शहर में आज भी पतंगबाजी के दीवाने
सैयद फरहान अहमद
गोरखपुर। आसमान में उड़ती रंग बिरंगी पतंगे सभी को आकर्षित करती हैं। आसमां में जिस तरह परवाज करते हुए परिंदे अच्छे लगते हैं उसी तरह पतंगे आसमान के नीचे विस्तार का श्रृंगार करता हैं। खाली समय के साथी पतंग को खुले आसमान में उड़ाने का शौक बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सिर चढ़कर बोलता हैं। शायद ही ऐसा कोई हो जिसने पतंग न उड़ायी हो। शहर में पतंग उड़ाने और बाजी लगाने का जबरदस्त क्रेज हैं। शनिवार को मकर संक्रान्ति के मौके पर जबरदस्त पतंगे उड़ेंगी। आईये जानते है शहर में कौन-कौन सी पतंगे मिलती हैं। कैसे होती हैं पतंगबाजी। कहां से आती हैं पतंग, मांझा व सद्दी।
-पतंगबाजी के दीवाने कम नहीं
शहर के खोखरटोला, रहमतनगर, इस्माइलपुर, पिपरापुर, जाफारा बाजार, गाजी रौजा , नसीराबाद, खुनीपुर, बक्शीपुर, गोरखनाथ, हुमायूंपुर आदि मोहल्लों में पतंगबाजी आज भी होती हैं। बधी का प्रचलन हैं। जिसमें दो व्यक्तियों के बीच शर्त लगती हैं । लम्बी दूरी पर पतंग लड़ाई जाती हैं। इसमें बाजी लगती हैं। जिसकी पतंग कट जाती हैं उसे पैसा चुकाना पड़ता हैं। कम से कम सौ रुपए की बाजी लगती हैं। पतंग बाज दस हजार रुपए तक की भी बाजा लगाते हैं। उक्त मोहल्लों में साल भर पतंगबाजी चलती रहती हैं। गर्मी का मौसम जैसे-जैसे करीब आयेगा पतंगबाजी बढ़ जायेगी। शाम के वक्त ज्यादा पतंगे उड़ायीं जाती हैं। मंगलवार को पतंगबाजी अन्य दिनों के मुकाबले और भी ज्यादा होती हैं। कुछ शौकिया भी बाजी लगती हैं। कुछ खाने खिलाने वगैरह पर ।
-त्यौहारों में खूब उड़ती पतंगे
अन्य दिनों के मुकाबले मकर संक्रान्ति, नागपंचमी, बसंतपंचमी, रक्षाबंधन, पर पतंगें झूम कर बिकती हैं और उड़ायी जाती हैं।
- यहां मिलती है पतंगें व मांझा
शहर में इस्माईलपुर, जाफरा बाजार, पिपरापुर, घोषीपुर में ज्यादा पतंगे बिकती हैं।
-पतंग उड़ाना भी कला
चरखी, मांझा व धागों के बगैर पतंगे अधूरी हैं। पतंग की कन्नी बांधना भी कला हैं। हवा कम हो उसमें पतंग उड़ाना, हवा तेज हो उसमें पतंग संभालना कला हैं। साथ ही मांझों से हाथ को बचाना भी कला हैं।
-पंतहवा व सिरफुटा पतंग ऑन डिमांड
इस्माईलपुर में हाजी पतंग वाले की दुकान इतनी मशहूर है कि लोगों को कोई चिट्ठी सामान मंगाना होता हैं तो लोकेशन में हाजी पतंग वाले का नाम जरुर दर्ज करता हैं। इनके खानदान के मुबारक खां व महबूब खां ने बताया कि पहले के मुकाबले पतंगबाजी कम हुई हैं। उन्होंने बताया कि कागज की पतंगों में पंतहवा (बड़ी पतंग) की मांग ज्यादा रहती हैं। इसके अलावा सिरफुटवा, सिरफुटे में पट्टीदार, तिरंगा, अधरंगी, चौपड़ा, दो बाज, स्टार, चांद तारा, हीरो-हीरोइन की तस्वीर वाली, कार्टून, लाल, हरी, काली, नीली पतंग की डिमांड भी रहती हैं। प्लास्टिक पतंग भी बिकती हैं।
-यहां से आती हैं पतंगें, चरखी, मांझा व सद्दी
मुबारक खां ने बताया कि पतंग माझों के लिए मशहूर शहर बरेली व लखनऊ से पतंग मंगायी जाती हैं। फैयाज पतंग सेंटर चलाने वाले फैयाज ने बताया कि इलाहाबाद, बनारस, बरेली, लखनऊ से पतंग व मांझा मंगवाया जाता हैं। सालभर ठीक-ठाक बिक्री होती हैं। त्यौहार में बिक्री बढ़ जाती हैं। प्लास्टिक पतंग अहमदाबाद से मंगवायी जाती हैं। पतंग 2 से 10 रुपए तक की मिल जाती हैं। टाइगर मांझा100 से 150 रुपए तक मिलता हैं। टाटा मांझा की भी डिमांड रहती हैं। सद्दी दो तरह की मिलती हैं। एक हजारगजी दूसरी पंसव्वा। इसके अलावा चरखी की कई वैराइटी हैं। लकड़ी की चरखी लोकल स्तर पर 5 से 20 रुपए तक मिल जाती हैं इसके अलावा प्लास्टिक की चरखी की डिमांड ज्यादा रहती हैं। अल्मयुनियिम की भी चरखी का प्रचलन हैं।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि भागमभाग जिंदगी में लोग व्यस्त जरुर हैं लेकिन पतंगों के प्रति दिलचस्पी कम नहीं हुई हैं।
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