अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली रदियल्लाहु तअ़ाला अन्हु चौथे ख़लीफा
नाम - अली
कुन्नियत - अबुल हसन और अबु तुराब
लक़ब - हैदर और मुर्तदा
वालिद - अबू तालिब बिन हाशिम
वालिदा - फ़ातिमा बिन्ते असद
अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली रदियल्लाहु तअ़ाला अन्हु चौथे ख़लीफ़ा और अशरा-ए मुबश्शरा में से हैं। आँख खोलते ही हुज़ूर सल्जलल्लाहु अलैहि वसल्लम के जमाले जहाँ आरा देखने का मौक़ा नसीब हुआ। आग़ोशे रहमत में परवरिश हुई और दस साल की उम्र में इस्लाम कुबूल किया। तारीख़े इस्लाम में आपकी शुजाअ़त और बहादुरी, अद्ल और इन्साफ़ और हुस्ने तदबीर के वाक़िअ़ात रोज़े रौशन की तरह बिल्कुल ज़ाहिर हैं।
हज़रत अली रदि अल्लाहु तअ़ाला अन्हु को बारगाहे रिसालत में एक मुनफ़रिद मक़ाम हासिल था जैसे आप के लिये डूबा हुआ सूरज वापस किया जाना, हिजरत की रात आपको बिस्तर पर सोने के लिये मुन्तख़ब करना, जंगें ख़ैबर के लिये इस्लाम का परचम सुपुर्द करना और जंगंे तबूक के मौक़े पर हुज़ूर सल्लल्लाहु तअ़ाला अलैहि वसल्लम का आपको मदीना शरीफ़ में अपना नाइब और ख़लीफ़ा मुक़र्रर करना।
तिरमिज़ी शरीफ़ में है कि आक़ाए करीम सरकारे दोजहाँ सल्लल्लाहु तअ़ाला अलैहि वसल्लम ने जब मदीना मुनव्वरा में अन्सार और मुहाजिरीन के दर्मियान रिश्ता-ए-मुवाख़ात क़ाइम फ़रमाया तो हज़रत अली रदि अल्लाहु तअ़ाला अन्हु रोते हुये रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तअ़ाला अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाज़िर हुये और अर्ज़ कियाः हुज़ूर मुझे इस ‘अक़्दे मुवाख़ात’ की नेमत से महरूम क्यों रखा गया तो आक़ा ने फ़रमायाः ‘‘तुम दुनिया व आख़िरत दोनो में मेरे भाई हो’।’
एक मौक़े पर हज़रत उमर फ़ारूक़े आज़म रदि अल्लाहु तअ़ाला अन्हु ने फ़रमाया कि ‘‘अगर अली न होते तो उमर हलाक हो जाता।’’
शहादत - 17 रमज़ानुल मुबारक 40 हिजरी को आप फ़ज्र की नमाज़ अदा फ़रमाने के लिये मस्जिदे नबवी जा रहे थे कि इब्ने मुलजिम जो आपकी ताक में लगा हुआ था, उसने अचानक आप पर इस तरह तलवार से वार किया कि तलवार पेशानी को चीरते हुये मग़्ज़ तक पहुँच गई। फिर तीसरी रात आपकी वफ़ात हो गई उस वक़्त आपकी उम्र शरीफ़ 63 साल थी। शहादत 21 रमज़ान को हुई।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें