इस्लाम इल्म, इंसाफ व औरतों के हक का अलमबरदार : मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी




-ग्यारहवीं शरीफ आज  होगी नियाज फातिहा


-पूर्व संध्या पर जामा मस्जिद उर्दू बाजार दर्जी पट्टी व मस्जिदे हसनैन घासीकटरा पर हुआ  जलसा


गोरखपुर। इस्लामी कैलेंडर रविउल आखिर का माह शेख अब्दुल कादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह बड़े पीर साहब की तरफ मंसूब है। खास कर ग्याहरवीं तारीख को शेख अब्दुल कादिर की नजरों-नियाज व फातिहा दिलायी जाती है। सोमवार के शाम से ही शहर में नजरों नियाज का सिलसिला शुरू हो गया।  कई जगह जलसों का आयोजन हुआ। जिसका सिलसिला पूरे माह तक चलता रहेगा। इस बार ग्यारहवीं शरीफ मंगलवार को है। जगह-जगह जश्न-ए-गौसुलवरा कार्यक्रम का आयोजन होगा। घरों में कुरआन ख्वानी व फातिहा ख्वानी होगी। लजीज व्यंजनों की फातिहा दिलायी जायेगी। दोस्त अहबाब के साथ गरीबों को खाना खिलाया जायेगा। जाफरा बाजार, खोखरटोला, खुनीपूर, नखास, तुर्कमानपुर सहित तमाम जगहों पर शीरीनी (प्रसाद) की दुकान सज चुकी है। खरीददारों का तांता लगा हुआ है।


गौसिया कमेटी की जानिब से जामा मस्जिद उत्तरी फाटक दर्जी पट्टी उर्दू बाजार में जश्ने गौसुल आजम का जलसा हुआ। जिसमें इस्लामिक स्कॉलर मऊ के मौलाना मोहम्मद अजहर शम्सी ने कहा कि इस्लाम इंसाफ, इल्म व औरतों के अधिकार का अलमबरदार है। इस्लाम तरक्कीयाफ्ता मजहब है। यूएनओ के चार्टर में इल्म हासिल करने का अधिकार दिया गया है। जबकि इस्लाम में इल्म हासिल करने का कर्तव्य करार दिया गया है जिससे साफ पता चलता है कि इस्लाम तालीम पर ज्यादा तवज्जोह देता है। उन्होंने कहा कि जाहिल और पढ़े लिखे लोगों मे फर्क जिंदा और मुर्दा के समान है।  महिलाओं के अधिकार पर बोलते हुये कहा कि इस्लाम में 1438 साल पहले ही महिलाओं का दर्जा बुलंद किया। उस वक्त के तमाम मुल्कों में महिलाओं की स्थिति दयनीय थी। नबी-ए-पाक ने महिलाओं को शादी की इजाजत का अधिकार, जायदाद में अधिकार प्रदान किया। तालीम का हक दिया। आज हजरत आयशा की वजह से पूरी दुनिया में औरतों को हुकूक मिलें। इस्लाम में दहेज मांगना नाजायज  हैं।  इस सामाजिक बुराई को खत्म करने का हमें प्रण लेना चाहिए। इस्लाम में शादी आसान है लोगों के दिखावें ने इसे मुश्किल बना दिया हैं। जिसकी वजह से गरीब मां-  बाप को अाज अपनी बच्चियों की शादी के लिए मजदूरी करनी पड़ती हैं। भाई को ओवर टाइम करना पड़ता  हैं ताकि लड़की के लिए दहेज इक्ट्ठा कर सकें। इस्लाम तो अमीर-गरीब का भेद मिटाने के लिए आया हैं।। हिन्दुस्तानी कानून में इस पर सजा हैं। इस सामाजिक बुराई को समाज से दूर करें।


भ्रष्टाचार की मुखालफत पर बोलते हुये कहा कि यह नाशूर बन चुका है। इस्लाम इसकी इजाजत नहीं देता। हराम माल से मना किया गया हैं। अमानतदारी इस्लाम का श्रृंगार है। इंसाफ पर कहा कि हक पर जो भी हो उसके साथ अदल व इंसाफ करने का सबक इस्लाम से ही मिलता है। उन्होंने कहा कि अमानतदारी, वादा पूरा करना, झूठ से बचने, दूसरें के हुकूक का ख्याल, मां बाप की खिदमत, उस्ताद की फरमाबरदारी का पैगाम दिया।


