आला हजरत सुन्नियत के अलमबरदार

मुजद्दीदे दीन-आला हजरत सुन्नियत के अलमबरदारओ-मिल्लत आला हजरत इमाम अहमद रजा के 97वें उर्स-ए-पाक रज़वी के मौके पर आला हजरत की जिंदगी का हर गोसा कुरआन और सुन्नत पर अमल करने व सुन्नियत को जिंदा करने में गुजरा। मुजद्दीदे दीन-ओ-मिल्लत आला हजरत इमाम अहमद रजा से ईमाने कामिल की तारीफ पूछी गई तो आपने फरमाया रसूल को हर बात में सच्चा जानना, रसूल की हक्कानियत को सिदक दिल से मानना ईमान है। अल्लाह और रसूल के महबूबों से मोहब्बत रखें अगरचे दुश्मन हों, अल्लाह और रसूल के मुखालिफों से दुश्मनी रखे अगरचे जिगर के टुकड़े हो। जो कुछ रोके अल्लाह के लिए रोके उसका ईमान कामिल है। यह आला हजरत की तालीम है। जिसने फि़त्ना और फसाद के जमाने में मुसलमानेां को अपना ईमान बचाने में मदद की। आला हजरत सुन्नियत के सबसे बड़े अलमबरदार है। जिनकी तालीम ने 14सौ साल से चले आ रहे इस्लाम को तवानाई बख्शी। जिस जमाने में दुश्मनाने रसूल सर उठा रहे थे अपने उनका सर कूचला अपने तहरीरों तकरीरों, तशनीफों से। मुसलमानों की सच्ची रहनुमाई फरमाई। आला हजरत के इल्म के सब कायल है। हर फनप र इल्मी लियाकत का जीता जागता सबूत आपकी तशनीफे है। कुरआन का तर्जुमा कंजुल ईमान शहद से भी ज्यादा शीरीनी है। आवाम में मकबूल है। फतावा रजविया आपके इल्म का बेहतरीन नमूना है। आपने बचपन से लेकर आखिरी लम्हें तक सुन्नियत को जिंदा रखने में सर्फ किया। अहले सुन्नत वल जमात के आप सच्चे रहनुमा है। एक बार का वाक्या है। आपसे सवाल किया गया कि बुर्जुंगों से मदद तलब करना चाहिए या नहीं, अवलिया अल्लाह को कुछ देने और मुरादें सलााहियत व कुदरत है या नहीं? तो आपने जवाब दिया जायज है। अल्लाह तआला ही मालिकें हकीकी है। जबकि अवलिया बन्दा-ए-खुदा है। इन्हें अल्लाह की बारगाह का वसीला जाने और ऐतेकादे करें कि बेहुकमे खुदा जर्रा नहीं हिल सकता और बेशक सब मुसलमानों का यही अकीदा है। आने --------------------------------

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