गोरखपुर - शिया समुदाय की तादाद मुख्तसर लेकिन तरक्की की दास्तां बड़ी

स्पेशल स्टोरी 
-हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु की यौम-ए-पैदाइश पर खास
SYED FARHAN AHMAD QADRI











गोरखपुर। आज हम आपको पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के दामाद व खलीफा हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु की यौम-ए-पैदाइश के मौके पर शहर के एक ऐसे समुदाय से मिला रहे है जो हजरत अली को अपना पहला इमाम मानते है। जिनकी तादाद बहुत मुख्तसर (थोड़ी) है लेकिन समुदाय के लोगों के काम व तरक्की की दास्तां बड़ी है। अल्पसंख्यकों में भी अल्पसंख्यक है लेकिन बहुसंख्यक से किसी तरह कम नहीं। मुहर्रम में जोर-शोर से मातम करने वाले समुदाय के तौर पर मशहूर है लेकिन कम लोग जानते है कि इस समुदाय ने शिक्षा, खेल, साहित्य,  चिकित्सा, वकालत, बालीवुड सहित तमाम क्षेत्रों में कामयाबी का झंडा गाड़ा है। सैयद मोदी, सैयद हसनैन हैदर, सैयद हुसैन हैदर, सैयद आबिद हैदर, अनवर अब्बास रिज़वी, हसन अब्बास रिज़वी, सैयद मोजि़जा हुसैन रिज़वी, बादशाह हुसैन रिज़वी, डा. एसआईबी  रिज़वी, इतरत हुसैन, कायमराज, सैयद अली जमाल नासिर, सैयद बाकर हैदर, मो. मेंहदी एडवोकेट, सुल्तान अहमद रिज़वी आदि इस समुदाय की खास पहचान हैं। केंद्र व राज्य सरकार के कई मंत्री इसी समुदाय से है। जी हां हम बात कर रहे शिया समुदाय की। शिया मामलों के जानकार मुनव्वर रिज़वी के मुताबिक शिया समुदाय की तादाद जिले में केवल ढ़ाई से तीन हजार के करीब है। शहर के बसंतपुर, शेखपुर, इलाहीबाग, बहादुर शाह जफ़र कालोनी, जाफ़रा बाजार, इस्लामचक, रहमतनगर, चक्शा हुसैन, मियां बाजार, अस्करगंज, खोखरटोला आदि जगहों पर करीब 200 परिवार निवास करते है। वहीं देहात क्षेत्र पीपीगंज, सरदारनगर, पिपराइच आदि जगहों पर भी शिया परिवार निवास करते है। शिया समुदाय का गीता प्रेस रोड स्थित शेखपुर में इमामबाड़ा आगा साहेबन प्रमुख इबादत स्थल है। इसका पुराना नाम इमामबाड़ा रानी अशरफुन्निसा खानम के नाम पर था। यहां चंद बची पुरानी दीवारों से रानी अशरफुन्निसा की शानौ शौकत का अंदाजा लगाया जा सकता है। इमामबाड़े के अंदर ही मस्जिद, कब्रिस्तान व इमामबाड़ा है। जिसकी नवतामीर हो चुकी है। यहीं सैयद मोदी की आखिरी आरामगाह है। इसके अलावा जाफरा बाजार में सैयद अली का इमामबाड़ा, मियां बाजार कोतवाली रोड पर नब्बन साहब का इमामबाड़ा, रेती रोड पर इमामबाड़ा जहीर साहब मरहूम का इमामबाड़ा भी मशहूर है। जहीर साहब मरहूम के इमामबाड़े में करीब चार फीट ऊंची व ढ़ाई फीट चौड़ी तीन चांदी की ताजियां भी है। शिया मामलों के जानकार सुल्तान हैदर रिज़वी बताते है कि शिया समुदाय साल के सवा दौ महीना यानी इस्लामी माह मुहर्रम की 1 तारीख से 8 रबीउल अव्वल तक कोई खुशी का या नया काम नहीं करता। शादी ब्याह छोड़िए नया कपड़ा तक नहीं बनवाता लेकिल शिया समुदाय के लिए सवा दो महीना तरबियत के होते है। इसमें बिना नागा मजलिसों का दौर चलता है। जिंदगी जीने का सलीका, मजहबी तालीम दी जाती है। उन्होंने बताया कि वैसे तो शिया समुदाय का कोई मदरसा या मजहबी दर्सगाह शहर में नहीं है लेकिल यह मजलिसे मदरसों व दर्सगाहों की कमी पूरी कर देती है। यह मजलिसे पुरुषों व महिलाओं के लिए अलग-अलग चलती है। इमामबाड़ा आगा साहेबान में शुक्रवार को छोड़कर प्रतिदिन मगरिब की नमाज के बाद मजहबी तालीम दी जाती है। मुनव्वर रिज़वी कहते है कि शिया समुदाय का बच्चा-बच्चा अपने मजहब की हर बुनियादी बाते जानता है। हर घर में कुरआन शरीफ के अलावा नहजुल ब्लागा, तौहफतुल आवाम किताब मिलेगी जो काफी पढ़ी जाती व अमल में लायी जाती है। वहीं हर अरबी माह के पहले गुरूवार को महिलाओं की मजलिस लगती है। जिसमें महिलाओं को मजहबी बातें बतायी जाती है। यह मजलिसे ही शिया समुदाय की दर्सगाहें है। मजलिस इमामबाड़ों व घरों में होती है जिसकी सूचना जुमा की नमाज के दौरान और विभिन्न माध्यमों से दी जाती है। शिया समुदाय में दीनी व दुनियावी शिक्षा का स्तर बहुत ऊंचा है। शहर के तकरीबन हर प्रशासनिक बड़े विभाग में शिया समुदाय का शख्स जरुर मिल जायेगा। शिया समुदाय द्वारा मुहर्रम माह की 4, 5, 6, 8, 10, चेहल्लुम, रमजान माह की 19, 20, 21 व जिलहिज्जा की 29वीं तारीख को मातम किया जाता है। शिया समुदाय के यह संगठन  अहम है अंजुमन हैदरी हल्लौर, हल्लौर एसोसिएशन व शिया फेडरेशन इसके अलावा अंजुमन हुसैनिया संगठन द्वारा मजलिस, जुलूस, मातम, यौमे पैदाइश व वफात के अन्तर्गत तमाम कार्यक्रम किए जाते है।


--शहर में शिया समुदाय का ऐतिहासिक सफर 

शिया समुदाय के गोरखपुर में आने का कोई स्पष्ट प्रमाण  नहीं है। शिया मामलों के जानकार मुनव्वर रिज़वी बताते है कि अवध के नवाब आसफ-उद्दौला के जमाने से शिया शहर में आबाद है। अवध के चौथे नवाब आसफ-उद्दौला सन् 1775 ई. में अवध के नवाब बनें। नवाब आसफ-उद्दौला शिकार के बेहद शौकीन थे। रिवायत के मुताबिक 1784 ई में सर्दी के मौसम में अवध के नवाब शिकार खेलने गोरखपुर आये। उस वक्त अवध की राजधानी फैजाबाद हुआ करती थी। अवध के शासक आसफ-उद्दौला ने सन् 1796 ई. में करीब 16 गांव, दस हजार रूपया नगद हजरत सैयद रौशन अली शाह अलैहिर्रहमां को दिया। मुनव्वर रिज़वी के मुताबिक शिया हल्लौर कस्बा सिद्धार्थनगर, आजमगढ़, बिहार, गाजीपुर, जौनपुर आदि जगहों से आकर यहां बसें। सुल्तान हैदर रिज़वी के मुताबिक हल्लौर कस्बे के रहने वालों के यहां करीब 40-50 परिवार आबाद है। भारत में जहां-जहां हल्लौर कस्बे के लोग आबाद है वहां-वहां अंजुमन हैदरी हल्लौर, हल्लौर एसोसिएशन की ब्रांच कायम है। गोरखपुर में पांचवीं मुहर्रम का मातमी जुलूस इसी एसोसिएशन की जानिब से खूनीपुर सैयद मोजि़जा हुसैन रिज़वी के दौलतखाने से रात में निकलता है। पत्रकार एसएम नूरूद्दीन ने अपने एक लेख में लिखते है कि ऐतिहासिक पुरानी जेल या मोती जेल के नाम का उपयोग सन् 1857 के बाद सरकारी जेलखाने के रूप में  किया जाता था। यह राजा बसंत का महल था। 1857 की क्रांति के समय इस जेल में मिर्जा आगा इब्राहीम बेग जेलर के पद पर थे। विद्रोह के समय उन्होंने जेल के सभी कैदियों को आज़ाद कर दिया था और वह स्वयं भूमिगत हो गए थे। इन्हीं की पुत्री थी रानी अशरफुन्निसा खानम, जिनके नाम पर मुहल्ला शेखपुर में एक इमामबाड़ा बना हुआ है। इनके पति बंदे अली बेग के पिता को इसी दौर में क्रांतिकारी होने के कारण फांसी दी गई थी। मिर्जा आगा इब्राहीम बेग के पूर्वज मिर्जा हसन अली बेग सन् 1739 में नादिर शाह के हिन्दुस्तान पर आक्रमण के समय ईरान से दिल्ली आए थे।


-शहर के शिया समुदाय की मशहूर हस्तियां

