाब : हां। अगर यह रकम निसाब को पहुंच जाए तो साल बसाल ज़कात अदा करनी पड़ेगी।
9. सवाल : खरीदी हुई जमीन पर ज़कात है या नहीं?
जवाब : अगर रिहाइशी मकान के लिए खरीदी है तो उस पर ज़कात नहीं। अगर तिजारत (बिजनेस) की नियत से खरीदी है तो उस पर ज़कात फ़र्ज़ है।
10. सवाल : क्या ज़कात के पैसों से इफ्तार करा सकते हैं?
जवाब : नहीं ज़कात के पैसों से इफ्तार नहीं करा सकते हैं। हां उन पैसों से राशन वगैरा खरीद कर किसी ग़रीब को मालिक बना दें तो ज़कात अदा हो जाएगी।
11. सवाल : एडवांस रखी गई रकम पर ज़कात वाजिब है या नहीं?
जवाब : बाज़ मामलात में एडवांस रकम वापस नहीं होती ऐसी सूरत में उन पर ज़कात वाजिब नहीं, और बाज़ मामलात में रकम वापस हो जाती है ऐसी सूरत में उन पर ज़कात वाजिब है।
12. सवाल : ज़कात की रकम किस्तों में दे सकते हैं?
जवाब : साल पूरा होने के बाद बिला उज्र ताखीर करना मकरूह है। हां अगर कोई शदीद मजबूरी हो कि रकम इकठ्ठी नहीं दे सकता तो किस्तों में भी देने से अदा हो जाएगी।
13. सवाल : क्या क़र्ज़ दी गई रकम पर ज़कात है?
जवाब : जी हां, ज़कात फ़र्ज़ है।
*_सदका-ए-फित्र का बयान_*
हर मालिके निसाब पर अपनी तरफ से और अपनी हर नाबालिग औलाद की तरफ़ से एक-एक सदका-ए-फित्र देना ईद-उल-फित्र के दिन वाजिब होता है। जिन लोगों को ज़कात देना जाइज है उनको सदका-ए-फित्र भी देना जाइज है और जिन लोगों को ज़कात देना जाइज नहीं उनको सदका-ए-फित्र देना जाइज नहीं। माह-ए-रमज़ान में सदका-ए-फित्र निकाला जाता है। सदका-ए-फित्र अदा करना वाजिब है। जो शख़्स इतना मालदार है कि उस पर ज़कात वाजिब है, या ज़कात वाजिब हो मगर जरूरी सामान से ज्यादा इतनी कीमत का माल व सामान है जितनी कीमत पर ज़कात वाजिब होती है तो उस शख़्स पर अपनी नाबालिग औलाद की तरफ से सदका-ए-फित्र देना वाजिब है। फित्रा वाजिब होने की तीन शर्तें है -आजाद होना, मुसलमान होना, किसी ऐसे माल के निसाब का मालिक होना जो असली जरूरत से ज्यादा हो। उस माल पर साल गुजरना शर्त नहीं और न माल का तिजारती (बिजनेस) होना शर्त है और न ही साहिबे माल का बालिग व अकील होना शर्त है। यहां तक कि नाबालिग बच्चों और वो बच्चे जो ईद के दिन तुलू फज्र यानि सूरज निकलने से पहले पैदा हुए हों और मजनूनों पर भी फित्रा वाजिब है। उनके सरपरस्त हज़रात को उनकी तरफ से फित्रा देना होगा।
सदका-ए-फित्र जो ग़रीबों, यतीमों व बेसहारा मुसलमानों को दिया जाता हैं। इसको निकालने में जल्दी करें ताकि ग़रीब भी खुशियों में शामिल हो सकें। जितनी जल्दी आप सदका-ए-फित्र निकालेंगे उतने जल्दी ही वह ग़रीबों के लिए मुफीद होगा। जब तक फित्रा अदा नहीं किया जाता है तब तक सारी इबादत ज़मीन व आसमान के बीच लटकी रहती है। जब फित्रा अदा कर दिया जाता है तो इबादतें अल्लाह तआला की बारगाह में पहुंच जाती है। रोज़े में इबादत में किसी किस्म की कमी रह गयी है तो यह फित्रा उस इबादत की कमी को पूरा कर देता है।
सदका-ए-फित्र की मात्रा में 2 किलो 47 ग्राम गेहूं या उसके आटे की कीमत से चाहे, गेहूं या आटा दे या उसकी कीमत बेहतर है कि कीमत अदा करेे। फित्रा में गेहूं की जो कीमत आम बाजारों में है उसे ही दिया जाएगा।
1. सवाल : सदका-ए-फित्र किन पर वाजिब है?
