गोरखपुर : 71 साल के शाकिर अली खान आज भी पूरा दिन ठेला चलाकर रखते हैं रमजान के तीसों रोजे

-104 साल के गुलाम नबी की इबादत के आगे उम्र ने भी टेके घुटने
*बचपन से रख रहे तीसों रोजा, पढ़ते पूरी तरावीह
*सात हज किया
*तहज्जुद की नमाज भी नहीं छुटती
*चौथी पीढ़ी भी करती हैं इन पर फख्र
सैयद फरहान अहमद
गोरखपुर। कांपते हाथ, ढलती उम्र खुदा की इबादत के लक्ष्य को पाने के लिए बाधक नहीं होती। जरूरत है बस जुनून की। यह जुनून हैं ऊंचवां स्थित आइडियल मैरेज हाउस में रहने वाले 104 वर्षीय गुलाम नबी खां में। उनकी इबादत के आगे उम्र ने भी घुटने टेक दिए हैं। सात बार हज कर चुके हैं। पांचों वक्त की नमाज बिना सहारे मस्जिद में जाकर अदा करते हैं। बचपन से ही तीसों रोजा रख रहे हैं जिसका सिलसिला अब भी जारी हैं। इस बार भी रोजा रखने में कोई कोताही नहीं कर रहे हैं। पूरी तरावीह की नमाज मस्जिद में आकर अदा करते हैं। इसके अलावा रोजाना रात में 2 बजे उठकर तहज्जुद की नमाज अदा करते हैं। चाश्त, इसराक, सलातुल अव्वाबीन, सलातुल तस्बीह की नमाज भी पढ़ते हैं वह भी पूरे साल। रोजाना कुरआन शरीफ की तिलावत करते हैं। हर वक्त हाथों में तस्बीह व जुबां पर रब का नाम रहता हैं। वर्ष 2005 में बिना व्हीलचेयर के हज के तमाम अरकान अदा कर चुके हैं। वर्ष 2006 में अंतिम हज किया। इनके सात बच्चे हैं 4 लड़के और 4 लड़कियां। जिसमें एक लड़के व एक लड़की का इंतेकाल हो चुका हैं। इनके पुत्र हाजी मोहम्मद अब्दुल कुद्दुस, हाजी उबैद अहमद, हाजी हबीब अहमद भी तीसों रोजा रखने के साथ नमाज के पाबंद हैं। इनके परिवार में ज्यादातर लोग हज कर चुके हैं। इस वक्त इनकी चौथी पीढ़ी चल रही हैं। 17 लोगों का भरा पूरा परिवार हैं। दो छोटे बच्चों को छोड़कर पूरा परिवार रोजा से रह रहा हैं। पांचों वक्त की नमाज व तरावीह किसी की नहीं छूटती। इनके पोते मौलाना हाफिज अयाज अहमद गाजी रौजा मस्जिद में तरावीह की नमाज पढ़ा रहे हैं। गुलाम नबी के सारे पोते इनके साथ नमाज पढ़ने आते हैं।
गुलाम नबी खां का कहना है कि खुदा की इबादत करने के लिए कोई उम्र नहीं होती। रमजान का महीना इबादत के लिए आता है। भले ही उन्हें कई बीमारियों घेर रखा है, लेकिन उनकी हिम्मत इबादत के लक्ष्य को पाने के लिए बाधक नहीं हैं।
गुलाम नबी उन तमाम इबादत गुजार नौजवानों व बुजुर्गों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं ।

वहीं उन लोगों को जो रोजा नहीं रहते हैं नमाजें नहीं पढ़ते, तिलावत नहीं करते इनसे प्रेरणा लेकर इबादत करें ताकि दुनिया भी बने और आखिरत भी। सिकरीगंज में शिक्षक के तौर पर कार्य कर चुके गुलाम नबी मुस्लिम समाज को नई आशा देते हैं।

तिवारीपुर की रहने वाली 75 साल की ताहेरा खातून आठ साल की उम्र से रोजा रख रही हैं। बीमारी और ढ़लती उम्र में भी ताहेरा का जज्बा कम नहीं हुआ। खुदा की इबादत बहुत तल्लीनता से करती हैं। पांचों वक्त नमाज, तरावीह, नफील नमाज व कुरआन शरीफ की तिलावत  करती हैं । हज भी कर चुकी हैं। नाती पोतों से भरा पूरा परिवार है।
गाजी रौजा के मोहम्मद हनीफ की उम्र भले ही 61 साल हो। मगर इबादत ने उनके जज्बातों को कमजोर नहीं होने दिया।

गोरखपुर में ऐसे कई बुजुर्ग हैं जिनकी उम्र 70 से ऊपर है। इबादत के आगे उनकी उम्र ने भी घुटने टेक दिए हैं। रमजान के महीनें में वो सिर्फ रोजा ही नहीं रखते बल्कि पांचों वक्त की नमाज और कुरआन शरीफ की तिलावत भी करते हैं। तरावीह की नमाज भी पढ़ते हैं। तुर्कमानपुर में नूरी मस्जिद के पास कई ऐसे बुजुर्ग भी हैं जिनकी उम्र 90 साल हैं उसके बावजूद पांचों वक्त की नमाज पढ़ते हैं और रमजान के तीसों रोजा रखते हैं। 75 साल के फतेह छोटी उम्र से तीसो रोजा रख रहे हैं। पांचों वक्त की नमाज प्रतिदिन  मस्जिद में आकर अदा करते हैं। तरावीह की नमाज भी पूरी तन्मयता के साथ पढ़ते हैं।
यहीं रहने वाले नबी अहमद 82 साल के हैं लेकिन इनकी इबादत में उम्र कभी बाधक नहीं बनी। वहीं 71 साल के शाकिर अली खान तीसों रोजा रख कर पूरे दिन ठेला चलाते हैं और पांच वक्त की नमाज भी पढ़ते हैं। तरावीह की भी नमाज अदा करते हैं। बचपन से रोजा रख रहे हैं। कुंतल-कुंतल की बोरियां पीठ पर लादते है। सही मायने में यह लोग देते हैं समाज को प्रेरणा।





टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

*गोरखपुर में डोमिनगढ़ सल्तनत थी जिसे राजा चंद्र सेन ने नेस्तोनाबूद किया*

*गोरखपुर में शहीदों और वलियों के मजार बेशुमार*

जकात व फित्रा अलर्ट जरुर जानें : साढे़ सात तोला सोना पर ₹ 6418, साढ़े बावन तोला चांदी पर ₹ 616 जकात, सदका-ए-फित्र ₹ 40