गोरखपुर की धरती को सैयद मोदी ने गौरवान्वित किया। मोदी सन् 1981-88 तक राष्ट्रीय बैडमिन्टन चैम्पियन रहे। आस्ट्रेलियन इंटरनेशनल 1983, 84 में स्वर्ण पदक जीता। वहीं 1982 काॅमनवेल्थ गेम्स पुरूष एकल वर्ग में जीत हासिल कर स्वर्ण जीता। इसी साल एशियन गेम्स में कांस्य पद हासिल किया। 1981 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया। एक बार का वाकिया है कि कि 1971 में जूनियर लेबल चैम्पियशिप में इनका मुकाबला बड़े भाई आबिद से हुआ। कड़ा मुकाबला था। ऐसा लग रहा था कि बड़े भाई हार जायेंगे। उन्होंने सैयद मोदी से इशारा किया। तो सैयद मोदी वह मैच हार गये। लेकिन उन्होंने वहां सभी का दिल जीत लिया। सैयद मोदी का जन्म 31 दिसम्बर 1962 को चौरीचौरा से लगभग 5 किमी दूर सरदार नगर में एक शिया परिवार में हुआ। उनके पिता सैयद मीर हसन जैदी सरदार नगर की चीनी मिल में काम करते थे। अपने आठ भाई बहनों में सबसे छोटे थे। मोदी के बड़े भाई ने मोदी के बैडमिंटन खेलने के शौक का देखा तो स्पोर्ट किया। बैडमिंटन कोचिंग करवायी। स्कूल में गलती से उनका नाम मेहंदी की जगह मोदी लिख दिया जिसे बाद में भी दुरूसत नहीं किया गया। उनके बड़े भाईयों ने बैडमिंटन ट्रेनिंग में उन्हें आर्थिक रूप से स्पोर्ट किया। मोदी 1976 में 14 साल की उम्र में जूनियर राष्ट्रीय बैडमिन्टन चैम्पियन बने। उसी साल पीके भन्डारिम से ट्रेनिंग लेना शुरू किया। 1980 में जैसे ही वह 18 वर्ष के हुए उन्होंने बैडमिन्टन की राष्ट्रीय चैम्पियनशिप जीत ली। इससे प्रभावित होकर खेल मंत्रालय ने उन्हें भारतीय रेल में वेलफेयर आफिसर पद पर तैनाती दे दी। उनकी तैनाती गोरखपुर में हुई। कुछ दिन बाद उनके कोच के निर्देश पर लखनऊ में उनका तबादला हो गया। उन्होंने लगातार आठ सालों तक बैडमिंटन पर अपनी बादशाहत कायम रखी। 1981 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया। कम उम्र में ही सैयद मोदी की लखनऊ में  हत्या कर दी गयी। सैयद मोदी के नाम पर रेलवे स्टेडियम का नाम सैयद मोदी रेलवे स्टेडियम रखा गया। सैयद मोदी के बड़े भाई सैयद हसनैन हैदर बॉलीबाल व फुटबाल के खिलाड़ी थे। सैयद हसनैन  हैदर 'प्यारे' बैडमिन्टन के राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी थे।  सैयद आबिद हैदर एनई रेलवे में आफिस सुपरिटेंडन्ट के पद पर कार्य करते हुए रिटायर्ड हुए। इन्होंने बैडमिन्टन की जूनियर नेशनल चैम्पियनशिप, स्टेट चैंपियनशिप जीतीं। यूपी बैडमिन्टन टीम के कप्तान भी रहे। सैयद मोदी के एक और बड़े भाई खोखरटोला न्यू कॉलोनी निवासी सैयद बाकर भी बैडमिन्टन के नामी खिलाड़ी है। कई चैम्पियनशिप जीत चुके है। एनईआर की तरफ से काफी दमदार प्रदर्शन किया है। इस समय रेलवे में सीनियर सेक्शन आफिसर के पद पर कार्यरत है।

-प्रसिद्ध कथाकार बादशाह हुसैन रिज़वी का पिछले साल निधन हो गया। बादशाह हुसैन रिज़वी की कहानियाँ नयी कहानी आंदोलन से प्रभावित हैं। 'नई कहानियाँ' पत्रिका में छपी उनकी कहानी 'खोखली आवाजें' काफी चर्चित हुई थी। 1958 में पूर्वोत्तर रेलवे के गोरखपुर स्थित लेखा विभाग में उन्होंने कार्यभार ग्रहण किया था। तब से उनका नाता गोरखपुर से बना रहा। इस कहानीकार ने डुमरियागंज तहसील (जनपद सिद्धार्थनगर) के हल्लौर कस्बे से जीवन की प्रारंभिक रफ्तार शुरू की। वर्ष 1995 में रेलवे से रिटायर होने के बाद वह ज़ाफरा बाजार क्षेत्र में अपना मकान बना कर रहने लगे थे। बादशाह हुसैन रिजवी की लोकप्रिय रचनाएं उनके कहानी संग्रह 'टूटता हुआ भय', 'पीड़ा गनेसिया की', 'चार मेहराबों वाली दालान' काफी चर्चा में रहे। उनका उपन्यास 'मैं मोहाजिर नहीं हूँ' पाठकों में लोकप्रिय हुआ था। 

