'जंग-ए-बद्र के 313 सहाबा' की मदद को फरिश्ते जमीन पर उतरे : मुफ्ती अख्तर हुसैन
- 'उम्मुल मोमिनीन' को याद किया गया, हुआ कुल शरीफ
-17 रमजानुल को हुई 'जंग-ए-बद्र' व ''उम्मुल मोमिनीन' का विसाल
गोरखपुर। 17 रमजानुल मुबारक सन् 2 हिजरी को जंग-ए-बद्र हक (सत्य) और बातिल (असत्य) के बीच हुई। जिसमें 313 सहाबा-ए-किराम की मदद के लिए फरिश्तें जमीन पर उतरे। जंग-ए-बद्र में इस्लाम की फतह ने इस्लामी हुकूमत को अरब की एक अजीम कुव्वत (ताकत) बना दिया। इस्लामी इतिहास की सबसे पहली जंग मुसलमानों ने खुद के बचाव (वॉर ऑफ डिफेंस) में लड़ी। मुसलमानों की तादाद 313 थीं। वहीं बातिल कुव्वतों का लश्कर मुसलमानों से तीन गुना से ज्यादा था।
यह बातें मदरसा दारुल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार के मुफ्ती अख्तर हुसैन ने कहीं। वह नार्मल स्थित दरगाह हजरत मुबारक खां शहीद मस्जिद में मंगलवार को 'जंग-ए-बद्र के 313 सहाबा' (नबी के साथी) व नबी-ए-पाक की शरीके हयात (पत्नी) उम्मुल मोमिनीन हजरत आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा के यौमे विसाल ( वफात) की याद में आयोजित कार्यक्रम को बतौर अध्यक्षता करते हुए संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि इस जंग में कुल 14 सहाबा-ए-किराम शहीद हुए। इसके मुकाबले में कुफ्फार (असत्य ताकत) के 70 आदमी मारे गए। जिनमें से 36 हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु के हाथों जहन्नम पहुंचे।
विशिष्ट वक्ता मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी ने कहा कि इस्लाम की पहली जंग 17 रमजानुल मुबारक सन् 2 हिजरी मुताबिक 17 मार्च 624 ईसवीं को हुई। जंग-ए-बद्र में मुसलमानों की तादाद कुल 313 थीं। किसी के पास लड़ने के लिए पूरे हथियार भी न थे। पूरे लश्कर के पास सिर्फ 70 ऊंट और दो घोड़े थे। जिन पर सहाबा बारी-बारी सवारी करते थें। मुसलमानों का हौसला बुलंद था। बद्र में मुसलमान कुफ्फार के मुकाबले में एक तिहाई से भी कम थे और कुफ्फार के पास असलहा भी मुसलमानों से ज्यादा था। इसके बावजूद भी नुसरतें इलाही की बदौलत कामयाबी ने मुसलमानों के कदम चूमे।
उन्होंने कहा कि कुरआन शरीफ में हैं कि "और यकीनन अल्लाह ने तुम लोगों की मदद फरमायीं बद्र में, जबकि तुम लोग कमजोर और बे सरोशामां थे पस तुम लोग अल्लाह से डरते रहो ताकि तुम शुक्रगुजार हो जाओ"
संचालन करते हुए मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही ने कहा कि हजरत आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा नबी-ए-पाक की शरीके हयात (पत्नी) व इस्लाम के पहले खलीफा हजरत अबुबक्र रजियल्लाहु अन्हु की पुत्री हैं। आप बहुत बड़ी विद्वान थीं। आप नबी-ए-पाक से बहुत सी हदीस रिवायत करने वाली हैं। नबी-ए-पाक की निजी जिंदगी की तर्जुमान हजरत आयशा हैं। आपने 17 रमजानुल मुबारक को इस फानी दुनिया को अलविदा कहा।
उन्होंने कहा कि उम्मुल मोमिनीन हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा तमाम मुसलमानों की मां हैं। इल्म का चमकता हुआ आफताब हैं। उनकी जिंदगी दुनिया की तमाम औरतों के लिए नमूना-ए-हयात है। हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा की सीरत पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि तकवा परेहजगारी में आपका कोई सानी नहीं हैं। कुरआन शरीफ में आपकी पाकीजगी रब बयान करता हैं।
कार्यक्रम की शुरुआत तिलावते कलाम पाक से हुई। अंत में कुल शरीफ व फातिहा खानी हुई। सलातो सलाम पढ़ कौमों मिल्लत की भलाई के लिए दुआ मांगी गयी और सहाबा-ए-किराम के नक्शे कदम पर चलने का अहद लिया गया। इस मौके पर दरगाह के मुतवल्ली इकरार अहमद, सैयद मेहताब अनवर, आकिब, सेराज, कैफ, अहमद, शराफत, रमजान, अशरफ रजा, मोहम्मद अजीम, मोहम्मद तारिक वारसी आदि बड़ी तादाद में लोग मौजूद रहे।।
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रहमतनगर में हुआ सामूहिक रोजा इफ्तार
गोरखपुर। मोहल्ला रहमतनगर जामा मस्जिद के पास नौजवान कमेटी के तत्वाधान में मंगलवार को सामूहिक रोजा इफ्तार हुआ। जिसमें बड़ी तादाद में लोगों ने शिरकत की। इस मौके पर सरफराज, अली गजनफर शाह, आसिफ, गुड्डू खान, इफ्तेखार, अली मुजफ्फर शाह, जफर, आजाद, अली नुसरत, अब्दुल्लाह, इमरान, राजू, असलम, अनवर, फैसल आदि मौजूद रहे।
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9 साल के अलमीन ने रखा पहला रोजा
गोरखपुर। जाफरा बाजार निवासी अहमद हसन व सरवत हफीज के 9 वर्षीय पुत्र अलमीन हसन ने पहला रोजा रख कर खूब खुदा की इबादत की। परिवारजानों ने शाम को रोजा कुशाई की पार्टी रखी। जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए और अलमीन को दुआ देकर तोहफा दिया।
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