जवाब : हर मालिके निसाब पर अपनी तरफ से और अपनी नाबालिग औलाद की तरफ से एक-एक सदका-ए-फित्र देना वाजिब है।
2. सवाल : क्या सदका-ए-फित्र सिर्फ रोज़ेदार पर वाजिब है? जिसने रोज़ा न रखा वो सदका-ए-फित्र नहीं देगा क्या?
जवाब: नहीं सदका-ए-फित्र हर मुसलमान मालिके निसाब पर वाजिब है, अगरचे उसने रोज़े न रखे हों।
3. सवाल : सदका-ए-फित्र कब निकालना चाहिए?
जवाब : ईद के दिन सुबह सादिक तुलू होते ही वाजिब होता है, लेकिन हो सके तो रमज़ान में ईद से कुछ दिन पहले ही निकाल लें ताकि ग़रीब हज़रात भी अपनी जरूरियात पूरी कर ईद की ख़ुशी में शरीक हो सकें।
4. सवाल : इस साल सदका-ए-फित्र की मिकदार कितनी है?
जवाब : गोरखपुर के मुसलमानों के लिए गेहूं की कीमत के ऐतबार से सदका-ए-फित्र की मिकदार एक आदमी की तरफ से 60 रुपए है, आप अपनी ताकत और तौफीक के मुताबिक जौ, खजूर या मुनक्का की कीमत भी 4 किलो 94 ग्राम का लिहाज़ करते हुए सदका-ए-फित्र निकाल सकते हैं। इसमें सवाब ज़्यादा है।
5. सवाल : क्या गरीबों पर भी सदका-ए-फित्र निकालना वाजिब है?
जवाब : नहीं। सदका-ए-फित्र सिर्फ मालिके निसाब पर वाजिब है ग़रीबों पर सदका-ए-फित्र देना वाजिब नहीं। हां अगर दे दें तो सवाब पाएंगे।
*_चांद रात का बयान_*
पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जब रमज़ान की आखिरी रात आती है तो ज़मीन व आसमान और फरिश्ते मेरी उम्मत की मुसीबत को याद करके रोते हैं। अर्ज किया गया या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कौन सी मुसीबत? फरमाया रमज़ान का रुखसत होना, क्योंकि इसमें सदकात और दुआओं को कबूल किया जाता है, नेकियों का अज्र व सवाब बढ़ा दिया जाता है, अजाबे दोजख दूर किया जाता है तो रमज़ान शरीफ़ की जुदाई से बढ़कर मेरी उम्मत के लिए और कौन सी मुसीबत हो सकती है। ईद की रात को गफलत में न गुजारें बल्कि इबादत करें। हदीस में है कि जब ईद-उल-फित्र की मुबारक रात तशरीफ़ लाती है तो इसे 'लैलतुल जाइजा' यानी 'ईनाम की रात' के नाम से पुकारा जाता है। ईदैन की रात यानी शबे ईद-उल-फित्र और शबे ईद-उल-अज़हा में सवाब के लिए खूब इबादत करनी चाहिए। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि ईद तो दरअसल उन खुशनसीब मुसलमानों के लिए है जिन्होंने रमज़ान को रोजा, नमाज़ और दीगर इबादतों में गुजारा। तो यह ईद उन के लिए अल्लाह की तरफ से मजदूरी मिलने का दिन है।
*_ईद के चांद का बयान_*
पांच महीनों का चांद देखना वाजिब-ए-किफाया है शाबान, रमज़ान, शव्वाल, ज़ीक़ादा, जि़लहिज्जा। रमज़ान की शुरूआत चांद के दीदार के साथ होती है। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि महीना 29 का भी होता है और 30 का भी। रोज़ा चांद देख कर शुरू करो और चांद देख कर रोज़ा बंद कर दो। अगर आसमान साफ नहीं है तो 30 की गिनती पूरी करो।
