दमिश्की (1254 ई० – 1327 ई.) :Untold Muslim Scientist, philosophers story

 



दमिश्की का जन्म सीरिया की राजधानी दमिश्क़ में हुआ जो अपने ज़माने में ज्ञान का मुख्य केन्द्र था। क़ज़वीनी की तरह दमिश्क़ी ने भी अंतरिक्ष ज्ञान पर क़लम उठाया। दमिश्की भी इस्लामी धर्मशास्त्र के ज्ञानी थे और दमिश्क़ नगर के निकट रबू नामी क़स्बे के इमाम थे।

दमिश्क़ी की बहुत कम किताबें बची हैं लेकिन उन्होंने भूगोल के साथ-साथ भू-गर्भ शास्त्र पर जो जानकारी दी है वह ध्यान देने योग्य है। भूकम्पों के बारे में उनके शोध प्रशंसनीय हैं। धरती के कंपन्न और भूकम्प के बारे में वह लिखते हैं।

“बड़ी मात्रा में गैस धरती के अन्दर एकत्रित हो जाती है क्योंकि भूमि का ऊपरी भाग कठोर है तो गैस बाहर निकलने के लिए जोर लगाती है जिसके कारण धरती पर कंपन्न होता है और इसी कंपन्न से भूकम्प के झटके आते हैं। यह गैस भू-गर्भ में मौजूद ज्वलनशील पदार्थों से उत्पन्न होती है। भूकम्पों का एक कारण यह भी है कि पहाड़ों के कुछ भाग टूटकर धरती पर गिरते हैं और उनके गिरने से जोरदार धमाका होता है और मीलों तक धरती काँप जाती है।”

उन्होंने ज्वालामुखी पर्वतों के फटने और उनके कारण धरती के धरातल पर होने वाले परिवर्तनों के बारे में भी लिखा है। उन्होंने बताया है कि उनके कारण घाटियां मैदानों में और मैदान घाटियों और नदियों में बदल जाते हैं।
दमिश्क़ी ने चट्टानों के बनने और उनके आकार के बारे में भी विस्तृत जानकारी दी है।
दमिश्क़ी की पुस्तकों में भी उस युग के विद्वानों की तरह खनिजों, जल स्रोतों, पर्वतों, सागरों और देशों की स्थिति का वर्णन है। उन्होंने लिखा है कि भूकम्पों, ज्वालामुखियों और हवा के कारण धरती की सतह पर परिवर्तन
आते हैं। कई स्थानों पर भूकम्प के झटकों के बाद नए जल स्त्रोत बन जाते हैं और नई नदियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।

इसी प्रकार तेज हवा मिट्टी और रेत उड़ाकर मैदानों की शक्ल बदलती रहती है।

दमिश्क़ी का देहांत 73 वर्ष की आयु में सफ़ा के स्थान पर हुआ।

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