*गोरखपुर - इलाहीबाग में बंटता है हजरत सूफी ज़मीर अहमद शाह का फैज*


गोरखपुर। हजरत सूफी ज़मीर अहमद शाह अलैहिर्रहमां मुहल्ला पिपरापुर के बाशिंदे थे। आपका पूरा नाम  हाफिज सूफी कारी जमीर अहमद शाह उर्फ दीदार शाह चिश्ती था। हजरत अब्दुर्रहीम शाह से इजाजत व खिलाफत मिली थी। बहुत ही सादा तबियत के मालिक व मिलनसार थे। तसव्वुफ की अच्छी जानकारी रखते थे। जब तक हो सका बहादुरिया खानकाह रहमतनगर और हजरत मिस्कीन शाह के आस्ताने अंधियारीबाग (बेनीगंज) बराबर जाते रहे। किसी भी शाख का कोई बुजुर्ग अगर शहर में आता था तो आप उससे मुलाकात करने जरुर जाते थे। आपने शहर में अपने सिलसिले की तबलीग की और लोगों को मुरीद किया। शहर के बाहर खुशूसन कप्तानगंज और दीगर मौजा में भी तशरीफ ले जाते थे और लोगों को मुरीद करके फैज पहुंचाते थे। हजरत ज़मीर अहमद शाह हाफिज भी थे। मुरीदों से कहीं ज्यादा तादाद मोतकिदों की थी। बिला तफरीक मजहबो मिल्लत आप अपनी दुआओं से सबको फैज पहुंचाते थे। देहाती इलाकों में आप के आसपास सभी तरह के लोग जमा हो जाते थे। जिससे कौमी एकजेहती का मंजर सामने आ जाता था। वह सबसे प्यार करते थे और सब उनसे। वह हंसमुख और मिलनसार थे। घर से निकलते तो सूफियों की सी वजा कता में नजर आते थे। खामोश रहते थे और सलाम का जवाब हंस कर देते थे। 30 अप्रैल 1988 ई. को आपका विसाल हुअा। मजार शरीफ इलाहीबाग बंधे के किनारे है। जहां 14 रमजान शरीफ को हर साल अकीदतमंद खेराजे अकीदत पेश करने के लिए उमड़ते हैं। आपके खुलफा से आपका सिलसिला जारी व सारी है।

*(स्रोत - मसायख-ए-गोरखपुर लेखक सूफी वहीदुल हसन पेज नं. 88, 89 व 90)*








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