टेलीफोन, मोबाइल, इंटरनेट, एसएमएस, सोशल मीडिया से चांद का हो जाना नहीं साबित हो सकता है, न बाजारी अफवाह, जंतरियों और अख़बारों में छपा होना कोई सबूत है। आजकल अमूमन देखा जाता है 29 रमज़ान को बकसरत एक जगह से दूसरी जगह उपरोक्त माध्यमों से संदेश भेजे जाते है चांद हुआ या नहीं और कहीं से यह संदेश आया कि फलां जगह ईद का चांद देखा गया तो बस लो ईद आ गयी, यह महज नाजायज है।
*_ईद की नमाज़ का बयान_*
अल्लाह तआला फरमाता है, "रोज़ों की गिनती पूरी करो और अल्लाह की बड़ाई बोलो कि उसने तुम्हें हिदायत फरमाई"। हदीस में है जब पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मदीने में तशरीफ लाए उस जमाने में अहले मदीना साल में दो दिन खुशी करते थे महरगान व नौरोज। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया यह क्या दिन हैं? लोगों ने अर्ज किया कि जाहिलियत में हम इन दिनों में खुशी करते थे। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया अल्लाह तआला ने उनके बदले में इनसे बेहतर दो दिन तुम्हें दिए हैं ईद-उल-फित्र व ईद-उल-अज़हा।
पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम 53 साल की उम्र में मक्का से हिजरत करके मदीना आ गये तो 2 हिजरी को रोज़ा फ़र्ज़ हुआ। कुरआन शरीफ़ के दूसरे पारे में ईद की खुशी मनाने का हुक्म नाज़िल हुआ। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आबादी से दूर अपने सहाबा किराम के साथ ईद की नमाज़ अदा की। ईदगाह में ईद की नमाज़ अदा करना पैग़ंबरे इस्लाम हजरत मोहम्मद मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत है।
ईद की नमाज़ आबादी से बाहर खुले मैदान में जमात के साथ अदा करनी चाहिए। बूढ़े, कमजोर अगर शहर की बड़ी मस्जिद में पढ़ लें, तो भी दुरूस्त है। जब सफें दुरुस्त हो जाए तो ईद-उल-फित्र की नमाज़ के लिए सबसे पहले नीयत कर लें कि ‘‘मैं नीयत करता हूं दो रकात नमाज़ वाजिब ईद-उल-फ़ित्र की जायद छह तकबीरों के, वास्ते अल्लाह तआला के, पीछे इस इमाम के, मुंह मेरा काबा शरीफ़ की तरफ। इमाम तकबीरे तहरीमा कहे तो आप भी दोनों हाथ कानों तक हाथ उठाएं और अल्लाहु अकबर कहकर हाथ नाफ से नीचे बांध लें फिर 'सना' पढ़े। इसके बाद इमाम के साथ तीन बार ‘‘अल्लाहु अकबर’’ कहिए और हर बार दोनों हाथ तकबीरे तहरीमा की तरह कानों तक उठाइए हर तकबीर के बाद हाथ छोड़ दीजिए, मगर तीसरी तकबीर के बाद हाथ फिर बांध लीजिए और इमाम ‘अअूजु’ और ‘बिस्मिल्लाह’ पढ़कर किरात शुरू करे और मुक्तदी खामोशी से इमाम की किरात सुनें और इमाम की पैरवी में रुकू व सजदा करें। रुकू व सुजूद के बाद खड़े होकर दूसरी रकात की किरात खामोशी के साथ सुनिए। किरात पूरी करने के बाद जब इमाम तकबीर कहे तो आप भी इमाम के साथ धीमी आवाज़ में तकबीरें कहते जाइए और तकबीरों के दरमियान दोनों हाथ कानों तक उठाकर खुले छोड़ दीजिए। तीसरी तकबीर के बाद भी हाथ बांधने के बजाए खुले छोड़ दीजिए और चौथी तकबीर बगैर हाथ उठाए रुकू में जाइए और कायदे के मुताबिक कौमा, सजदा, जलसा और कादा के बाद दोनों तरफ सलाम फेर कर नमाज़ खत्म कीजिए। ईदैन की नमाज़ के बाद खुतबा पढ़ना सुन्नत है और सुनना वाजिब है। ईद की नमाज़ के बाद दुआ होगी। दुआ के बाद आपस में मुबारकबाद पेश करना, हाथ मिलाना और गले मिलना बेहतर है। इससे भाईचारगी बढ़ती है।
