*गोरखपुर - अकबर के सेनापति फिदाई खां ने 451 साल पहले बसाया हुमायूंपुर मुहल्ला *
गोरखपुर। शहरनामा किताब के लेखक डा. वेद प्रकाश पांडेय लिखते हैं कि जौनपुर के शर्की शासकों का जब गोरखपुर पर कब्जा हुआ तो गोरखपुर को *'सूबा-ए-शर्किया'* कहा गया। फिर गोरखपुर को *'अख्तर नगर'* के नाम से जाना गया। यह बता पाना मुश्किल है कि ये अख्तर साहब कौन थे, जिनके नाम पर गोरखपुर को 'अख्तर नगर' की संज्ञा प्राप्त हुई। डा. दानपाल सिंह के मुताबिक बाबरनामा में गोरखपुर को *'सरवर'* नाम से पुकारा गया। शहरनामा में आगे लिखा है कि एक दौर वह भी था जब इसे *'गोरखपुर सरकार' कहा गया फिर इसके बाद *'मुअज्जमाबाद'* हुआ। अंत में अंग्रेजों के शासन काल (1801) में इसका नाम स्थायी तौर पर *'गोरखपुर'* स्वीकार किया गया। खैर। *मुहल्ला हुमायूंपुर* अकबर के सेनापति फिदाई खां ने मुगल सम्राट 'हुमायूं' के नाम पर सन् 1567 ई. यानी 451 साल पहले बसाया। डा. दानपाल सिंह लिखते हैं कि मुगलों का गोरखपुर पर आक्रमण सन् 1567 ई. में हुआ। मुगल सेना का नेतृत्व टोडरमल व फिदाई खां कर रहे थे। मुगल सेना ने सभी स्थानीय राजाओं को हरा कर जीत हासिल की। गोरखपुर में मुगलों की फौजी छावनी स्थापित हुई। पूरा जनपद मुगलों के अधीन हो गया। टोडरमल ने बाबा गोरखनाथ की समाधि स्थल एवं फिदाई खां ने एक मस्जिद बनवायी थी। उसी समय हुमायूंपुर मुहल्ला फिदाई खां ने आबाद किया। हुमायूंपुर गोरखपुर के कदीम व बड़े मुहल्लों में शुमार होता है। हुमायूंपुर उत्तरी अंसारी रोड पर प्राचीन काल का एक मकबरा भी है जो हजरत हुमायूं खां शहीद अलैहिर्रहमां के नाम से मशहूर है। लोगों का मानना है कि मुहल्ले का नाम हजरत हुमायूं खां शहीद अलैहिर्रहमां के नाम पर पड़ा। यहां शहीदों की बेशुमार मजारे हैं। जहां हजरत हुमायूं खां शहीद का मकबरा है वहां एक मस्जिद तामीर है जिसे मकबरे वाली मस्जिद के नाम से शोहरत हासिल है। यहां पुरानी ईदगाह के अवशेष अभी मौजूद हैं। ईदगाह की जगह मकबरे वाली मस्जिद तामीर हो चुकी है। यहां करीब 8 शहीदों की मजार है। मस्जिद करीब 20 साल पहले तामीर हुई है। मस्जिद दो मंजिल है। एक वक्त में पांच सौ लोग नमाज पढ़ सकते है। यहां जुमा, अलविदा व ईदुल अजहा की नमाज भी हेती है। अभी चार माह मस्जिद की मीनार शमशाद अली उर्फ अली भाई ने लगवायी है। उन्होंने बताया कि हुमायूंपुर तीन हिस्सों में बंटा है हुमायूंपुर उत्तरी, दक्षिणी व जटेपुर। यह गोरखपुर का सबसे बड़ा मुहल्ला है। यहां हजरत सैयद सालार मसूद गाजी मियां के जमाने के शहीदों की मजार है। मुहल्ले का नाम हजरत हुमायूं खां शहीद के नाम पर पुरखे बताते चले आ रहे हैं। यहां शहीदों के मजार बहुत हैं। खैर। हुमायूंपुर तारीखी मोहल्ला है।
*गोरखपुर में है 154 मुल्कों समेत भारत के प्राचीन, मध्य व आधुनिक काल के नायाब सिक्कों का खजाना*
गोरखपुर। प्राचीन भारत के कुषाण, चोल, तक्षशिला, गुप्त वंश आदि के इतिहास की अनुपम झलक। मध्यकालीन भारत के सल्तनत, मुगल, अवध व हैदराबाद सहित तमाम रियासतों, ब्रिटिश कालीन इतिहास के अंश की यादें। 154 मुल्कों के इतिहास का दिलचस्प पहलू। शहर में यह अनमोल धरोहर के रूप में मौजूद है। वह भी दुर्लभ सिक्कों की शक्ल में। सिक्कों को देखकर उस दौर के राजा, महराजा, बादशाह, नवाब की यादें खुद बा खुद ताजा हो जाती है। उस दौर का तसव्वुर जेहन में बस जाता है। इन सिक्कों के साथ इतिहास का सुनहरी यादें भी जुड़ी है। इस नायाब खजाने के मालिक हैं अलीनगर के कृष्ण चन्द्र रस्तोगी। सिक्का संग्रह करने का इन्हें शौक है। वह भी दुर्लभतम् सिक्कों का। शौक सन् 1990 में लगा। जो 24 सालों से बदस्तूर है। कृष्ण ने सिक्के जुटाये ही नहीं किये बल्कि उसके सिक्के का इतिहास भी तलाशा। इसलिए उनका यह काम काबिले मुबारकबाद है। उनके पास हर सिक्के का इतिहास मौजूद है। उन्होंने हर सिक्के के साथ उसके चालू होने का