जंग-ए-आजादी में उलेमा-ए-अहले सुन्नत ने निभाया अहम किरदार
-दरगाह पर 'एक शाम आजादी के परवानों के नाम' कार्यक्रम
-बीआरडी मेडिकल कालेज में हुई मृत बच्चों के लिए हुई दुआ
गोरखपुर। यौम-ए-आजादी की पूर्व संध्या पर तंजीम उलेमा-ए-अहले सुन्नत व मदरसा फैजान-ए-मुबारक खां शहीद की जानिब से नार्मल स्थित दरगाह हजरत मुबारक खां शहीद पर सोमवार को 'एक शाम आजादी के परवानों के नाम' कार्यक्रम का आयोजन हुआ। जिसमें महफिल बराए इसाले सवाब मुजाहिदीने आजादी किया गया। बीआरडी मेडिकल में मृत बच्चों व उनके परिवार वालों के लिए दुआएं हुई।
अध्यक्षता करते हुए मदरसा दारुल उलूम हुसैनिया के मुफ्ती अख्तर हुसैन ने कहा कि हिंदुस्तान में अंग्रेज आये और अपनी मक्कारी से यहां के हुक्मरां बन गए। सबसे पहले अंग्रेजों के खिलाफ अल्लामा फज्ले हक खैराबादी ने दिल्ली की जामा मस्जिद से जिहाद के लिए फतवा दिया। पूरे मुल्क के हिंदू-मुसलमान तन, मन और धन से अंग्रेजों के खिलाफ सरफरोशी का जज्बा लिए मैदान में कूद पड़े। लाल किले पर सात हजार सुन्नी उलेमा-ए-किराम को अंग्रेजो ने सरे आम फांसी दी। उलेमा ने अपने खून से हिन्दुस्तान को सींचा और लोगो को गुलामी
के जंजीरो से आजाद होने का जज्बा पैदा किया। हजरत सुल्तान टीपू हिन्दुस्तान के पहले मुजाहिद हैं जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ जिहाद किया और सबसे पहले तसव्वुरे आजादी का जेहन दिया।
उन्होंने कहा कि मौलाना हिदायत रसूल जो आला हजरत के शागिर्दे खास थे। इन्हें भी अंग्रेजों ने फांसी की सजा दी थीं। बहुत बड़ें तकरीर दां थे अंग्रेजो के खिलाफ पूरी जिंदगी बोलते रहे। तकरीर करने मे इन्हें महारत हासिल था। आला हजरत इनके बारे मे फरमाते थे कि अगर मुझ जैसा एक कलम का धनी और हिदायत रसूल जैसा एक और तकरीर करने वाला मिल जाता तो हम दोनों मिलकर ही अंग्रेजों को हिंदुस्तान से निकाल देते।
उन्होंने कहा कि सैयद किफायत अली काफी मुरादाबादी हजरत शाह वलीउल्लाह, हजरत शाह अब्दुल अजीज, नवाब सिराजुद्दौला, मुफ्ती किफायत उल्ला कैफी, मुफ्ती इनायत अहमद, हाफिज रहमत खां, मौलाना रजा अली खां, बेगम हजरत महल, मौलाना अब्दुल हक खैराबादी, मौलाना मोहम्मद अली जौहर, शौकत अली जैसे सैकड़ों मुसलमानों ने मुल्क के लिए अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी, यह सभी वतन से बेपनाह मुहब्बत रखते थें।
मुख्य वक्ता तंजीम कारवाने अहले सुन्नत के सदर मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी ने कहा कि जंग-ए- आजादी में उलेमा-ए- अहले सुन्नत ने अहम किरदार निभाया। आला हजरत के दादा अल्लामा रजा अली खां के सर पर अंग्रेजो ने 600 रुपये का ईनाम रखा था। जुर्म क्या था जब 1857 मे गदर का मामला आया था तो ये भी उसमें शामिल थे। आला हजरत के वालिद दिन मे लोगों को पढ़ातें थें और रात मे घोड़े खरीद-खरीद कर मुजाहिदों मे तकसीम करते थे। बख्त खां जब बरेली पहुंचे तो सिर्फ बरेली से चौदह हजार मुसलमान जंग-ए-आजादी के लिये निकले, ये उलेमा-ए-अहले सुन्नत का किरदार था।
