याकूब बिन इसहाक़ किंदी (801 ई० 873 ई.) : Untold Muslim Scientist, philosophers story
याकूब बिन इसहाक़ किंदी का पूरा नाम अबू यूसुफ़ याकूब बिन इसहाक़ बिन सबा किंदी है। याकूब किंदी के पिता कूफ़ा के गवर्नर थे। खलीफ़ा हारून रशीद ने उनका बसरा में तबादला कर दिया। याकूब किंदी का जन्म इसी शहर में हुआ और वहीं शिक्षा प्राप्त की। जवान हुए तो बग़दाद में चले गए और पूरा जीवन वहीं गुजारा।
यद्यपि याकूब किंदी के बाप दादा का संबंध शाही दरबार से था और उनकी गिनती सभासदों में होती थी लेकिन किंदी ने पूरा ध्यान विद्या ग्रहण करने में लगाया।
एक बार अब्बासी ख़लीफ़ा मुतवक्किल उनसे नाराज हो गया और सारा सामान ज़ब्त करके दरबार से निकाल दिया। बाद में सनद बिन अली की सिफ़ारिश पर आपकी पुस्तकें तो वापस मिल गईं लेकिन उसके बाद वह कभी शाही दरबार में नहीं गये और अपना जीवन पुस्तकालयों को समर्पित कर दिया।
ख़लीफ़ा मामून रशीद के शासनकाल में धर्मशास्त्र और फ़लसफ़े की जगह-जगह चर्चा होने लगी। उन दिनों बलख के गुरु किंदी से दुश्मनी हो गई और उन्होंने किंदी को मारने की योजना बनाई। किंदी को जब उनकी योजना का पता चला तो उन्होंने स्वयं उस आलिम से मिलकर समझाया कि वह धर्म विरोधी नहीं हैं। उन्होंने तर्क दिया कि विज्ञान इस्लामी धर्मशास्त्र के विरुद्ध नहीं है। इस बहस से वह आलिम बहुत प्रभावित हुए और कुछ समय तक किंदी के भाषण सुनने आते रहे। किंदी । गणित शास्त्री, खगोल शास्त्री, भूगोल शास्त्री और निपुण संगीतकार थे। उन्होंने गुप्त सांकेतिक लेखन विद्या (Cryptography) के नियम बनाए।
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