वर्ष, मूल्य, धातु आदि स्पष्ट रूप से दिया है। जो इसकी अहमियत को और बढ़ा देता है। इसके अलावा सिक्का चालू करने वाले राजा, महाराजा, बादशाह, नवाब के बारे में विवरण भी शासनकाल, वंश सहित दिया गया है। जो बेहद दिलचस्प है। इससे उस दौर का इतिहास समझने में आसानी होती है। जिसमें करीब 500 से ज्यादा नायाब सिक्के हैं। कुछ हाथ के बने तो कुछ मशीन के। कागज से लेकर तांबा, पीतल, चांदी तक के सिक्के हैं। कुछ सिक्के डालर के रूप में भी है। इस संग्रह में इन्हें मशक्कत तो करनी पड़ी लेकिन ज्यादा पैसा खर्च नहीं करना पड़ा। विदेशी सिक्कों के लिए जरूर पैसे खर्च करने पड़े। उन्होंने सिक्कों के इतिहास के बारे में बताया कि करीब 2000-2500 साल पहले बार्टर सिस्टम लागू था। जिसके तहत वस्तु आदान प्रदान की जाती थी। जिसकी वजह से काफी परेशानियां आने लगी। इसके तहत समाज के प्रबुद्ध वर्ग ने एक रास्ता निकाला। चांदी का एक टुकड़ा निकाला। तीन बार पंच कर कांटा। यह था पहला सिक्का पंच मार्क क्वाइन। ऐसे हुआ सिक्कों का जन्म। चांदी के सिक्के लोग छिपाने लगे तो तांबे के सिक्के निकाले जाने लगे। काॅपर व सिल्वर के ये अति प्राचीन दुर्लभ सिक्के आज कृष्ण के तरकश में मौजूद है।
उन्होंने बताया कि एक बार मैं अयोध्या अपनी ससुराल गया था एक शख्स से मुलाकात हुई। उन्होंने मेरे शौक को देखकर उन्होंने 2213 वर्ष पुराना सिक्कता जो अयोध्या नरेश सूर्यमित्र के शासन काल का था मुझे दे दिया। वह भी मेरे संग्रह की शोभा बढ़ा रहा है।
उन्होंने बताया कि सिक्कों के विशाल संग्रह करने में पुराने मित्र ने काफी सहायता की। इस समय वह विदेश में रह रहे है (नाम नहीं बताया)। कृष्ण ने बताया कि जब द्वितीय विश्व युद्ध हो रहा था तब इंग्लैण्ड की सरकार ने भारत में कागज के सिक्के भी चलवायें। जो आज भी सुरक्षित है संग्रह की खुबसूरती में चांद लगा रहे है। प्राचीन काल के सिक्कों में कुषाण, तक्षशिला, चोल, नागा, गुप्त वंश के सिक्के है। इसके अलावा लोदी वंश के इब्राहीम लोदी सिकन्दर शाह लोदी, खिलजी वंश के अलाउद्दीन खिलजी, जलालुद्दीन खिलजी, मसउद शाह, सूरी वंश के शेरशाह सूरी, तुगलक वंश के शासक फिरोज शाह तुगलक जिसने जजिया कर लगाया था उस दौर का सिक्का भी है। इसी बादशाह ने कागज के सिक्कों का प्रचलन शुरू किया था। बादशाह अकबर के द्वारा टकसाल के सिक्के, जहांगीर अहमद शाह, मुगल वंश के अंतिम शासक शाह आलम, बहादुर शाह जफर, फर्रूखसियार, अलाउद्दीन मुहम्मद शाह, लखनऊ के नवाब मोहम्मद अली शाह, वाजिद अली शाह, अमजद अली शाह, हैदर अली, टीपू सुल्तान, हैदराबा
द के निजाम के दौर का सिक्का दिलचस्प है। इसके अलावा ताबीजी सिक्का भी खुबसूरत है। सुल्तान वंश के शासकों के समय का सिक्का रेयर है। इसके अलावा महाराजा धीराल सवाईमान सिंह, कच्छ, कश्मीर, मेवाड़, रतलाम, अलवर सहित तमाम रियासतों के सिक्के संग्रह की शान बने हुये है। इसके अलावा भारत में पुर्तगाल शासन काल के सिक्के भी नायाब है। वही ब्रिटिश कालीन दौर के सिक्के का बड़ा कलेक्श है। ब्रिटिश पीरियड के जार्ज 1- 5, विक्टोरिया के दौर के दुर्लभ सिक्के भी है। वहीं बात करे विदेशी सिक्कों की तो ब्रिटेन व अमेरिका से लगायत यूरोप, एशिया, अफ्रीका, मीडिल ईस्ट के करीब 154 देशों के सैकड़ो नायाब सिक्के मौजूद है। इसके अलावा भारत में ब्रीटिश साम्राज्य का अंतिम सिक्का भी है। इसके अलावा आजादी के मौके पर व भारतीय संविधान लागू होने के समय का भी सिक्का मौजूद है। इन्हें एक शौक और भी है जिसकी वजह से सन् 1992 में इनका नाम लिम्का बुक आॅफ रिकार्ड में दर्ज किया गया। वह शौक देशों की माचिस इकट्ठा करने का। इसके अलावा यह नादान गोरखपुरी के नाम से शेरों शायरी भी करते है।
( नोट : - फोटो के सारे सिक्के गोरखपुर में मौजूद हैं मैंने खुद हाथों में लेकर देखें हैं)
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