*गोरखपुर - अंधियारीबाग को 78 साल पहले रोशनी से भर गये हजरत मिस्कीन शाह*



गोरखपुर। हजरत मियां मोहम्मद नेयाज बहादुर लकब मुकर्रम शाह उर्फ मिस्कीन शाह अलैहिर्रहमां को इस शहर गोरखपुर के लोग ज्यादातर हजरत मिस्कीन शाह के नाम से जानते हैं। आपका मजार अंधियारीबाग (निकट दुल्हन मैरेज हाउस बेनीगंज) में हजरत फैजुल्लाह खां मुख्तार की कोठी के आहाते में है। जहां उर्स की तकरीब हर साल जमादिल उला की 15, 16 व 17 तारीख को होती है। आप इस शहर के मशहूर व मारूफ आरिफबिल्लाह हजरत अली बहादुर शाह अलैहिर्रहमां के खलीफा, भतीजे और दामाद भी थे। अपने जमाने के तबीबे जिस्मानी के साथ-साथ तबीब रुहानी भी थे। इल्मे तसव्वुफ के जानने वाले नुक्तदां व नुक्तातंज थे। आपकी जहानत और इल्मी दस्तरस में रुहानी उरूज के चर्चे आज भी गोरखपुर के आवाम की जुबान पर हैं। हजरत मिस्कीन शाह हजरत शेख मुहीयुद्दीन अरबी अलैहिर्रहमां से काफी मुतास्सिर थे और खुद भी वहदतुल वजूद मसरब व मसलक पर यकीन रखते थे। आपका कौल है कि "इल्म फिकाह, इल्म कलाम और इल्म तसव्वुफ लाजिम व मलजूम है। बगैर एक  दूसरे के तमाम नहीं।  इंसान जब अदम से वजूद में कदम रखता है तो शऊरी ऐतबार से अव्वल कदम वादी-ए-शरीयत में रखता है। शरीयत पर अमल पैरा होने के बाद ही तरीकत हासिल होती है। तरीकत का रहबरे कामिल नायबे रसूल है। उनकी निगाहें करम से सालिक तहारत जाहिरी व बातिनी हासिल करता है। इस्तेकामत की शर्त के साथ हुआ तो तौहीदे हकीकी से वस्ता हो। याद रखने की बात है कि शरीयत का बातिन तरीकत, तरीकत का बातिन मारफत और मारफत का बातिन हकीकत है।" शेखे तरीकत हजरत मिस्कीन शाह वजूदी सर्ब रखने की वजह से बहरे वजूद में गव्वासी फरमाया करते थे और हकाइक व मारफ की इब्तेदा शरीयत से ही करने के आदी थे। आपके कारनामो में सबसे बड़ा कारनामा हजरत इमामुद्दीन दरबेजा बाबा की तसनीफ 'मखजनुल मानी' का तर्जुमा मारूफ 'असरारे रब्बानी' है। जो इल्म तसव्वुफ में निहायत ही जामे किताब है। साहिबे मखजन मानी अफगानी थे और किताब पश्तो जुबान में तहरीर फरमायीं थी। ये तर्जुमा करीब 1 अगस्त 1910 ई. में मतबुआ रेफाहे आम गोरखपुर से साया हुआ। असरारे रब्बानी दो हिस्सो पर विभाजित है। आप साहिबे समां और साहिबे हाल होने के साथ-साथ हजरत मिस्कीन शाह साहिबे कशफो करामत भी थे। हर वक्त अकीदतमंदों, इरादतमंदों, मुरीदों और जोयाने हक का जमघटा लगा रहता था।  जिस तरह आपके मुरीद बहुत थे उसी तरह खुलफा की भी तादाद खासी थी। आपके आस्ताने के खादिम फिरोज अहमद नेहाली चिश्ती निजामी (मो. नं। 6388244766) के मुताबिक आपका विसाल सन् 1940 में हुआ। 78वां उर्स मनाया जा चुका है उस हिसाब से 1362 हिजरी 17 जमादिल उला को विसाल की तारीख है।

*इन बुजुर्गों को भी जानिए*

*हजरत सूफी सैयद नेहाल अहमद शाह नगीनवीं अलैहिर्रहमां* - आप हजरत मिस्कीन शाह के खुलफा थे। आपका काम बैरुने गोरखपुर खूब हुआ और सिलसिला की तौसी मगरिबी यूपी से लेकर बंगाल के दारुल खुलफा कलकत्ता तक हुई। जहां खानकाहे निहालिया शाद व आबाद है।। इसी तरह शहर बनारस में भी यह सिलसिला खूब फैला। जिसका सेहरा दो बुजुर्गों *हजरत सरदार अब्दुल करीम शाह अलैहिर्रहमां* व *हजरत सरदार अब्दुल रहीम शाह अलैहिर्रहमां* को जाता है। जिन्होंने बहादुरिया और मिस्कीनीया सिलसिले को काफी फरोग दिया।


*हजरत हफीजुल्लाह शाह अलैहिर्रहमां अलैहिर्रहमां* - आपको इजाजत व खिलाफत अपने वालिद हजरत मिस्कीन शाह से थी। आपने इस सिलसिले का नाम रोशन किया।

