पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि व आलिहि वसल्लम की औलादे किराम












 


इस बात पर तमाम मुअर्रिख़ीन का इत्तेफाक है कि पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की औलादे किराम की तादाद छह है। दो फ़र्ज़न्द हज़रते क़ासिम व हज़रते इब्राहीम और चाचा साहिबज़ादियां हज़रते ज़ैनब, हज़रते रुकय्या, हज़रते उम्मे कुलसूम व हज़रते फातिमा रदीयल्लाहु तआला अन्हुमा। लेकिन बाज मुअर्रिख़ीन ने यह बयान किया है कि आपके एक साहिबजादे अब्दुल्ला भी हैं जिनका लक़ब तैय्यब व ताहिर था।इस क़ौल की बिना पर पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुक़द्दस औलाद की तादाद सात है तीन साहिबज़ादगान और चार साहिबज़ादियां। हज़रत शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने इसी क़ौल को ज्यादा सही बताया है। इसके अलावा पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुक़द्दस औलाद के बारे में दूसरे अक़वाल भी हैं जिनका तज़्किरा तवालत से खाली नहीं।


पैगंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इन सातों मुक़द्दस औलाद में से हज़रते इब्राहीम रदियल्लाहु अन्हु हज़रते मारिया किब्तिया के शिकम से तवल्लुद हुए थे। बाकी तमाम औलादे किराम हज़रते बीबी खदीजतुल कुब्रा रदियल्लाहु अन्हा के बतने मुबारक से पैदा हुईं। अब हम इन औलादे किराम के ज़िक्रे जमील पर कदरे तफ़्सील के साथ रौशनी डालते हैं।


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हज़रते क़ासिम रदियल्लाहु अन्हु 


यह सबसे पहले फ़र्ज़न्द हैं जो हज़रते ख़दीजा रदियल्लाहु अन्हा की आग़ोशे मुबारक में ऐलाने नुबुव्वत से कब्ल पैदा हुए। पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की कुन्नियत अबुल क़ासिम इन्हीं के नाम पर है। जमहूर उलमा का यही क़ौल है कि यह पांव पर चलना सीख गए थे कि उनकी वफ़ात हो गई। और इब्ने सअ्द का बयान है कि इनकी उम्र शरीफ़ दो बरस की होगी मगर अल्लामा ग़लाबी कहते हैं कि यह फ़क़त सत्रह माह ज़िंदा रहे।

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हज़रते अब्दुल्ला रदियल्लाहु अन्हु


इन ही का लक़ब तय्यिब व ताहिर है। ऐलाने नुबुव्वत से कब्ल मक्का मुअज्जमा में पैदा हुए और बचपन ही में वफ़ात पा गए।

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हज़रते इब्राहीम रदियल्लाहु अन्हु 


यह पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की औलादे मुबारका में सबसे आख़िरी फ़र्ज़न्द हैं। यह जिलहिज्जा 8 हिजरी में मदीना मुनव्वरा के करीब मकामे आलिया के अंदर हज़रते मारिया किब्तिया रदियल्लाहु अन्हा के शिकमे मुबारक मुबारक से पैदा हुए। इसलिए मकामे आलिया का दूसरा नाम मशरबे इब्राहीम भी है। इनकी विलादत की ख़बर पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आज़ाद कर्दा गुलाम हज़रते अबू राफेअ रदियल्लाहु अन्हु ने मकामे आलिया से मदीना आकर बारगाहे अक़दस में सुनाई। यह खुशखबरी सुनकर पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ईनाम के तौर पर हज़रते अबू राफेअ रदियल्लाहु अन्हु को एक गुलाम अता फरमाया।


इसके बाद फौरन ही हज़रते जिब्राईल अलैहिस्सलाम नाजिल हुए। और आपको या अबा इब्राहीम (ऐ इब्राहीम के बाप) कह कर पुकारा। पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बेहद खुश हुए और उनके अक़ीक़ा में दो मेंढ़े आपने ज़िबह फरमाए और इनके सर के बल के वजन के बराबर चांदी खैरात फ़रमाई और इनके बालों को दफ़्न फरमा दिया और इब्राहीम नाम रखा। 


