*"गोरखपुर - जानिए 155 साल पहले शहर के काजी कौन थे"*




गोरखपुर। 155 साल पहले शहर के काजी हजरत गुलाम अशरफ शाह अलैहिर्रहमां थे। मुहल्ला काजीपुर खुर्द (छोटे काजीपुर) मसायख और बुजुर्गानेदीन का कदीम मुहल्ला है। यहीं आप भी रहते थे। खानवादा-ए-चिश्तिया के एक मशहूर बुजुर्ग शेखे तरीकत हजरत गुलाम अशरफ शाह अलैहिर्रहमां हुए हैं। जिनका ताल्लुक एक तालीम याफ्ता, शरीफ व रईस घराने से था। आपके जद्दे अमजद (पूर्वज) बल्ख के रहने वाले थे। हजरत गुलाम अशरफ काजी के ओहदे पर थे। अपने दौर के साहिबे हाल बुजुर्गों में खास मकाम रखते थे। आपकी तालीमात और तरबियत से सिलसिला-ए-चिश्तिया आलिया को बड़ा फरोग हुआ। शहर गोरखपुर के बहुत से लोगो की इस्लाह हुई और बातिनी दौलत से लोग मालामाल हो गये। मुरीदों की तादाद का अंदाजा आप खुद कर सकते है जबकि खुलफा की तादाद बहुत थी। हजरत जहूर अली शाह, हजरत महर अली शाह और हजरत सपह अली शाह जलीलुलकद्र सज्जादानशीनों में शुमार किए जाते हैं।  हजरत अहमद अली शाह गोरखपुरी ने अपनी तसनीफ महबूबुत तारीख में आपका जिक्र किया है जिसके चंद अशआर पेशे खिदमत हैं -

*"थे काजीपुरा में भी एक मौलवी, के थे मौलवी सुरवीं मानवीं, गुलाम अशरफ उनका भी था इस्मे पाक, उन्हें हाल और काल से था तपाक, बुजुर्ग उनके मुलखजी थे आली नज़ाद, रईसों में थे वो भी वाला नेहाद, रज़ा उनका है तकियागाही कदीम, कजा के थे मसनद पर वो मुस्तकीम"*

*"छोटे काजीपुर के इन बुजुर्गों को भी जानिए"*

काजीपुर खुर्द (छोटे काजीपुर) के रहने वाले हजरत सैयद अब्दुल्लाह शाह अलैहिर्रहमां व उनके लड़के हजरत सैयद अब्दुर्रज्ज़ाक शाह अलैहिर्रहमां बहुत बड़े बुजुर्ग हुए हैं। जिनकी मजार पहाड़पुर मस्जिद में है। उन्हीं की तीसरी व चौथीं पीढ़ी में भी मसायख हुए हैं।
*हजरत सैयद हाफिज अब्दुल बारी शाह अलैहिर्रहमां* - आपके वालिद का नाम हजरत सैयद अब्दुर्रज्जाक शाह अलैहिर्रहमां है। आप मुहल्ला काजीपुर खुर्द (छोटे काजीपुर) में रहते थे। आपको अपने वालिद से खिलाफत और सज्जादाशीनी हासिल थी। सिलसिले को पूर्वी उप्र और बिहार में अमूमन और कलकत्ता में खुशूसन फरोग पहुंचाया। आपका शुमार शहर के मुत्तकी और परहेजगारों में होता है। आपका सबसे बड़ा कारनामा यह था कि आपने कुरआन की तालीम को आम किया। चूंकि खुद भी हाफिज थे इसलिए बहुतों को हाफिज बना दिया। मुहल्ले वालों पर आपका फैजे आम था। आपके मुरीद भी बेशुमार थे और खुलफा में आलिम भी थे। हजरत सैयद हाफिज अब्दुल बारी शाह के एक इश्तेहार से पता चलता है कि कि आपके यहां कुरआन पाक का एक कल्मी नुस्खा मौजूद था। इसे हजरत मुल्ला मोहम्मद बाकर अलैहिर्रहमां ने खुद अपने हाथ से लिखा था। हजरत हाफिज अब्दुल बारी का विसाल 7 शाबान 1380 हिजरी में हुआ। मजार हजरत मुबारक खां के आवामी कब्रिस्तान में है।