हदीस में आया है कि पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ईद-उल-फित्र के दिन कुछ खाकर नमाज़ के लिए तशरीफ ले जाते थे। ईद के दिन हजामत बनवाना, नाखून काटना, गुस्ल करना, मिसवाक करना, अच्छे कपड़े पहनना, नये हों तो नये वरना धुले हुए कपड़े पहना, खुशबू लगाना अच्छा है। ईद-उल-फित्र की नमाज़ को जाने से पहले चंद खजूरें खा लेना, खजूर न हो तो मीठी चीज खा लेना, नमाज़े ईद ईदगाह में अदा करना, अहिस्ता तकबीरे तशरीक पढ़ते जाना, ईदगाह पैदल जाना अफ़ज़ल है और वापसी में सवारी पर आने से हर्ज नहीं हैं।
ईद-उल-फित्र की नमाज़ के लिए जाते हुए रास्ते में आहिस्ता से तकबीरे तशरीक "अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाह। वल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, व लिल्लाहिल हम्द" पढ़ी जाएगी। नमाज़ ईदगाह में जाकर पढ़ना और रास्ता बदल कर आना, पैदल जाना और रास्ते में तकबीरे तशरीक पढ़ना सुन्नत है। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ईद-उल-फित्र के दिन कुछ खाकर नमाज़ के लिये तशरीफ ले जाते। ईद को एक रास्ते से तशरीफ ले जाते और दूसरे से वापस होते। हदीस में है कि एक मर्तबा ईद के दिन बारिश हुई तो मस्जिद में हुजूर ने ईद की नमाज़ पढ़ी। ईद की नमाज़ वाजिब है और इसकी अदा की वही शर्तें है जो जुमे के लिए है सिर्फ इतना फर्क हैं कि जुमे में खुतबा शर्त है और ईद में सुन्नत। मगर ईद का खुतबा सुनना वाजिब है।
1. सवाल : ईद के दिन के चांद आदाब ओ आमाल बता दें?
जवाब : ईद के दिन के चंद आदाब ये हैं मिसवाक करना, गुस्ल करना, साफ सुथरा लिबास पहनना। अगर नया मयस्सर हो तो नया लिबास पहनना। खुशबू लगाना। नमाज़े ईद से पहले सदका-ए-फित्र अदा करना। अगर मुमकिन हो तो पैदल ईदगाह जाना। एक रास्ते से जाना दूसरे से वापिस आना। ईदगाह जाने से पहले ताक अदद खजूरें, छुआरे या कोई और मीठी चीज़ जो मयस्सर हो खाना। निगाह नीचे किए बा अदब और पुर वकार तरीके से ईदगाह जाना। ईद-उल-फित्र में ईदगाह तकबीर तशरीक आहिस्ता पढ़ते हुए जाना। ईद की नमाज़ खुले मैदान या ईदगाह में पढ़ना। ईद के दिन अपने आस पड़ोस के गुरबा मसाकीन का खुसूसी खयाल रखना। जरूरतमंदों की मदद करना। नमाज़े पंजगाना की खास तौर पर पाबंदी करना। और तमाम तरह के गुनाहों से बचना और नेकी के कामों में ये दिन गुजारना।
2. सवाल : जिस शख़्स की ईद की नमाज़ छूट जाए वो क्या करे रहनुमाई फरमाएं?