फिर इनको दूध पिलाने के लिए हज़रते उम्मे सैफ़ रदियल्लाहु अन्हा के सुपुर्द फरमाया। इनके शौहर हज़रते अबू सैफ़ रदियल्लाहु अन्हु लोहारी का पेशा करते थे। आपको हज़रते इब्राहीम रदियल्लाहु अन्हु से बहुत ज़्यादा मुहब्बत थी। और कभी-कभी आप इनको देखने के लिए तशरीफ़ ले जाया करते थे। चुनांचे हज़रते अनस रदियल्लाहु अन्हु का बयान है कि हम पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ हज़रते अबू सैफ़ रदियल्लाहु अन्हु के मकान पर गए। तो यह वह वक्त था कि हज़रते इब्राहीम जांकनी के आलम में थे। यह मंज़र देखकर पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आंखों से आंसू जारी हो गए। उस वक्त हज़रते अब्दुर्हमान बिन औफ रदियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम क्या आप भी रोते हैं? आपने इरशाद फ़रमाया कि ऐ औफ़ के बेटे! यह मेरा रोना एक शफ़्क़त का रोना है। इसके बाद फिर दोबारा जब चशमाने मुबारक से आंसू बहे तो आपकी ज़बाने मुबारक पर कलीमात जारी हो गए।


जिस दिन हज़रते इब्राहिम रदियल्लाहु अन्हु का इंतकाल हुआ। इत्तिफ़ाक़ से उसी दिन सूरज में ग्रहन लगा। अरबों के दिलों में जमाना-ए-जाहिलियत का यह अकीदा जमा हुआ था कि किसी बड़े आदमी की मौत से चांद और सूरज में ग्रहन लगता है चुनांचे बाज लोगों ने यह ख़्याल किया कि गालिबन यह सूरज ग्रहन हज़रते इब्राहीम रदियल्लाहु अन्हु की वफात की वजह से हुआ है। पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस मौके पर एक खुत्बा दिया जिसमें जाहिलियत के इस अकीदे को रद्द फरमाया। पैग़बरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह भी फरमाया कि मेरे फ़र्ज़न्द इब्राहीम ने दूध पीने की मुद्दत पूरी नहीं की। और दुनिया से चला गया। इसलिए अल्लाह तआला ने उसके लिए बहिश्त में एक दूध पिलाने वाली को मुकर्रर फरमा दिया है। जो मुद्दते रजाअत भर उसको दूध पिलाती रहेगी। 


रिवायत है कि पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते इब्राहीम रदियल्लाहु अन्हु को जन्नतुल बक़ीअ में हज़रते उस्मान बिन मजऊन रदियल्लाहु अन्हु की कब्र के पास दफ़न फ़रमाया और अपने दस्ते मुबारक से उनकी क़ब्र पर पानी का छिड़काव किया। ब-वक्ते वफ़ात हज़रते इब्राहीम रदियल्लाहु अन्हु की उम्र शरीफ़ 17 या 18 माह की थी।

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हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा 


यह पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की साहिबज़ादियों में से सबसे बड़ी थीं। ऐलाने नुबुव्वत से 10 साल क़ब्ल जब कि पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्र शरीफ़ 30 साल की थी मक्का मुकर्रमा में इनकी विलादत हुई। यह इब्तिदा-ए-इस्लाम ही में मुसलमान हो गई थीं। और जंगे बद्र के बाद पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इनको मक्का मुकर्रमा से मदीना मुनव्वरा बुला लिया था और यह हिजरत करके मक्का मुकर्रमा से मदीना मुनव्वरा तशरीफ़ ले गईं।


ऐलाने नुबुव्वत से क़ब्ल ही इनकी शादी इनके ख़ालाज़ाद भाई अबुल आस बिन रबीअ़ से हो गई थी (अबुल आ़स हज़रते ख़दीजा रदियल्लाहु अन्हा की बहन हज़रते हाला रदियल्लाहु अन्हा के बेटे थे)।


पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते ख़दीजा रदियल्लाहु अन्हा की सिफारिश से हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा का अबुल आस के साथ निकाह फरमा दिया था। हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा तो मुसलमान हो गईं थीं मगर अबुल आस शिर्क व कुफ्र पर अड़ा रहा।


रमज़ान दो हिजरी में जब अबुल आस जंगे बद्र में गिरफ़्तार होकर मदीना आया उस वक्त तक हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा मुसलमान होते हुए मक्का मुकर्रमा ही में मुक़ीम थीं। चुनांचे अबुल आस को क़ैद से छुड़ाने के लिए इन्होंने अपना वह हार भेजा जो इनकी मां हज़रते ख़दीजा रदियल्लाहु अन्हा ने इनको जहेज़ में दिया था। यह हार पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इशारा पाकर सहाबा-ए-किराम ने हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा के पास वापस भेज दिया। और पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अबुल आस से यह वादा लेकर उनको रिहा कर दिया कि वह मक्का पहुंचकर हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा को मदीना मुनव्वरा भेज देंगे। चुनांचे अबुल आस ने अपने वादा के मुताबिक हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा को अपने भाई कनाना की हिफाजत में बतने याजज तक भेज दिया। इधर पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते ज़ैद बिन हारिसा रदियल्लाहु अन्हु को एक अंसारी के साथ पहले ही मक़ामे बदने याजज में भेज दिया था। चुनांचे यह दोनों हज़रात बतने याजज से अपनी हिफाजत में हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा को मदीना लाए। 


मंकूल है कि हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा मक्का मुकर्रमा से रवाना हुईं तो कुफ्फारे कुरैश ने उनका रास्ता रोका। यहां तक कि एक बदनसीब ज़ालिम हब्बार बिनुल अस्वद ने उनको नेज़े से डरा कर ऊंट से गिरा दिया जिसके सदमे से उनका हमला साकित हो गया। मगर उनके देवर कनाना ने अपने तरकश से तीरों को बाहर निकाल कर यह धमकी दी कि जो शख़्स भी हज़रते ज़ैनब के ऊंट का पीछा करेगा वह मेरे इन तीरों से बचकर न जाएगा। यह सुनकर कुफ्फारे कुरैश सहम गए। फिर सरदारे मक्का अबू सुफ़यान ने दर्मियान में पड़ कर हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा के लिए मदीना मुनावारा की रवानगी के लिए रास्ता साफ करा दिया।


हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा को हिजरत करने में दर्दनाक मुसीबत पेश आई इसी लिए पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इनके फ़ज़ाइल में  यह इरशाद फरमाया कि "हिया अफ़्ज़लु बनाती उसी-बत फ़िय्य" यानी यह मेरी बेटियों में इस एतिबार से बहुत ही ज़्यादा फजीलत वाली है कि मेरी ज़ैनब हिजरत करने इतनी बड़ी मुसीबत उठाई। इसके बाद अबुल आस मुहर्रम 7 हिजरी में मुसलमान होकर मक्का मुकर्रमा से मदीना मुनव्वरा हिजरत करके चले आए और हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा के साथ रहने लगे।


आठ हिजरी में हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा की वफात हो गई और हज़रते उम्मे ऐमन, हज़रते सौदा बिन्ते जमआ व हज़रते उम्मे सलमा रदियल्लाहु अन्हु ने इनको गुस्ल दिया। और पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इनके कफ़्न के लिए अपना तहबंद शरीफ़ अता फ़रमाया। और अपने दस्ते मुबारक से इनको कब्र में उतरा।


हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा की औलाद में से एक लड़का जिसका नाम अली और एक लड़की हज़रते उमामा थीं। अली के बारे में एक रिवायत है कि अपनी वालिदा माजिदा की हयात ही में बुलूग़ के करीब पहुंचकर वफात पा गए लेकिन इब्ने अ़साकर का बयान है की नसब-नामों के बयान करने वाले बाज़ उलमा ने यह ज़िक्र किया है कि जंगे यरमूक में शहादत से सरफराज हुए।


हज़रते उमामा रदियल्लाहु अन्हा से पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बड़ी मुहब्बत थी। आप उनको अपने दोशे  मुबारक पर बिठाकर मस्जिदे नबवी में तशरीफ़ ले जाते थे।


रिवायत है है कि एक मर्तबा हब्शा के बादशाह नज्जाशी रदियल्लाहु अन्हु ने आपकी खिदमत में बतौर हदिया के एक हुल्ला भेजा जिसके साथ सोने की एक अंगूठी थी। जिसका नगीना हब्शी था। पैग़बरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह अंगूठी हज़रते उमामा को अ़ता फरमाई।


इसी तरह एक मर्तबा एक बहुत ही खूबसूरत सोने का हर किसी ने पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को नज़्र किया। जिसकी खूबसूरती को देख कर तमाम अज़्वाजे मुतह्हरात हैरान रह गईं। आपने अपनी मुक़द्दस बीवियों से फरमाया कि मैं यह हार उसको दूंगा जो मेरे घर वालों में मुझे सबसे ज्यादा महबूब है। तमाम अज़्वाजे मुतह्हरात ने यह ख़्याल कर लिया कि यक़ीनन यह हार हज़रते आयशा रदियल्लाहु अन्हा को अता फरमाएंगे मगर पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते उमामा रदियल्लाहु अन्हा को क़रीब बुलाया। और अपनी इस प्यारी नवासी के गले में अपने दस्ते मुबारक से यह हर डाल दिया।

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हज़रते रुक़य्या रदियल्लाहु अन्हा 


यह ऐलाने नुबुव्वत से 7 बरस पहले जबकि पैग़ंबरे आज़म हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्र शरीफ़ का 33वां साल था, पैदा हुईं। और इब्तिदा-ए-इस्लाम ही में मुशर्रफ़ ब-इस्लाम हो गईं।


पहले इनका निकाह अबू लहब के बेटे उत्बा से हुआ था। लेकिन अभी इनकी रुख़्सती नहीं हुई थी कि सूरह-ए-तब्बत यदा नाज़िल हो गई। अबू लहब कुरआन में अपनी इस दाएनी रुसवाई का बयान सुनकर गुस्सा में आग बबूला हो गया। और अपने बेटे उत्बा को मजबूर कर दिया कि वह पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की साहिबजादी हज़रते रुक़य्या रदियल्लाहु अन्हा को तलाक दे दे। चुनांचे उत्बा ने तलाक दे दी। 


इसके बाद पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते रुक़य्या रदियल्लाहु अन्हा का निकाह हज़रते उस्मान बिन अ़फ़्फ़ान रदियल्लाहु अन्हु से कर दिया। निकाह के बाद हज़रते उस्मान रदियल्लाहु अन्हु ने हज़रते रुक़य्या रदियल्लाहु अन्हा को साथ लेकर मक्का से हब्शा की तरफ़ हिजरत की। फिर हब्शा से मक्का वापस आकर मदीना मुनव्वरा की तरफ़ हिजरत की। और यह मियां बीवी दोनों साहिबुल हिजरतैन यानी दो हिजरतों वाले के मुअ़ज़्ज़ज़ लक़ब से सरफ़राज़ हो गए। 


जंगे बद्र के दिनों में हज़रते रुक़य्या रदियल्लाहु अन्हा बहुत सख़्त बीमार थीं। चुनांचे पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते उस्मान रदियल्लाहु अन्हु को जंगे बद्र में शरीक होने से रोक दिया। और यह हुक्म दिया कि हज़रते रुक़य्या रदियल्लाहु अन्हा की तीमारदारी करें । हज़रते जैद बिन हारिस रदियल्लाहु अन्हु जिस दिन जंगे बद्र में मुसलमानों की फ़तेह मुबीन की खुशखबरी लेकर मदीना पहुंचे उसे दिन हज़रते रुक़य्या रदियल्लाहु अन्हा ने 20 साल की उम्र पाकर वफात पाई। पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जंगे बद्र के सबब से उनके जनाज़ा में शरीक न हो सके।


