तीन दिन होगी कुर्बानी : मुफ्ती अजहर



-गाजी रौजा मस्जिद व दरगाह हजरत मुबारक खां  शहीद पर दर्स का


गोरखपुर। तंजीम उलेमा-ए-अहले सुन्नत की जानिब से गाजी रौजा व नार्मल स्थित दरगाह हजरत मुबारक खां शहीद मस्जिद में कुर्बानी पर दस दिवसीय दर्स (व्याख्यान) कार्यक्रम के नौवें दिन गुरुवार को इस्लामिक वक्ता मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी ने बताया कि चर्म कुर्बानी या गोश्त वगैरह जिब्ह करने वाले को बतैार उजरत देना जायज नहीं। बेहतर यह है कि कुर्बानी के गोश्त के तीन हिस्से कर लें। एक हिस्सा फुकरा और मशाकीन , एक हिस्सा दोस्त व अहबाब और एक अपने अहलो अयाल के लिए रख छोड़े।  अगर घर के लोग ज्यादा हो तो सब गोश्त रख सकते है और सदका भी कर सकते है और बेहतर बांटना ही है। कुर्बानी का गोश्त काफिर को न दिया जायें। अगर जानवर में कई लोग शरीक हो तो सारा गोश्त तौल कर तक्सीम किया जाये। अंदाज से नहीं। अगर किसी को ज्यादा गोश्त चला गया तो माफ करने से भी माफ नहीं होगा। कुर्बानी की खाल सदका कर दें या किसी दीनी मदरसें को दे।

उन्होंने बताया कि जिलहिज्जा की 10,11,12 तारीख (2, 3 व 4 सितम्बर)  कुर्बानी के लिए खास दिन है। मगर पहला दिन अफजल है। देहात में 10 जिलहिज्जा की तुलू फज्र के बाद ही से कुर्बानी हो सकती है मगर बेहतर यह है कि तुलू आफताब के बाद कुर्बानी की जाये। शहर में नमाजें ईद से पहले कुर्बानी  नहीं हो सकती। कुर्बानी दिन में करनी चाहिए। दरमियानी रातों में जिब्ह करना मकरूह है।



मुफ्ती-ए-गोरखपुर मुफ्ती अख्तर हुसैन ने कहा कि एक मशहूर हदीस है कि नबी-ए-पाक ने इरशाद फरमाया कि सींग वाला मेढ़ा लाया जायें जो स्याही में चलता हो (तीन बार इरशाद फरमाया) और स्याही में बैठता हो, पेट स्याह हो और आंखे स्याह (काली) हो, कुर्बानी के लिये हाजिर किया गया। नबी-ए-पाक ने फरमाया छुरी लाव, फिर फरमाया इसको पत्थर पर तेज कर लो। फिर नबी-ए-पाक ने छुरी ली और मेढें को लिटाया और उसे जिब्ह किया और दुआं की इलाही तू इस को मेरे व मेरी आल और उम्मत की तरफ से कुबूल फरमा। लिहाजा जो लोग हैसियत वाले हो वह अपनी तरफ से कुर्बानी करवाने के बाद नबी-ए-पाक की तरफ से भी कुर्बानी करवाये तो बेहतर हैं।


उन्होंने बताया कि तकबीरे तशरीक वाजिब हैं, जरुर पढ़ें।  मुसलमानों के लिए बेहतर है कि दसवीं जिलहिज्जा को नमाज से पहले कुछ न खायें, गुस्ल करें, साफ सुथरे या नये कपड़े हसबे इसतात पहने खुश्बू लगाये, ईदगाह को तक्बीरे तशरीक बाआवाजें बुलंद कहते हुए  एक रास्ते से जायें और दूसरे रास्ते से वापस आयें फिर कुर्बानी करें।


इस मौके पर हाफिज रेयाज अहमद, मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही, ताबिश सिद्दीकी, शहबाज, औरंगजेब, जकी अहमद, मन्नान, अब्दुल अजीज, शहादत अली, अजीम, अनवर हुसैन, अशरफ, सैफ रजा, शारिक, शाकिब, अब्दुल राजिक,  तौहीद अहमद, मोहम्मद आजम,  मोहम्मद कैफ, रमजान, कुतबुद्दीन आदि मौजूद रहे।


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