स्वामी प्रसाद मौर्य के परिवारवाद की बेल परवान नहीं चढ़ी!
गोरखपुर। कभी बसपा के कद्दावर नेता रहे पडरौना से विधायक स्वामी प्रसाद मौर्य की चर्चा हैं। कभी टिकट को लेकर अपने नए ठोर भाजपा में नाराजगी को लेकर तो कभी सपा तो कभी कांग्रेस में जाने की। लोग दावा करते हैं कि स्वामी प्रसाद उस वर्ग की अगुवाई करते हैं जिसकी नाराजगी 40 से 50 सीटों को प्रभावित कर सकती हैं। हालंकि ऐसा नहीं हैं। पिछला चुनाव इसका अच्छा उदाहरण हैं। जब श्री मौर्य अपनी सीट तो जीत गए लेकिल अपने बेटी-बेटा की सीट न बचा सकें।
अपनी राजनीतिक विरासत को कायम रखने के लिए अपने बेटे व बेटी को चुनावी समर में उतारने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे-बेटी को जनता नकार चुकी हैं। इसका गवाह पिछला विस चुनाव हैं।
उस समय श्री मौर्य के परिवारवाद की बेल परवान नहीं चढ़ पायी। लेकिन इस चुनाव में वह जी जान से जुटे हैं। बतातें चलें कि स्वामी प्रसाद मौर्य अपनी पुरानी राजनीतिक जमीन अपनों के लिए छोड़ पडरौना चले आयें। रायबरेली की ऊंचाहार विस सीट उन्होंने अपने बेटे उत्कृष्ट मौर्य के लिए छोड़ दी। रायबरेली की जनता ने उत्कृष्ट को नकार दिया। सपा के मनोज पांडे ने उत्कृष्ट को हरा दिया। दूसरे नम्बर पर रहे उत्कष्ट को 46958 मत प्राप्त हुए। इसी तरह स्वामी प्रसाद की बेटी संघमित्रा एटा के अलीगंज विस सीट से हार गयी। सपा के रामेश्वर सिंह ने 91141 पाकर जीत गए थे। वहीं संघमित्रा को 65120 मत मिला था। इस बार दिलचस्प होगा कि स्वामी अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा पाते हैं कि नहीं। फिलहाल भाजपा में टिकट को लेकर उनका मान मनौव्वल चल रहा हैं।
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