*हजरत सैयद अब्दुल काफी शाह अलैहिर्रहमां* - आप काजीपुर खुर्द (छोटे काजीपुर) के रहने वाले थे। आपके वालिद का नाम हजरत सैयद हाफिज अब्दुल बारी शाह था। आप बहुत इबादतगुजार व मिलनसार थे। अकसर कलकत्ता जाया करते थे और ज्यादातर वहीं रहते थे  आखिरी अय्याम में जाना बंद हो गया था और शहर में ही घूमते रहते थे और अपने खास मिलने जुलने वालों के मकानों पर भी तशरीफ ले जाया करते थे। आपको अपने वालिद से इजाजत व खिलाफत हासिल थीं। शहर गोरखपुर में तो कम मगर कलकत्ता और बंगाल के दीगर इलाकों  में आपके बहुत मुरीद थे। आखिर तक अपने वालिद हजरत अब्दुल बारी शाह व दादा हजरत अब्दुर्रज्जाक शाह की करामतों का जिक्र जुबान पर रहा। आपका मजार दिल्ली में बस्ती निजामुद्दीन औलिया में है। आपके खानदान की पांचवीं पीढ़ी मोहल्ला छोटे काजीपुर में आबाद है।

*(स्रोत - मसायख-ए-गोरखपुर लेखक सूफी वहीदुल हसन पेज नं. 40, 41, 42, 43 व 44)*

*ऐतिहासिक तथ्य*
मियां साहब इमामबाड़ा के पहले सज्जादानशीन मरहूम सैयद अहमद अली शाह अपनी किताब 'महबूबुत तारीख' में लिखते हैं कि उनके समय में नगर में 52 मुहल्ले एवं चक थे। 36 की तादाद में तालाब थे। कई बाग-बगीचे भी थे। सन् 1860-63 में गोरखपुर नगर के मुहल्ला काजीपुर कलां पर रईस असगर अली काबिज थे। काजीपुर कलां में मुगल शासन में न्यायिक व्यवस्था के लिए बड़े काजी की नियुक्ति थी। इसी कारण यह मुहल्ला काजीपुर कलां और बड़े काजीपुर के नाम से मशहूर था। मुहल्ला काजीपुर खुर्द और छोटे काजीपुर में भी न्यायिक व्यवस्था संचालित थी। मुगल काल में मुफ्तीपुर मुहल्ले से फतवा देने के लिए मुफ्ती नियुक्त थे। इसी वजह से यह मुहल्ला मुफ्तीपुर के नाम से मशहूर हो गया। शहरनामा किताब में लिखा है कि मुगलशासन काल में न्याय हेतु 2 काजी, 1 मुफ्ती, जमीनी बंदोबस्त के लिए 1 दीवान, चुंगी वसूली के लिए 1 बख्शी, सरकारी कोष रखने के लिए 1 करोड़ी नियुक्त होते थे। उक्त लोगों के नाम की वजह से जहां वह रहते थे काजीपुर, मुफ्तीपुर, दीवान बाजार व बख्शीपुर मुहल्ला मशहूर हुआ।

*फोटो - मजार चारयारी शाह की*
मिर्जापुर में हजरत चारयारी शाह अलैहिर्रहमां (उर्स जिलकादा की 27, 28 व 29 तारीख) की मजार है। यह बहुत कदीमी मजार है। पांच वर्ष पूर्व इसकी नवतमीर हुई है। वर्तमान मजार बेहद शानदार व खूूबसूरत बनायीं गई हैं। *

