गोरखपुर : बड़े जानवरों की कुर्बानी में हिस्सा लेने के लिए तैयारी शुरु


 -लगने लगे बैनर व पोस्टर

सैयद फरहान अहमद
गोरखपुर। अल्लाह के नाम पर कुर्बानी देने का त्यौहार 2, 3 व 4 सितम्बर को परम्परागत तरीके से मनाया जायेगा। मुस्लिम घरों में तैयारियां शुरु हो गयीं हैं। जहां इसके लिए बकरों के बाजार सजने लगे हैं वहीं बड़ें जानवर (भैंस) में हिस्सा लेने का बैनर व पोस्टर शहर में लगना शुरु हो गया हैं। लोगों ने पेशगी रकम जमा करानी भी शुरु कर दी हैं। काबिलोगौर कि हर साल शहर मे तीन दर्जन से अधिक स्थानों पर बड़ें जानवर (भैंस) की कुर्बानी तीन दिनों तक हर्षोल्लास के साथ होती चली आ रही हैं। इस बार भी तैयारियां शुरु हो चुकी हैं।

रेती रोड स्थित मदीना मस्जिद  के सामने पर दारुल उलूम दरिया चक रसूलपुर का बैनर लगा हुआ हैं। जिसमें लिखा हैं कि जो लोग बड़ें जानवर (भैंस) में हिस्सा लेना चाहते हैं वह प्रति हिस्सा 3000 व 5000 रुपया मदरसे में जमा कर कुर्बानी में हिस्सा ले सकते हैं। बतातें चलें कि एक भैंस में सात लोगों की तरफ से कुर्बानी दिए जाने का प्राविधान हैं। बैनर में तीन मोबाइल नम्बर भी दर्ज हैं। कई जगह पोस्टर भी लगाये जा रहे हैं। यह पोस्टर व बैनर लोगों की सहूलियत के लिए लगाये जा रहे हैं।

वहीं मदरसा दारुल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार के प्रधानाचार्य हाफिज नजरे आलम कादरी ने बताया कि हर साल की तरह इस साल भी मदरसे में बड़ें जानवर (भैंस) की कुर्बानी का एहतमाम किया गया हैं। इस सबंध में 27 अगस्त रविवार को शहर के दस क्षेत्रों में बैनर लग जायेगा। उन्होंने बताया कि जो लोग बड़ें जानवर की कुर्बानी में हिस्सा लेना चाहते हैं वह मदरसे से सम्पर्क कर पेशगी की रकम 2000 व 3000 रुपया प्रत्येक हिस्से के हिसाब से जमा करा सकते हैं।
उन्होंने लोगों से अपील किया हैं कि कुर्बानी खुश दिली से अदा करें। कुर्बानी की खाल से इस मदरसे को जरुर नवाजें।

हाफिज नजरे आलम ने बताया कि रविवार से मदरसे से एक टीम निकलेगी जो मुस्लिम घरों में जाकर हैंडबिल बांटेगी। हैंडबिल में कुर्बानी के फजायल, कुर्बानी की दुआ व  तरीका, गोश्त तकसीम और खाल जमा कराने के लिए क्लेक्शन सेंटर आदि का उल्लेख रहेगा।

नार्मल स्थित दरगाह हजरत मुबारक खां शहीद स्थित मदरसा फैजाने मुबारक खां शहीद के प्रधानाचार्य मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही ने बताया कि मदरसे द्वारा घर-घर हैंडबिल बांटी जा रही हैं। जिसमें कुर्बानी के जरुरी मसायल दर्ज हैं और साथ ही कुर्बानी की खाल इस मदरसे मे जमा करने की अपील भी हैं।

मुफ्ती-ए-गोरखपुर मुफ्ती अख्तर हुसैन ने बताया कि इस्लाम में कुर्बानियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। उसी में से एक ईद-उल-अजहा है। जो एक अजीम बाप की अजीम बेटे की कुर्बानी के लिए याद किया जाता है। दुनिया के तीन सबसे बड़े मजहब इस्लाम, यहूदी, ईसाई तीनों के एक पैगम्बर जिनका नाम हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम है। उनसे मंसूब एक वाक्या इस त्यौहार की बुनियाद है।  मालिके निसाब पर कुर्बानी वाजिब है। इसी वजह से हर मुसलमान इस दिन कुर्बानी करवाता है। मजहबे इस्लाम में ज्यादा से ज्यादा कुर्बानी का हुक्म किया गया है। कुर्बानी का अर्थ होता है कि जान व माल को खुदा की राह में खर्च करना। कुर्बानी हमें दर्स देती है कि जिस तरह से भी हो सके अल्लाह की राह में खर्च करो।
हदीस में हैं कि साहाबा ने अर्ज किया या रसूलल्लाह सल्लल्लाहौ अलैहि वसल्लम यह कुर्बानी क्या है। आप ने फरमाया तुम्हारे बाप हजरत इब्राहिम की सुन्नत है। खास जानवर को खास दिनों में कुर्बानी की नियत से जिब्ह करने को कुर्बानी कहते है। हदीस में इसके बेशुमार फजीलतें आयी है। हदीस में आया है कि हुजूर ने फरमाया कि यौमे जिलहिज्जा (दसवीं जिलहिज्जा) में इब्ने आदम का कोई अमल खुदा के नजदीक खून बहाने यानी कुर्बानी करने से ज्यादा प्यारा नहीं है। वह जानवर कयामत के दिन अपने सींग और बाल और खुरों के साथ आयेगा और कुर्बानी का खून जमीन पर गिरने से पहले खुदा के नजदीक मकामें कुबूलियत में पहुंच जाता है। लिहाजा इसको खुशी से करो। कुर्बानी में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लें।

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