*Exclusive - गोरखपुर के जाफरा बाजार से 137 साल पहले निकलता था 'रियाजुल अखबार' व नखास से 'फित्ना' व 'फित्ना-इतरे-फित्ना'*
गोरखपुर। शहर के जाफरा बाजार से 137 साल (सन् 1881 ई.) पहले 12 पन्नों का दैनिक उर्दू अखबार *'रियाजुल अखबार'* निकलता था। वहीं नखास से 136 साल (सन् 1882 ई.) पहले 16 पन्नों का साप्ताहिक उर्दू अखाबार *'फित्ना'* बाद में *फित्ना-इतरे-फित्ना* निकलता था। यह अखबार निकाला करते थे मशहूर शायर व पत्रकार सैयद रियाज अहमद यानी रियाज खैराबादी। उनके पिता और वह गोरखपुर में पुलिस की नौकरी करते थे। खैर। अखबारों को अगर आप देखना चाहते है तो आज भी देख सकते हैं। छोटे काजीपुर में महबूब सईद हारिस के दौलतखाने पर *गुलफिशां* लाइब्रेरी है। जहां नायाब किताबों का जखीरा है साथ ही मशहूर अखबारात और नामचीन रिसाले भी मौजूद हैं। जिनमें हकीम बरहम के अखबार 'मशारिक' और 'हमारी जुबान' की पहली प्रति मौजूद है। इसके अलावा रियाज खैराबादी का अखबार 'रियाजुल अखबार' 'फित्ना' 'फित्ना-इतरे-फित्ना' 'तहजीबुल एख्लाक' 'आजकल' 'नया दौर' 'जमींदार' 'मदीना' की बेशुमार प्रतियां भी शामिल हैं। यह लाइब्रेरी मो. हामिद अली ने कायम की थी। यहां अल्लामा इकबाल और गालिब के खतूत का भी अच्छा खासा जखीरा मौजूद है। हसरत मोहानी की 'मुस्तकिल' की प्रतियां भी हैं।। खैर। डा. वेद प्रकाश पांडेय अपनी किताब शहरनामा में लिखते हैं कि गोरखपुर में उर्दू पत्रकारिता की शुरूआत आमतौर पर सन् 1881 ई. से *रियाजुल अखबार* से मानी जाती है लेकिन शायर मुस्लिम अंसारी की माने तो शुरूआत चार साल पहले यानी सन् 1877 ई. में करते हैं नार्मल स्कूल एरिया में रहने वाले जैकब नाम के यहूदी (नार्मल के पास अभी भी यहूदी की कब्र है)। संसाधनहीनता में उनकी कोशिश दम तोड़ जाती है। *रियाजुल अखबार* से उर्दू पत्रकारिता की शुरूआत होती हैं। सन् 1880 ई. सैयद तुफैल अहमद गोरखपुर पुलिस इंस्पेक्टर थे, उनके बेटे रियाज खैराबादी थे। जो सीतापुर में खैराबाद से *रियाजुल अखबार* नाम का साप्ताहिक अखबार निकाला करते थे। रियाज के पिता तुफैल ने उन्हें गोरखपुर बुला लिया। रियाज के साथ उनका अखबार भी गोरखपुर आ गया। रियाजुल अखबार गोरखपुर के जाफरा बाजार से सन् 1881 ई. से छपने लगा। यह अखबार अपने समय का आईंना था। रियाज को मौलवी सुभानअल्लाह जैसा प्रकाशक/संरक्षक मिला। सुभानअल्लाह रईस-ए-गोरखपुर थे और देशभक्त हिन्दुस्तानी थे। उन पर अंग्रेज कप्तान ने जाफरा बाजार में हमला भी करवाया। चौरी-चौरा जैसी ऐतिहासिक घटना की पृष्टभूमि तैयार करने में रियाजुल अखबार का अहम योगदान था। अखबार त्यौहार व मेलों का सजीव चित्रण करता था। अगर बाले मियां के मेले का दिलचस्प वर्णन होता था उतना ही उर्दू बाजार की होली और खिचड़ी की खबर भी पेश की जाती थी। सलाम संदीलवी की किताब 'तारीख अदबीयात गोरखपुर' के मुताबिक रियाजुल अखबार 12 पन्नों का दैनिक अखबार था। इसमें गोरखपुर की खबरें छपतीं थीं। रियाज पर 5 जून सन् 1888 ई. में कातिलाना हमला भी हुआ। रियाज ने रियाजुल अखबार के साथ 8 जुलाई 1882 ई. में 'फित्ना' व 'फित्ना-इतरे-फित्ना' नाम का साप्ताहिक अखबार निकाला। यह हर बुधवार को नखास से छपता था। यह 16 पन्नों का था। सन् 1885 ई. में फित्ना का नाम 'फित्ना-इतरे-फित्ना' हुआ। इसके अलावा 'गुलकदा-ए-रियाज' व 'गुलचीन' मैग़जीन भी रियाज निकाला करते थे।
रियाज खैराबादी का जन्म सन् 1853 ई. में खैराबाद जिला सीतापुर में हुआ। जहां के अज़ीम जंगे अाजादी के मुजाहिद अल्लामा फज्ले हक खैराबादी थे। रियाज ने कुछ समय गोरखपुर में भी तालीम हासिल की। इसके बाद खैराबाद के मदरसा अरबिया से तालीम पायीं। रियाज ने भी पुलिस की नौकरी भी की। रियाज ने सन् 1907 ई. में गोरखपुर हमेशा के छोड़ दिया और 28 जुलाई सन् 1934 ई. को खैराबाद में निधन हो गया। इनकी शायरी व कारनामे आज भी जिंदा हैं -
*हम बंद किए आंख तसव्वुर में पड़े हैं, ऐसे में कोई छम से जो आ जाए तो क्या हो*
रियाज खैराबादी का जन्म सन् 1853 ई. में खैराबाद जिला सीतापुर में हुआ। जहां के अज़ीम जंगे अाजादी के मुजाहिद अल्लामा फज्ले हक खैराबादी थे। रियाज ने कुछ समय गोरखपुर में भी तालीम हासिल की। इसके बाद खैराबाद के मदरसा अरबिया से तालीम पायीं। रियाज ने भी पुलिस की नौकरी भी की। रियाज ने सन् 1907 ई. में गोरखपुर हमेशा के छोड़ दिया और 28 जुलाई सन् 1934 ई. को खैराबाद में निधन हो गया। इनकी शायरी व कारनामे आज भी जिंदा हैं -
*हम बंद किए आंख तसव्वुर में पड़े हैं, ऐसे में कोई छम से जो आ जाए तो क्या हो*
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