जवाब : दूसरी मस्जिद या ईदगाह में जहां जमात मिल सकती हो जाकर पढ़े। अगर कहीं जमात न मिली तो बहर सूरत तंहा नमाज़े ईद नहीं पढ़ सकता। अब आइंदा ऐसी सुस्ती से बचे व तौबा अस्तग्फार करें। और उसके लिए बेहतर है कि चार रकात नमाज़े चाश्त पढ़ लें।
3. सवाल: बेवा औरत ईद पर नए कपड़े पहन सकती है?
जवाब : इद्दत के दिन गुजारने के बाद ईद पर नए कपड़े भी पहन सकती है और हर तरह की जायज़ खुशी में भी शरीक हो सकती है इसमें कोई हर्ज नहीं है।
4. सवाल : औरतों पर ईद की नमाज़ पढ़ने का क्या हुक्म है?
जवाब : ईद की नमाज़ मर्दों पर वाजिब है। औरतों पर ईद की नमाज़ वाजिब नहीं।
5. सवाल : ईद की नमाज़ मस्जिद में पढ़ना कैसा है?
जवाब : ईदैन की नमाज़ वाजिब है और उसके लिए खुले मैदान में निकलकर अदा करना सुन्नत है, बगैर किसी उज्र के ईद की नमाज़ मस्जिद में पढ़ना खिलाफे सुन्नत है। अलबत्ता किसी उज्र की वजह से ईदगाह या खुले मैदान में नमाज़ पढ़ना मुश्किल हो तो मस्जिद में पढ़ना जायज़ है।
*_ईदगाह का बयान_*
ईदगाह का अर्थ होता है खुशी की जगह या खुशी का वक्त। यह ऐसी जगह है जहां पर बंदे दो रकअत नमाज़ अदा कर अल्लाह का शुक्र अदा करते हैं। जब बंदा 29 दिन या 30 दिन का रोज़ा पूरा कर लेता है तो अल्लाह तआला उसे खुशी मनाने का हुक्म देता है। ईदगाह मुसलमानों के दो सबसे बड़े त्योहारों ईद-उल-फित्र और ईद-उल-अज़हा की खुशी मनाने के लिए है।
ईदगाह में ईद की नमाज़ अदा करना पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम व आपके सहाबा किराम की सुन्नत है। इसलिए कोशिश रहे ईद की नमाज़ ईदगाह में ही अदा करें। ईदगाह दो ईदों के लिए ही बनाई गई हैं।
1. सवाल : एक ही ईदगाह या मस्जिद में दो बार ईद की नमाज़ अदा करना कैसा?