हज़रते उस्मान रदियल्लाहु अन्हु अगरचे जंगे बद्र में शरीफ न हुए लेकिन पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनको जंगे बद्र के मुजाहिदीन में शुमार फ़रमाया और जंगे बद्र के माले ग़नीमत में से इनको मुजाहिदीन के बराबर हिस्सा भी अता फ़रमाया और और शुरकाए जंगे बद्र के बराबर अज्रे अज़ीम की बशारत भी दी।


हज़रते रुक़य्या रदियल्लाहु अन्हा के शिकमे मुबारक से हज़रते उस्मान ग़नी रदियल्लाहु अन्हु के एक फ़र्ज़न्द भी पैदा हुए थे। जिनका नाम अब्दुल्लाह था। यह अपनी मां के बाद 4 हिजरी में छह बरस की उम्र पाकर इंतकाल कर गए।

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हज़रते उम्मे कुलसूम रदियल्लाहु अन्हा 


यह पहले अबू लहब के बेटे उतेबा के निकाह में थीं लेकिन अबू लहब के मजबूर कर देने से बदनसीब उतेबा ने उनको रुख़सती से क़ब्ल ही तलाक़ दे दी और उसे ज़ालिम ने बारगाहे नुबुव्वत में इन्तिहाई गुस्ताख़ी भी की। यहां तक कि बदज़बानी करते हुए पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर झपट पड़ा और आपके मुक़द्दस पैराहन को फाड़ डाला और उस गुस्ताख़ की बेअदबी से आपके क़ल्बे नाजुक पर इंन्तिहाई रंज व सदमा गुज़रा। और जोशे ग़म में आपकी ज़बाने मुबारक से यह अल्फ़ाज़ निकल पड़े कि "या अल्लाह! अपने कुत्तों में से किसी कुत्ते को इस पर मुसल्लत फरमा दे।"


इस दुआए नबवी का यह असर हुआ कि अबू लहब और उतेबा दोनों तिजारत के लिए एक काफ़िला के साथ मुल्के गए। और मक़ामे जुरकाअ् में एक राहिब के पास रात गुजारी। राहिब ने काफ़िला वालों को बताया कि यहां दरिंदे बहुत हैं, आप लोग ज़रा होशियार होकर सोएं। यह सुन कर अबू लहब ने काफ़िला वालों से कहा कि ऐ लोगों! है मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने मेरे बेटे उतेबा के लिए हलाकत की दुआ कर दी है। लिहाज़ा तुम भी लोग तमाम तिजारती सामानों को इकट्ठा करके उसके ऊपर उतेबा का बिस्तर लगा दो। और सब लोग उसके इर्द-गिर चारों तरफ सोए रहो। ताकि मेरा बेटा दरिंदों के हमला से महफूज़ रहे। चुनांचे काफ़िला वालों ने उतेबा की हिफ़ाज़त का पूरा-पूरा बंदोबस्त किया लेकिन रात में बिल्कुल नागहां एक शेर आया। और सबको सूंघते हुए कूद कर उतेबा के बिस्तर पर पहुंचा। और उसके सर को चबा डाला। लोगों ने हर चन्द शेर को तलाश किया मगर कुछ भी पता नहीं चल सका कि यह शेर कहां से आया था और किधर चला गया?


अल्लाह की शान देखिए कि अबू लहब के दोनों बेटों उत्बा और उतेबा ने पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दोनों शहज़ादियों को अपने बाप के मजबूर करने से तलाक़ दे दी मगर उत्बा ने चूंकी बारगाहे नुबुव्वत में कोई गुस्ताख़ी और बेअदबी नहीं की थी। इस लिए वह क़हरे इलाही में मुब्तला नहीं हुआ। बल्कि फ़तेह मक्का के दिन उसने और उसके एक दूसरे भाई मुअत्तिब दोनों ने इस्लाम क़बूल कर लिया। और दस्ते अक़दस पर बैअ़त करके शर्फे सहाबियत से सरफराज हो गए। 

