गोरखपुर - गाजी मियां के रौजा के नाम पर बसा मुहल्ला गाजी रौजा




गोरखपुर। पूर्वांचल में सैयद सालार मसूद गाजी मियां रहमतुल्लाह बाले मियां के नाम से जाने जाते है। मानव धर्म की स्थापना के लिए प्रयत्नशील अध्यात्मिक शक्ति वाले सैयद सालार मसूद गाजी मियां रहमतुल्लाह अलैह उर्फ बाले मियां का मेला महानगर के बहरामपुर मुहल्ले के पास स्थित विस्तृत भूभाग पर तो जरूर लगता है लेकिन सैकड़ों वर्ष पूर्व यह मेला दीवान बाजार वार्ड के मुहल्ला गाजी रौजा कब्रिस्तान में मौजूद गाजी मियां उर्फ बाले मियां के रौजा (प्रतीकात्मक) पर भी लगता था। अकीदतमंदों का तांता लगा रहता था। जी हां मुहल्ला गाजी रौजा में भी गाजी मियां का रौजा (प्रतीकात्मक) मौजूद है। जिससे शहरवासी नवाकिफ है।  गाजी मियां उर्फ बाले मियां का रौजा (प्रतीकात्म दरगाह) की वजह से इस मुहल्ला को गाजी रौजा के नाम से पुकारा जाता है। यहां मौजूद मस्जिद गाजी मस्जिद के नाम से जानी जाती है। यानी कि इस मुहल्लें की पूरी पहचान गाजी मियां के नाम से जुड़ी हुई है। कुछ साल पहले शुरु हुए मकतब को गाजी मकतब नाम दिया गया है।
यहां के बुजुर्ग बताते हैं कि यहां पर सैकड़ों साल पहले मेला लगता था। दूर-दराज से लोग आते है, लेकिन जैसे-जैसे यहां पर आबादी बढ़ने लगी। मेला यहां के बजाए बहरामपुर में लगने लगा। बुजुर्ग कहते है यह बातें पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूप से हमें बाप दादा बताते रहे, हालांकि इसका कोई प्रमाण तो मौजूद नहीं है। लेकिन मुहल्ला का वजूद इस बात का गवाह है कि गाजी मियां के रौजा की वजह से ही इसे गाजी रौजा मुहल्ला कहा जाता है। इससे बढ़कर और कोई दलील नहीं। वैसे गाजी मियां की दरगाह बहराइच में है। यहां के निवासी अब्दुल रशीद बतातें है कि उनके पिता मोहम्मद कबीर व दादा जमीरुल अकबर बताया करते थे कि गाजी रौजा कब्रिस्तान में गाजी मियां आस्ताने पर मेला लगता था। मान्यता यह थी कि गाजी मियां समभाव का अलख जगाने के लिए मध्य भारत, उप्र और बिहार के लोगों को संदेश देने के लिए निकले थे। इसी क्रम में गाजी मियां उर्फ बाले मियां इस स्थान पर ठहरे थे, हालांकि इस बात का कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है। मौखिक रूप से यह बात एक दूसरे से होते हुए यहां तक पहुंची। यहां के रहने वाले ज्यादातर लोगों को यह बात मालूम है। उन्होंने बताया कि इस कब्रिस्तान में शहीदों की भी मजारें हैं। वयोवृद्ध हबीब शाह जो कभी आस्ताने की देखरेख करते थे बताते है कि उनके पिता बुद्धू शाह बताया करते थे कि यहां पर सैकड़ों साल पहले मेला लगता था। तमाम रस्में अदा की जाती थी। दूर-दराज से लोग आते थे। मेला कब बंद हुआ इसके बारे में किसी को सटीक जानकारी नहीं है। आस्ताने पर गुबंद भी था। जो अब धराशायी हो गया। दीवारें भी गिर गयी। उचित देखभाल के अभाव में आस्ताना या रौजा जीर्णशीर्ण हो गया। मोहम्मद आजम ने गाजी मियां पर लिखी जीवनी के आधार पर बताया कि मुगल काल में बादशाह औरंगजेब के दौर में कुछ रिवाज गैर इस्लामी शुरू हो गए। जो इस्लाम के सिद्धांत के खिलाफ थे। जिसको देखकर बादशाह को बुरा लगा। बादशाह ने मजार शरीफ के चारों तरफ फौज लगावा दी ताकि लोग अंदर न जाने पाएं। लोग चहारदीवारी की मिट्टी या ईंट उठाकर ले जाने लगे। दूसरे साल तक करीब 13 जगहों पर हिन्दुस्तान के मुख्तलिफ हिस्सों में मैदान गाजी या मजार गाजी कायम किया। जिसमें गोरखपुर भी शामिल है। यह देखकर बादशाह ने पहरा उठवा लिया ताकि यह बिद्दत और बढ़ने ना पाएं।
जाहिद अली बतातें है कि दादा बताया करते थे कि यहां पर मेला लगता था। इसी रौजा की वजह से ही मुहल्ला का नाम गाजी रौजा पड़ा। यह दो चकों में विभाजित था। एक चक का नाम गाजी रौजा तो दूसरे का नाम अबु बाजार था। गाजी रौजा चक के मालिक खुदा बख्श हुआ करते थे। उन्होंने बताया कि मेला कब लगता था। कब बंद हो गया। इसका कोई प्रमाण तो नहीं है। लेकिन रौजा के बारे में सभी कहते है कि यह गाजी मियां का रौजा है। मोहम्मद फहीम अली बतातें है कि दादा मेले के बारे में बताया करते थे। कब्रिस्तान में मौजूद गाजी रौजा के बारे में सभी वाकिफ है। प्रमाण तो नहीं है लेकिन यह दलील ही काफी है कि इसी रौजा की वजह से मुहल्ला का नाम गाजी रौजा पड़ा। वरना इस मुहल्ला की ऐसी कोई तारीख नहीं है। जो मशहूर हो।  आतिफ ने बताया कि दादा से गाजी मियां के मेले के बारे में बचपन से सुनते थे। लेकिन यह तय है कि इस मुहल्लें की पहचान गाजी मियां के नाम से ही है। मोहम्मद मुनीर सिद्दीकी बताते हैं कि उनके वालिद मोहम्मद जमीर सिद्दीकी गाजी मियां के रौजा का जिक्र किया करते थे। 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

*गोरखपुर में डोमिनगढ़ सल्तनत थी जिसे राजा चंद्र सेन ने नेस्तोनाबूद किया*

*गोरखपुर में शहीदों और वलियों के मजार बेशुमार*

जकात व फित्रा अलर्ट जरुर जानें : साढे़ सात तोला सोना पर ₹ 6418, साढ़े बावन तोला चांदी पर ₹ 616 जकात, सदका-ए-फित्र ₹ 40