तीन तलाक - सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मुस्लिम समाज में बेचैनी
गोरखपुर । सुप्रीम कोर्ट के तीन तलाक पर दिए गए फैसले से मुस्लिम समाज में बेचैनी का माहौल हैं। मुस्लिम समाज के धर्मगुरुओं, महिलाओं व बुद्धिजीवी वर्ग ने इस फैसले पर अफसोस का इजहार किया हैं।
मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से दुख हुआ हैं। तीन तलाक का नियम कुरआन व हदीस से साबित हैं। तीन तलाक पर जिस तरह का हव्वा खड़ा किया गया वैसा किया नहीं जाना चाहिए था। इस्लामी नियम तो यह हैं कि अगर पति-पत्नी में कोई झगड़ा है तो दोंनो परिवार के लोग मध्यस्थता करें, इसके लिए 90 दिन का समय भी है। इस दौरान भी सुलह की स्थिति न बन पाए तो फिर काजी के माध्यम से तलाक की प्रक्रिया पूरी होती है। इस्लाम में इस काजी की कल्पना कोर्ट के जज की ही तरह की गई है। इस्लामी कानून के स्रोत कुरआन व हदीस हैं और ताकयामत तक रहेंगे। मुस्लिम पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं हैं। तीन तलाक हमेशा से मान्य हैं और हमेशा मान्य रहेगा।
मुफ्ती-ए-गोरखपुर मुफ्ती अख्तर हुसैन अजहरी मन्नानी ने कहा कि आज का दिन मुस्लिम समाज के लिए दुख का दिन हैं। कोर्ट द्वारा तीन तलाक का अख्तियार खत्म करना अफसोसनाक हैं। इससे शौहर और बीबी की जिंदगी में सुधार नहीं होगा बल्कि उन दोनों को खुद अपने हालत में सुधार करना पड़ेगा और इसके लिए दीनी तालिम जरुरी हैं। तलाक पर इस्लाम में खुला रास्ता है। एक ही समय पर तीन तलाक देने पर इस्लाम में मनाही जरुर है लेकिन अगर कोई एक साथ तीन तलाक दे देगा तो तलाक हो जायेगी। तीन तलाक का अख्तियार शौहर को हासिल हैं । यह कुरआन व सुन्नत से साबित हैं। उन्होंने कहा कि संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर ने भी कहा था कि यहां हर धर्म के कानून को मानना होगा। धर्म के अनुसार ही कानून बनाना होगा और धर्म के मामले में दखल नहीं दी जायेगी।
आल इंडिया टीचर्स एसोसिएशन मदारिसे अरबिया जनपद शाखा के जनरल सेक्रेट्री हाफिज नजरे आलम कादरी ने कहा कि सुप्रीम कौर्ट के फैसले का सम्मान करते है लेकिन इससे कोई मसला हल होने वाला नहीं है । भारत सरकार अगर मुस्लिम विद्वान मुफ़्ती वगैरह से मिलकर क़ानून बनाती है तो ठीक है वरना मुसलमान कुरआन व हदीस में मुदाखलत (दखलअंदाजी) बर्दाश्त नहीं करेगा ।
मस्जिद हसनैन घासीकटरा के इमाम हाफिज रज्जब अली ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मुसलमानों को सदमा पहुंचा हैं। उन्होंने कहा कि जो इस्लाम के कानून को अल्लाह का कानून मानता हैं उसे दूसरों के दरवाजे पर जाने की जरुरत नहीं। जिसका इस्लाम से ताल्लुक नहीं दर बदर की ठोंकर खाता फिरेगा। तीन तलाक के बहाने देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की कोशिश की जा रही है। यह एक राजनीतिक हथकंडा है। कुछ लोग मुस्लिम औरतों को इस्लाम के खिलाफ बहका रहे हैं। शरीयत में हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
शिक्षिका गौसिया सुम्बुल ने कहा कि कोर्ट के फैसले से निराशा हुई हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ 1400 पुराना आज भी सबसे ज्यादा मार्डन लॉ हैं। कुरआन और हदीस के मुताबिक तीन तलाक सैद्घांतिक रूप से दुरुस्त है, लेकिन एक सांस में ही तीन बार तलाक बोलने को इस्लाम में कभी अच्छा नहीं माना गया है लेकिन अगर ऐसा होता हैं तो तलाक तो हो ही जायेगी। इसी धारणा पर शरई अदालत में मुसलमानों के फैसले होते रहे हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
