गोरखपुर : मुगलकाल से चली आ रही सेवई खाने-खिलाने की परंपरा


सैयद फरहान अहमद

गोरखपुर। मुगल शासन में ईद पर सेवई बनाने का रिवाज था। यह रिवाज आज भी पूरे दिल से माना जाता है। इसे मुकम्मल तौर पर कायम रखा गया है। ईद पर सेवई मुख्य मिठाई मानी जाती है। शहर में सेवई का कारोबार बड़े पैमाने पर किया जाता है। यहीं से सेवई बन कर गोरखपुर-बस्ती मंडल के कई जिलों में सप्लाई होती है। शहर में कई छोटी-छोटी सेवई  फैक्ट्रियां हैं। नखास चौक व उर्दू बाजार पर सेवई की स्थायी दुकानें हैं।

सेवई दस्तरखान की जीनत है। ईद सेवई के बगैर अधूरी है। हिन्दुस्तान में तो ईद सेवईयों वाली या मीठी ईद के नाम से मशहूर है। माह-ए-रमजान के मौके पर सेवईयों की दुकानें बाजार में गुलजार है। सहरी व इफ्तार के वक्त भी सेवईयां चाव से खायी जा रही है। रोजे में खजूर की जहां मांग हो रही है। वहीं मीठे के तौर पर सेवईयां भी इफ्तार व सहरी के वक्त रोजेदार इस्तेमाल कर रहे  हैं। सेवईयों का बाजार पूरी तरह से सज चुका है। जहां मोटी, बारीक, लच्छेदार के साथ कई वेरायटी की सेवईयां मौजूद हैं, जो क्वालिटी और अपने नाम के मुताबिक डिमांड में हैं। इस वक्त बाजार में 10 से ज्यादा वेरायटी की सेवईयां मौजूद हैं, इसमें देशी घी की फेनी भी लोगों के दिलों में घर बना चुकी है।

नखास स्थित सेवई विक्रेता बादशाह की मानें तो इस वक्त सबसे ज्यादा डिमांड में बनारसी किमामी सेवई है, जोकि हाथों- हाथ बिक जा रही है। जामा मस्जिद उर्दू बाजार स्थित दुकानदार मोहम्मद कैस, आरिफ कहते हैं कि दूध के साथ खाई जाने वाली सेवई की भी जबदस्त डिमांड है, यह सिर्फ अभी ही नहीं बल्कि पूरे रमजान से जारी है। जामा मस्जिद उर्दू बाजार के पास दुकान चलाने वाले सेवई कारोबारी रईस अहमद, वसीउल्लाह, शादाब की मानें तो ज्यादातर रोजेदार सुबह सहरी के और शाम के इफ्तार के वक्त इनका उपयोग कर रहे हैं। इस वक्त शरबती, किमामी, लच्छेदार, दूध वाली, फेनी, भुनी किमामी, भुनी, देशी घी की फेनी, बनारसी लच्छा और बनारसी किमामी सेवई मार्केट में मौजूद है।

तुर्कमानपुर के तौहीद अहमद ने बताया कि रमजान, ईद व बकरीद के मौके पर सेवई की मांग ज्यादा रहती है। बनारसी सेवई हाथों-हाथ खरीदी जाती है। उन्होंने बताया कि जीरो नम्बर छत्ता की किमामी सेवई बनती है। जो बनने पर बेहद लजीज होती है। मैदे से बनी सेवईयों में  महीन सेवई खूब पसंद की जाती है। मीडियम सेवई के भी क्या कहने। बनारसी सेवईयां लाजवाब हैं। इस तरह छत्ता, भुनी सेवई,  लच्छा,  दूध फेनी आदि प्रकार की सेवईयां भी खूब पसंद की जा रही है।


-ऐसे तैयार होती सेवईयां

फैय्याज अहमद बतातें हैं कि सेवई बनाना एक कला है। सेवई बनाने में साफ-सफाई का खास ख्याल रखा जाता है। मैदा इसका कच्चा माल है।  पहले मैदे को बारिक चलनी से छाना लिया जाता है। कूड़ा निकाल लिया जाता है। उसके बाद मैदे में पानी मिलाया जाता है और आटोमेटिक मशीन के जरिये सेवईयां तैयार की जाती है। सेवई को धूप में सुखाया  जाता है। धूप में सूखने के बाद बाजार में बिक्रती के लिए भेजा जाता है।



-बाजार में सजीं हैं सेवईयों की दुकान

सेवई का बाजार गुलजार है।  महानगर में फुटकर सेवईयां की दुकान भी अपने शबाब पर है। बाजार में तरह-तरह की सेवईयां मौजूद है। जो लोगों के आकषर्ण के केंद्र बनी हुई। बाहर से भी व आस-पास के क्षेत्रों से भी लोग खरीददारी करने यहां पर आ रहे है। तोहफे के रूप में भी रिश्तेदारों व पास-पड़ोस में भी सेवईयां भेजी जाती है। गरीब मिशकीनों में भी सेवई दी जाती है। ईद में सेवई का अपना महत्व होता है। रमजान में पूरे एक माह सेवईयों की बिक्री होती है। महानगर में विभिन्न क्षेत्रों में सेवई की बिक्री होती है। नखास चौक, घंटाघर, जाफरा बाजार, गोरखनाथ, रुसतमपुर आदि स्थानों पर सेवई की ब्रिकी हो रही है। ईद और बकरीद के मौके पर सेवईयों के विक्रेता लोगों की सुविधा के लिए जगह- जगह दुकान लगाते हैं।