जवाब : आम हालात में ऐसा करना मकरूह है। अलबत्ता किसी खास सूरत-ए-हाल में शहर के काजी या सबसे बड़े सहीहुल अकीदा आलिम जिसके तरफ लोग शरअ के मसाइल में रुजू करते हों उसकी इजाज़त लेकर कायम की जा सकती है।
*_माह-ए-रमज़ान में अज़ीम हस्तियों के उर्स, यौमे विलादत व ऐतिहासिक इस्लामी तारीखें_*
*_1. विलादत गौसे पाक हज़रत सैयदना शैख़ अब्दुल कादिर जीलानी रहमतुल्लाह तआला अन्हु : विलादत 👉 1 रमज़ान, मजार 👉 बगदाद (इराक)_*
*_2. हज़रत सैयदा फातिमा ज़हरा रदियल्लाहु तआला अन्हा : विसाल 👉 3 रमज़ान, मजार 👉 मदीना मुनव्वरा_*
*_3. हज़रत मुफ्ती अहमद यार खां नईमी रहमतुल्लाह तआला अलैह : विसाल 👉 3 रमज़ान, मजार 👉 पाक_*
*_4. हज़रत सैयदना अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रदियल्लाहु तआला अन्हु : विसाल 👉 7 रमज़ान, मजार👉 मदीना मुनव्वरा_*
*_5. उम्मुल मोमिनीन (मोमिनों की मां) हज़रत सैयदा खदीजा तुल कुबरा रदियल्लाहु तआला अन्हा : विसाल 👉 10 रमज़ान, मजार 👉 मक्का शरीफ_*
*_6. हज़रत सिर्री सकती रहमतुल्लाह तआला अलैह : विसाल 👉 13 रमज़ान, मजार 👉 बगदाद (इराक)_*
*_7. उम्मुल मोमिनीन (मोमिनों की मां) हज़रत सैयदा सफिया (Safiy bint Huyay) रदियल्लाहु तआला अन्हा : विसाल 👉 14 रमज़ान, मजार 👉 मदीना मुनव्वरा_*
*_8. विलादत हज़रत सैयदना इमाम हसन रदियल्लाहु तआला अन्हु 👉 15 रमज़ान, मजार 👉 मदीना मुनव्वरा_*
*_9. उम्मुल मोमिनीन (मोमिनों की मां) हज़रत सैयदा आयशा रदियल्लाहु तआला अन्हा : विसाल 👉 17 रमज़ान, मजार 👉 मदीना मुनव्वरा_* 👉 *_हज़रत सैयदा रुकय्या (Ruqayya) रदियल्लाहु तआला अन्हा : विसाल 👉 17 रमज़ान, मजार 👉 मदीना मुनव्वरा_* 👉 *_हज़रत ख़्वाजा सैयद नसीरुद्दीन महमूद चराग-ए-देहली अलैहिर्रहमां - विसाल 17 रमज़ान - मजार - दिल्ली_*
*_10. यौमे शोह-दाए-बद्र 👉 17 रमज़ान, 👉मदीना मुनव्वरा_*
*_11. यौमे विसाल हज़रत मौलाना रेहान रज़ा खान अलैहिर्रहमां - विसाल 18 रमज़ान - मजार - बरेली (उप्र)_*
*_12. फतह-ए-मक्का 👉 20 रमज़ान_*
*_13. मुसलमानों के चौथे खलीफा अमीरुल मोमिनीन हज़रत सैयदना अली रदियल्लाहु तआला अन्हु : विसाल 👉 21 रमज़ान, मजार👉 ऩजफ अशरफ (इराक)_*
*_14. हज़रत इमाम मोहम्मद बिन यजीद बिन माजह रहमतुल्लाह अन्हु : "सुनन इब्ने माजह" : विसाल 👉 22 रमज़ान 273 हिजरी : मजार👉Qazvin ईरान_*
*_16. हज़रत मौलाना सैयद किफायत अली काफी मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह : विसाल 👉 22 रमज़ान 1274 हिजरी (6 मई 1858)_*
*_17. हज़रत शैख़ सलीम चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह : विसाल 👉27 रमज़ान, मजार 👉 फतेहपुर सिकरी (आगरा)_*
*_18. हज़रत सैयदना अम्र बिन आस रदियल्लाहु तआला अन्हु : विसाल 👉 29 रमज़ान : मजार 👉मिस्र_*
*_गोरखपुर में नमाज़ के अवकात_*
*_रमजान : गोरखपुर के लिए सहरी व इफ्तार का वक्त_*
*_कुछ अहमे मसले_*
इसाले सवाब / नियाज़ व फातिहा
