हिब्सतुल्लाह अबुल बरकात बग़दादी : Untold Muslim Scientist, philosophers story
हिब्सतुल्लाह अबुल बरकात बग़दादी सलजोक़ी शासक मुहम्मद बिन मलिक शाह के शासनकाल के प्रसिद्ध चिकित्सक गुज़रे हैं। उनका जन्म इराक़ के एक क़स्बे जोबला में हुआ। लेकिन उन्होंने पूरा जीवन बग़दाद में गुजारा। वह यहूदी परिवार में जन्मे बाद में मुसलमान हो गये थे।
आपको शिक्षा प्राप्त करने का बड़ा शौक़ था। विशेषकर आयुर्विज्ञान में रुचि रखते थे। बग़दाद के प्रसिद्ध चिकित्सक अबुल हसन सईद के स्कूल में आप प्रवेश के लिये गये लेकिन आपका दाखिला न हुआ। हिब्सतुल्लाह अबुल बरकात को पढ़ने का इतना शौक़ था कि वह उस स्कूल में दरबान की नौकरी करने लगे। जब अबुल हसन सईद छात्रों को पढ़ाते तो वह ध्यान लगाकर उनका लेक्चर सुनते और उसे याद कर लेते।
एक दिन अबुल हसन छात्रों से प्रश्न पूछ रहे थे कि एक सवाल का जवाब कोई भी छात्र न दे पाया। उस समय हिब्सतुल्लाह बग़दादी ने उस्ताद से प्रार्थना की अगर आप इजाज़त दें तो मैं इसका उत्तर दूं। उन्होंने आज्ञा दे दी। हिब्सतुल्लाह ने इतने विस्तार से उत्तर दिया कि सभी हैरान रह गये। अबुल हसन इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें तुरन्त अपना शिष्य बना लिया।
अबुल बरकात बग़दादी ने दिल लगाकर शिक्षा ग्रहण की और चिकित्सा के मैदान में उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई।
एक बार सलजोक़ी शासक मुहम्मद बिन मलिक शाह बीमार हुआ तो उसने अंबुल बरकात बग़दादी को नेशापुर बुलाया। वह ठीक हो गया और स्वस्थ्य होकर उसने बग़दादी को मालामाल कर दिया। मलिक शाह के बाद उसके पुत्र भी उनकी सेवाओं से लाभ उठाते रहे और अबुल बरकात को इनाम देते रहे।
चिकित्सक होते हुए भी अबुल बरकात ने दर्शनशास्त्र और विज्ञान पर
‘अल-मोअतबर’ नामी पुस्तक लिखी है। जिसमें उन्होंने अरस्तू और दूसरे यूनानी दार्शनिकों की ग़लत राय की आलोचना की है और उसके बदले स विचारों को प्रकट किया है।
उन्होंने पहली बार अपनी पुस्तक में लिखा कि कुओं और चश्मों का पानी दरअसल रेश का ही पानी है जिसे भूमि सोख लेती है तो जमीन के नीचे जमा हो जाता है। सत्तर वर्ष की आयु में उनका देहांत हुआ।
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