-कहानीकार अनवर अब्बास रिज़वी ने 1980 से आल इंडिया रेडियो पर बाल सभा कार्यकम से लेखनी का सफर शुरू किया। उस समय रेडियो ही मनोरंजन का एक मात्र साधन था। बाल सभा कार्यक्रम रविवार को सुबह 9:30 से 10:30 तक प्रसारित होता था जिसमें वह बच्चों को अपनी लिखी कहानियां स्वयं सुनाया करते थे। इसके अलावा इन्होंने गोरखपुर दूरदर्शन, इलाहाबाद और मऊ दूरदर्शन के लिए अनेकों नाटक लिखे। 1986-87 में रंगमंच की संस्था कला भारती की स्थापना की। जिसके बैनर तले "एक कदम और" "दिल की दुकान" और "संगतराश" जैसे मशहूर नाटकों का मंचन किया गया था। इसके अलावा "नखास" "उर्दू बाजार" पर फीचर लिखा। जिसका प्रसारण अकाशवाणी केंद्र गोरखपुर से हुआ। इमामबाड़े पर डाक्यूमेंट्री भी लिखी। जिसका प्रसारण दूरदर्शन गोरखपुर से हुआ था।
वतर्मान समय में इनके द्वारा लिखी और पूर्व में रेडियो पर प्रसारित बच्चो की कहानियों का संग्रह "अनमोल मोती" प्रकाशाधीन है।
- हसन अब्बास रिजवी ऑल इंडिया रेडियो से प्रोग्राम अफसर के पद से रिटायर हुए रेडियो पर बहुत पहले कार्यक्रम आता था 'झरोखा' उसमें भोला का किरदार निभाते थे और वह उस झरोखे के राइटर भी वही थे। यह कार्यक्रम बहुत पॉपुलर था।
-सिद्ध नाटककार व रंगकर्मी सुल्तान अहमद रिज़वी वर्तमान में लखनऊ में रहते हैं। उन्होंने चार दशक गोरखपुर में बिताया है। रिज़वी रंगकर्म के क्षेत्र में पूरी हिंदी पट्टी में एक जाना-पहचाना नाम हैं। एक समय था जब वह गोरखपुर के रंगमंच की जान थे। गोरखपुर में 80 व 90 का दशक उनके नाटकों व रंगकर्म से भरा रहा। अब तक वह 87 नाटक लिख चुके हैं जिनमें से 84 का मंचन करा चुके हैं। 1971 में वह गोरखपुर में सिंचाई विभाग में बतौर स्टेनोग्राफर आए थे। 2005 में सेवानिवृत्त हुए और 2006 में लखनऊ चले गए।

इसके अलावा डा. एसआईबी रिज़वी पूर्वांचल की चिकित्सा में मशहूर नाम थे। बीआरडी मेडिकल कालेज में काफी समय तक सेवाएं दी। शहर के कई बड़े डाक्टर उनके शिष्य है। उनके परिवार के डा. अब्बास रिज़वी व डा. आफरीन रिज़वी की चिकित्सकीय सेवाएं जारी है। मियां बाजार फाटक पर क्लीनिक है। इसी तरह पत्रकारिता जगत में मरहूम सैयद मोज़िजा हुसैन रिज़वी ने दैनिक जागरण आगरा में जीएम  के पद पर 1989-1998 तक कार्य किया। सन् 2006 में उनका देहांत हो गया। इस समय उनके पुत्र सैयद आसिफ  इकबाल रिज़वी दैनिक जागरण गोरखपुर में कार्यरत है। शहर के मशहूर वकील मो. मेंहदी  भी नामी शख्सियत है। इन्होंने वकालत व सियासत में काफी समय दिया और नाम कमाया।  इनके पुत्रों ने मुंबई में मेंहदी शिपिंग कंपनी खोली है। इनके परिवार के मो. जहीर मेंहदी, फातिमा जहीर मेंहदी, अली गदीर मेंहदी 2014 में आयी फिल्म 'चल भाग' के निर्माता रहे है। इसके अलावा बसंतपुर के रहने वाले अभिनेता कायमराज ने 'मेरा वचन गंगा की कसम' सहित अन्य फिल्मों आदि में अभिनय किया। इनके सगे बहनोई अलमदार हुसैन उर्फ नारंग व उनके भाई इतरत हुसैन उर्फ विनोद कुमार ने 'मेरे हुजूर' व 'मेरा वचन गंगा की कसम' आदि फिल्में बनायी। इमामबाड़ा आगा साहेबान के निगरां आगा अली मोहम्मद, पूर्वोत्तर रेलवे के पूर्व डिवीजनल आडिट आफिसर सैयद अली जमाल नासिर, कमिश्नरी बार एसोसिएशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष एडवोकेट शबाहत हुसैन रिज़वी, टैक्स बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एडवोकेट एजाज रिज़वी, सबीहुल हसन आज़मी, शिक्षक तवक्कुल, जमीर हसन, डा. नफीस रिज़वी, मीडिया प्रभारी अंजुमन हुसैनियां सैयद सिब्ते हसन आदि भी अपने क्षेत्र के मशहूर नाम है।

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