सुलेमान अल-मेहरी ( सोलहवीं शताब्दी)

 



सुलेमान अल-मेहरी सोलहवीं शताब्दी के मशहूर समुद्र यात्री, भूगोल शास्त्री और अंतरिक्ष ज्ञानी हैं। उन्होंने इन विषयों पर पाँच पुस्तकें और एक सफ़रनामा लिखा है। उनका संबंध दक्षिणी अरब के एक क़बीले मोहरा मे था। जहाजरानी पर उनकी पुस्तक ‘अल-उमदतुल बहरिया’ अपने युग की बेहतरीन पुस्तक है। तुर्की भाषा में इसका अनुवाद ‘अलमुहीत’ के नाम से हुआ है। ।

उन्होंने एक पुस्तिका विभिन्न देशों में प्रयोग में लाये जाने वाले कलैण्डरों के बारे में लिखी है। जिसमें उनका प्रयोग भी बताया गया है।

एक पुस्तक में आकाश में तारों की स्थिति और उनके हिसाब से विभिन्न बंदरगाहों के बीच की दूरी और तारों की ऊँचाई से रास्तों को तलाश करने की जानकारी दी है। उन्होंने विभिन्न दिशाओं में चलने वाली हवाओं के बारे में भी लिखा है। सुलेमान का ज्यादा समय सागर की गोद में गुज़रा। उन्होंने नये-नये मार्गों का पता लगाया और हिन्द महासागर में कई टापुओं की खोज की।

उनकी पुस्तक में मकरान, सिंध, गुजरात, मालाबार, बंगाल, स्याम, चीन और मलाया के क्षेत्रों का जिक्र मिलता है। इसके अलावा पूर्वी अफ्रीका और पश्चिमी चीन की बंदरगाहों के बारे में ज्ञानवर्धक जानकारी दी है। उनकी पुस्तकों की एक विशेषता यह है कि उन्होंने इसमें जिन समुद्री रास्तों का पता बताया है वह बिल्कुल ठीक हैं।

सुलेमान ने जो जानकारी अपनी पुस्तकों में दी है वह आने वाली नस्लों का मार्ग दर्शन करती है और उनके ज्ञान में वृद्धि करती है। विशेषकर हिन्द महासागर में नाविकों के समक्ष आने वाले खतरों और उनसे बचने के नए-नए रास्ते बताए हैं। उनकी पुस्तक शताब्दियों तक नाविकों और जलयात्रियों के ज्ञान में वृद्धि करती रही। 

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