*इस वक्त शहर में छह दारुल इफ्ता हैं जहां से 'फतवा' दिया जाता है*

इस समय शहर में छह जगहों से 'फतवा' दिया जाता है। मदरसा अंजुमन इस्लामियां खूनीपुर में कायम दारुल इफ्ता से मुफ्ती वलीउल्लाह, मदरसा दारुल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार से मुफ्ती अख्तर हुसैन अजहर मन्नानी, जामिया रजविया मेराजुल उलूम चिलमापुर से मुफ्ती खुर्शीद अहमद मिस्बाही, शम्सी दारुल इफ्ता तुर्कमानपुर से मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी, दारुल इफ्ता जामा मस्जिद उर्दू बाजार से मुफ्ती अब्दुल्लाह गाजीपुरी मजाहिरी, दारुल इफ्ता वल इरशाद वजीराबाद कालोनी से मुफ्ती मो. मतीउर्रहमान कासमी फतवा देते है। 'फतवा' पूछने के लिए कोई शुल्क नहीं लगता है। मदरसा अंजुमन इस्लामियां खूनीपुर में कायम 'दारुल इफ्ता' सबसे पुराना है।  उक्त जगहों से निकलने वाला 'फतवा' मुसलमानों में कद्र की निगाह से देखा जाता है। मुसलमान मजहबी मामलात में इन 'फतवों' पर अमल भी करते हैं। मजहबी मामलात के अलावा निकाह, तलाक, संपत्ति से जुड़े मामले में 'फतवा' अधिक पूछा जाता है। शहर में केवल एक महिला मुफ्तिया रसूलपुर की रहने वाली गाजिया खानम है। इनके पास महिलाएं काफी तादाद में मसला पूछने आती हैं। यह मीलाद की महफिलों के जरिए भी मुस्लिम महिलाओं की रहनुमाई करती हैं।
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-इन किताबों की सहायता से दिया जाता है 'फतवा'