उन्होंने कहा कि जंग-ए-आजादी में हजरत अल्लामा फज्ले हक खैराबादी का नाम सबसे पहले आता है उसके बाद हजरत सैयद किफायत अली काफी मुरादाबादी हैं ये अपने वक्त के बहुत बडे़ जंग-ए- आजादी के मुजाहिद थें। मुफ्ती सदरूद्दी देहलवी जंग-ए-आजादी के वह उलेमा हैं जिन्होंने लोगों मे आजादी का जज्बा पैदा किया और एक नई रूह फूंकी। इन्हीं में अल्लामा अहमदुल्लाह शाह मद्रासी जो एक बहुत बडे़ वलिये कामिल और एक मज्जूब बुजुर्ग थे जब अल्लामा फज्ले हक खैराबादी ने अंग्रेजो के खिलाफ जिहाद का फतवा दिया तो उस फतवे पर इस बुजुर्ग के भी दस्तखत थे । इस बुजुर्ग ने पूरे हिंदुस्तान मे घूम-घूम कर लोगों मे आजादी का एक माहौल पैदा किया। उन्होंने अपील किया कि मुसलमान जोश-ओ-खरोश के साथ यौमे-ए- आजादी का जश्न मनाएं और शान से तिरंगा लहराएं। जंग-ए-आजादी में जिन लोगों ने कुर्बानियां दीं, उनको याद करें।
संचालन करते हुए तंजीम के मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही ने कहा कि सुल्तान बहादुर शाह जफर ने उलेमा-ए-किराम को बुलाया और मशविरा तलब किया कि अंग्रेजों के खिलाफ जंग क्या मायने रखती है क्या इनके इक्तेदार को तसलीम किया जाये या फिर इनसे जंग की जायें। चुनांचे हजरत अल्लामा फज्ले हक खैराबादी ने अंग्रेजो के खिलाफ जिहाद का फतवा दिया और कहा अंग्रेजों से जिहाद करना जायज है। जब आपने फतवा दिया तो पूरे हिंदुस्तान मे कोहराम मच गया। फतवा देने के कई महीने बाद अंग्रेजों ने आपको गिरफ्तार किया अदालत में गये । जज ने पूछा क्या ये फतवा आपका हैं। आपने बड़े दिलेराना अंदाज मे फरमाया हां ये मेरा फतवा है। आप पर मुकदमा चला आपने ने कोई वकील नही रखा बल्कि खुद अपने मुकदमे को लड़ते और ऐसी जिरह और ऐसी बहस करते की अंग्रेजों को लगने लगा अगर कुछ दिन और मुकदमा चला तो फज्ले हक हमें देश से निकालकर रहेगा और हमारे वजूद को हिंदुस्तान मे गलत साबित करके रहेगा। चुनांचे अग्रेजों ने कहा चूंकि तुमनें हमारे खिलाफ जंग का फतवा दिया है और हमारे इक्तेदार को तसलीम नहीं किया इस पर हम तुम्हें काले पानी की सजा देते हैं। चुनांचे आपको काला पानी अंडमान मे भेज दिया गया। सन् 1861 मे आपका वहीं इंतकाल हुआ और वंही मजार शरीफ है। ऐसे ही बख्त खां जो बहादुर शाह जफर के सेना के सालार-ए-आजम थे बहुत बड़े सिपह सालार थे और बहुत बड़े जंग-ए- आजादी के हीरो थे। मुफ्ती सदरूद्दीन देहलवी को भी अंग्रेजो ने काला पानी की सजा सुनाई थी।
कार्यक्रम का आगाज कारी शराफत हुसैन कादरी ने तिलावत-ए-कलाम पाक से किया। नात शरीफ पेश की गयीं। अंत में फातिहाखानी व कुल शरीफ की रस्म हुई। सलातो सलाम हुआ। शरीनी तकसीम की गयीं।
इस मौके पर दरगाह के सदर इकरार अहमद, मौलाना असलम रजवीं, कारी महबूब रजा, हाफिज अंसार रजा, मौलाना गुलाम दस्तगीर, हाफिज हिदायतुल्लाह, हाफिज मोहम्मद कलाम, हाफिज शहादत हुसैन, हाफिज अब्दुल अजीम, हाफिज मोहम्मद फैज, मुनव्वर अहमद, तौहीद अहमद, अतहर, तनवीर, रमजान अली सहित तमाम लोग मौजूद रहें।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें