अबू रिहान अल-बेरूनी (973 ई० 1048 ई.) : Untold Muslim Scientist, philosophers story
अल बेरूनी का पूरा नाम अबू रिहान मुहम्मद बिन अहमद अल बेरूनी है। उनका जन्म ईरान के नगर खवारज़म के निकट एक गाँव में हुआ। वह एक महान खगोल शास्त्री गुजरे हैं। उन्हें अपने जीवन में ही कीर्ति प्राप्त हुई।
उस समय ख़वारज़म पर अहमद बिन मुहम्मद अबू रिहान अल-बेरूनी बिन इराक़ी का शासन था। इस परिवार का संबंध राक़ से था इसलिए वह आल-ए-ईराक़ (ईराक़ के वंशज) कहलाते थे। अल-बेरूनी का चचेरा भाई ज्ञान और विद्या का पारखी था। इसलिए उसने अल-बेरूनी की शिक्षा और प्रशिक्षण का पूरा प्रबंध किया। यही कारण है कि अल-बेरूनी ने अपनी पुस्तकों में अपने चचेरे भाई का विवरण बड़े सम्मान के साथ किया है।
जब ख़वारज़मी का राज्य समाप्त हुआ तो अल-बेरूनी पलायन करके जरजान चले आए। वहाँ के शासक क़ाबूस ने आपका बड़ा सम्मान किया और अल-बेरूनी कई वर्ष जरजान में रहे। यहाँ अल-बेरूनी ने अपनी प्रथम पुस्तक ‘आसारुल वानिया’ लिखी। जब ख़वारज़म में स्थिति सामान्य हो गई तो वह वतन वापस आ गए। उस ज़माने में महान वैज्ञानिक और आयुर्विज्ञान शास्त्री बू-अली सीना ख़वारज़म आये हुए थे। दोनों महान व्यक्तियों की मुलाक़ात हुई और दोनों ने घण्टों विभिन्न विषयों पर विचार-विमर्श किया।
उसके बाद अल-बेरूनी अफ़ग़ानिस्तान चले गये। उस समय वहाँ ग़ज़नी परिवार का शासन था। अल-बेरूनी 1017 ई० में ग़ज़नी आये और 1019 ई. तक वहाँ रहे। ग़ज़नी के सुल्तान महमूद ने उनके लिए एक वैद्यशाला का निर्माण कराया जहाँ से अल-बेरूनी अंतरिक्ष का निरीक्षण करते।
दो साल बाद भारत में प्रचलित विद्याओं को सीखने भारत के कई नगरों में रहे। आपने पंजाब के प्रसिद्ध नगरों लाहौर, जेहलम, सियाल कोट और मुल्तान के अक्षांशों का पता लगाया। भारत में उन्होंने दस साल गुज़ारे और यहाँ की विद्याओं और भाषा को सीखा। इसके अलावा भारत के रीति रिवाजों, रहन-सहन और धर्मों के बारे में व्यापक जानकारी प्राप्त की। ग़ज़नी वापस जाकर उन्होंने भारत पर ‘किताबुल हिंद’ नाम की पुस्तक लिखी। उस जमाने के भारतीय इतिहास की यह सबसे अच्छी पुस्तक मानी जाती है।
– महमूद ग़ज़नवी के देहांत के पश्चात उसके पुत्र सुल्तान मसऊद ने सत्ता संभाली। वह भी अपने पिता की तरह अल-बेरूनी का बड़ा सम्मान करता था। उस ज़माने में अल-बेरूनी ने खगोल विद्या पर पुस्तक लिखी जिसका नाम ही उसने क़ानून-ए-मसऊदी रखा। अल-बेरूनी ने अपने जीवन काल में डेढ़ सौ से अधिक पुस्तकें और रिसाले लिखे। यह पुस्तकें गणित, खगोल, भौतिकी, इतिहास, भूगोल, संस्कृति, रसायन-शास्त्र और जीव-विज्ञान पर आधारित हैं।
विभिन्न विषयों पर इतनी पुस्तकें देखकर पता चलता है कि अल-बेरूनी अपने ज़माने के जीनीयस थे। वह संस्कृत भाषा के भी विद्वान थे।
अल-बेरूनी की पुस्तकें ‘आसारुल वाक़िया’ और ‘किताबुल हिंद’ का अंग्रेज़ी भाषा में अनुवाद हो चुका है। ‘क़ानून-ए-मसऊदी’ के कई भागों का अनुवाद भी किया जा चुका है।
लजिस्तान नगर में अल-बेरूनी का देहांत हुआ।
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