गोरखपुर - 48 साल बाद लोकसभा उपचुनाव में कड़ा इम्तहान
-महंत अवैद्यनाथ ने चुनाव जीत कर भुगता था खामियाजा
सैयद फरहान अहमद
गोरखपुर। 48 साल बाद एक बार फिर गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव होने जा रहा है। वर्ष 1970 का चुनाव और वर्ष 2018 का चुनाव विशेष परिस्थितियों में लड़ा गया। तब भी मठ की प्रतिष्ठा दांव पर थी अब भी मठ की प्रतिष्ठा दांव पर है। तब महंत दिग्विजयनाथ के उत्तराधिकारी महंत अवैद्यनाथ ने चुनाव लड़ा था अब महंत योगी आदित्यनाथ की पार्टी का प्रत्याशी मैदान में है। तब सहानुभूति की लहर में महंत अवैद्यनाथ जीते थे अब मठ के महंत से सीएम योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा का प्रश्न है कि जीत मिलती है या हार। तब मुकाबला एनसीजे से था, महंत अवैद्यनाथ निर्दल लड़े थे अब बीजेपी का सपा गठबंधन से कड़ा मुकाबला है। तब सब पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ रही थी अब बीजेपी व सपा गठबंधन आमने-सामने है। तब महंत अवैद्यनाथ निर्दल चुनाव जीते तो उसके एक साल बाद महंत अवैद्यनाथ कांग्रेस से चुनाव हार गये और यही नहीं उनके द्वारा मानीराम विधानसभा में खड़ा किया गया प्रत्याशी भी चुनाव हार गया। महंत अवैद्यनाथ ने जिस प्रत्याशी को हिन्दू महासभा से उतारा था उनका नाम टीएन सिंह था। वर्ष 1971 में मानीराम में उपचुनाव हुआ तो उसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह (टीएन सिंह) प्रत्याशी थे लेकिन कांग्रेस के उम्मीदवार रामकृष्ण द्विवेदी से हार गए। हालांकि इसके पहले वे चंदौसी संसदीय क्षेत्र से लोकसभा के पहले और दूसरे चुनाव में सांसद निर्वाचित हो चुके थे। इस दौरान उन्होंने समाजवाद के प्रवर्तक डा.राममनोहर लोहिया को भी शिकस्त दी थी। यह महज छह माह के लिए मुख्यमंत्री थे। जनता में यह मैसेज गया कि कि बाबा ने घोड़ा (हिन्दू महासभा का चुनाव चिन्ह था घोड़ा सवार) बेच दिया। टीएन सिंह को खड़ा करके महंत अवैद्यनाथ ने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली। वर्ष 1971 के लोकसभा चुनाव में महंत अवैद्यनाथ कांग्रेस से हार गए। हालांकि 1989, 1991 व 1996 में वह लोकसभा चुनाव जीत गए। उसके बाद उनकी विरासत योगी आदित्यनाथ ने संभाल ली। उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद यह सीट एक बार फिर खाली हुई है लेकिन 48 साल बाद यह उपचुनाव एक बार फिर चुनौती लेकर आया है। इसके दूरगामी परिणाम होंगे। यह चुनाव सीएम योगी आदित्यनाथ व बीजेपी का इकबाल बन चुका है। इसलिए पिछले 11 माह से योगी आदित्यनाथ गोरखपुर में ताबड़तोड़ सभायें कर रहे हैं जिसका सिलसिला अभी भी जारी है। अबकी तो सपा ने कांग्रेस छोड़ सभी पार्टियों को एक मंच पर ला दिया है। जातिगत समीकरण भी सपा गठबंधन के फेवर में है। बसपा का समर्थन सबसे बड़ा प्लस प्वांइट है। पूरे देश की निगाहें इस चुनाव पर है। अगला लोकसभा चुनाव इसी चुनाव के परिणाम पर परवान चढ़ेगा यानी सियासत की दशा व दिशा तय करेगा।
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