हज़रते रुकय्या रदियल्लाहु अन्हा की वफात के बाद रबीउल अव्वल 3 हिजरी में पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते उम्मे कुलसूम रदियल्लाहु अन्हा का हज़रते उस्मान गनी रदियल्लाहु अन्हु से निकाह कर दिया। मगर इनके शिकमे मुबारक से कोई औलाद नहीं हुई। शाबान 9 हिजरी में हज़रते उम्मे कुलसूम रदियल्लाहु अन्हा ने वफात पाई और पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इनकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई। और यह जन्नतुल बक़ीअ में मदफ़ून हुईं।

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हज़रते फ़ातिमा रदियल्लाहु अन्हा 


यह शहंशाहे कौनेन पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सबसे छोटी मगर सबसे ज्यादा प्यारी और लाडली शहज़ादी हैं। इनका नाम फ़ातिमा और लक़ब ज़हरा और बतूल है। इनकी पैदाइश के साल में उलमा और मुअर्रिख़ीन का इख़्तिलाफ़ है। अबू उमर का कौल है कि ऐलाने नुबुव्वत के पहले साल जबकि पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्र शरीफ़ 41 बरस की थी, यह पैदा हुईं। और बअ्ज ने लिखा है कि ऐलाने नुबुव्वत से 1 साल क़ब्ल इनकी विलादत हुई और अल्लामा इब्नुल जौज़ी ने तहरीर फरमाया कि ऐलाने नुबुव्वत से पांच साल क़ब्ल इनकी पैदाइश हुई। 


इनके फ़ज़ाइल व मनाकिब का क्या कहना? इनके मरातिब व दरजात के हालात से कुतुबे अहादीस के सफ़हात मालामाल हैं। पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है कि हज़रते फ़ातिमा तमाम जहान की औरतों की सरदार और अहले जन्नत की तमाम औरतों की सरदार हैं। इनके हक़ में इर्शादे नबवी है कि फातिमा मेरी बेटी, मेरे बदन की एक बोटी है। जिसने फ़ातिमा को नाराज़ किया उसने मुझे नाराज़।


दो हिजरी में अमीरुल मोमिनीन हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु से इनका निकाह हुआ। और इनके शिकमे मुबारक से तीन साहिबज़ादगान हज़रते हसन, हज़रते हुसैन, हज़रते मुहसिन रदियल्लाहु अन्हुम और तीन साहिबजादियां हज़रते जैनब, हज़रते उम्मे कुलसूम व हज़रते रुकय्या अन्हुन्न की विलादत हुई। हज़रते मुहसिन व हज़रते रुकय्या तो बचपन ही में वफात पा गए। हज़रते उम्मे कुलसूम रदियल्लाहु अन्हा का निकाह अमीरुल मोमिनीन हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु से हुआ। जिनके शिकमे मुबारक से आपके एक फ़र्ज़न्द हज़रते जैद और एक साहिबज़ादी हज़रते रुकय्या की पैदाइश हुई। और हज़रते जैनब रदियल्लाहु अन्हा की शादी हज़रते अब्दुल्लाह बिन जाफर रदियल्लाहु अन्हा से हुई। 


पैग़ंबरे आज़म हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के विसाल शरीफ़ का हज़रते फ़ातिमा रदियल्लाहु अन्हा के क़ल्बे मुबारक पर बहुत गहरा सदमा लगा। चुनांचे विसाले अक़दस के बाद हज़रते फ़ातिमा रदियल्लाहु अन्हा कभी हंसते हुए नहीं देखी गईं। यहां तक कि विसाले नबवी के छह माह बाद तीन रमजान 11 हिजरी मंगल की रात में अपने दाई-ए-अजल को लब्बैक कहा। हज़रते अली या हज़रते अब्बास  रदियल्लाहु अन्हुम ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई। और सबसे ज्यादा सही और मुख़्तसर कौल यही है कि जन्नतुल बक़ीअ में मदफ़ून हुईं।

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