*हजरत मोहम्मद शान बहादुर शाह अलैहिर्रहमां* - आप को भी खिलाफत अपने वालिद हजरत मिस्कीन शाह से मिलीं।

*हजरत सूफी अब्दुल हमीद शाह अलैहिर्रहमां* - मुहल्ला हुमायूंपुर में हजरत अब्दुल समद के साहबजादे हाजी सूफी अब्दुल हमीद शाह अपने दौर के शेखे तरीकत हुए हैं। आप हजरत मिस्कीन शाह से मुरीद हुए। आप बहुत इबादत गुजार थे। आपका विसाल 2 मार्च सन् 1979 ई. में हुआ। मजार शरीफ हुमायूंपुर शुमाली कब्रिस्तान में है।

*हजरत फैजुल्लाह खां मुख्तार अलैहिर्रहमां* - आप हजरत मिस्कीन शाह के मुरीद थे। आपके आहाता में ही पीरो मुर्शीद की मजार है।

*हजरत अब्दुल रहीम शाह अलैहिर्रहमां*  - आप हजरत मिस्कीन शाह के खलीफा थे। आप पिपरापुर के रहने वाले थे। मजार पिपरापुर के पास कब्रिस्तान में है।

*हाफिज वली मोहम्मद शाह अलैहिर्रहमां* - आप भी हजरत मिस्कीन शाह के खलीफा थे। आपने *पिपरापुर में बीच टोला मस्जिद* भी बनवायीं। इसी शहर में विसाल हुआ और मजार शरीफ पास के कब्रिस्तान में है।

*हजरत अली हुसैन लकब मौलवी पीर अली शाह अलैहिर्रहमां* - आप भी पिपरापुर मुहल्ले के रहने वाले थे। हजरत मिस्कीन शाह के खलीफा थे।

*हजरत शाह वाजिद हुसैन खां अलैहिर्रहमां* - शहर के मुहल्ला आहाता अफगान के रहने वाले थे। इजाजत व खिलाफत हजरत मिस्कीन शाह से पायीं।

*हजरत सूफी शाह इस्माईल खां अलैहिर्रहमां*  - हजरत मिस्कीन शाह के दस्ते हक पर बैअत हुए और इजाजत व खिलाफत पायीं। मिलाद शरीफ पढ़ने और सुनने के बहुत शौकीन थे। बेहद इबादतगुजार थे। आपका विसाल सितंबर सन् 1982 ई. में हुअा।


*हजरत शाह अब्दुल मजीद सिद्दीकी अलैहिर्रहमां* - आप शहर गोरखपुर वालों के लिए मोहताजे तारूफ नहीं है। हजरत मिस्कीन शाह के मुरीद होते ही आप उनकी सोहबत से फैजयाब होने लगे थे और एक तवील मुद्दत तक शेख की सोहबत हासिल हुई। आपने काफी दिनों तक अपने पीरो मुर्शीद की जगह सज्जादगी की जिम्मेदारी संभालीं। एक जनवरी सन् 1987 ई. में आपका विसाल हो गया। आपका मजार हजरत मुबारक खां कब्रिस्तान में है।

गौर कीजिए मारफत व हकीकत का अज़ीम शेखे तरीकत जिसे हम हजरत मिस्कीन शाह अलैहिर्रहमां नाम से याद करते हैं आज इस शहर में मौजूद न होकर अपने माबूदे हकीकी से जा मिले है। मगर आपका चर्चा, आपकी तालीमात, आपकी करामतें सबकी जुबानों पर हैं और दरवेशाना नक्शा सब की निगाहों में है। (स्रोत :- मसायख-ए-गोरखपुर लेखक सूफी वहीदुल हसन)

जनाब फरूख जमाल साहब वरिष्ठ संवाददाता की कलम से
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हज़रत -ए -मिस्कीन शाह अलैर्हिरहमा को मेरे वालिद  ने बहुत क़रीब से देखा है  ,  वह बताते हैं कि मेवातीपुर के हमारे मकान पे थे , अब्बा  ( मेरे दादा ) और हज़रत मिस्कीन शाह  , लालटेन की रौशनी में देर रात मारफत की बातें किया करते थे । मेरे वालिद का नाम भी हज़रत ने अपने नाम पर रखा , फरमाया मेरा नाम मिस्कीन तो इसका नाम मतीन  ( अब्दुल मतीन सिद्दिक़ी ) ।
गौरतलब है कि शाह अब्दुल मजीद सिद्दिक़ी अलैर्हिरहमा  , आस्ताने आलिया के आख़िरी साहब ए सज्जादा थे । बक़ौल सूफी वहीदुल हसन " शहर में हज़रत शाह अब्दुल मजीद सिद्दिक़ी  अलैर्हिरहमा " एक चलती फिरती ख़ानकाह थे ।
कहा जाता है कि शाह साहब ( अब्दुल मजीद  सिद्दिक़ी ) के ज़माने में जब उर्स ए पाक होता था ,तो आस्ताना ए मिस्कीनिया पर " मर्दान-ए-ग़ैब " की आमद का भी  सिलसिला था  ।





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