मुफ्ती मो. अजहर शम्सी ने बताया कि फिक्ह हनफी में फतावा आलमगीरी, फतावा काजी खां, फतावा शामी, दुर्रे मुख्तार, फतहुल कदीर, फतावा बजाजिया, हिदाया, बेदाया नेहाया, बदा-ए-उशसनाए, अल बहरुर्रायक, अल जौहरतुन नय्यरा, फतावा रजविया शरीफ, बहारे शरीयत, फतावा अमजदिया, आदि की सहायता से फतवा दिया जाता है। यह किताबें अरबी में होती हैं। कुछ किताबें उर्दू में भी होती हैं। उक्त फतावों की किताबों  से फिक्ह हनफी मजहब के मसले हल किए जाते हैं।
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-इन मसलों में दिया जाता है 'फतवा'
शम्सी दारुल इफ्ता तुर्कमानपुर में वर्ष 2015 से दर्जनों लिखित व एक हजार से ज्यादा मौखिक 'फतवा' दे चुके मुफ्ती मो. अजहर शम्सी ने मजहबी मामलात, मोबाइल,  निकाह, तलाक, संपत्ति बटवांरा आदि पर 'फतवा' दिया है। उन्होंने विभिन्न मसलों पर एक दर्जन किताबें लिखीं व एक लाइब्रेरी भी कायम की। उन्होंने बताया कि बताया कि 'फतवा' देने का हुक्म कुरआन व हदीस से साबित है। मुसलमानों के मजहबी मामलात (नमाज, रोजा, हज, जकात आदि) व पर्सनल लॉ (निकाह, मेहर, तलाक, हलाला, भरण पोषण, विरासत, सम्पत्ति बटवांरा, उत्तराधिकार, वसीयत, वक्फ आदि) के मामलात में 'फतवा' दिया जाता है। 'फतवा' केवल मुफ्ती (पीएचडी के समकक्ष) ही दे सकता है। मुफ्ती की पढ़ाई दो साल की होती है। मुफ्ती की पढ़ाई बड़े मदरसों में ही होती है।
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-'फतवा' का अर्थ शरीयत का हुक्म बताना
जामिया रजविया मेराजुल उलूम चिलमापुर में कायम दारुल इफ्ता में मुफ्ती खुर्शीद अहमद मिस्बाही अमजदी काफी समय से फतवा दे रहे हैं। फतवा देते हुए इन्हें 20 साल हो चुका है। हर विषय पर 500 के करीब फतवा दे चुके हैं। पिछले साल सुन्नी बरेलवी मुसलमानों ने इन्हें अपना काजी-ए-गोरखपुर चुना था। दो किताबें भी लिख चुके हैं। वह बताते हैं कि 'फतवा' अरबी शब्द है इसका अर्थ होता है शरीयत का हुक्म बताना। 'फतवा' दो प्रकार का होता है। पहला 'फतवा तकरीरी' यानी कोई शख्स मुहं जबानी मुफ्ती से किसी मसले में शरीयत के हुक्म को पता करता है। दूसरा 'फतवा तहरारी' होता है यानी लिखित। 'फतवा तहरीरी' लेने के लिए एक कागज पर सवाल लिखकर दारुल इफ्ता में मुफ्ती के सामने पेश किया जाता है। मुफ्ती सवाल का जवाब कुरआन व हदीस की रोशनी में उसी सवाल वाले कागज पर लिखकर दे देता है। जवाब के अंत में दारुल इफ्ता की मोहर व मुफ्ती की दस्तखत होती है। मुफ्ती दिए गए फतवे की एक कापी अपने पास जरुर रखता है। 'फतवा' नि:शुल्क दिया जाता है।
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-'फतवा' जबरदस्ती नहीं मनवाया जा सकता
मदरसा दारुल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार में दारुल इफ्ता की जिम्मेदारी मुफ्ती अख्तर हुसैन अजहर मन्नानी की है। वह वर्ष 2005 से अब तक हर विषय पर करीब 500 'फतवा' दे चुके हैं। इन्हें सुन्नी बरेलवी मुसलमानों ने पिछले साल मुफ्ती-ए-गोरखपुर चुना था। उन्होंने बताया कि 'फतवा' शरीयत (कुरआन व हदीस में दिया गया कानून) का हुक्म होता है जो सवाल करने वाले को बता दिया जाता है। एक प्रकार की सलाह है कि शरीयत में ऐसा करना उचित है या अनुचित। मानना या न मानना सवाल करने वाले के विवेक पर है। लोकतांत्रिक देश में 'फतवा' जबरदस्ती  मनवाया नहीं जा सकता है। 'फतवा' कुरआन व हदीस की रोशनी में किए गए सवाल का जवाब व रहनुमाई है। 'फतवा' मांगने पर कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। 'फतवा' बेहतरीन समाज के निर्माण का एक महत्वपूर्ण साधन है। यह व्यवस्था सदियों से चली आ रही है। मुफ्ती अपनी तरफ से कुछ नहीं कह सकता है बल्कि कुरआन व हदीस में जो लिखा है वह उसको ही बयान कर देता है।
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शहर के मुफ्ती
-मुफ्ती अख्तर हुसैन अजहर मन्नानी, मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी, मुफ्ती खर्शीद अहमद मिस्बाही अमजदी, मुफ्तिया गाजिया खानम, मुफ्ती वलीउल्लाह, मुफ्ती अब्दुल्लाह गाजीपुरी मजाहिरी, मुफ्ती मो. मतीउर्रहमान कासमी, मुफ्ती मेराज, मुफ्ती उजैर, मुफ्ती मुनीर कासमी, मुफ्ती सादुल्लाह, मुफ्ती शुएब, मुफ्ती नूर मोहम्मद तनवीरी, मुफ्ती हुजैफा आदि।
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-'फतवा' से होती है आवाम की रहनुमाई
दारुल इफ्ता जामा मस्जिद उर्दू बाजार में मुफ्ती अब्दुल्लाह गाजीपुरी मजाहिरी वर्ष 2014 से फतवा दे रहे हैं। हर विषय पर करीब 100 से ज्यादा  'फतवा' दे चुके हैं। वह बताते हैं कि 'फतवों' के बारे में एक गलतफहमी फैली हुई है कि  'फतवा' मुफ्ती अपने तरफ से देते है हालांकि ऐसा बिल्कुल नहीं है बल्कि मुफ्ती कुरआन व हदीस के रोशनी में पूछे गए सवाल का जवाब देते हैं। उलेमा 'फतवा' किसी पर थोपते नहीं है। 'फतवा' किसी व्यक्ति का नाम लेकर भी जारी नहीं किया जाता। 'फतवा' जितना मुस्लिम आवाम पर लागू होता है उतना ही उलेमा पर भी लागू होता है। 'फतवों' से आवाम की रहनुमाई की जाती है। मुफ्ती शरीयत का कानून बनाता नहीं है बल्कि बताता है।

लेखक सूफी वहीदुल हसन पेज नं. 40, 41, 42, 43 व 44)*


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