-सेवई कारोबार का हब बनता जा रहा गोरखपुर

तौहीद अहमद बतातें हैं कि गोरखपुर धीरे-धीरे सेवई कारोबार का हब बनता जा रहा है। महानगर में सेवई का कारोबार कुटीर उद्योग का रुप ले चुका है। वजह साफ है कि इस रोजागार में घर की महिलाएं व बच्चो के सहयोग मिल जाता है।  ईद के मौके भी लोगों को वक्ती रोजगार मिल जाता है। जिससे ठीक-ठाक आमदनी हो जाती है।  महानगर में माधोपुर, तुर्कमानपुर, गोरखनाथ, रसूलपुर, मिर्जापुर, हुमायूंपुर  आदि क्षेत्रों में सेवईयों का कारोबार जोर-शोर से हो रहा है।


-जमाना बदला लेकिन सेवईयों का जायका वही

रईस अहमद बताते हैं कि सेवई कई जमाने से गोरखपुर में बन रही है। जमाने के हिसाब से तरीके भले ही बदल गये लेकिन जायका उसी तरह आज भी बरकरार है। सेवईयां पहले हाथों से बनाई जाती थी। सेवईयां चावल के आटे से तैयार होती थीं। जैसे-जैसे वक्त गुजरता गया मशीनों के जरिये सेवईयां तैयार की जाने लगी। पहले सेवई को तैयार करने में दिक्कत होती मशक्कत उठानी पड़ती थी। मैदा भी कोटे पर मिलता था। इतने आसानी से मैदा नहीं मिलता था। एक मशीन को चलाने के लिए कोल्हू बैल की तरह चार-चार आदमी बल्ली के सहारे घूम कर सेवईयां तैयार करते थे। मैदे को गर्म पानी के साथ मिक्स किया जाता था। उसके बाद मशीन के अन्दर डाला जाता है। मशीन में जो डाई होती वह भी लोहे के बड़े चादर की बनी होती थी। टाट बिछा कर धूप में सुखाया जाता था। तब जाकर सेवईयां तैयार होती थी।


- ईद में ऐसे बनती सेवईयां

गौसिया सुम्बुल बतातीं हैं कि सेवईयों से कई तरह के पकवान बनाये जा सकते है। सेवई कई तरह से तैयार की जाती है। सूखी या कीमामी, गीली सेवईयां, दूध वाली सेवईयां आदि। सेवई को धीमी आच पर  गोल्डेन कलर होने तक भुनी जाती है। जितना ज्यादा भुना जायेगा। जायके में लुत्फ उतना आयेगा। इसके बाद सेवईयां में आवश्यकता अनुसार थोड़ी घी डालकर कुछ देर भुना जाता है। सेवई जितनी होगी उतनी ही चीनी पड़ेगी। उतना ही दूध डालना होगा। चीनी का शीरा बनाकर भुनी सेवई को उसमें डाल दें। दो-चार छोटी ईलाइची लौंग भी डाल दें । सेवईयों में खोवा, मेवा आवश्यकता अनुसार मिलाया जाता है। इस तरह मेहमानों के लिए ईद की सेवईयां तैयार । बस दस्तरख्वान पर लगाईयें मेहमानों को दिल खोलकर खिलाईए ।


सेवईयों के प्रकार और उनके मूल्य

किमामी 70-80

भुनी 150-200

लच्छा  80-100

दूध वाली 100- 110

फेनी 140- 150

भुनी किमामी 90- 100

बनारसी लच्छा 70- 150

बनारसी किमामी 120- 180

बनारसी 100-150

देशी घी की फेनी 260- 300

सादी सेवई 40-50

सुत फेनी 150-200

छत्ता 100-150
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गंगा-जमुनी तहजीब की अनूठी मिसाल हैं रोजा इफ्तार


बैंक रोड स्थित फर्नीचर हाउस में गुरुवार को रोजा इफ्तार का आयोजन हुआ। जिसमें हिंदू-मुस्लिम समुदाय ने मिलकर रोजा इफ्तार किया। आयोजनकर्ता हरिकेश कुमार ने कहा ऐसे आयोजनों से आपसी सद्भाव एवं भाईचारा बढ़ता है। रमजान के पवित्र माह में रोजा इफ्तार कराना एक पुनीत कार्य है। यह हमारे  गंगा-जमुनी तहजीब की अनूठी मिसाल है।


इस दौरान नेहाल अशरफ, मोहम्मद आजम, आयूष कुमार, शीला देवी, कंचन गुप्ता,  प्रीति वर्मा, नूर, मनोहर लाल, ब्रहमानंद गुप्ता, पीडी गुप्ता, जैनुल, रामलखन, अशोक, मुर्तुजा, मदन लाल, बब्लू,  शंकर, दीपक,  मोहम्मद अख्तर, मोहम्मद वसीम,आफताब चिश्ती, हरि पांडेय, रुपेश, कल्लू आदि लोग उपस्थित थे।

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