नियाज़, फातिहा और इसाले सवाब का माना किसी नेक अमल का सवाब मुसलमान मुर्दों को पहुंचाना है। ये बेहतर अमल है। फातिहा नियाज़ व इसाले सवाब का फायदा मुर्दों को पहुंचता है और पहुंचाने वाले के सवाब में कोई कमी नहीं आती। हर किस्म के नेक अमल रोज़ा, नमाज़, हज, सदका, खैरात वगैरह का सवाब मुर्दों को पहुंचा सकते हैं। इसाले सवाब, नियाज़ व फातिहा औरतें भी कर सकती हैं।
जिसका तरीका ये है:
जिस भी नेकी का सवाब पहुंचाना हो वो करने के बाद अल्लाह पाक की बारगाह में दुआ करें कि अल्लाह पाक इस नेकी के करने में हमसे जो गलती हुई हो उसे मुआफ फरमा, और इसे अपनी बारगाह में कुबूल फरमा, उसके बाद इसका सवाब प्यारे आका नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वआलिही वसल्लम की बारगाह में पेश करें प्यारे आका सल्लल्लाहु अलैहि वआलिही वसल्लम के सदके में सवाब तमाम नबियों, सहाबा और बुजुर्गों की बारगाह में पेश करें बिल आखिर जिसको सवाब पहुंचाना हो आका ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वआलिही वसल्लम और बुजुर्गाने दीन के वसीले से अल्लाह पाक की बारगाह में दुआ करें कि मैंने इस नेक अमल का सवाब फुला को बख्शा इसे कुबूल फरमा।
मसअला: किसी भी जायज चीज़ पर फातिहा कराना जायज़ है। जो अवाम में मशहूर में है कि मछली वगैरह पर फातिहा देना जायज़ नहीं गलत है। अलबत्ता फातिहा के लिए सुर्ती वगैरह दीगर बुरी चीज़ें रखना सख्त बुरा है ऐसा न करना चहिए।
मसअला: मुहर्रम में चौक पर फातिहा कराना भी जायज नहीं बल्कि घर में ही इमाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्हु के नाम की नियाज़ कराना चाहिए कि इससे घर में भी बरकत होगी।
मसअला: औरतें खुद मजारात पर न जाएं बल्कि अपने घर के मर्दों से शीरनी वगैरह भेज कर फातिहा करा दें या घर से ही फातिहा करके बुजुर्ग के वसीले से दुआ करें।
नोहा
यानी मरने वाले की तारीफ बयान करके आवाज़ से रोना, कपड़े फाड़ना, चूड़ियां फोड़ना, मुंह नोचना। ये सब काम सख्त जहालत वाले और हराम हैं, इस्लाम ने ऐसे कामों से मना किया है। हदीस शरीफ़ में है प्यारे आका सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही वसल्लम ने फरमाया "जो मुंह पीटे, गिरेबान फाड़े और जाहिलियत का पुकारना पुकारे(यानी नोहा करे) वह हम में से नहीं।
{बुखारी व मुस्लिम}
मसअला: आवाज़ से रोना मना है, कि रोने वालों की आवाज़ की वजह से मुर्दों को तकलीफ होती है, हां आवाज़ न निकले तो इसमें हर्ज नहीं।
सोग (गम)
हदीस शरीफ में है "जिस मुसलमान मर्द या औरत पर कोई मुसीबत आई उसे याद करके *इन्ना लिल्लाही व इन्ना इलैहि राजिऊन* कहे अगरचे मुसीबत को ज़माना गुज़र गया हो तो अल्लाह तआला इस पर नया सवाब अता फरमाता है, और वैसा ही सवाब देता है जैसा उस दिन कि जिस दिन मुसीबत आई थी।"
मालूम हुआ की जब कोई मुसीबत, परेशानी, गम टूटे तो अल्लाह पाक से सब्र की तौफीक मांगनी चाहिए न कि उलूल जुलूल बातें कह कर अपने लिए गुनाह इकठ्ठा करना चाहिए।
• तीन दिन से ज्यादा सोग मनाना जायज़ नहीं मगर औरत शौहर के मरने पर चार महीने दस दिन सोग करे। {कानून ए शरीयत}
