हर साहिबे हैसियत पर कुर्बानी वाजिब : मौलाना मकसूद




-दरगाह हजरत मुबारक खां शहीद पर दर्स का छठवां दिन


गोरखपुर। तंजीम उलेमा-ए-अहले सुन्नत की जानिब से नार्मल स्थित दरगाह हजरत मुबारक खां शहीद मस्जिद में कुर्बानी पर दस दिवसीय दर्स (व्याख्यान) कार्यक्रम के छठवें   दिन सोमवार को दरगाह मस्जिद के इमाम मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही ने बताया कि 2, 3 व 4 सितंबर को हिंदुस्तान में ईद-उल-अजहा मनाई जाएगी। ईद-उल-अजहा के मौके पर मुसलमान नमाज पढ़ने के साथ-साथ जानवरों की कुर्बानी भी देते हैं। इस्लाम के अनुसार कुर्बानी करना हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है, जिसे अल्लाह ने मुसलमानों पर वाजिब करार दिया है। अल्लाह को हजरत इब्राहिम व हजरत ईस्माइल अलैहिस्सलाम की कुर्बानी की अदा इतनी पसंद आई कि हर साहिबे हैसियत पर कुर्बानी करना वाजिब कर दिया। वाजिब का मुकाम फर्ज से ठीक नीचे है। अगर साहिबे हैसियत होते हुए भी किसी शख्स ने कुर्बानी नहीं दी तो वह गुनाहगार है। ऐसे में जरूरी है कि कुर्बानी करे, महंगे और सस्ते जानवरों से इसका कोई संबंध नहीं है।


उन्होंने बताया कि एक हदीस में आया है कि नबी-ए-पाक ने फरमाया सबसे पहले जो काम आज  (ईद-उल-अजहा के दिन) हम करेंगे वह यह है कि नमाज पढ़ेगें फिर उसके बाद कुर्बानी करेंगे। जिसने ऐसा किया उसने हमारे तरीके को पा लिया और जिसने नमाज से पहले जिब्ह कर लिया वह गोश्त है जो उसने पहले से अपने घर वालों के लिए तैयार किया । कुर्बानी से उसका कुछ ताल्लुक नहीं है।


इस्लामिक वक्ता मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी ने कहा कि इस्लाम के मुताबिक वह शख्स साहिबे हैसियत है, जिस पर जकात फर्ज है। वह शख्स जिसके पास साढ़े सात तोला सोना या फिर साढ़े 52 तोला चांदी है या फिर उसके हिसाब से पैसे। आज की हिसाब से अगर आपके पास 25 हजार रुपये हैं तो आप साढ़े 52 तोला चांदी के दायरे में हैं। इसके मुताबिक जिसके पास 25 हजार रुपये के करीब हैं उस पर कुर्बानी वाजिब है। ईद-उल-अजहा के मौके पर कुर्बानी देना जरूरी बन जाता है।


इस मौके पर अब्दुल अजीज, कारी महबूब रजा, अनवर हुसैन, अशरफ, सैफ रजा, शारिक, कारी शराफत हुसैन कादरी,  शहादत अली, अजीम,  शाकिब, अब्दुल राजिक, मनौव्वर अहमद, मोहम्मद सैफ, मोहम्मद कैफ, रमजान, कुतबुद्दीन, आदि मौजूद रहे।

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