कुर्बानी के जानवर में ऐब नहीं होना चाहिए : मुफ्ती अजहर


-दरगाह हजरत मुबारक खां शहीद पर दर्स का दूसरा दिन

गोरखपुर। तंजीम उलेमा-ए-अहले सुन्नत की जानिब से नार्मल स्थित दरगाह हजरत मुबारक खां शहीद मस्जिद में कुर्बानी पर दस दिवसीय दर्स (व्याख्यान) कार्यक्रम के दूसरे दिन गुरुवार को इस्लॉमिक वक्ता मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी ने बताया कि जो मालिके निसाब अपने नाम से एक बार कुर्बानी कर चुका है और दूसरे साल भी वह मालिके निसाब है तो फिर इस पर अपने तरफ से कुर्बानी वाजिब है।
उन्होंने कहा कि कुर्बानी के जानवर की उम्र महत्वपूर्ण होती है। ऊंट पांच साल, भैंस दो साल, बकरी व खशी एक साल । इससे कम उम्र होने की सूरत में कुर्बानी जायज नहीं, ज्यादा हो तो अफजल है। अलबत्ता दुम्बा या भेड़ छः माह का जो इतना बड़ा हो कि देखने में साल भर का मालूम हेाता हो उसकी कुर्बानी जायज है। कुर्बानी के जानवर में एेब (दोष)  नहीं होना चाहिए। अगर थोड़ा से एेब हो तो कुर्बानी हो जायेगी मगर मकरुह होगी और ज्यादा हो तो कुर्बानी होगी ही नहीं। अंधे जानवर की कुर्बानी जायज नहीं इतना कमजोर जिसकी हड्डियां नजर आती हो और लगंड़ा जो कुर्बानी गाह तक अपने पांव से जा न सकें और इतना बीमार जिसकी बीमारी जाहिर हो जिसके कान या दूम तिहायी से ज्यादा कटे हो इन सब की कुर्बानी जायज नहीं। ऊंट और भैंस वगैरह में सात आदमी शिरकत कर सकते हैं जबकि उन सब की नियत कुर्बानी की हों। कुर्बानी और अकीका की शिरकत हो सकती है।

संचालन करते हुए दरगाह मस्जिद के इमाम मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही ने कहा कि बाज लोग यह ख्याल करते हैं अपनी तरफ से जिदंगी में सिर्फ एक बार कुर्बानी वाजिब है यह शरअन गलत है और बेबुनियाद है इसलिए कि मालिके निसाब पर हर साल अपनी तरफ से कुर्बानी वाजिब है। उन्होंने बताया कि भेड़, बकरी, दुम्बा सिर्फ एक आदमी की तरफ से एक जानवर होना चाहिए और भैंस, ऊंट में सात आदमी शिरकत कर सकते है।

इस मौके पर अब्दुल अजीज, शहादत अली, अजीम, अनवर हुसैन, अशरफ, सैफ रजा, शारिक, शाकिब, अब्दुल राजिक, मनौव्वर अहमद, कारी शराफत हुसैन कादरी, कारी महबूब रजा, तौहीद अहमद, मोहम्मद अतहर, मोहम्मद सैफ, मोहम्मद कैफ, नूर मोहम्मद दानिश, रमजान, कुतबुद्दीन, नवेद आलम आदि मौजूद रहे।

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