*गोरखपुर का गुजरा कल जानना हो तो पढ़िए 'कशफुल बगावत' 'नूरे हकीकत' व 'महबूबुत तारीख'*
गोरखपुर। मियां साहब इमामबाड़ा इस्टेट के पहले सज्जादानशीन हजरत सैयद अहमद अली शाह ने तीन किताबें लिखीं। पहली किताब *कशफुल बगावत* लिखी। जो सन् 1860 ई. में छपी। यह 159 पन्नों की है। इसमें सन् 1857 ई. में लड़ी गयी पहली जंगे आजादी के हालात विस्तार से बताये गये हैं। इस जंगे आजादी में अंग्रेजों से बगावत करने वालों के मंसूबे, उनके नाम और शहर में जो बेचैनी व खौफ का आलम था विस्तार से बयां किया गया है। बागियों (जंगे आजादी के अज़ीम मुजाहिद) की सजाओं का हाल और दीगर वाकयात को बड़े ही दिलचस्पी के साथ बयान किया गया है। किताब के आखिर में मलिका विक्टोरिया का ऐलान भी दर्ज है। इस किताब में सैयद अहमद अली शाह कामयाब किस्सा गो की सूरत में नजर आते हैं। अंदाजे बयां सादा व दिलकश है।
सैयद अहमद अली शाह की दूसरी किताब *नूरे हकीकत* है। जो एक मसनवी है। यह सन् 1861 ई. में छपीं। इस किताब में 359 पन्ने हैं। इस किताब में अहमद अली शाह एक आलिम, सूफी व सच्चे इरादतमंद मुरीद नजर आते हैं। इस किताब के टॉपिक हैं सीरत-ए-पाक, अकीदा, तफसीर, हदीस-ए-पाक, मिलादुन्नबी, फातिहा, नजरो नियाज वगैरह। जिसको बड़े दिलचस्पी व सादगी से बयान किया गया है।
आपकी तीसरी मशहूर जमाना किताब *महबूबुत तारीख* है। जो 118 पन्नों की है। जो सन् 1863 ई. में छपीं। हिन्दुस्तान की मुख्तसर तारीख और गोरखपुर की मुफस्सल तारीख है। शायरी में सारे वाकयात पिनाह है। इस किताब में शहर गोरखपुर के नाम के बारे में, मुहल्लों के नाम और उनके मालिकान के नाम, शहीदों की मजारात का पता, मशहूर मसायख, रईसों के नाम, अंग्रेज व हिन्दुस्तानी अहकाम के साथ यह किताब बहुत कुछ बताती है। आखिर में आपने सबके लिए दस नसीहतें भी की हैं ताकि उन पर अमल पैरा होकर दीन व दुनिया की जिंदगी कामयाब हो जाये। आपने अपने खानदान का भी जिक्र इस किताब में किया है। गुजरे हुए कल का बेहतरीन आईंना है यह किताबें।
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