*गोरखपुर - बसंतपुर तकिया में है अज़ीम वली व शायर का मजार जिन्हें दुनिया जानती है हजरत सूफी सैयद चराग अली 'तैश' के नाम से*



गोरखपुर। मसायख-ए-गोरखपुर के लेखक सूफी वहीदुल हसन पेज नं. 66, 67 व 68 पर लिखते हैं कि हजरत सूफी सैयद चराग अली 'तैश' अलैहिर्रहमां की पैदाइश 9 जिल्हिज्जा 1275 हिजरी में हुई। हजरत मौलाना फजलुल्लाह शाह फरंगी महली से उलूम दर्सिया मुरव्वजा हासिल किया। मुरीद, खलीफा और सज्जादानशीन अपने वालिद हजरत सैयद मीर बब़र अली शाह अलैहिर्रहमां के थे। जुमला सलासिल में इजाजत व खिलाफत थी। इसके अलावा रुसदो हिदायत के शेरो व शायरी में भी लगाव था। तैश तखल्लुस रखते थे और हजरत अमीर मीनाई की शागिर्दी की सर्फ हासिल था। गजलें भी कहीं हैं मगर आपका रुझान नातगोई की तरफ था। गजलों में मजमूनबंदी और ख्याल अाफरीनी पायी जाती है। अशआर मुलाहिजा हो


*"करती है क्या-क्या लहू पायी जुदाई आपकी, दिल भर आया रो दिए जब याद आयीं आपकी। रुए ताबा के तस्वीर में बंधा मजमून था, शामे फुरकत में ख्याल आया सहर होने को है। तैश है ये वक्त पीरी छोड़ दो ख्वाबे शबाब, साथ-साथ आयी खिजा जिस दम बहार आने लगी।"*


हकीकतन हजरत तैश का मैदान नातगोई है। एक सच्चे आशिके रसूल थे। इसका इजहार यूं किया है - *"किस्मत जो कभी तैश राहे रास पे आयी, आंखों से चलूंगा तर्फे कुए मुहम्मद (सल्लल्लाहौ अलैहि वसल्लम)"*

आपकी ये मुराद भी पूरी हुई। और 1329 हिजरी में आपने हज अदा किया। कादरी सिलसिले से अपनी कवीं निस्बत का इजहार करते हुए यूं फरमाया

*"अगर कादरी सिलसिले में न होते, जहन्नम से हरगिज रिहाई न होती। अगर तैश नाते मुहम्मद (सल्लल्लाहौ अलैहि वसल्लम) न पढ़ता, कभी उस सुखन में मिठाई न होती"*।


आप के मुरीदीन बेशुमार थे। साहिबे शमां और साहिबे हाल बुजुर्ग थे। इश्के मुहम्मद (सल्लल्लाहौ अलैहि वसल्लम) की सरसारी, चिश्तिया मसलक का कैफ व सरूर और कादरिया सिलसिले का रियाज और जलाल आपके चेहरे मुबारक से अयां होता था। गुफ्तगू करने से पता चलता था कि जैसे मारफत व शायरी घुट्टी मे पड़ी हो। मुलाहिजा हो

*"किसी की जलवा गाहें नाज में जाती है इक दुनिया, मगर ऐ तैस हम जायें तो किस उम्मीद पर जायें"*।

अक्सर खत लिखने के मौके पर खत में ये अशआर भी लिखते थे

*"कह देना नामाबर मोरा खत दे के हाथ में, ये आंख तैश की है टिकट पर लगी हुई"*


हजरत सूफी चराग अली शाह फितरती तौर पर जहीन थे। नसर को नज्म में तब्दील कर देने का अजीब मलका हासिल था। एक बार आपने खत बजाए नसर के नज्म में पता लिख दिया और खत भी पहुंच गया। जो आज भी महफूज है

*"नाम नामी हजरते सैयद अली, वाकिफे उहर खफी व हर जली, शहरे गोरखपुर गौ हरसब्ख अस्त, नाम रेती उर्फ अस्करगंज अस्त"*


जहां तक आपके कारनामों का ताल्लुक है अलावा रुसदो हिदायत के चंद तसनीफ भी है 1. मौलूदे तैश - जो दो हिस्सों में मुस्तमिल है अव्वल में 48 पन्ने और दूसरे हिस्से में 36 पन्ने है। कुल 84 पन्नों पर मुस्तमिल ये मौलूदे तैश सन् 1902 ई. में सबसे पहले  गौसिया प्रेस कलकत्ता से छपा। 2. अस्शमां - एक रिसाला है जो शमां की एबाहत पर रोशनी डालता है। 3. पैमाना-ए- कबीर में आपकी दो नातें शामिल हैं। ये हम्द व नातों का मजमूआ है। जिसको आपके ही एक मोतकिद ने लिखा है। 4. सफरनामा अधूरा और छपा नहीं है। हजरत सूफी चराग अली का विसाल बरोज जुमा 2 शव्वाल 1357 हिजरी में हुआ। मजार आपका मुहल्ला बसंतपुर तकिया में है जहां हर साल इस शेखे तरीकत और फकीरे कामिल को नजराना-ए-अकीदत पेश करने के लिए लोग जमा होते हैं। बसंतपुर में रहने वाले उनके खानदान के सैयद मोहम्मद जफर  जो रेलवे विभाग से रिटायर्ड हैं उन्होंने बताया कि पहले उर्स धूमधाम से मनाया जाता था। अब ईद के दूसरे दिन कुल शरीफ की रस्म होती है। जिसमें चने की दाल, गोश्त व नान की रोटी तबर्रुक के तौर पर बांटी जाती है। उन्होंने बताया कि बसंतपुर तकिया कब्रिस्तान की हद बंदी कर ली है। बाउंड्री नहीं बनी है। काफी कब्जा भी लोगों ने कर लिया है। हजरत चराग अली का मकबरा है और भी खानदान के बुजुर्गों के मजारों की निशानदेही है। हजरत सैयद चराग शाह की कई किताबें भी मौजूद हैं। इसके अलावा इसके आपका उर्स मौजा शंकरपुर पचपेड़वा खरगोपुर जिला गोंडा में भी होता है। वहां आपके नाम की एक तैश मंजिल भी है। आपका सिलसिला अलावा इन जगहों के नेपाल और कलकत्ता में खुलफा की कोशिशों से जारी व सारी है। उर्दू बाजार गली में बब़र अली शाह मस्जिद आपके वालिद के नाम पर है।




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