गोरखपुर - अतीत में बाढ़ का कहर अभी तक सभी के जेहन में महफूज
गोरखपुर। हर बार की तरह इस बार भी बाढ़ का कहर हैं। जनपद की नियति बन चुकी हैं बाढ़। हर साल ढाती हैं कहर। जानमाल की होती हैं हानि। कुदरती आपदा का रौद्र रूप देख सभी के होश हो जाते हैं फाख्ता। यह सदियों से चला आ रहा है। जुलाई व अगस्त में बाढ़ की आमद हो जाती है। यह माह जैसे करीब आता है। शहरवासियों में सिहरन पैदा कर देता है। क्योंकि अतीत में बाढ़ का कहर अभी तक सभी के जेहन में महफूज है। जिसका कहर गांव से लगायत शहर तक सभी ने झेला हैं। जनपद में आधा दर्जन नदियां करीब हर साल अपना गुर्राता तेवर दिखाती है। कहर बरपा कर बड़ा नुकसान करती है। जिसकी भरपाई मुश्किल रहती है। जनपद की विशेष भौगोलिक संरचना के चलते नदियों का कहर हर साल होता है। लाखों एकड़ फसल खत्म हो जाती है। बाढ़ गोरखपुर की नियति बन चुकी है। जुलाई और अगस्त करीब आते ही बाढ़ पर चर्चा आम हो जाती है।
इतिहास के आईने में बाढ़ के विभीत्स रूप से वाकिफ करा रहे है। जैसे ही नजर इतिहास पर पड़ती है तो रोंगटा खड़ा हो जाता है। वर्ष 1974 की बाढ़ ने तो सारे रिकार्ड ही तोड़ दिए थे। ज्यादातर बंधे धराशायी हो गए थे। साढ़े छह लाख लोग प्रभावित हुए थे। दो लाख एकड़ बोई गई फसल बर्बाद हुई। करीब 14 हजार लोगों को छोड़ना पड़ा घर। सेना लगानी पड़ी। करीब 725 नावें चलाई गयी। बाढ़ का जबरदस्त तांडव से सभी दंग रह गए। इसी सिलसिले से दो कदम आगे रही वर्ष 1998 की बाढ़। बीसवीं सदीं की सबसे भीषण बाढ़ में शुमार किया जाता है। इस त्रासदी ने 127 लोगों की हुई थी मौत। सभी नदियां अपने खतरे के निशान को पार कर गई, 20 बंधे टूट गए थे। जुलाई से सितंबर तक करीब तीन महीने तक कायम इस भयंकर आपदा ने सबकी रूह झकझोंर दी। बाढ़ ने सबके सामने तांडव का नंगा नाच किया। डेढ़ हजार गांव हुए प्रभावित। जिसमें ग्यारह सौ गांव पूरी तरह से डूब गए। करीब पन्द्रह लाख लोग आपदा के शिकार। दस लाख लोगों के घर डूब गए थे। करीब 1700 नावें चलानी पड़ी। 24 अगस्त से 11 सितंबर 1998 तक हवाई जहाज से गिराया गया था भोजन। बह गए थे तीन पुल, कई राजमार्ग, कई पेट्रोल पम्प और पुलिया। इसी तरह 1992 की बाढ़ ने भी अपने तेवर के जरीए 26 लोगों को काल के गाल में खा लिया। वर्ष 1999 की बाढ़ में दो लोग मारे गए थे। आर्थिक रूप से हुई क्षति की गणना करने में मुश्किल हुई। वर्ष 2000 की बाढ़ में 23 लोगों की जिदंगी खत्म हो गयी। वर्ष 2001 की बाढ़ ने लील ली थी 40 जिदंगियां। वर्ष 2007 की बाढ़ में 38 लोगों की मृत्यु हुई। वर्ष 2008 में भी मारे गए थे लोग।
किस्सा मुख्तसर चार दशक में गई तीन सौ से ज्यादा अधिक जानें। जनपद में मौजूद नदियों का जायजा लें तो पता चलता है कि नदियों की लंबाई में राप्ती 134 किमी, घाघरा 77 किमी, आमी 77 किमी, रोहिन 30 किमी, कुआनों 23 व गुर्रा 17 किलोमीटर है। छह नदियों पर करीब 64 बांध बनाए गए है। जनपद में बहने वाली छह नदियों पर करीब पांच दर्जन बांध बनाए गए है। इनमें हाबर्ट बांध पर करीब पांच दर्जन बांध बनाए गए है। इनमें हाबर्ट बांध करीब 39 किमी और माधोपुर बांध करीब 36 किमी का है। शहर की सुरक्षा की दृष्टि से यह बेहद संवेदनशील है। इन बंधों से करीब एक लाख 13 हजार हेक्टेयर का क्षेत्र सुरक्षित होता है। लाखों रूपए इनकी मरम्मत पर खर्च होता है। प्रशासन भी इस मामले मेें गंभीर रहता है। लेकिन कुदरत के कहर से लड़ना हमेशा मुश्किल रहा।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें