*गोरखपुर - आला हजरत के छोटे साहबजादे ने रखी थी मदरसा मजहरुल उलूम घोषीपुरवा व नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर की नींव*
गोरखपुर। चौदहवीं सदी के मुजद्दीद आला हजरत इमाम अहमद रजा खां अलैहिर्रहमां के छोटे साहबजादे हजरत मुस्तफा रजा खां अलैहिर्रहमां जिनको दुनिया मुफ्ती-ए-आजम हिंद के नाम से जानती है। उन्होंने मदरसा मजहरुल उलूम घोषीपुरवा की बुनियाद 25 नवंबर सन् 1978 ई. में रखीं। इस मदरसे को खोलने में हाजी अब्दुल गफूर, हाजी बारकल्लाह, मो. गनी, शौकत अली, जौहर अली, अलगू, मो. अली, सज्जाद अली, अनवर हुसैन, एड. मो. यूनुस ने नुमाया किरदार निभाया। एक अंग्रेज पीेएफ मार्टिन की जमीन उसके बेटे यूजिन मार्टिन से 80 हजार रुपया में 7 मई 1978 को खरीदी गयीं। मार्टिन का यहां बंग्ला था। मदरसे की जमीन 80 डिस्मिल है। हाजी बारकल्लाह ने ठेले लेकर जगह-जगह से चंदा वसूला। उस जमीन पर मदरसा मजहरुल उलूम की नींव रखी गयी। मदरसा अब दरख्त की शक्ल ले चुका है। मदरसे की शानदार इमारत है। मदरसे के प्रागंण में औलिया जामा मस्जिद करीब सन् 2000 में कायम हुई। मदरसे का बड़ा मैदान है। हर साल भव्य दस्तारबंदी का जलसा होता है। इस वक्त मदरसे के प्रिंसिपल मौलाना अब्दुर्रब हैं। मदरसे में अाला हजरत के उर्स पर जलसा करने की परंपरा है। मदरसे से निकले सैकड़ों हाफिज, आलिम दीन व दुनिया की खिदमत अंजाम दे रहे है। सन् 1978 ई. में ही मुफ्ती-ए-आज़म ने नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर की नींव भी रखीं।
वरिष्ठ संवाददाता आशुतोष मिश्रा अपने एक लेख में लिखते हैं कि शहर में आला हजरत के उर्स-ए-पाक को पूरी शिद्दत से मनाए जाने की सिलसिला करीब 40 साल से चला आ रहा है। सन् 1978 ई. में गोरखपुर का बरेली की आला हजरत दरगाह से वो रिश्ता कायम हुआ, जिसने यहां इस परंपरा की बुनियाद रखी। आला हजरत के छोटे साहबजादे तब गोरखपुर के तुर्कमानपुर मोहल्ले में अपने मुरीद शेख बरकतुल्लाह नूरी के यहां मेहमान बनकर आए थे। यहीं पास में उन्होंने एक मस्जिद की नींव रखी जो आज नूरी मस्जिद के नाम से जानी जाती है।
अब जन्नतनशीं हो चुके शेख बरकतुल्लाह नूरी के छोटे बेटे शाबान अहमद बताते हैं कि वालिद आला हजरत के छोटे साहबजादे मुफ्ती-ए-आजम हिंद हजरत मुस्तफा रजा खां अलैहिर्रहमां के मुरीद थे। उनके बुलावे पर वो सन् 1978 ई. में घर आए थे। उन्होंने तब अब्बू की गुजारिश पर यहां एक मस्जिद की बुनियाद रखी। इसके बाद यहां भी आला हजरत का उर्स-ए-पाक मनाने की परंपरा कायम हुई। यह सिलसिला आज भी कायम है। शेख बरकतुल्लाह के नाती अलाउद्दीन निजामी ने बताया कि मुफ्ती-ए-आजम हिंद हजरत मुस्तफा रजा खां आला हजरत के छोटे बेटे थे। उनके बड़े भाई हामिद रजा खां रहे। गोरखपुर आगमन के तीन साल बाद सन् 1981 ई. में मुस्तफा रजा खां जन्नतनशीं हो गए, लेकिन शहर में आज भी बड़ी संख्या में उनके मुरीद मौजूद हैं। हर साल हम लोग आला हजरत के उर्स पर दो दिनी कार्यक्रम करते हैं।
*गोरखपुर के मदरसों के बारे में यह भी जानें*
वर्ष 2018 में जिले के तकरीबन 288 मदरसे मान्यता प्राप्त हैं। जिसमें दस अनुदानित हैं। सात मदरसों में मिनी आईटीआई योजना संचालित होती है।
*--जिले के दस अनुदानित मदरसे*
1. मदरसा दारुल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार गोरखपुर
2. मदरसा जियाउल उलूम पुराना गोरखपुर, गोरखनाथ गोरखपुर
3. मदरसा अरबिया शमसुल उलूम सिकरीगंज गोरखपुर
4. मदरसा अनवारुल उलूम गोला बाजार गोरखपुर
5. मदरसा अंजुमन इस्लामियां खूनीपुर गोरखपुर
6. मदरसा जामिया रजविया मेराजुल उलूम चिलमापुर गोरखपुर
7. मदरसा अंजुमन इस्लामियां उनवल गोरखपुर
8. मदरसा जामिया रजविया गोला बाजार गोरखपुर
9. मदरसा अरबिया मिस्बाहुल उलूम असौजी बाजार गोरखपुर
10. मदरसा मकतब बहरुल उलूम बड़गो गोरखपुर
*गोरखपुर में 7 मदरसों में संचालित हैं मिनी आईटीआई योजना*
जिले के 7 मदरसों में मिनी आईटीआई योजना संचालित है। जिसमें 3 मदरसे शहर के हैं और 4 मदरसे ग्रामीण क्षेत्र के हैं। शहर के मदरसा दारुल उलूम हुसैनिया इमामबाड़ा दीवान बाजार, मदरसा जामिया रजविया मेराजुल उलूम चिलमापुर, मदरसा अंजुमन इस्लामियां खूनीपुर व ग्रामीण क्षेत्र के मदरसा नूरिया खैरिया बगही बारी पीपीगंज, मदरसा अनवारुल उलूम गोला बाजार, मदरसा जामिया सिद्दीक निस्वां मरवटिया, मदरसा मकतब इस्लामियां बहरुल उलूम बड़गो बरईपार में यह योजना संचालित हैं। उक्त मदरसों पर छात्र-छात्राएं वेल्डर, कटाई- सिलाई, रेफ्रीजिरेशन - एअरकंडीशनिंग, कम्पयूटर आपरेटर, इलेक्ट्रीशियन, ड्राफ्ट मैन सिविल, वॉयर मैन, मैकेनिक डीजल की ट्रेनिंग लेते हैं।
*शहर के मदरसे*
1. मदरसा दारुल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार गोरखपुर की स्थापना सन् 1960 ई. हुई। सन् 1984 ई. में इसे रफ्तार दी वर्तमान प्रबंधक हाजी तहव्वर हुसैन ने। सन् 1990 ई. में परम्परागत तालीम के साथ आधुनिक तालीम दिए जाने की शुरुआत हुई। हाफिज-ए-कुरआन का पहला बैच 24 साल पहले निकला। आधुनिकीकरण योजना सन् 1994-95 ई. से शुरू हुई। सन् 2005 ई. में मदरसा अनुदानित हुआ। सन् 2005-2006 में मिनी आईटीआई योजना शुरु हुई। यहां कक्षा 1-8 तक की पढ़ायी होती है। मदरसे की समृद्ध लाइब्रेरी है। मदरसे से मदरसा शिक्षा परिषद् की परीक्षाएं संचालित होती हैं। लड़कियों के लिए निस्वां मदरसा यहां संचालित है और सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त भी है। यहां ड्रेस व किताबें निशुल्क मिलती हैं। मिड डे मिल योजना भी संचालित है। यहां दारुल इफ्ता भी है। जहां से मुफ्ती-ए-गोरखपुर मुफ्ती अख्तर हुसैन फतवा देते है। इस समय मदरसे के प्रिंसिपल हाफिज नजरे आलम कादरी हैं। यह शहर का सबसे बड़ा मदरसा है।
2. मदरसा अंजुमन इस्लामियां खूनीपुर की स्थापना सन् 1901 ई. में हुई। यह अनुदानित मदरसा है। यहां मिनी आईटीआई योजना संचालित है। यहां समृद्ध लाइब्रेरी है। लड़कियों के लिए जूनियर हाईस्कूल कायम है। मदरसे द्वारा लावारिश लाशों के कफन दफन का इंतजाम होता है। बेवाओं की मदद होती हैं। यहां मदरसा आधुनिकरण, निशुल्क ड्रैस व किताब वितरण, मिड डे मील योजना संचालित है। यहां से मदरसा बोर्ड की परीक्षाएं संचालित होती हैं। यहां दारुल कजा व दारुल इफ्ता कायम है। जहां पर शहर काजी मुफ्ती वलीउल्लाह बैठते हैं। इस समय मदरसे के प्रिंसिपल मिर्जा रफीउल्लाह बेग हैं। यह मदरसा शहर का सबसे कदीम मदरसा है।
3. मदरसा जियाउल उलूम पुराना गोरखपुर, गोरखनाथ गोरखपुर सन् 1955 ई. में खपरैल के मकान में आबाद हुआ। वर्तमान में मदरसा अनुदानित होने के साथ ही तीन मंजिला इमारत में तब्दील हो चुका है। मदरसे के प्रधानाचार्य मौलाना नूरूज़्ज़मा मिस्बाही ने बताया कि इस मदरसे में कुल 637 बच्चों में 137 मदरसे के हॉस्टल में रह कर शिक्षा हासिल कर रहे है। जिनको 22 शिक्षक मजहबी व दुनियावी शिक्षा दे रहे है। उन्होंने बताया कि इस मदरसे में बच्चों को मजहबी तालीम व हिन्दी, अंग्रेजी के साथ ही विज्ञान व कम्प्यूटर की शिक्षा दी जाती है। इस मदरसे से सेवानिवृत्त शिक्षक मौलाना हबीबुर्रहमान को सन् 1983 ई. में बेहतर शिक्षण कार्य के आधार पर राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वहीं सेवानिवृत्त शिक्षक हाफिज मो. सज़्ज़ाद अली बरकाती को सन् 1993 ई. में भूतपूर्व राष्ट्रपति डां. शंकर दयाल शर्मा ने राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया था।
4. मदरसा जामिया रजविया मेराजुल उलूम चिलमापुर गोरखपुर की स्थापना करीब सन् 1983 ई. में हुई। यह सरकारी सहायता प्राप्त मदरसा है। यहां तकरीबन सरकार की सभी योजनाएं संचालित हैं। यहां दारुल इफ्ता कायम है। जहां से काजी-ए-गोरखपुर मुफ्ती खुर्शीद अहमद मिस्बाही फतवा देते हैं। यहां के प्रिंसिपल मौलाना शौकत अली नूरी है। यहां परंपरागत शिक्षा के साथ आधुनिक शिक्षा दी रही है। मदरसे में आधुनिकीकरण योजना, मिनी आईटीआई, निशुल्क ड्रेस व पुस्तक वितरण , मिड डे मील योजना संचालित है। मदरसा बोर्ड की परीक्षाएं भी संचालित होती हैं।
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