गोरखपुर - 95 साल के गुलाम नबी है आजादी के पहले व बाद की सियासत के गवाह



-तीन बार पानी तो चार बार हवाई जहाज से कर चुके है हज का सफर
-राष्ट्रपति के हाथों शिक्षक पुरस्कार पा चुके है
-चौथी पीढ़ी को देख रहे परवान चढ़ते
सैयद फरहान अहमद
गोरखपुर। कांपते हाथ, ढ़लती उम्र मतदान करने में बाधक नहीं होती। जरूरत है बस जुनून की। गुलाम नबी तमाम  नौजवान व बुजुर्ग मतदाताओं  के लिए प्रेरणा स्रोत है। ऊंचवां स्थित आइडियल मैरेज हाउस निवासी 95 वर्षीय हाजी गुलाम नबी खां 16 लोकसभा चुनाव व एक लोकसभा उपचुनाव के गवाह है और सालों से मतदान में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते चले आ रहे है। इनका 17 लोगों का भरा पूरा परिवार हैं। जिसमें करीब 13 लोग मतदाता है। सब एक साथ मतदान करने मतदान केंद्र पर जाते है। गुलाम नबी न सिर्फ चुनाव के बल्कि आजादी से पहले व आजादी के बाद की हालात, द्वितीय विश्व युद्ध की परिस्थितयों को अपने स्मरण में समेटे हुए है। इमरजेंसी भी देखी है। इन्होंने प्रत्येक लोकसभा चुनाव, विधानसभा चुनाव, विधान परिषद चुनाव व नगर निगम चुनाव में बिना नागा मतदान किया और बेहतर शहरी का फर्ज अदा किया। इन्होंने गोरखनाथ मंदिर के महंत दिग्विजयनाथ, अवैद्यनाथ, योगी आदित्यनाथ का सियासी सफर भी देखा है। कांग्रेस, बीजेपी, सपा, बसपा, जनता दल, हिन्दू महासभा, भारतीय लोकदल सहित तमाम पार्टियों का सियासी सफर भी देखा है। सियासत का हर उतार-चढ़ाव इनकी नजरों से गुजरा है। इस लोकसभा उपचुनाव के प्रति उत्साहित है और सपरिवार मतदान करेंगे। हालांकि सियासत के बदलते रूख से चिंतित नजर आते है और कहते है सियासत का मिजाज बदल गया है। अब सियासत पर मजहब, जात-पात हावी हो रहा है। जनता का विकास तो मुद्दा रह ही नहीं गया है। अब नफरत की सियासत होती है। पहले का चुनाव उम्मीदवार की योग्यता पर लड़ा जाता था आज उम्मीदवार की योग्यता से ज्यादा पार्टी देखी जाती है। उम्मीदवार की जाति बिरादरी देखी जाती है। अब कहा कोई उम्मीदवार का किरदार देखता है। सियासत पर धनबल, जातिबल हावी हो रहा है। यह देश के विकास के लिए ठीक नहीं है।

गुलाम नबी खां की कसौटी पर जो उम्मीदवार खरा उतरता है उसे ही वह वोट करते है। इस उम्र में इनका यह जज्बा काबिले तारीफ है। मूलत: सिकरीगंज के रहने वाले गुलाम नबी सात बार हज भी कर चुके है। इन्होंने 3 बार हज का सफर पानी के जहाज से व 4 बार हवाई जहाज से तय किया। वर्ष 2005 में बिना व्हीलचेयर के हज के तमाम अरकान अदा कर चुके हैं। वर्ष 2006 में अंतिम हज किया।
इन्होंने अपनी उम्र शिक्षा की अलख जगाने में गुजारी। सिकरीगंज के मदरसा अरबिया शमसुल उलूम हाता नवाब मान्यता प्राप्त मदरसे में शिक्षण कार्य किया और 1 सितम्बर 1987 को राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह  के हाथों उत्कृष्ट शिक्षक का पुरस्कार भी प्राप्त किया। इस वक्त इनकी चौथी पीढ़ी चल रही हैं। इनके पोते मौलाना हाफिज अयाज अहमद ने बताया कि दादा बहुत इबादत गुजार है। इल्म व अमल में हमेशा तल्लीन रहते है। सियासी व समाजी सोच भी उम्दा है। इनसे काफी कुछ सीखने को मिलता है।

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