अबुल क़ासिम अलज़हरावी (936 ई. 1013 ई०)

 


अबुल क़ासिम बिन अबी अल अब्बास अलज़हरावी 936 ई. में स्पैन के नगर मदीनतुज्जोहरा (Cordoba) में पैदा हुए। इसीलिए वह अलज़हरावी कहलाते हैं। वह वह बहुत प्रसिद्ध चिकित्सक गुजरे हैं और औषध विज्ञान के बहुत बड़े ज्ञानी माने जाते हैं।

अबुल क़ासिम अलज़हरावी का जन्म ऐसे माहौल में हुआ जब इस्लामी संस्कृति और ज्ञान की प्रगति शिखर पर थी। उन्होंने उस युग की बेहतरीन यूनिवर्सिटी से शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने इस्लामी दौर के स्पैन में सर्जरी में निपुणता प्राप्त की और अमीर अब्दुर्रहमान के मुख्य चिकित्सक बन गये। उन्हें क़िरतबा के शाही अस्पताल में सर्जन नियुक्त कर दिया गया।

उस युग में मुसलमानों ने सर्जरी में निपुणता प्राप्त कर ली थी। मेडिकल के छात्रों से जानवरों का (Dissection) चीड़-फाड़ कराई जाती थी जिस प्रकार आधुनिक मेडिकल कॉलिजों में कराई जाती है।

उन्होंने सर्जरी पर तीस खण्डों में एक पुस्तक ‘अल-तसरीफ़’ लिखी और सर्जरी में प्रयोग किये जाने वाले औजारों के चित्र भी बनाए। उनके द्वारा बनाए गये कई औज़ार आज भी इस्तेमाल किये जाते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि आज के युग में शल्य चिकित्सा ने जो प्रगति की है उसमें अबुल क़ासिम का बड़ा योगदान है। उनकी पुस्तक ‘अल-तसरीफ़’ वर्षों तक यूरोप के मेडिकल कॉलिजों में पढ़ाई जाती रही। यह पुस्तक महान मुस्लिम वैज्ञानिक

पहली बार 1497 ई. में लातीनी भाषा में छापी गई। उसके बाद इसके तीन और संस्करण प्रकाशित हुए। यह पुस्तक फ्रैंच और अंग्रेजी भाषाओं में भी प्रकाशित हुई। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि उन्नीसवीं शताब्दी तक अल-तसरीफ़ यूरोप के मेडिकल कॉलिजों में पढ़ाई जाती थी। इस पुस्तक की विशेषता यह है कि इससे पहले विस्तार से सर्जरी पर कोई और किताब प्रकाशित नहीं हुई और न ही इतने सुन्दर चित्र बनाए गये।

अबुल क़ासिम की लेखन शैली भी सबसे भिन्न है वह जिस विषय पर कलम उठाते थे तो इतनी सुन्दरता से उसका विवरण करते थे कि पढ़ने वालों को कोई परेशानी न हो। उनकी पुस्तक ‘अल-तसरीफ़’ का सर्जरी वाला भाग सबसे पहले लातीनी में प्रकाशित हुआ। इसी पुस्तक ने सदियों तक यूरोप वालों का मार्गदर्शन किया।

स्पैन का शहर क़िरतबा सर्जरी के लिए मशहूर था। मुश्किल ऑप्रेशन क़िरतबा लाकर किये जाते थे। उन्हें सर्जरी का पितामह कहा जाता है।

अबुल क़ासिम ने सबसे पहले कोढ़ के लक्षणों के बारे में लिखा। इसी पुस्तक के आधार पर बाद में कुतबुद्दीन अलशीराज़ी (1236 ई. से 1311 ई०) ने कोढ़ पर एक पुस्तक ‘रिसाला फ़िलबर्स’ लिखी।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

*गोरखपुर में डोमिनगढ़ सल्तनत थी जिसे राजा चंद्र सेन ने नेस्तोनाबूद किया*

*गोरखपुर - कदीम मुहल्ला नखास जहां कुछ दूर पर है शहीद सरदार अली खां की मजार, साढ़े छह वाली गली व शाही रोटियों के होटल*

*गोरखपुर के दरवेशों ने रईसी में फकीरी की, शहर में है हजरत नक्को शाह, रेलवे लाइन वाले बाबा, हजरत कंकड़ शाह, हजरत तोता-मैना शाह की मजार*