*_चलते-चलते_*
*_हयादार और बेहतर मुआशरा कैसे बनाएं?_*
• वालिदैन अपने बच्चों की तरबियत दीनी माहौल में करें, शुरू से ही अच्छे अख़लाक का सबक दिया जाए उसके लिए ये बात बेहद जरूरी है कि खुद वालिदैन भी अच्छे किरदार अपनाएं क्योंकि बच्चा देखकर ज़्यादा सीखता है और वालिदैन का किरदार औलाद पर गहरा असर करता है।
• मां की गोद औलाद की पहली दर्सगाह है इसलिए मां को चाहिए अपनी औलाद को अच्छी बातें सिखाएं फालतू बातों से खुद बचें, और बच्चों को भी बुरे कामों से रोकें।
• टीवी, ड्रामा, फिल्में, सीरियल्स बच्चों के लिए ज़हरे कातिल हैं इसमें बेहयाई की तालीम दी जाती है। इसकी जगह पर बच्चों को इस्लामियात से ताल्लुक रखने वाला मवाद (तकरीर, नात, हम्द, इस्लामी कलिमे, दुआ वगैरह) देखने को दिया जा सकता है।
• क़ुरआन-ए-पाक, सीरत-ए-रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम), सहाबा किराम, अहले बैत व औलिया किराम की ज़िंदगी के बारे में बच्चों को बताया व पढ़ाया जाए।
• बच्चों को अगर मोबाइल दिया जाए तो उस मोबाइल में कोई प्रोटेक्शन एप (Protection App) भी डाउनलोड कर दिया जाए जिससे वो बच्चा फहश चीज़ें देखने से महफ़ूज रह सके और वो यूट्यूब जो सिर्फ बच्चों के लिए खास तौर से तैयार किया गया है(You tube kids) उसमें इंस्टॉल किया जाए।
• जब बच्चा 7 साल का हो जाए तो उसे नमाज़ का हुक्म दिया जाए और लड़कियों को नमाज़ के साथ-साथ हिजाब(पर्दे) की आदत डलवाई जाए ताकि उनके ज़मीर में यह चीज़ अभी से शामिल हो जाए।
• जब बच्चा 10 साल का हो जाए तो उनके बिस्तर अलग कर दिए जाएं और उन्हें रिश्तों का लिहाज़ और महरम व गैर गैर महरम में फर्क बताया जाए।
• 7 साल से 15 साल तक औलाद पर खास निगरानी की जाए उसमें उन्हें बक़दरे ज़रूरत सज़ा भी दी जा सकती है ताकि उनकी तरबियत अच्छे से हो सके।
• 14 साल से 21 साल तक उन्हें अपना दोस्त बनाया जाए ताकि वो अपनी परेशानियां किसी गैर के बजाए आपसे शेयर कर सकें। इस उम्र में लड़कों और लड़कियों का गलत राह इख्तियार करने का इमकान (Possibility) ज़्यादा होता है इसका एक सबब वालिदैन का उनसे कमज़ोर ताल्लुक भी है। वालिदैन अपनी ज़िंदगी में मसरूफ़ रहते हैं औलाद की तरफ़ नज़र नहीं करते और इसका नतीजा शर्मनाक होता है इसलिए ज़रूरी है कि अपनी औलाद को अपना दोस्त बनाया जाए ताकि वह भटकने से बच सकें।
• नौजवान लड़के और लड़कियों के मोबाइल फ़ोन पर पासवर्ड क्यूं कर है ये बात सोचना चाहिए सवाल करना चाहिए। हफ्ते महीने में इत्तेफ़ाकन मोबाइल फ़ोन चेक करना चाहिए कितने सिम कार्ड्स बच्चों के पास हैं? इसकी खबर होनी चाहिए रिचार्ज कहां से आ रहा है? लड़के लड़कियां कॉलेज के नाम पर कहां जा रहे हैं? इन सबकी खबर होनी चाहिए। अब आपको बेदार हो जाना चाहिए।
बराए मेहरबानी कोई कमी देखें तो जरूर इत्तिला करें। अल्लाह तआला मेरी गलतियों को नबी ए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सदके माफ फरमाए। आमीन।
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