धार्मिक विद्वान मुफ्ती अहमद रजा ने कहा कि कहा नबी पाक और औलिया अल्लाह के दुनिया में आने का मकसद यही था कि इंसान, इंसानों जैसी जिदंगी गुजारने का कानून पा जायें। मोहब्बत, उल्फत और आपस में भाईचारगी का माहौल बाकी रखकर एक खुदा की इबादत कर उसका करीबी बन जाए, ताकि इबादतों की वजह से दुनिया भी कामयाब हो जाए और आखिरत में भी। अब तक जितने अहम वाक्यात इस दुनिया में हुए है उसमें कुछ का ताल्लुक ग्याहरवीं तारीख से है। मसलन हजरत नूह अलैहिस्सलाम की कश्ती जूदी पहाड़ से लगी तो दिन दसवीं और रात ग्याहरवीं की थी । हजरत युसूफ अलैहिस्सलाम जब अपने वालिदैन से बिछड़ने के बाद दोबारा मिले तो दिन दसवीं का था और रात ग्यारहवीं की थी। लिहाजां शेख अब्दुल कादीर जीलानी रहमतुल्लाह ने ग्यारहवीं को तरजीह दी। जब तक आपकी जिदंगी रही आप गरीबों और जरूरतमंदों को ग्यारहवीं को नवाजा करते थे। इसी लिए आज सब लोग ग्यारहवीं मनातें हैं। शेख के नाम से नजर व नियाज पेश कर अपनी अकीदत जाहिर करते है। आपकी अहम तालीम थी कि इंसान को हर हाल में सच बोलना चाहिए। और झूट से बचान चाहिए।  आपका पैगाम हैं कि मानवता की सेवा कर अल्लाह को राजी किया जा सकता है। इंसान को हर हाल में खुदा का शुक्र अदा करना चाहिए।  नात शरीफ रईस अनवर, मो. शादाब, मो. दारैन ने पढ़ी। पढ़ी। संचालन मौलाना मकसूद आलम व अध्यक्षता कारी हिदायतुल्लाह ने की। इस मौके पर कमेटी के मोहम्मद रफीउल्लाह, हाफिज मोहम्मद कलाम, वलीउल्लाह, वसीउलल्ला, सैफ सहित तमाम लोग मौजूद रहे।

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ग्यारहवीं शरीफ की पूर्व संध्या पर मस्जिदें हसनैन घासीकटरा में जश्न-ए-गौसिया का आयोजन हुआ। जिसमें हाफिज रज्जब अली ने कहा कि आज हम जिस इस्लाम के छत्र-छाया में जी रहें है उस इस्लाम को हम तक या दुनिया के कोने कोने तक पहुंचाने को सेहरा जिस गिरोह के सर है उस गिरोह का नाम ’औलिया अल्लाह’ है। उन्हीं  महान और शक्तिशाली व्यक्तियों में  अल-सय्यद मोहियुद्दीन अबू मुहम्मद अब्दुल कादिर अल-जीलानी अल-हसनी वल-हुसैनी है। आपका जन्म  470 हिजरी, नाइफ गांव, जीलान जिला, इलम प्रान्त, तबरेस्तान, पर्शिया देश में हुआ था। आप ने  कादरिया सूफी परंपरा की शुरूआत की। आपके पिता का नाम हजरत अबू सालेह मूसा अल-हसनी व माता का नाम उम्मुल खैर फातिमा था। अपने इस्लाम के पैगाम को दूर तक फैलाया।।

नात शरीफ मुस्तफा हुसैन कादरी ने पढ़ी। इस मौके पर सैफुर्रहमान, कामरान कमाल कादरी, सफी खान, मो. रिजवान, ओसामा कमाल, गुड्डू वारसी, सद्दाम, मो. ओसामा, वासिक खान, मो. अजीम बरकाती, हन्नान आदि मौजूद रहे।

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