समाज सेविका शबनम अमीन ने कहा कि कोर्ट के फैसले से पूरा मुस्लिम समाज गमगीन व बेचैन हैं। मुस्लिम समाज हमेशा से कुरआन व हदीस पर चलता आया हैं और ताकयामत तक उसी पर चलता रहेगा। यदि किसी पति-पत्नी की आपस में नहीं बनती तो उन्हें एक तलाक का हुक्म होता है। इस प्रकार से तलाक लेने के बाद भी यदि उन दोनों में आपसी सहमति बनती है, तो वह फिर से एक साथ रह सकते हैं, जबकि दो तलाक लेने के बाद वह एक साथ रहना चाहते हैं तो उनका फिर से निकाह कराया जाता है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान हैं। सरकार ने मुसलमानों को मुश्किल में डाला हैं। अपने को सेक्युलर कहने वाली पार्टियां इस मसले पर खामोश हैं।
ग्रहणी फरहा दीबा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मुसलमानों का दिल टूटा हैं। सरकारें भारतीयों के उत्थान और उन्हें हक दिलाने के लिए होती हैं मगर हाल के दिनों में जिस तरह से सरकार मुस्लिमों को हक दिलाने का दावा कर रही है वो शक के दायरे में आता है। अगर वाकई सरकार मुसलमानो का हक दिलाना चाहती है तो पहले वो मुसलमानों की हिफाज़त करे। उनकी इबादतगाहो की हिफाज़त करे और मुस्लिम औरतों के शौहरों की हिफाज़त करे। निकाह और तलाक इस्लामी कानून से होंगे। सरकार चाहे जो भी कर ले इस्लामी कानून में कोई परिवर्तन नही होगा। इतना ज़रूर है कि सरकार को शिक्षा में बदलाव करते हुए सभी संस्थानों में इस्लामी शिक्षा अनिवार्य कर देना चाहिए ।
अधिवक्ता मोईन खान ने कहा कि यह ऐतिहासिक फैसला नहीं है, सरकार के दबाव में लिया गया फैसला है। शरीयत के कानून में दखलअंदाजी ठीक नहीं। माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हम विरोध भी नहीं कर सकते हैं, नहीं तो लोगों का कोर्ट से विश्वास भी उठ जाएगा।
अधिवक्ता तौहीद अहमद ने कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय निराशा पूर्ण हैं। पांच जजों की संविधान पीठ का 3:2 के बहुमत पर आधारित निर्णय दिया गया हैं। मुख्य न्यायमूर्ति ने कहा कि तलाक-ए-बिद्दत संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लघंन नहीं करता हैं और यह भी कहा कि तीन तलाक मुस्लिम पर्सनल लॉ का मामला हैं। यह फैसला शरीयत में अनुचित हस्तक्षेप हैं।
अधिवक्ता मसूदुल हसन ने कहा कि जिस तरह से तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आया हैं । उम्मीद हैं कि भविष्य मेँ तर्क और साक्ष्य के आधार पर निर्णय होगा न कि आस्था, विश्वास पर।
अधिवक्ता सरताज अहमद ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हम सम्मान करते हैं लेकिन क्या सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के मुताबिक केंद्र सरकार कानून बनाएगी या शरीयत के कानून का उल्लघंन होगा या महज एक मात्र राजनीतिक स्टंट ही बन कर रह जायेगा इस पर भी विचार की ज़रूरत है।
खेल शिक्षिका भगवती प्रसाद कन्या महाविद्यालय फ़िरोज़ आरा ने कहा कि तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सराहनीय है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला हम सभी मानते हैं। इस फैसले से महिलाओं का शोषण बंद होगा मगर देखना ये है कि यह कब से प्रभावी होगा। तलाक का मुद्दा सिर्फ मुस्लिम औरतों के लिए ही नही होना चाहिए बल्कि सभी धर्मो की औरतों के लिए होना चाहिए तभी जाकर सही मायने में महिलाओं का सामाजिक सुधार होगा इस सम्बन्ध में मुझे एक बात और कहनी है कि मुसलिम औरतों को अपने मसायल पहले अपने घरों में ही हल करने चाहिए ताकि कोर्ट जाने की नौबत ही न आये।
तफवीज़ द्वारा तलाक देने का अखतियार औरतों को दिया जाये ताकि जब उनको लगे कि साथ निभाना मुशकिल है उपयोग करें (2)आस्था बदलने पर महिला का वैवाहिक विच्छेद यदि वह चाहे कर दिया जाये क्योंकि वह धर्म भीरू होती है कानून बनाते समय इनका संग्यान लिया जाये
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